Last Updated on July 22, 2019 by admin
यह आँख की ऐसी बीमारी है, जिसका सही ढंग से उपचार न किए जाने पर अच्छी आँख की ज्योति सदा के लिए नष्ट हो जाती है। इसे काला मोती या झामर का पानी भी कहते हैं।
काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा / काला पानी) क्या है? : kala motiyabind in hindi
विशेषज्ञों की राय में ग्लूकोमा जिसे काला मोतियाबिंद या काला पानी भी कहते है का मतलब है एक ऐसा जटिल रोग जो आँख के गोले (इण्ट्रा-ऑकुलर) में अधिक तनाव के कारण होता है। दूसरे शब्दों में, बढ़े हुए इस तनाव से जुड़े हुए आँखों से संबंधित चिन्ह और लक्षण ग्लूकोमा कहलाते हैं। लेकिन इसके विपरीत यह स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है, जहाँ यह तनाव अधिक न होने पर भी ग्लूकोमा के लक्षण बने रह सकते हैं। इन्हें ‘नार्मोटन्सिव ग्लूकोमा’ कहा जाता है।
काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के प्रकार : kala motiyabind ke prakar
ग्लूकोमा कई प्रकार का होता है और उसे निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है| यह वर्गीकरण केवल इसलिए दिया गया है, ताकि पाठक इसकी तह को जान पाएँ कि यह कई कारणों से बढ़ता है। इसको समझने और इसके निदान के लिए उस कारण का निवारण अत्यंत आवश्यक होता है। हर किस्म व हर आयु में काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) आरंभ हो सकता है। आँख के अंदर के तरल पानी के बहाव के रुक जाने से बढ़ते हुए तनाव से। आँख की नसें, जिनका सीधा संबंध मस्तिष्क की शिराओं से होता है, सूखने लगती हैं और धीमे-धीमे दृष्टि कम होती जाती है। इस तनाव का असर नसों पर ही नहीं, बल्कि आँख के दूसरे हिस्सों जैसे कॉर्निया
पर सफेदी आ जाती है, लैंस पर मोतियाबिंद आ जाता है, आँख की सफेद परत पर दबाव मे कालापन आ जाता है। इसके दबाव व तनाव को ग्लूकोमा के ‘टेन्सन’ नाप वाली मशीन से जाना जाता है।
इस समूची क्रिया को एक सरल रेखाचित्र से समझना आवश्यक है।
आँख के भीतरी भाग को नेत्र विषेशज्ञों की दृष्टि से तीन हिस्सों में बाँटा गया है। पहले भाग को एण्टीरियर चैम्बर और पिछले भाग को पोस्टीरियर चैम्बर कहते हैं। यह आकार में तलनात्मक रूप से छोटा होता है। इन दोनों भागों के पीछे एक बड़ा भाग होता है, जिसमें विट्रियस नाम का एक तरल पदार्थ होता है। काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) के रोग की जानकारी के लिए पहले के दो भाग ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। आँख के दूसरे भाग में रेखाचित्र में बताए गए अनुसार जुड़े हुए रूप में अंगूर के गुच्छे के समान दिखने वाली एक ग्रंथि होती है, जिसे सीलियरी बॉडी कहते हैं। यह ग्रंथि लगातार रस पैदा करके उसे आँख के दूसरे भाग में बहाती रहती है।
यह तरल रस दूसरे और पहले भाग के बीच में स्थित छिद्र प्यूपिल के बीच से बहता हुआ अगले भाग में आता है और वहाँ से यह तरल पदार्थ झिल्ली और कॉर्निया के कोने में स्थित एक रक्तवाहिका के द्वारा शरीर के खून में मिल जाता है। यह तरल पदार्थ कई तरह से आँख के लिए उपयोगी होता है। विशेष रूप से यह आँख के तनाव को नियंत्रित करता है। परंतु जब इसी तरल पदार्थ में जरूरत से ज्यादा वृद्धि होती है, या आँख में तनाव बढ़ जाता है तब उसे काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) कहा जाता है।
आँख का तनाव दो कारणों से बढ़ता है-जब कभी तरल पदार्थ के बहाव | में रुकावट आ जाती है, तब तनाव बढ़ जाता है और आवश्यकता से अधिक तरल पदार्थ बनने पर भी ऐसा ही होता है।
काला मोतियाबिंद क्यों होता है ? / ग्लूकोमा के कारण : kala motiyabind ke karan
✦ग्लूकोमा(काँचबिन्दु ) की बीमारी के कई कारणों का पता अभी तक नहीं लगाया जा सका है, लेकिन अभी तक किए गए अनुसंधान के आधार पर कहा जा सकता है कि निम्नलिखित कारणों से काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) की बीमारी बढ़ती है-आँख की बनावट, बहुत छोटी, खानदानी असर, बचपन से ही ‘प्लस’ नंम्बर का चश्मा लगना, बहुत अधिक संवेदनशीलता और मासिक अस्थिरता और रक्तवाहिकाओं का सँकरा हो जाना। कई बार उक्त किसी भी कारण के बिना कुछ लोग इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। इसलिए यह कहना बहुत कठिन है कि यह रोग किसे अपनी चपेट में ले सकता है।
✦कभी-कभी आँख की दूसरी बीमारियों के फलस्वरूप भी यह रोग हो जाता है। ऐसी कुछ बीमारियाँ हैं-आँख में चोट लगना, मोतियाबिंदबिंदु का बहुत जल्दी बढ़ना, लम्बे समय से अंधी अथवा बिना ज्योति वाली आँख, जिसमें कोई दूसरी बीमारियाँ हो गई हैं और पके मोतियाबिंदबिंदु का समय पर ऑपरेशन न कराना । उसका ज्यादा पक कर फूट जाना। इस तरह के काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) को ‘द्वितीयक या सेकण्डरी ग्लूकोमा कहते हैं। इसके इलाज के लिए इन दूसरी बीमारियों का इलाज अत्यन्त आवश्यक
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काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के लक्षण : kala motiyabind ke lakshan in hindi
इसका असर दो प्रकार से होता है।
1. काला मोतियाबिंद का हमला-आमतौर पर काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा)एक ही आँख में होता है, लेकिन कभी-कभी दोनों आँखों में भी यह रोग एक साथ हो जाता है। इस बीमारी के शुरू होने पर आँख लाल हो जाती है, आँखों में बहुत असहनीय दर्द होने लगता है और कभी-कभी बहुत दर्द के कारण आँखों की पलकों में सूजन भी आ जाती है। साथ ही सिर में असहनीय दर्द होता है और यह दर्द सिर के आधे हिस्से में होता है और उसी भाग में होता है, जिस तरफ की आँख में काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) होता है। कई बार उल्टियाँ भी होती हैं।
2. मध्यम गति का काला मोतियाबिंद( काला पानी,ग्लूकोमा) – काला मोतियाबिंद में दृष्टि बहुत जल्दी कमजोर हो जाती है और यहाँ तक हो जाता है कि कुछ दिनों में, आँख की ज्योति ही खत्म हो जाती है। इस बीमारी की स्थिति में सिर के दर्द का इलाज सिर दर्द मिटाने वाली आम गोलियों से नहीं होता है और आँख की लाली भी आँख के मलहम से नहीं जाती है।
काला मोतियाबिंद में ज्योति तो कमजोर हो जाती है, पर कभी-कभी किसी भी तरह का दर्द नहीं होता है। यह काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) अक्सर बुढ़ापे में होता है और वह रक्तवाहिकाओं के जरूरत से ज्यादा सिकुड़ जाने के कारण होता है। इस प्रकार से काला मोतियाबिंद की बीमारी बहुत अधिक नुकसानदायक होती है और इसकी जाँच और उपचार विशेषज्ञ नेत्रचिकित्सक द्वारा की जा सकती है। कभी-कभी केवल आँख के क्लिनिक में जाँच पर ही इसका असर मालूम पड़ता है। कोई लक्षण या शिकायत नहीं होती नजर कम होती है। आइये जाने ग्लूकोमा का इलाज हिंदी में ,glaucoma ka ilaj in hindi
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काला मोतियाबिंद का उपचार : kala motiyabind ka ilaj in hindi
काँचविंदु होने की स्थिति में मरीज को केवल नेत्र रोगों के विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। देर होने पर आँख की दृष्टि को भारी क्षति पहुँच सकती है। इसका कारण यह है कि तनाव बढ़ने से आँखों की नसों पर जोर पड़ता है और नसें सूखने लगती हैं। इसलिए यदि तनाव कम करने के बाद भी नसें पूरी तरह सूख जाती हैं, तो पुनः दृष्टि वापस नहीं आती है। दृष्टि को बचाने के लिए तुरन्त उपचार जरूरी होता है। दृष्टि को उसी हालत में बचाया जा सकता है, जब आँख में प्रकाश की किरणों और अँधेरे को पहचानने की क्षमता कम हो, जब आँख सूरज, दीपक और बिजली के प्रकाश को नहीं पहचान पाती है या नहीं देख पाती है, जब आँख की नस पूरी तरह से नष्ट हो जाती है उसमें दृष्टि को वापस नहीं लौटाया जा सकता है।
काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) का उपचार मुख्य रूप से दो तरह से किया जाता है-दवाइयों द्वारा और शल्यचिकित्सा द्वारा।
दवाइयों द्वारा उपचार में डायमाक्स की गोली दी जाती है और पिलोकापन तथा अन्य कई तरह की आधुनिक दवाएं बहुत उपयोगी साबित हो गई हैं। इन दवाइयों से आँखों से तरल के बहाव में भी सुधार होता है। दवाइयों से आँख का दबाव व तनाव कम होने से नसों पर कमजोरी व सुखाव के नुकसान व दृष्टि कम होने की आशंका नहीं हो पाती है।
इन दवाइयों के कारण ऑपरेशन नहीं करना पड़ता है, दवाइयाँ देने से रोगी के सिर का दर्द खत्म हो पाता है।
उपचार के दूसरे तरीके में ऑपरेशन किया जाता है। ऑपरेशन द्वारा बहाव का नया मार्ग बना दिया जाता है और इससे आँख का तनाव कम हो जाता है। ऑपरेशन कई तरह के होते हैं, पर उनका उद्देश्य एक ही होता है बहाव का नया मार्ग बनाना। ऑपरेशन से यद्यपि जा चुकी रोशनी को वापस नहीं लाया जा सकता है, लेकिन दृष्टि के चले जाने को बचाया जा सकता है। इसलिए शुरू में ही इलाज जरूरी होता है।
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काला मोतियाबिंद(ग्लूकोमा) का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार: kala motiyabind ka upchar
१-प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा काला मोतियाबिंद रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को आंखों से पानी आने का उपचार कराना चाहिए। इसके बाद रोगी को विटामिन `ए` `बी` `सी` वाले पदार्थों का कुछ दिनों तक भोजन में लगातार सेवन करना चाहिए। ये पदार्थ कुछ इस प्रकार हैं- आंवला, सन्तरा, नींबू, अनन्नास, गाजर तथा पालक आदि।
२-काला मोतियाबिंद के रोगी को इलाज के दौरान सबसे पहले अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा लेना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट पर मिट्टी का लेप करना चाहिए। रोगी को कुछ देर के बाद कटिस्नान करना चाहिए और फिर कुछ समय के लिए अपनी आंखों पर गीली पट्टी लपेटनी चाहिए। काला मोतियाबिंद से पीड़ित रोगी को अपनी आंखों पर गर्म तथा ठंडी सिंकाई करनी चाहिए।
३-काला मोतियाबिंद से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नीम की 5-6 पत्तियां खानी चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
४-जब काला मोतियाबिंद रोग का प्रभाव कुछ कम हो जाए तो रोगी व्यक्ति को 1 सप्ताह तक फल तथा सामान्य भोजन खाना चाहिए।
५-इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी भारी भोजन नहीं करना चाहिए और न ही मिर्च-मसाला, नमक, चाय तथा कॉफी का सेवन करना चाहिए।
सारांश यह है कि सकाला मोतियाबिंद या ग्लूकोमा की बीमारी का समय पर इलाज जरूरी होता है और इससे दृष्टि की रक्षा की जा सकती है। दृष्टि हो तो मनुष्य जीवन में बड़ी से बड़ी मुसीबतों का सामना कर सकता है।