Last Updated on July 31, 2020 by admin
देसी गाय के घी के औषधीय गुण : desi gay ke ghee ke gun
- गाय का घी रस और पाक में स्वादिष्ट, शीतल, भारी, जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला, स्निग्ध, सुगन्धित, रसायन, रुचिकर, नेत्रों की ज्योति बढ़ानेवाला है।
- गाय का घी कान्तिकारक, वृष्य और मेधा, लावण्य, तेज तथा बल देनेवाला, आयुप्रद, बुद्धिवर्धक, शुक्रवर्धक, स्वरकारक, हृद्य, मनुष्य के लिये हितकारक और बाल, वृद्ध तथा क्षतक्षीण के लिये ठोस और अग्नि दग्ध व्रण, शस्त्र क्षत, वात, पित्त, कफ, दम, विष तथा त्रिदोषका नाश करता है।
- सतत ज्वर के लिये हितकारक और आम ज्वर वाले के लिये गाय का घी विष-समान है।
- मक्खन में से ताजा निकाला हुआ गाय का घी तृप्तिकारक, दुर्बल मनुष्य के लिये हितकारक और भोजन में स्वादिष्ट होता है।
- गाय का घी नेत्ररोग,पाण्डु और कामला के लिये प्रशस्त है।
- हैजा, अग्निमान्द्य, बाल, वृद्ध, क्षयरोग, आमव्याधि,कफ रोग, मदात्यय, कोष्ठ बद्धता और ज्वर में घी कम ही देना चाहिये।
- गाय का पुराना घी तीक्ष्ण, सारक, खट्टा, लघु, तीखा, उष्ण वीर्य, वर्णकारक, छेदक, सुननेकी शक्ति बढानेवाला, अग्निदीपक, घ्राण संशोधक, व्रण को सुखानेवाला और गुल्म, योनिरोग, मस्तकरोग, नेत्ररोग, कर्णरोग, सूजन, अपस्मार, मद, मूर्च्छा, ज्वर, श्वास, खाँसी, संग्रहणी, अर्श, श्लेष्म, कोढ़, उन्माद, कृमि, विष-अलक्ष्मी और त्रिदोष का नाश करता है।
- गाय का घी वस्तिकर्म और नस्य में प्रशस्त है।
- दस वर्षका पुराना गाय का घी “जीर्ण“, एक सौ वर्ष से एक हजार वर्ष का “कौम्भ” और ग्यारह सौ वर्ष के ऊपर का “महाघृत” कहलाता है। यह जितना ही पुराना होता जाता है, उतना ही इसका गुण अधिक बढ़ता जाता है।
- सौ बार धोया हुआ घी घाव, दाह, मोह और ज्वर का नाश करता है।
- घी में दूसरे गुण दूध जैसे होते हैं।
- गाय के घी को धोये बिना फोड़े आदि चर्म रोगों पर लगाने से जहर के समान असर होता है, वैसे ही धोये हुए घी को खाने से विषवत् असर होता है। यानी फोड़े पर धोया हुआ घी लगाना चाहिये, पर धोया हुआ घी कभी खाना नहीं चाहिये।
- ज्वर, कोष्ठबद्धता, विषूचिका, अरुचि, मन्दाग्नि और मदात्यय रोग में नया घी नुकसानदायक होता है।
- पुराना घी यदि एक वर्षसे ऊपर का हो तो मूर्च्छा, मूत्रकृच्छु, उन्माद, कर्णशूल, नेत्रशूल, शोथ, अर्श, व्रण और योनिदोष इत्यादि रोगों में विशेष लाभकारी है।
देसी गाय के घी के फायदे और उपयोग : gay ke desi ghee ke fayde
1). आधासीसी के ऊपर- गाय का अच्छा घी सबेरे शाम नाक में डाले, इससे सात दिन में आधासीसी बिलकुल दूर हो जायगी अथवा प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व एक तोला गाय का घी और एक तोला मिस्री मिलाकर तीन दिन तक खिलाये तो निश्चय ही आराम होता है।
2). नाक से खून गिरने पर- गाय का अच्छा घी नाक में डाले।
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3). पित्त सिर में चढ़ जाने पर- अच्छा घी माथेपर चुपड़ दे, इस से चढ़ा हुआ पित्त तत्काल उतर जाता है।
4). हाथ-पैर में दाह होने पर- गाय का अच्छा घी चुपड़ दे।
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5). ज्वर के कारण शरीर में अत्यन्त दाह होने पर- घी को एक सौ या एक हजार बार धोकर शरीर पर लेप
करे।
6). धतूरा अथवा रसकपूर के विष के ऊपर- गाय का घी खूब पिलाये।
7). शराब का नशा उतारने के लिये- दो तोला घी और दो तोला शक्कर मिलाकर खिलाये।
8). गर्भिणी के रक्तस्राव के ऊपर- एक सौ बार धोया हुआ घी शरीर पर लेप करे।
9). चौथिया ज्वर, उन्माद और अपस्मार पर- गाय का घी, दही, दूध और गोबर का रस इनमें घी को सिद्ध करके पिलाये।
10). जले हुए शरीर पर- गाय के धोये हुए घी का लेप करे।
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11). सिरदर्द के ऊपर- गाय का दूध और घी इकट्ठा करके अञ्जन करे। इससे नेत्रकी शिराएँ लाल हो जाती हैं और रोग चला जाता है।
12). बालकों की छाती में कफ जम जाने पर- गाय का पुराना घी छाती पर लगाकर उसे मालिश करे।
13). शरीर में गरमी होने से रक्त खराब होकर शरीर के ऊपर ताँबे के रंग के काले चकत्ते हो जायँ और उनकी गाँठ शरीर के ऊपर निकल आये तब पहले जोंक से रक्त निकलवा दे, पीछे पीतल के बर्तन में गाय का घी दस तोला अथवा आधा गाय और आधा बकरी का घी लेकर उसमें पानी डालकर हाथ से खूब फेंटे और वह पानी निकालकर दूसरा पानी डाले। इस प्रकार एक सौ बार पानीसे धोये। उसमें ढाई तोला फुलायी हुई फिटकिरी का चूर्ण डालकर घोंटे और उसे एक मिट्टी के बर्तनमें रखे। इसे नित्य सोते समय गाँठ बने हुए सब स्थानोंपर लेप करनेसे शरीरमें जमी हुई गरमी कम हो जाती है, कुछ ही दिनों में शरीर से दाह मिट जाता है, रक्त शुद्ध हो जाता है और यह दुष्ट रोग नष्ट हो जाता है।
14). तृष्णा-रोग के ऊपर- घी और दूध मिलाकर पिलाये।
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15). दाह के ऊपर- एक सौ से एक हजार बार धोये हुए घी को शरीरपर चुपड़े।
16). हिचकी पर- गाय का घी पिलाये।
17). संनिपातज विसर्प के ऊपर- एक सौ बार धोये हुए घी का बारंबार लेप करे।
18). गरमी के ऊपर – गाय के घीमें सीप का भस्म डालकर उसे खरल करके लेप करे।
19). सर्प के विष के ऊपर- पहले बीस से चालीस तोला घी पीये, उसके पंद्रह मिनट के बाद थोड़ा उष्ण जल जितना पी सके उतना पीये। इससे उलटी और दस्त होकर विषका शमन हो जाता है। जरूरत हो तो दूसरे समय भी घी और पानी पिये।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)