इनफर्टिलिटी कारण और बचने के उपाय

इंफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे दंपती शारीरिक और मानसिक तनाव की स्थिति में पहुंच जाते हैं। स्पर्म की मात्रा कम होती है या स्पर्म की सक्रियता बहुत कम रहती है। लिहाजा ऐसे स्पर्म महिला पार्टनर के अंडाणु को गर्भाधान के लिए सक्षम बनाने में विफल रहते हैं। अब विज्ञान और टेक्नोलॉजी की तरक्की ने असंभव को भी संभव बना दिया है। ऐसी चिकित्सा समस्या से जूझ रहे दंपतियों के लिए अब कारगर समाधान उपलब्ध हो गए हैं।

निकट कुछ वर्षों में हुये अनुसंधानों के नतीजे बताते हैं कि पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या लगातार कम होती जा रही है, जिसका कारण बदलती जीवनशैली, कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल तथा प्रदूषण माना जा रहा है। प्रयोगों से यह भी ज्ञात हुआ है कि पचास के दशक की तुलना में आज पुरुषों के शुक्राणुओं में लगभग पचास फीसदी की गिरावट आई है। वास्तव में नि: संतान दंपतियों की संख्या में तेज वृद्धि देखी जा रही है, क्योंकि इंफर्टिलिटी के कारण पुरुष संतानोत्पत्ति की क्षमता को खोने लगते हैं।

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क्या है इंफर्टिलिटी ? :

विवाह के एक वर्ष बाद भी जब दंपती को गर्भ नहीं ठहरता है तो इसे इंफर्टीलिटी स्थिति मान लिया जाता है। महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर खान – पान, धूमपान, वजन, तनाव, व्यायाम आदि जीवनशैली से जुड़ी आदतों के साथ ही उनकी उम्र भी एक बड़ी भूमिका अदा करती है। स्वस्थ बच्चे को जन्म देने की महिलाओं की क्षमता पर उम्र का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। आजकल महिलाएं कैरियर पर ज्यादा ध्यान देती हैं। उन्हें देरी से मां बनने की जोखिम के बारे में ज्यादा पता नहीं है। ऐसे में उन्हें प्रजनन से जुड़ी कई समस्याओं से जूझना पड़ता है।

कई उपाय हैं संतान प्राप्ति के :

अब इंफर्टिलिटी से निजात पाने के लिए कई उपयोगी उपचार उपलब्ध हैं। अगर जांच में शुक्राणुओं की संख्या कम पाई जाती है तो इसे बढ़ाने के लिए शुरुआती दौर में तीन महीने दवा / इंजेक्शन का कोर्स दिया जाता है तथा पुनः शुक्राणुओं की जांच की जाती है। यदि दवा / इंजेक्शन कोर्स के पश्चात भी शुक्राणुओं की मात्रा में बढ़त नहीं होती है तो उन पुरुषों को बिना समय गंवाए तुरंत डॉक्टर की सलाहानुसार अत्याधुनिक तकनीक जैसे आई.यू.आई., आई.वी.एफ. या इक्सी आदि को अपनाना चाहिए, जिससे जल्द से जल्द संतान प्राप्ति की ओर बढ़ा जा सके। याद रहे कि अब यह लाइलाज या असंभव नहीं है।

दूषित पर्यावरण से रहें दूर :

अपने काम के कारण अगर आप किसी भी तरह के कीटनाशकों या प्रदूषकों के संपर्क में आ रहे हैं, तो यह भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा दुषित पर्यावरण गर्भपात या जन्मजात विकृतियों का कारण भी बन सकता है। जीवनशैली में कुछ बदलाव और स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों का चुनाव कर प्रजनन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

पौष्टिक आहार लें :

खानपान प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मुख्य भूमिका अदा करता है और अंडाणु बनने की प्रक्रिया को बेहतर बनाता है। संतुलित और पौष्टिक भोजन सामान्य स्वास्थ्य के लिए जरूरी है और समस्त शारीरिक गतिविधियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। संतान प्राप्ति चाहने वाले दंपती को अनाज, फाइबर युक्त भोजन, फल, सब्जियां, प्रोटीन जैसे फलियां, टोफू, सूखे मेवे खाने चाहिए। जंक फूड, ट्रांस फैट, वसा वाली चीजों से दूर रहना चाहिए।

शराबखोरी संतान पैदा नहीं होने देती :

शराबखोरी से प्रजनन क्षमता घटती है। यह एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ाती है और उससे एफ एस एच का स्राव कम होता है। इससे अजन्मे बच्चे के लिए जोखिम पैदा हो सकती है। शराब से पुरुषों में भी शुक्राणुओं की संख्या प्रभावित होती है। ऐसे में यदि कोई दंपती परिवार बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें शराब का सेवन कम कर देना चाहिए।

तनाव करें कम :

तनाव बांझपन का प्रमुख कारण तो नहीं है पर प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।जो दंपती किसी भी तरह के तनाव या मनोवैज्ञानिक दबाव से जूझ रहे हैं, उन्हें सही परामर्श लेना चाहिए।

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