एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (रीढ़ का गठिया) – All about Ankylosing Spondylitis in Hindi

Last Updated on June 21, 2021 by admin

“एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस” रोग को सामान्य भाषा में “रीढ़ का गठिया” कहतें है यह रोग युवा अवस्था में शुरू होता है और कमर को बिलकुल बाँध कर रख देता है। यह स्त्रियों की तुलना में पुरुषों में तीन गुना अधिक होता है और इसके रहते कमर ऐसी जकड़ जाती है कि झुकना, मुड़ना और कमर को बिलकुल सीधा तान पाना असंभव हो जाता है। कुछ मरीजों में रोग का बुरा असर आँखों, दिल, फेफड़ों और गुर्दो पर भी दिखाई देता है। दवाओं से जोड़ों में आई सूजन कम करना और जटिलताओं पर जल्द नियंत्रण पाना ही इसके इलाज की सफलता है।

एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस क्या है ? (Ankylosing Spondylitis in Hindi)

यह एक विशेष प्रकार का गठिया है जो प्रायः कमर के निचले भाग की रीढ़ और पीठ के निचले भाग में दोनों तरफ स्थित सेक्रो-आइलियक जोड़ों से शुरू होता है और बढ़ते-बढ़ते पूरी रीढ़ को बाँध कर रख देता है। इसमें रीढ़ इतनी जकड़ जाती है कि बिलकुल बाँस जैसी हो जाती है। न उससे मुड़ा जाता है, न झुका जाता है और आदमी साँस लेते समय छाती भी ठीक से नहीं फुला पाता। बाद में रोग दूसरे जोड़ों में भी चला जाता है।

यह किस उम्र का रोग है ? क्या पुरुष और स्त्री में यह समान रूप से होता है ?

यह रोग प्रायः युवावस्था में प्रकट होता है। चालीस के बाद इसके शुरू होने की संभावना लगभग नहीं के बराबर होती है। पुरुषों में यह रोग तीन गुना अधिक होता है, लेकिन स्त्रियाँ भी इससे पीड़ित हो सकती हैं।

एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के कारण (Ankylosing Spondylitis Causes in Hindi)

यह रोग किस कारण होता है ?

कोई ठीक-ठीक नहीं बता सकता। हाँ, एक सीमा तक यह आनुवंशिक – है, इस बात की पुष्टि कई प्रकार से की जा चुकी है।

एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण (Ankylosing Spondylitis Symptoms in Hindi)

इस रोग के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?

  • बिलकुल शुरू में कमर के निचले भाग और नितंब में दर्द होने लगता है।
  • सुबह उठने पर कुछ घंटों तक शरीर का यह भाग जकड़ा हुआ रहता है।
  • चंद महीनों में दर्द की तीव्रता बढ़ जाती है और दोनों तरफ के सेक्रो-आइलियक जोड़ जकड़ जाते हैं।
  • दर्द रात में भी सोने नहीं देता और पूरी रात इधर-से-उधर उठते-बैठते गुजर जाती है।
  • कुछ मरीजों की छाती में वक्षास्थि के जोड़ों में भी दर्द रहने लगता है।
  • पच्चीस से पैंतीस प्रतिशत मरीजों में कूल्हे और कंधे के जोड़ भी रोग से बँध जाते हैं।
  • जोड़ काम करना बंद कर देते हैं तो उठना-बैठना, चलना-फिरना, करवट ले पाना मुश्किल हो जाता है।
  • आँख के भीतर सूजन, दिल के एओर्टिक वाल्व की विकृति, छाती जकड़ जाने से फेफड़ों का फेल होना और गुर्दो में हुई जटिलताएँ जीवन को बहुत मुश्किल बना देती हैं।

गनीमत यह है कि ये गंभीर जटिलताएँ कम ही रोगियों के जीवन में आती हैं और अधिकतर रोगी जोड़ों की परेशानी के बावजूद अपना कामकाज करने के लायक बने रहते हैं।

एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस का परीक्षण (Diagnosis of Ankylosing Spondylitis in Hindi)

रोगी के लिए क्या-क्या टेस्ट उपयोगी होते हैं ?

  • रोग की पुष्टि एक्स-रे चित्र और शारीरिक लक्षणों से ही हो जाती है।
  • रक्त-परीक्षण से एचएलए-बी 27, ई. एस. आर. के बढ़े होने, एनीमिया होने और सी-रिएक्टिव प्रोटीन के बढ़े होने का पता चलता है। ये सभी परिवर्तन रोग का ही हिस्सा होते हैं।

एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस का इलाज (Ankylosing Spondylitis Treatment in Hindi)

इस रोग का इलाज क्या है ? क्या रोग जड़ से दूर हो पाता है ?

अब तक इसका कोई स्थायी उपचार नहीं है, लेकिन दवा, व्यायाम और कुछ जरूरतमंद मामलों में सर्जरी से रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।दवाओं में जोर पीड़ा और सूजन दूर करनेवाली दवाओं पर रहता है।

  • इंडोमेथासिन और फिनाइलब्यूटाजोन सबसे प्रभावी साबित होती हैं, पर इनसे पेट में जलन और अल्सर के बिगड़ने का बड़ा भारी जोखिम होता है। इन्हें डॉक्टरी सलाह से पूरी सावधानी के साथ ही लिया जाना चाहिए।
  • कुछ मामलों में सल्फासेलाजिन भी दी जाती है।
  • जोड़ों की सक्रियता बनाए रखने के लिए विशेष व्यायाम सीखना और नियम से करना बहुत जरूरी होता है।
  • कूल्हे के जोड़ों के जकड़ जाने पर उन्हें बदलकर कृत्रिम जोड़ भी लगाए जाते हैं।
  • रीढ़ पर भी कुछ सर्जन ऑपरेशन करने का साहस करते हैं, पर यह एक मुश्किल ऑपरेशन है जिसे बहुत सोच-समझकर ही कराना चाहिए।
  • अन्य अंगों में कोई जटिलता हो जाए, तो उसका इलाज संबंधित विशेषज्ञ से अलग से कराना पड़ता है।

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