Last Updated on July 30, 2019 by admin
तनाव जीवन का अभिन्न अंग है। संतुलित तनाव वीणा के तारों के कसाव की तरह है, जिससे जीवन का मधुर संगीत जन्म लेता है। उसके बिना जीवन बिलकुल एकरस एवं एकसार हो जाता है और सृजनात्मकता जैसे खो जाती है।
लेकिन तनाव इतना सघन हो जाए कि जीवन-वीणा के तार उससे टूटने लगें, तो वह तनाव भला किस काम का !
पर आज के जीवन में तनाव इतना रच-बस गया है कि तनाव-रुग्णता के लक्षण हर तरफ नजर आते हैं। ऊँची आवाजें, जरा-जरा सी बात पर झुंझलाहट, बेचैनी, क्रोधित अंतर्मन तनाव के ऐसे चिह्न हैं, जिनसे आए दिन हमारा सामना होता है।
सच पूछे तो तनाव की अपनी एक विशिष्ट भाषा है। कोई इसे समझ ले तो वह बहुत आसानी से भाँप सकता है कि कौन-कब तनाव से घिरा है। सघन तनाव कई प्रकार से प्रत्यक्षीभूत होता है। भाव-भंगिमा, व्यवहार और शरीर के आंतरिक अंगों से आ रहे संकेत भीतर की व्यथा साफ कह देते हैं।
मांसपेशियों में भर आया तनाव कई तरह से व्यक्त होता है। बल खाया माथा, तनी हुई भृकुटियाँ, भिंचे दाँत, बाहर की तरफ खिंचा हुआ जबड़ा, भिंचे हुए कंधे, तनी मुट्ठियाँ, मुट्ठियों में भिंचे अँगूठे, एक-दूसरे पर बल खाती टाँगें, एक-दूसरे को बाँधती पेट के आगे तनी बाँहें-सभी तनाव की ओर इशारा करती भाव-भंगिमाएँ हैं। अगर कोई सिर के बालों को तोड़े-मरोड़े, नाखून काटे, जमीन पर पैर से थाप देता रहे तब भी यह समझ लेना चाहिए कि वह भला व्यक्ति तनावग्रस्त है।
तनाव (टेंशन) से होने वाली बीमारीयां और नुकसान :
✥ तनाव मांसपेशियों में आकस्मिक फड़कन (ट्विचिंग) और गरदन, कंधों, सिर तथा कमर में जकड़न एवं दर्द भी पैदा कर सकता है।
✥ तनावग्रस्त होने पर अच्छे-खासे व्यक्ति का व्यवहार बिगड़ जाता है।
✥ बेचैनी, व्याकुलता, चिड़चिड़ापन, खीझ, असामान्य क्रोध, काम में पूरी एकाग्रता न बनना, ठीक से नींद न आना, आदि तरह-तरह की परेशानियाँ आदमी को घेर लेती हैं।
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✥ बेजा तनाव का आंतरिक अंगों पर भी असर पड़ता है। खूब पसीना आता है, मुँह सूखने लगता है, पेट में खलबली मची रहती है, चक्कर आ सकते हैं, दिल की धड़कन और साँसें तेज हो जाती हैं और बेहोशी
भी आ सकती है।
✥ तनाव की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि यह आपके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है। जो व्यक्ति हमेशा हड़बड़ी में रहता है, जरूरत से ज्यादा प्रतिस्पर्धा रखता है, हमेशा उग्र रवैया रखता है, क्षमता से अधिक काम हाथ में लेता रहता है और इतना उच्चाकांक्षी होता है कि उसके सपने कभी पूरे होने में ही नहीं आते, उसके तनाव-रुग्ण होने की आशंका सदा प्रबल रहती है।
लेकिन कोई चाहे तो अपने काम करने के ढंग और अपने व्यक्तित्व में छोटे-छोटे परिवर्तन लाकर जीवन को अधिक सहज, स्वस्थ और सुरीला बना सकता है। यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि बार-बार चिंतारोधी और प्रशांतक दवाएँ लेने या तनाव-रुग्ण रहने से जीवन का मजा अधूरा रह जाता है। आइये जाने तनाव से मुक्ति कैसे पाएँ
निम्नलिखित बातों पर कुछ समय अमल करके देखिए कि तनाव कैसे फुर्र से उड़ जाता है और जीवन उन्हीं परिस्थितियों में पहले से कितना बेहतर हो जाता है :
1 – उतना ही काम हाथ में लें जितना कर सकें –
आधुनिक सभ्य समाज ने हम पर शालीनता और विनम्रता की एक ऐसी परत चढ़ा दी है, जिसके तले हम अक्सर ‘न’ नहीं कह पाते। अच्छा और लोकप्रिय बने रहने के लिए न चाहते हुए भी हम कई कामों के लिए हाँ कह देते हैं। बाद में उसके लिए समय खोज पाना या तो बहुत मुश्किल होता है या वह आगे की पूरी योजना को गड़बड़ा देता है। दोनों ही स्थितियाँ तनावकारी होती हैं। इससे अच्छा है कि कोई भी काम हाथ में लेने से पहले अपनी समय-सीमा और काम के औचित्य को ठीक से तौल लें। जो काम न कर सकते हों, उसके लिए विनम्रता के साथ साफ-साफ मना कर दें। कोई भी भला आदमी आपकी विवशता समझ जाएगा और उसमें अगर यह समझ नहीं, तो उसकी खातिर खुद को तनाव में भला क्यों डुबोना !
क्षमता से अधिक काम सिर पर ले लेने से एक तो जब तक काम पूरे नहीं होते, तनाव बना रहता है, दूसरे मानसिक एकाग्रता भी भंग होती है, जिससे कोई भी काम ढंग से पूरा नहीं होता। इससे भी आंतरिक असंतोष पैदा होता है और काम न होने से प्रभावित व्यक्तियों से संबंधों में दरार अलग पैदा होती है।
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2 – काम की प्राथमिकताएँ तय कर लें –
आज की जिंदगी में हर कोई समय के दबाव में जीता है। काम अनगिनत हैं, लेकिन समय सीमित है। ऐसे में तनाव से बचने के लिए अपने मन में प्राथमिकताएँ स्पष्ट रखकर चलना जरूरी है।
सभी कार्यों की फेहरिस्त बना लें और उनके आगे उनकी क्रमवार प्राथमिकता दर्ज कर लें। फिर एक के बाद एक काम करते चलें। इससे बहुत से काम एक साथ आ जाने पर भी आप पर दबाव नहीं बनेगा। वरना कई बार यही तनाव कि ‘मुझे इतना कुछ करना है, इसे मैं कैसे पूरा कर सकुँगा’, सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है।
3 – घड़ी की सुइयों से लड़ना छोड़ दें –
हर समय हड़बड़ी रखना ठीक नहीं। व्यवस्थित मन से धैर्यपूर्वक और लगन के साथ किया गया काम हमेशा अच्छा होता है, जबकि हड़बड़ी में किया गया काम न तो मुकम्मल होता है, न ही बहुत समय बचाता
4 – मजहब नहीं सिखाता किसी से वैर करना –
कुछ लोग अनावश्यक ही हर समय होड़ में पड़े रहते हैं ।
और मौका तलाशते रहते हैं कि कैसे दूसरों को अड्गी दें और उनका काम न होने दें या कैसे उनसे आगे निकलें । इस वैरपूर्ण स्पर्धा में कुछ नहीं रखा है। सुख अपने रास्ते पर आगे बढ़ने में ही है।
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5-मन के हारे हार है, मन के जीते जीत –
सकारात्मक सोच ही सफलता की कुंजी है। इससे मन-मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है और समुद्र की स्फूर्त लहरों के समान फुर्ती।
6 – योजनाबद्ध तरीके से काम करें –
जीवन में सुनियोजित ढंग से चलना हमेशा काम आता है। हो सकता है, हर योजना सफल न हो या उसमें बाधाएँ आएँ, पर इससे विचलित नहीं होना चाहिए। कर्मयोगी वही है जो जरूरत के मुताबिक अपने में, अपनी कार्य-योजना में सुधार और बदलाव ला सके। मगर ऐसा भी न हो कि आप अपने लक्ष्य से पूरी तरह भटक जाएँ।
किसी भी योजना का प्रारूप कार्य-विशेष से सुनिश्चित होता है, पर कुछ सामान्य बातें हर जगह लागू होती हैं, जैसे :
• सबसे पहले यह तय कर लें कि कार्य पूरा करने में क्या-क्या काम करने होंगे ?
• उनमें किस-किस किस्म की मदद चाहिए ?
• काम पूरा करने के लिए क्या-क्या साधन जुटाने हैं और ये कहाँ से कैसे जुट सकेंगे और उन पर क्या लागत आएगी ?
• काम पूरा करने में कितना समय लगेगा ?
• क्या-क्या बाधाएँ सामने आ सकती हैं और उनको कैसे दूर किया जा सकता है ?
7 – अपनी तनाव-सीमा पार न करें –
जिस तरह हर व्यक्ति अपने में अलग है, उसी तरह हर किसी की तनाव-सीमा भी अलग है। कोई कम तनाव में ही टूटने लगता है, कोई बहुत तनाव भी हँसते-खेलते झेल जाता है। समझदारी इसी में है कि अपनी तनाव-सीमा पहचानें और उसकी लक्ष्मण-रेखा पार न होने दें।
8 – आराम और मनोरंजन के लिए भी समय रखें –
काम-काज की ही तरह तफरीह और मौज-मस्ती के लिए भी समय निकालना बहुत जरूरी है। इससे मन-मस्तिष्क और शरीर फिर से खिल उठते हैं और नई स्फूर्ति पाने से तनाव से राहत मिलती है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि मन और आत्मा को कुछ समय के लिए बिलकुल खुला छोड़ दें।
कुछ लोग साल में एक बार पर्यटन पर निकल जाने को ही आराम करने का उपाय मान लेते हैं, लेकिन यदि उसमें यात्रा-ही-यात्रा करनी पड़े और नजर घड़ी की सुइयों पर ही टिकी रहे तो यह किसी काम का नहीं।
तनाव से बचना मुश्किल नहीं। जीवन में थोड़ा-सा अनुशासन गूंथ लेने, रोजाना हल्का व्यायाम करने, संतुलित भोजन लेने, सात-आठ घंटे की नींद लेने, हँसने-खेलने और खुशी देनेवाली चीजें अपनाते रहने से जीवन स्वस्थ और भरा-पूरा रहता है।