हमारे ऋषिगणों ने कहा है कि हम कर्म करते हुए 100 वर्ष तक जीने की इच्छा रखें। प्राकृतिक जीवन अपनाया जाए तो 100 वर्ष तक नीरोग रहकर जीना मुश्किल नहीं। इसके लिए पंचतत्वों की समीपता में प्राकृतिक जीवन अपनाना आवश्यक है। यही प्राकृतिक चिकित्सा का जड़ प्राण है। पंचतत्वों का एक घटक मिट्टी बड़ी करिश्माई होती है। यह प्रकृति की एक मुफ्त दवा है, जो घर बैठे मिल सकती है। साफ, ताजी, बदबूरहित काली मिट्टी सब प्रकार के विषों का हरण कर लेती है।
मिट्टी के स्वास्थ्य लाभ और उपयोग (Mitti ke Labh in Hindi)
1. त्वचा रोग में – शरीर पर कुष्ठ के दाग, चमड़ी के रोगों के लिए गीली मिट्टी सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक दवा है। रक्त में जितने प्रकार के विषैले तत्व जमा हो जाते हैं, गीली मिट्टी का लेप तुरंत ही उन्हें निकाल लेता है। सभी प्रकार के चर्म रोग, हथियार के घाव, रक्तविकार, नासूर, फफोलों, गांठ आदि में मिट्टी की पुल्टिस चामत्कारिक लाभ देती है।
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2. चोट लगने पर – कोई गहरा घाव हो तो घाव और मिट्टी के बीच पतला कपड़ा रखकर मिट्टी भर दी जाती है। दिन में दो बार पट्टी बदलनी पड़ती है। जहां भी दर्द, सूजन हो वहां गीली मिट्टी रखकर ऊपर से मिट्टी बांध देते हैं, तुरंत लाभ मिलता है।
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3. पेट के रोग – पेडू (पेल्विक क्षेत्र) तथा पेट के रोग ही शरीर के सभी रोगों का आधार हैं। अगर इन पर मिट्टी की पट्टी बांधकर बार-बार बदली जाए तो 2-3 दिन में आराम दिखाई पड़ने लगता है।
4. लू लगने पर – लू लगने पर गीली मिट्टी पर पानी छिड़ककर रोगी को लिटा दें। कुछ ही देर में रोगी को शांति मिलेगी।
5. मनोंरोग में – हिस्टीरिया, भ्रम, मूर्छा, विभिन्न मनोरोगों में भी मिट्टी सफल औषधि है। ऐसे रोगी को हरियाली से भरे स्थान पर पीपल, वट और नीम के ठोस वृक्षों के बीच एक गज गहरी पीली मिट्टी बिछाकर लिटाया जाता है। ऊपर फूस के छप्परों से छोटी साफ हवादार कोठरी बना दी जाती है, जो खुली होती है। अगर नाद योग का अभ्यास भी साथ कराया जा सके, तो विभिन्न मनोरोग जल्द ही दूर हो जाते हैं।
6. अनिद्रा – अनिद्रा का भी मनोरोगों की तरह समान उपचार है। साथ में योगनिद्रा अथवा सितार की ध्वनि का श्रवण भी कराया जा सकता है। जिस पलंग पर रोगी लेटा हो, उसके चारों और खस की जड़ों को डालकर उन पर पानी छिड़क देना चाहिए। उसकी सुगंध से भी रोगी जल्द ठीक हो जाता है।
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7. गरम मिट्टी से सिंकाई – अनेक रोगियों में पृथ्वी भाग का इस्तेमाल अलग ढंग से भी किया जा सकता है। मोटा फलालेन का कपड़ा या नरम कंबल का टुकड़ा लेकर उसमें गरम-गरम मिट्टी भरकर परत करके उससे रोगी के उन स्थानों पर सिंकाई की जा सकती है, जहां सर्वाधिक तकलीफ है। गीले कपड़े द्वारा मिट्टी भी अपने आप पहुंचनी चाहिए।
8. बवासीर – बवासीर के रोगी को लाल मिट्टी से सेंका जाता है तथा ईंट बुझा पानी दिया जाता है।
9. रीढ़ की हड्डी में दर्द – रीढ़ की हड्डी की तकलीफ में काली मिट्टी गरम करके कपड़े पर बिछाकर उससे सेंक लगाया जाता है। 10-15 मिनट सेंकने से ही काफी आराम मिलता है। बीच-बीच में ठंडी सिंकाई भी करते रहना चाहिए।
10. गठिया – उच्च रक्तचाप व गठिया में मिट्टी की पट्टी बहुत जल्दी लाभ पहुंचाती है। सायटिका, नसों में सूजन, न्यूरालजिया मायेलजिया आदि में पट्टी लगाकर हर 3 घंटे में बदलें तो बिना किसी दर्द निवारक के 12 घंटे में बहुत ज्यादा आराम मिलता देखा गया है।
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11. बुखार – टायफाइड व अन्य ज्वरों में ठंडी पट्टी लगाई जाती है। टायफाइड में पेडू पर लगाई गई पट्टी 2-3 दिन में पूर्ण आराम दे देती है।
12. सर्प दंश में – बहुत ही ज्यादा विषैले सांप के काट लेने पर रोगी का मुंह खुला छोड़कर बाकी सारा शरीर आंगन में गड्ढा खोदकर मिट्टी से दबा दें। 2-3 घंटे में ही आराम होना शुरू हो जाता है। जमीन गीली व ठंडी हो तो जल्दी जहर को सोख लेती है। टायफाइड में बहुत ज्यादा बुखार आने पर भी यह उपचार लाभदायक रहता है। मधुमक्खी आदि के डंक लगने पर जिस स्थान पर डंक लगा है, उस पर मिट्टी की पुल्टिस बांध देते हैं।
जुकाम की अवस्था में गले पर, सिरदर्द में सिर या माथे पर,आंख के दर्द में पलकों पर, दांत के दर्द में जबड़ों पर, खांसी में गले पर, कान के दर्द में कान के चारों ओर, पेट दर्द में पेट पर, अंडकोष वृद्धि में अंडकोष पर, कमर दर्द में कमर पर, ज्वर में समस्त शरीर पर, कब्ज-आंव-इरीटेबल बॉवेल सिंड्रोम आदि में पेट पर मिट्टी का लेप किया जाता है। चकत्ते, मुंहासे आदि में मिट्टी का उबटन बड़ा ही लाभकारी है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)