Last Updated on June 21, 2021 by admin
अधेड़ उम्र में आने के बाद कमर किसी भी समय धोखा दे सकती है। उसकी मजबूत हड्डियाँ और जोड़ जीवन का बोझ ढोते हुए इतने घिस और टूट-फूट जाते हैं कि रीढ़ से निकल रही तंत्रिकाएँ ज़रा सी ऊँच-नीच होते ही मुश्किल में पड़ जाती हैं। डर स्लिप्ड डिस्क का भी रहता है कि रीढ़ के बीच की कोई चक्रिका अपना स्थान छोड़ इधर-उधर सरक जाए और अचानक ही दर्द से जीवन दूभर कर दे।
( और पढ़े – कमर में दर्द के सबसे असरकारक घरेलू उपचार )
लम्बर स्पोंडिलोसिस क्या है ? (Lumbar spondylosis in Hindi)
यह कमर की रीढ़ का विकार है, जो उम्र बढ़ने के साथ लगभग हर किसी को हो जाता है। ठीक जैसे गर्दन की स्पोंडिलोसिस में होता है, वैसे ही इसमें कमर की कशेरुकाओं (वर्टिब्रा) और उनके जोड़ों में टूट-फूट हो जाती है। कहीं हड्डी घिस जाती है, कहीं-कहीं मरम्मत के तौर पर उसमें नई हड्डी उठ आती है। किसी-किसी स्थान पर दो कशेरुकाओं के बीच की चक्रिका या तो सुखकर दब जाती है या अपनी जगह से हट जाती है। इससे रीढ़ से निकलनेवाली तंत्रिकाओं पर दबाव आ सकता है और मेरुरज्जु भी कहीं-कहीं जरा-बहुत दब सकती है।
लम्बर स्पोंडिलोसिस के लक्षण (Lumbar spondylosis Symptoms in Hindi)
लम्बर स्पोंडिलोसिस में क्या-क्या परेशानियाँ हो जाती हैं ?
- सुबह उठने पर कमर अकड़ी हुई मालूम होती है, उसमें दर्द होता है।
- थोड़ा-बहुत चलने या सीधा लेटने से आराम मिलता है।
- ज्यादा देर तक कहीं बैठे या खड़े रह गए तो दर्द बढ़ जाता है।
- मोटे व्यक्तियों को तकलीफ अधिक होती है, चूँकि रीढ़ ही पूरा वजन उठाती है।
- अतिरिक्त थकान और तनाव से परेशानी बढ़ जाती है। क्योंकि मांसपेशियों में तनाव हो जाता है।
- रीढ़ से निकलनेवाली कौन-कौन सी तंत्रिकाएँ भिंचती हैं, इसके आधार पर नितंब, जाँघ और टाँग का कोई एक या अधिक भाग सुन्न हो जाता है, उसमें झनझनाहट होती है, चींटियाँ रेंगती मालूम होती हैं और उसकी ताकत कम हो जाती है।
- सायेटिका का लक्षण भी इसी तरह उपजता है। इसमें दर्द नितंब से शुरू होकर जाँघ के पिछले और बाहरी हिस्से और टाँग की पिंडली से गुजरते हुए पैर तक जाता है।
- डिस्क प्रोलेप्स में भी दर्द, झनझनाहट, सुन्न होने और मांसपेशियाँ कमजोर होने के लक्षण प्रकट होते हैं।
- लम्बर स्पोंडिलोसिस की तकलीफ किसी भी उम्र में और खासकर तीस-पचास के बीच उठती है।
- शुरुआत अक्सर अचानक कमर के निचले भाग में दर्द उठने से होती है और उसके चंद घंटे पहले या तो कोई भारी चीज उठाई गई होती है या कमर में लचक आई होती है।
- आगे की तरफ झुकने, छींक आने और जोर लगाने पर दर्द बढ़ जाता है और मांसपेशियाँ तनाव से भिंच जाती हैं। लेटने पर आराम मिलता है।
- लम्बर स्पोंडिलोसिस लक्षणों के तेवर इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि मेरुरज्जु और तंत्रिकाओं पर डिस्क कितना दबोव डाल रही है।
लम्बर स्पोंडिलोसिस का परीक्षण (Diagnosis of Lumbar spondylosis in Hindi)
लम्बर स्पोंडिलोसिस और डिस्क प्रोलेप्स की शंका होने पर क्या-क्या जाँच-परीक्षण किए जाते हैं ?
- निपुण डॉक्टर शारीरिक लक्षणों से ही बहुत-कुछ जान जाता है। लंबर स्पाइन के एक्स-रे में भी हड्डियों और जोड़ों की टूट-फूट और विकृतियाँ नजर आ जाती हैं।
- सूक्ष्म अध्ययन के लिए कमर का सी.टी. स्कैन और एम.आर.आई. जाँच उपयोगी साबित होते हैं।
- स्लिप्ड डिस्क के लिए या तो सी.टी. या एम.आर.आई. स्कैन करना ही निर्णायक सिद्ध होता है।
लम्बर स्पोंडिलोसिस बीमारी में किस डॉक्टर के पास जाना रहेगा बेहतर :
लम्बर स्पोंडिलोसिस की जाँच और इलाज के लिए शुरू में किस विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए ?
या तो किसी रिहैबिलिटेशन मेडिसन के विशेषज्ञ या आर्थोपेडिक सर्जन के पास। शारीरिक जाँच करने के बाद यह विशेषज्ञ जरूरत के अनुसार आगे की जाँच-पड़ताल के लिए रेडियोलॉजिस्ट के पास, शारीरिक मुद्राओं में सुधार के लिए ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट के पास और सिंकाई, ट्रैक्शन और व्यायाम के लिए फिजियोथैरेपिस्ट के पास भेजते हैं। प्रत्येक की भूमिका उपचार की सफलता में महत्त्वपूर्ण होती है।
लम्बर स्पोंडिलोसिस का इलाज (Lumbar spondylosis Treatment in Hindi)
लम्बर स्पोंडिलोसिस का क्या इलाज है ?
- लम्बर स्पोंडिलोसिस का उपचार लक्षणों की तीव्रता पर निर्भर करता है। डिस्क प्रोलेप्स के लक्षण होने पर शुरू में पूरा आराम करना होता है और जरूरत के हिसाब से किसी-किसी मामले में भिंची हुई तंत्रिका को छुड़ाने के लिए बिस्तर में ही ट्रैक्शन भी लगाया जाता है।
- कम उम्र के रोगियों में कई बार आरंभिक अवस्था में स्पाइनल सर्जरी की जाती है जिसमें खिसकी हुई डिस्क का रोगग्रस्त भाग निकाल दिया जाता है। यह ऑपरेशन तकलीफ शुरू होने के पहले छह महीनों में किया जाए, तभी पूरा लाभ मिलता है।
- जिनमें रोग पुराना हो चुका होता है, दर्द से राहत दिलाने के लिए गर्म पानी की सेंक, डायथर्मी या लेजर का सेंक बताया जाता है और शुरू के कुछ हफ्तों के लिए दर्द और सूजन-निवारक दवा दी जाती है।
- जैसे-जैसे मांसपेशियों में तनाव कम होता है, कमर की कमजोर मांसपेशियों की ताकत और लोच बढ़ाने के लिए उपयुक्त व्यायाम शुरू किए जाते हैं।ये व्यायाम अनिवार्य होते हैं। इनसे मांसपेशियाँ सशक्त बनती हैं और उनका तनाव मिटता है, जिससे रीढ़ आगे भी स्वस्थ रह पाती है।
- उठने-बैठने, चलने-फिरने और खड़े होने की मुद्राओं में भी स्थायी सुधार बहुत जरूरी होता है। कुछ छोटी-छोटी सावधानियाँ ही रीढ़ की उम्र बढ़ा देती हैं।
- मोटापे का रोग होने पर पूरा संकल्प लेकर उसे घटाने की भी सख्त जरूरत होती है जिससे कि रीढ़ राहत की साँस ले सके।
- कोई पूरी सावधानियाँ बरते, जीवन में अनुशासन ले आए और नियम से व्यायाम करे तो कुछ ही हफ्तों में कमर हृष्ट-पुष्ट हो जाती है।
लम्बर स्पोंडिलोसिस से बचाव (Prevention of Lumbar spondylosis in Hindi)
आम जीवन में कमर के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर क्या-क्या सावधानियाँ जरूरी हैं ?
- सोने के लिए अधिक-से-अधिक तीन इंच ऊँचे कॉयर फॉम के गद्दे और तख्त या प्लाईवाले पलंग का प्रयोग करें।
- लिखने-पढ़ने और कंप्यूटर आदि पर कामकाज करने के लिए सही मेज-कुर्सी इस्तेमाल करें ताकि कमर झुकानी न पड़े और जाँघों और घुटनों पर भी जोर न पड़े।
- जमीन से कोई चीज उठानी हो तो पहले जमीन पर सीधा बैठे, चीज उठाकर छाती के पास ले जाएँ और फिर आराम से सीधे उठकर खड़े हो जाएँ। कभी भी खड़े-खड़े आगे झुककर चीज उठाने की कोशिश न करें।
- लंबे समय तक एकसाथ खड़े होने से बचें। जरूरी ही हो, तो सीधे तनकर खड़े हों। यह नहीं कि ढीली मुद्रा में खड़े रहें और पूरा वजन रीढ़ पर डालते रहें।
- कहीं दूर तक कोई वजन उठाकर ले जाना हो, तो बेहतर है कि या तो उसे दोनों हाथों में बराबर बाँट लें या उसके लिए कोई ट्रॉली का इस्तेमाल करें।
- कभी अधिक ऊँची एड़ी वाले जूते-चप्पल न पहनें।
- अचानक ही कोई ऐसा मुश्किल व्यायाम न करें जिससे कि रीढ़ पर जोर पड़ने का खतरा हो।
- जिस आदमी के शरीर में लोच की कमी हो, उसके लिए अचानक शुरू किए गए योगासन भी तकलीफदेह साबित हो सकते हैं।
- वेटलिफ्टिंग और जिमनेस्टिक्स निस्संदेह उपयोगी व्यायाम हैं, पर जिसका शरीर इनके लिए अभ्यस्त न हो, उसे इनसे बहुत क्षति हो सकती है।