Last Updated on July 22, 2019 by admin
स्वास्थ्य और शुद्धि (महाभारत से)
★ दिन में एवं स्नध्या के समय शयन आयु को क्षीण करता है ।
★ उदय और अस्त होते हुये सूर्य-चन्द्र की ओर दृष्टि न करें ।
★ दृष्टि की शुद्धि के लिये सूर्य का दर्शन करें ।
★ स्नध्या के समय जप-ध्यान के सिवाय कुछ भी न करें ।
★ रात में अधिक भोजन न करें और दूसरों को भी अधिक न खिलायें ।
★ रात में स्नान न करें एवं भीगे वस्त्र न पहनें ।
★ ध्यानयोगी ठण्डे जल से स्नान न करे ।
★ साधारण शुद्धि के लिये जल के दो आचमन करें ।
★ सूर्य-चन्द्र के सामने कुल्ला, पेशाब आदि न करें ।
★ मनुष्य जब तक मल-मूत्र का वेग धारण करता है तब तक अशुद्ध रहता है ।
★ अपवित्रावस्था में और जूठे मुँह स्वाध्याय न करें और जप न करें ।
★ सिर पर तेल लगाने के बाद हाथ धो डालें ।
★ रजस्वला स्त्री के साथ बातचीत न करें । उसके सामने न देखें ।
★ आसन को पैर से खिसकाकर उस पर न बैठें ।
★ जूठे हाथ से मस्तक का स्पर्श न करें ।
★ बार- बार सिर पर पानी न डालें ।
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चान्द्रायण व्रत का आचरण किस कारण से करना चाहिए ? महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि :
१. मरणशौच तथा जन्मशौच का अन्न खालेने पर…
२. पतित का अन्न और शूद्र का जूठा अन्न खा लेने पर…
३. ऊँटनी एवं भेड का दूध पी जाने पर…
४. ब्याहे हुये गौ का दस दिन के अन्दर दूध पी जाने पर…
५. पुजारी, पुरोहित और गोलक (विधवा स्त्री के जारकर्म से उत्पन्न पुत्र) का अन्न खा लेने पर…
६. जो द्विज एकोद्विष्ट श्राद्ध का भोजन करता है उसे…
७. जो द्विज अधिक मनुष्यों की भीड में एवं फूटे बर्तन में खाता है उसे…
८. उपनयन संस्कार से रहित बालक, कन्या और स्त्री के साथ एक पात्र में भोजन कर लेने पर…
९. जो द्विज प्याज, गाजर, छत्राक और लहसुन खा ले उसे…
१०. रजस्वला स्त्री, कुत्ते और चाण्डाल का देखा हुआ अन्न खा लेने पर चान्द्रायण का व्रत करना चाहिए ।