चन्द्रप्रभा वटी के हैरान करदेने वाले लाजवाब फायदे | Chandraprabha Vati ke fayde

Last Updated on August 17, 2022 by admin

“चन्द्रप्रभा वटी” लाभदायक आयुर्वेदिक योग :

‘चन्द्रप्रभा वटी’ आयुर्वेद शास्त्र का एक ऐसा अद्भुत एवं गुणकारी योग है जो आज के युग में स्त्री-पुरुष दोनों वर्ग के लिए किसी भी आयु में उपयोगी एवं लाभकारी सिद्ध होता है । आजकल जिस तरह का खानपान, रहन सहन और आचार-विचार अधिकांश लोगों का पाया जा रहा है उसके फलस्वरूप पैदा होने वाले कई विकारों को दूर करने में चन्द्रप्रभा वटी सफलतापूर्वक सक्षम सिद्ध होने वाला योग है । ‘‘रस तन्त्रसार व सिद्ध प्रयोग संग्रह” तथा “आयुर्वेद-सारसंग्रह” नामक सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रंथों में इस योग की बहुत प्रशंसा की गई है और वैद्य जगत भी इसे बहुत गुणकारी एवं विश्वसनीय योग मानता है ।

चन्द्रप्रभा वटी के घटक द्रव्य :

कपूर, बच, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, देवदारु, हल्दी, अतीस, दारू हल्दी, पीपलामूल; चित्रक, धनिया, हरड़, बहेड़ा, आवला, चब्य, बायविडंग, गजपीपल, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, सुवर्ण माक्षिक भस्म, सज्जीखार, जवाखार, सेंधा नमक, काला नमक, सांभर नमक-ये सब 3-3 ग्राम ,काली निशोथ, दन्तीमूल, तेजपत्र, दालचीनी, छोटी इलायची के दाने, वंश लोचन-10-10 ग्राम ,लोह भस्म 20 ग्राम , मिश्री 40 ग्राम ,शुद्ध शिलाजीत 80 ग्राम और शुद्ध गूगल 80 ग्राम ।

‘आयुर्वेद-सारसंग्रह’ ग्रंथ में इतने घटक- द्रव्यों के अलावा छोटी इलायची के बीज, कबाबचीनी, गोखरू और सफेद चन्दन 3-3 ग्राम तथा बड़ी इलायची 10 ग्राम को भी शामिल किया गया है । इतने द्रव्य बढ़ाने से इस योग की उपयोगिता एवं गुणवत्ता और ज्यादा बढ़ जाती है ।

चन्द्रप्रभा वटी की निर्माण विधि : chandraprabha vati banane ki vidhi

दोनों ग्रन्धों में इसकी निर्माण विधि अलग-अलग ढंग से दी गई है । ‘रसतन्त्रसार व सिद्धप्रयोग संग्रह के अनुसार सब दवाइयों को कूट पीस कर खूब बारीक करके मिला ले और थोड़ा-थोड़ा गोमृत डाल कर कूटते जाएं । सब को एकसार करके चने बराबर गोलियां बना लें । ‘आयुर्वेद-सार संग्रह’ के अनुसार पहले गुग्गुल को साफ करके लोहे के इमामदस्ते में कूटें । जब गुग्गुल नरम पड़ जाए तब उसमें शुद्ध शिलाजीत, भस्में तथा अन्य सभी द्रव्यों का कुटापिसा महीन चूर्ण डाल दें और तीन दिन तक गिलोय का स्वरस डालते हुए खरल में घुटाई करें । फिर 3-3 रत्ती की गोलियां बना कर रख लें । गोलियां गीली हों तो छाया में सुखा कर रखें।

मात्रा और सेवन विधि :

2-2 गोली सुबह शाम शहद में मिला कर चाट लें या दूध के साथ निगल जाया करें।

चन्द्रप्रभा वटी के फायदे और उपयोग : Chandraprabha Vati ke fayde

1. मूत्रेन्द्रिय के रोग – इस अद्भुत योग का मुख्य कार्य और प्रभाव मूत्रेन्द्रिय तथा स्त्री-पुरुष के यौनांग प्रदेश से सम्बन्धित सभी विकारों को नष्ट करना है । पुरुषों के शुक्र और स्त्रियों के आर्तव का उत्पादन करने वाले यौनांगों के विकारों का शमन करके उनको बलवान बनाना एवं रसायन की तरह लाभ करना इस योग का मुख्य कार्य (Action) है ।

2. पेशाब मे जलन –  इसके सेवन से मूत्रकृच्छ (पेशाब में रुकावट और जलन होना) प्रमेह, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, धातुक्षीणता, पथरी, भगन्दर, अंडवृद्धि, पाप, बवासीर, कमर दर्द तथा स्त्रियों के गर्भाशय सम्बन्धी विकार, श्वेत प्रदर, सुजाक व आतशक आदि से उत्पन्न मूत्र विकार, मूत्र के साथ एल्बूमन (Albumen) जाना, मूत्र पीला और दुर्गन्ध युक्त होना, हस्त मैथुन एवं अति मैथुन के कारण यौनांग का शिथिल होना और शीघ्रपतन रोग होना, गर्भाशय के दुर्बल होने से गर्भ न रहना या गर्भपात हो जाना आदि अनेक व्याधियों को दूर करने में यह योग सफलतापूर्वक सहायक सिद्ध होता है ।

3. शुक्राणुओं की वृद्धि – शुक्र में शुक्राणुओं की नवीन उत्पत्ति कर शुक्राणुओं की वृद्धि करता है तथा रक्ताणुओं का शोधन तथा नवनिर्माण करता है।

4. गर्भाशय की कमजोर – महिलाओं के मामले में गर्भस्राव, गर्भपात, सुजाक या उपदंश का परम्परागत प्रभाव, जल्दी-जल्दी गर्भ धारण, अति सहवास, अधिक प्रसव, शारीरिक दुर्बलता आदि कारणों से गर्भाशय कमजोर और गर्भभार सहने में असमर्थ हो जाता है, चेहरा निस्तेज मन में उत्साहहीनता, शरीर के अंग-प्रत्यंगों में कमजोरी और दर्द होना मासिक धर्म का अनियमित होना और कष्ट के साथ होना, श्वेत प्रदर होना आदि सभी व्याधियों को दूर करने में चन्द्रप्रभा वटी का सेवन करना बहुत लाभप्रद सिद्ध होता है ।

5. बलवर्धक – थके हुए कमजोर और शिथिल शरीर वाले युवक-युवतियों या प्रौढ़ स्त्री पुरुषों को चन्द्रप्रभावटी की 2-2 गोली सुबह शाम लगातार 3-4 माह तक सेवन करना चाहिए ।

6. पुराने रोग – जीर्ण (पुराने) रोग में धैर्यपूर्वक, उचित परहेज करते हुए 3-4 माह तक सेवन करना चाहिए ।

चन्द्रप्रभा वटी के नुकसान : Chandraprabha Vati ke nuksan

सामान्य रूप से चन्द्रप्रभा वटी के कोई साइड इफैक्ट नहीं है लेकिन फिरभी लोहे की मात्रा होने के कारण जिन्हें पेट में अल्सर, थैलेसीमिया जैसे रोग हो उन्हें इसे नहीं लेना चाहिए।

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(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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