मानसिक दुर्बलता : कारण, उपचार और बचने के उपाय

Last Updated on May 8, 2021 by admin

मस्तिष्क भी शरीर की तरह कोशिकाओं से बना हुआ है। लेकिन शरीर एवं मस्तिष्क की कोशिकाओं में भिन्नता होती हैं । मस्तिष्क का आकार तुलनात्मक रूप से छोटा होता है और कार्य अधिक करना पड़ता है, जिससे स्ट्रेस अधिक होता है और मस्तिष्क कोशिकाओं को क्षति होती है। तुलनात्मक रूप से अन्य अव्ययों की बजाय मस्तिष्क में पोषक तत्वों की कमी होती है। जरूरी नहीं जो पोषक तत्व हम भोजनके रूप में ग्रहण कर रहे हैं। वे मस्तिष्क तक पहुँच रहे हैं ।

कर्मेन्द्रियाँ एवं ज्ञानेन्द्रीय सभी के कार्य करने पर मस्तिष्क की सक्रियता होती रहती है। परिणाम स्वरूप स्ट्रेस होता है। अतः मस्तिष्क का उचित विकास एवं सम्यक पोषण होना आवश्यक है। मस्तिष्क की कोशिकाओं का डिजनरेशन न हो स्वस्थ्य दिमाग रहे इसके लिये सम्यक पोषण के साथ मानसिक प्रसन्नता की आवश्यकता है। वर्तमान में कोविड -19 के बाद लोगों की मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। जिसमें मुख्यतः – डिप्रेशन, भ्रम याददाश्त की कमी ,शिरः शूल, टिनीटाइटिस (आवाज आना) आदि इन सभी लक्षणों में उक्त चिकित्सा कर सकते है।

मानसिक दुर्बलता के कारण :

1). वंशानुगत – वंशपरम्परा से माता – पिता, दादा – दादी, नाना – नानी आदि परम्परा से दिमाग की निर्बलता हो सकती है (जरूरी नहीं सभी संतान का दिमाग कमजोर हो)

2). गर्भधारण – गर्भधारणा के समय माता – पिता की मनोदशा, विषाद, अवसाद, तनाव, व्यग्रता, शोक, क्रोध, ईर्ष्या न्यूरोसिस आदि में उत्पन्न संतान में मानसिक विकृति, दौर्बल्य हो सकता है।

3). गर्भधारणा – गर्भधारणा के समय बुरे ग्रह नक्षत्र है तो बच्चा, मानसिक दौर्बल्य हो सकता है।

4). गर्भावस्था – गर्भावस्था में माँ के बीमार होने पर, आघात लगने से, चिंता, शोक, मोह, क्रोध, गृह कलेश एवं माँ के सम्यक पोषण न मिल पाने के कारण होता है।

5). बाल्यावस्था – जन्म से 5 वर्ष तक बच्चों का उचित पोषण, उचित लालन – पालन न होना। गृहकलेश, डर,आघात आदि कारण।

6). मानसिक चुनौतियाँ – जैसे अवसाद, तनाव, अनिद्रा या मन की अस्थिरता, शोक, मोह, क्रोध कामुकता आदि।

7). आहार – देश, काल, प्रकृति विरुद्ध आहार, राजसिक एवं तामसिक भोजन, मांसाहार का अधिक प्रयोग आदि।

8). विहार – आलसी जीवन, अस्तव्यस्त दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, अतिनिद्रा, अति जागरण, अधिक शारीरिक मानसिक श्रम, धूप एवं गर्मी में अधिक श्रम, मलिन बस्ती में निवास आदि।

9). नशा – शराब, गांजा, भांग, धूम्रपान, चाय काफी आदि चीजों का अधिक प्रयोग ।

10). दवाइयाँ – एन्जाइटी, डिप्रेशन, अनिद्रा एवं कई बीमारियों की औषधियाँ परिणाम स्वरूप मानसिक दौर्बल्य होता है।

11).बीमारियाँ – अल्जीमर्स, उन्माद, अपस्मार, न्यूरोसिस, मस्तिष्क में आघात, पार्किनसन्स आदि अनेक बीमारियाँ ।

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मानसिक दुर्बलता दूर करने में सहायक आहार :

  • सात्विक भोजन करें। नियमित एवं संयमित प्रकृति देश कालानुसार भोजन।
  • गाय का धारोष्ण दूध, घी मक्खन का सेवन करें।
  • शहद, हरी सब्जियाँ, लौकी – तोरई, टिण्डे, परवल, गाजर, कददू, ग्वार पाठा, बथुआ, पालक, चौलाई, मूंग की दाल आदि को आहार में सामिल करें ।
  • सभी तरह के फल नारियल का पानी आंवला, तुलसी के पत्ते, बादाम, काजू, अखरोट मुनक्का, किसमिस खजूर, छुहारे, अन्य ड्राई फ्रूटस अलसी तेल का सेवन करें।

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मानसिक दुर्बलता से बचने के उपाय :

इन उपायों को अपनाकर मानसिक दुर्बलता से बचा जा सकता हैं –

  1. जीवनशैली नियमित एवं संयमित रखे।
  2. सुबह ब्रह्ममुहूर्त मे जागें ।
  3. प्रातः तांबे के बर्तन का पानी पीकर नित्य कर्म करें।
  4. प्रातः हरी दूब में नंगे पैर भ्रमण करें।
  5. अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, शीर्षासन का अभ्यास करें।
  6. ध्यान व एकाग्रता का नियमित अभ्यास करें।
  7. नित्य कुछ मिनट प्राण मुद्रा लगाएं ।
  8. धार्मिक आस्था, माता-पिता, गुरू एवं वृद्ध लोगों का आशीर्वाद लें, सरल स्वभाव रखें ।
  9. दिन भर के प्रमुख कार्यों को डायरी में लिखें ।
  10. दिन भर के कार्यो का आंख बन्द करके बिस्तर पर विश्लेषण करें। अनावश्यक गतिविधि दिन में हुई है तो ध्यान रखें पुनः उलझन में न पड़ें।
  11. सोने से पूर्व सकारात्मक पुस्तकें पढ़े मधुर संगीत सुनें ।
  12. सोते समय ब्राह्मी तेल की सिर पर मालिस करे एवं सिर को ठण्डा रखें एवं नियमित समय पर सोवें । इस तरह लगातार अभ्यास करेंगे तो दिमाग की दुर्बलता दूर होगी।

आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा मानसिक दुर्बलता का उपचार :

आयुर्वेद में प्राचीन आचार्यों ने संहिताओं में मानसिक दौर्बल्य के लिये विशेष चिकित्सा एवं आहार विहार का वर्णन किया है जो मेध्य रसायन के रूप में वर्णित है।

1). पहला प्रयोग –

घटक द्रव्य – हल्दी, बच, कूठ पिप्पली, सूंठ, जीरा, अजवाइन, मुलेठी। सभी द्रव्य को समान भाग लेकर चूर्ण बना लों

सेवन विधि – एक चम्मच (3 से 5 ग्राम) पाउडर + एक चम्मच मिश्री एक चम्मच गाय के घी में मिलाकर सुबह भूखे पेट चाटें एवं इसी तरह सायं सोते समय।

2). दूसरा प्रयोग –

घटक द्रव्य – ब्राहमी, शंखपुष्पी, अश्वगंधा, शतावर, वच, जटामांसी, गिलोय, मुलेठी, कूठ, छोटी इलायची सभी द्रव्य समान भाग लें। सभी द्रव्यों को यव कुट कर लें। आठ गुनें जल में धीमी आंच पर पकावें अष्टम अंश शेष रहने पर छान लें। छने हुए क्वाथ को पुनः धीमी आंच पर पकावें गाढा होने पर सुखा कर घन सत्व सुरक्षित रख लें।

सेवन विधि – 1 ग्राम घन सत्व + 1 चम्मच गाय के घी + मिश्री मिलाकर सुबह भूखे पेट तथा रात्री सोते समय लें। इस योग को तीन महीने प्रयोग करें।

विशेष : 40 ग्राम घन संत्व + 1 ग्राम स्वर्ण भस्म + 1 ग्राम रजत भस्म + 5 ग्राम मोती पिष्टी
सभी द्रव्यों को अच्छी तरह खरल करें एवं 40 पुड़िया समान मात्रा में बना लें।

सेवन विधि – एक पुड़िया सुबह भूखे पेट गाय के घी मिश्री मिलाकर चाटे ऊपर से गाया का दूध पीवें, भोजन दोपहर में लें। सायं हल्का भोजन लें। रात में गाय का दूध + 1 चम्मच बादाम का तेल मिलाकर लें। खटाई राजसिक एवं तामसिक भोजन निषेध करें सोते समय ब्राहमी तेल की सिर पर मालिस करें एवं ब्राहमी तेल का नस्य लें।

नोट: – औषध प्रयोग करने से पहले पेट साफ कर ले हो सके तो पंचकर्म औषधालय में जाकर पंचकर्म द्वारा शरीर की सम्पूर्ण शुद्धि करावें।

3). तीसरा प्रयोग –

घटक द्रव्य – सारस्वत चूर्ण 60 ग्राम + स्मृति रस 5 ग्राम + ब्राह्मी वटी 10 ग्राम + गिलोय सत्व 10 + मोती पिष्टी 5 ग्राम रजत + भस्म 1 ग्राम सभी द्रव्यों को खरल करें। एवं समान मात्रा में 60 पुडिया बना लें।

सेवन विधि – 1 पुडिया, 1 चम्मच ब्राह्म रसायन में मिलाकर सुबह भूखे पेट लें एवं सायं सोते समय लें। भोजन के बाद सारस्वतारिष्ठ 3 चम्मच 1/2 कप पानी में मिलाकर लें। ब्राह्मी तेल का नस्य लें एवं सिर पर मालिश करें।

4). चौथा प्रयोग –

घटक द्रव्य – मूल, पत्र सहित ब्राह्मी का रस या क्वाथ + 1 किलों 500 ग्राम गाय का घी + बच, कूठ, शंखपुस्पी तीनों मिलाकर कल्क 50 ग्राम को मिलाकर पकावें घृत मात्र शेष रहने पर छान कर रख लें। यह ब्राह्मी धृत है ।

सेवनविधि – 5 से 10 ग्राम घी गाय के दूध में मिलाकर सुबह भूखे पेट लें। एक महीने तक लें।

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(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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