Last Updated on March 26, 2022 by admin
हेमगर्भ पोट्टली रस क्या है ? (Hemgarbh Pottali Ras in Hindi)
हेमगर्भ पोट्टली रस पाउडर व टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग – संग्रहणी, हृदयरोग, श्वास-कास आदि रोगों के उपचार में किया जाता है। हेमगर्भ पोट्टली रस का उपयोग सान्निपातिक ज्वर की अन्तिम अवस्था में बहुत अच्छा होता है।
बनाने की विधि :
यूं तो यह योग बना–बनाया बाज़ार में मिल जाता तथापि नुस्खे और निर्माण विधि को जानने की इच्छा एवं रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यहां इस योग के घटक द्रव्य और निर्माण करने के ढंग के विषय में आवश्यक जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।
पहला योग –
- शुद्ध पारा 4 तोला और स्वर्ण भस्म या वर्क 1 तोला लें। यदि भस्म न लेकर वर्क लिये हों, तो पारा वर्क को एकत्र मिलाकर खरल करें।
- जब स्वर्ण वर्क पारा में मिल जाय तो उसमें 10 तोला शुद्ध गन्धक डाल कर कज्जली बनावें और उसे कचनार की छाल के ररा में खरल कर गोला बना. सुखा, सराब-सम्पुट में बन्द कर 3-4 कपड़मिट्टी लगा, 3 दिन भूधर-यन्त्र में पकावें।
- स्वांग-शीतल होने पर दवा निकाल कर उसके बराबर शुद्ध गन्धक डाल, अदरक रस, चित्रक रस की 1-1 भावना दे कर खरल करके बड़ी-बड़ी कौड़ियों में भर दें।
- फिर समस्त औषधियों का आठवा भाग सुहागा और सुहागे से आधा शुद्ध विष लेकर दोनों को सहुँड (थूहर) के दूध में घोंट कर उससे उन कौड़ियों का मुख बन्द कर दें।
- फिर उन्हें चूना पुते हुए सराब-सम्पुट में बन्द कर उस पर तीन-चार कपड़-मिट्टी कर गजपुट में पकावें ।
- जब स्वांग-शीतल हो जाय तो दवा को निकाल कर पीस लें।
-र. का.घे.
दूसरा योग –
- स्वर्ण भस्म 1 तोला, ताम्र भस्म 1 तोला, गन्धक 1 तोला और रससिन्दूर 3 तोला, इन सब द्रव्यों को चित्रक रस में दो पहर तक खरल करके कौड़ियों में भरकर, सुहागे से कौड़ियों का मुंह बन्द कर, हांड़ी में रख, गजपुट में फूंक दें।
- स्वांग-शीतल होने पर निकाल कर कौड़ियों-सहित पीस कर, रख लें।
-आरोग्य प्रकाश
हेमगर्भ पोट्टली रस की खुराक (Dosage of Hemgarbh Pottali Ras)
चौथाई से 1 रत्ती, सुबह-शाम मधु, मिश्री, मक्खन, मलाई आदि के साथ अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ दें।
हेमगर्भ पोट्टली रस के फायदे और उपयोग (Benefits and Uses of Hemgarbh Pottali Ras in Hindi)
यह रस अतिशय तीव्र और उष्णवीर्य है। इसका उपयोग अति सम्हालकर करना चाहिये। यह औषधि आयुर्वेद के अमूल्य औषधि रत्नों में से एक उत्तम रत्न है। अनेक बार इस रस ने अत्यन्त पराकाष्ठा को पहुँचे हुए असाध्य और मृत्यु मुख में प्रवेश करने के लिये तैयार रोगियों को जीवन-दान दिया है। इतना होने पर भी इसका दुरुपयोग होने से रोगी को त्रास और बढ़ जाता है। इस रस के सेवन से तत्काल नाडी का वेग बढ़ जाता है, नाड़ी के स्पन्दन नियमित होते हैं एवं रक्ताभिसरण क्रिया सबल बनती है।
- यह रसायन दोपक, पाचक, त्रिदोषनाशक तथा अग्निवर्धक है।
- इस रसायन के सेवन से राजयक्ष्मा, संग्रहणी, हृदयरोग, श्वास-कास आदि कठिन रोग अच्छे होते हैं ।
- वात-कफ के विकार, पुराना अतिसार, पाण्ड, सूजन आदि रोगों में भी इससे बहुत लाभ होता है।
- यह शरीर की जीवनीय शक्ति को बढ़ाता और पुष्ट करता है। शीतांग सन्निपात में सम्पूर्ण अंग ठण्डा हो जाने पर यह शरीर में गर्मी लाता और सन्निपात के उपद्रवों को नष्ट करता है। सन्निपात के लिये तो यह रामबाण है।
- पुराने से पुराने भयंकर संग्रहणी रोग में भी इसका प्रयोग किया जाता है ।
- रस-रक्त और वीर्य को बढ़ाने तथा शरीर को नीरोग करने के लिये यह पुष्टिकारक दवा है।
- राजयक्ष्मा में इसका उपयोग अधिक किया जाता है।
- हेमगर्भ पोट्टली रस का उपयोग सान्निपातिक ज्वर की अन्तिम अवस्था में बहुत अच्छा होता है। आन्त्रिक सन्निपात (मोतीझरा) श्वसनक सन्निपात (न्यूमोनिया), श्लैष्मिक ज्वर (इन्फ्लुएञ्जा) या अन्य सन्निपात की अन्तिम दशा में शरीर शीतल होने लगता है, श्वास बढ़ जाता है, नाड़ी अति मन्द और छित्र हो जाती है, तन्द्रा आ जाती है, शरीर पर विशेषतः कपाल पर शीतल प्रस्वेद आता है। यह स्वेद अधिकतर आता है और हाथ-पैर शीतल आदि लक्षण प्रतीत होते हैं। ऐसी अवस्था में यह रस अति उपयुक्त है। यह अवस्था होने पर शारीरिक उत्ताप अति कम होने पर इसका कार्य अति उत्तम होता है। विशेषतः श्लैष्मिक ज्वर और श्वसनक-सन्निपात में तो यह अत्युत्तम माना गया है। परन्तु इस स्थिति में उपयोगी होने वाले हृदयोत्तेजक औषध को श्लैष्मिक आदि सन्निपातों की बिल्कुल प्रथमावस्था या द्वितीयावस्था में देने पर अति हानि होती है। ज्वर भयङ्कर बढ़ जाता है, नाड़ी वेग से चलने लगती है तथा किसी रोगी के मुँह से रक्त गिरने लगता है।
- ऋतु परिवर्तन से होने वाले अतिसार (अपचनजनित विसूचिका) और जन्तुजन्य विसूचिका में अत्यधिक दस्त लग जाने पर नाड़ी और हृदय की गति क्षीण हो जाती है, फिर श्वास प्रकोप हो जाता है, उदर देखने पर बैठा-सा भासता है। भयङ्कर तृषा, व्याकुलता, हाथ-पैर और समस्त शरीर शीतल आदि लक्षण उपस्थित होते हैं। अन्त में नाड़ी बिल्कुल डोरी सदृश कृश, मन्द और छिन्न हो जाती है, क्वचित् नाड़ी हाथ को भी नहीं लगती। इस स्थिति में हेमगर्भ पोट्टली रस अति उपयुक्त है। यह रस अदरक के रस में घिस, थोड़ा शहद मिलाकर देना चाहिये। जैसे-जैसे मात्रा शोषित होती है वैसे-वैसे प्रकृति सुधरने लगती है।
- तमक, प्रतमक, ऊर्ध्व और महाश्वास में हेमगर्भ का अच्छा उपयोग होता है। परन्तु खूब सम्हालपूर्वक कम मात्रा में देना चाहिये। अपतन्त्रक आदि वातरोग में तन्द्रा, भ्रम, सन्यास आदि लक्षण होने पर कफाधिकता हो तो इसका उत्तम उपयोग होता है। उरस्तोय और कुक्षिशूल विकार में ज्वर कम होने और नाड़ी की क्षीणता बढ़ने पर हेमगर्भ पोट्टली रस देना चाहिए।
- प्रसूता के वातप्रकोप में हेमगर्भ अति उपयुक्त है। प्रसव काल में प्रसव वेदना कम होकर नाड़ी क्षीण होने पर हेमगर्भ पोट्टली रस दिया जाता है। (औ. गु. ध. शा. के आधार से)
यदि इस रसायन के सेवन-काल में वमन होने लगे तो शहद और गिलोय का क्वाथ मिला कर पिलावें। यदि कफ का प्रकोप हो तो गुड़ और अदरक मिलाकर खिलावें। दस्त आने लगे तो भूनी हुई भाँग दही में मिला कर सेवन करावें।
हेमगर्भ पोट्टली रस के दुष्प्रभाव (Hemgarbh Pottali Ras Side Effects in Hindi)
इस दवा को केवल सख्त चिकित्सा पर्यवेक्षण के तहत उपभोग किया जाना चाहिए क्योंकि इससे कुछ प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं।
- इस आयुर्वेदिक औषधि को स्वय से लेना खतरनाक साबित हो सकता है।
- हेमगर्भ पोट्टली रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- हेमगर्भ पोट्टली रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- बच्चों की पहुच से दूर रखें ।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)