Last Updated on June 16, 2020 by admin
हमने नेत्र विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप सेठी से भेंट की और आंखों के मोतियाबिंद के कारण, उनसे बचाव और उनके उचित इलाज के विषय में चर्चा करके मार्गदर्शन देने के लिए अनुरोध किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। एक दिन निश्चित समय पर हम उनसे मिले और उनसे ‘इन्टरव्यु’ लिया जो यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
हमने पहला प्रश्न पूछा – आप मोतियाबिन्द के बारे में बताइए कि यह क्या होता है याने मोतियाबिन्द होना किसे कहते हैं।
डॉ. सेठी – जी, मोतियाबिन्द एक ऐसा नेत्र रोग है जो ज्यादातर तो प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में ही होता है पर कुछ उदाहरण ऐसे भी मिलते हैं कि यह युवा, बच्चों और यहां तक कि नवजात शिशु की आंखों में भी हो जाता है। हमारी आंख एक केमरे के समान होती है जिसमें केमरे के लेंस जैसा एक शक्तिशाली पारदर्शक लेंस होता है। यह लेंस आंख की संवेदनशील परत, जिसे रेटिना कहते हैं, पर बाहरी दृश्य का चित्र अंकित करने में सहायक रहता है जहां से इस दृश्य को मस्तिष्क तक पहुंचाने का काम आएिव नर्व (नेत्र तंत्रिका) याने दृष्टि-नाड़ी करती है। यह पारदर्शक लेंस जब किसी भी कारण से अपनी पारदर्शिता खोकर अपारदर्शक हो जाता है तो इसे मोतियाबिन्द होना कहते हैं। आमतौर से एक बार मोतियाबिन्द बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाए तो इसे रोका नहीं जा सकता। जैसे दूध को जमाकर दही बनाया जाता है, दही बनने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद दूध-दूध नहीं रह सकता, दही हो जाता है और दही हो जाने के बाद पुनः दूध नहीं बन सकता, इसी प्रकार मोतियाबिन्द बनना शुरू हो जाने पर इसे रोका नहीं जा सकता।
मोतियाबिन्द बनना शुरू होने पर नज़र धुंधली होने लगती है याने पास के और दूर के दृश्य धुंधन्ले दिखाई देने लगते हैं फिर दूर की नज़र धीर-धीर कमज़ोर होने लगती है। शुरू-शुरू में तो चश्मा लगाने से साफ़ दिखाई देता है पर मोतियाविन्द के बढ़ने के साथ-साथ अक्सर चश्मे का नम्बर भी बदलता जाता है।
मोतियाबिन्द शुरू होने पर न तो सिर में दर्द होता है न आंखों में लाली और पीड़ा होती है। हां, आंखों से बार बार पानी आने का आभास होता है और शुरू-शुरू में एक के दो या दो से अधिक दिखाई देने की शिकायत होती है।
जब मोतियाबिन्द ज्यादा बढ़ जाता है तब घर से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। ज्यादा देर हो जाने पर ऐसी भी स्थिति आ जाती है कि रोशनी के सिवा और कुछ दिखाई नहीं देता और एक टेम्परेरी ब्लाइन्डनेस याने अस्थायी अन्धेपन की स्थिति हो जाती है। टेम्परेरी इसलिए कहा जा सकता है कि मोतियाबिन्द का आपरेशन कर देने पर अन्धत्व मिट जाता है और फिर से नज़र पहले जैसी हो जाती है। नज़र घटने के अन्य कारण भी हो सकते हैं याने यह जरूरी नहीं कि नज़र घटने का कारण सिर्फ मोतियाबिन्द होना ही होता है पर मोतियाबिन्द होने से नज़र घटने लगती है, यह बात सही है। इस तरह लेंस पर अपारदर्शक तत्व आने से दिखना कम होना और कम होता जाना-यही व्याधि मोतियाबिन्द है। इसे अंग्रेजी में केटेरेक्ट (Cataract) कहते हैं।
प्रश्न – मोतियाबिन्द होता क्यों है और क्या इससे बचने के उपाय किये जा सकते हैं ? जैसा कि आपने पहले कहा कि यह रोग प्रायः वृद्धावस्था में ही होता है तो क्या वृद्ध होने पर मोतियाबिन्द सभी को हो जाता है?
डॉ. सेठी – नहीं, ऐसा होना ज़रूरी नहीं। कई लोग ऐसे मिलेंगे जिन्हें वृद्ध होने पर भी मोतियाबिन्द नहीं होता और उनकी नज़र दूसरे कारणों से कमजोर हो जाती है पर ज्यादातर लोगों को वृद्ध होने पर मोतियाबिन्द हो जाया करता है। बुढ़ापा इसके होने का एक कारण है या कुपोषण और आहार में विटामिन ‘ए’ , प्रोटीन, विटामिन बी, सी आदि के अभाव के कारण, विषाक्त दवाओं का उपयोग करने से मोतियाबिन्द हो सकता है।
आंखों में सूजन या चोट लगने, सूर्य की प्रखर किरणें, आंखों की बीमारियां जैसे रतौंध जन्मजात गर्मी (सिफलिस) और मधुमेह (डायबिटीज़) जैसे रोग भी इसमें कारण हो सकते हैं। अभी इसका ठीक ठीक कारण पूरी तरह ज्ञात नहीं हो सका है कि मोतियाबिन्द होता क्यों है।
प्रश्न – मोतियाबिन्द और कांचबिन्द (काला मोतिया) में कुछ फ़र्क है ?
डॉ. सेठी – बहुत बड़ा फ़र्क है और इस फ़र्क को जितनी जल्दी जान समझ लिया जाय उतना ही अच्छा है। नज़र कमजोर होने का मतलब सिर्फ़ मोतियाबिन्द होना ही नहीं होता। आप्टिक नर्व याने। नेत्र-तंत्रिका, जिसे आप दृष्टि-नाड़ी भी कह सकते हैं, की खराबी या कांचबिन्द होने से भी नज़र खराब हो सकती है। कांचबिन्द को कालामोतिया भी कहते है और अंग्रेज़ी में ‘ग्लूकोमा’ कहते हैं।
हम चालीस वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों की जांच करें तो कांचबिन्द प्रायः इनमें से दो प्रतिशत व्यक्तियों में मिलेगा। यह ४० वर्ष की आयु के बाद ही प्रायः होता है पर मोतियाबिन्द की तरह यह भी कुछ कारणों से कम आयु में भी हो सकता है। नेत्र पर दबाव अधिक पड़ने से कठोरता उत्पन्न होती है जिससे नेत्र-गोलक के नाजुक हिस्से नष्ट हो जाते हैं। अन्धेरे या मन्द प्रकाश में देखने का अभ्यस्त होने में देर लगने से प्रायः ठोकर लग जाती है, सन्ध्या व रात में ठीक से न दिखना, सिर में दर्द रहना, पलकों पर सूजन आना, आंखें बार-बार लाल होना व दर्द करना, सिर के आधे भाग में असहनीय दर्द होना और प्रायः उल्टी होना आदि ऐसे लक्षण हैं जो कांचबिन्द होने की खबर दे सकते हैं। इसका ठीक ठीक निर्णय और फ़र्क तभी किया जा सकता है जब ऐसे लक्षण दिखाई देते ही तुरन्त किसी कुशल नेत्र-रोग-विशेषज्ञ से आंखों की जांच करा ली जाए। इसमें देर, अटकलबाज़ी और लापरवाही कदापि नहीं करना चाहिए क्योंकि देर हो जाने पर यह लाइलाज हो जाता है और अन्धापन हो जाता है।
मोतियाबिन्द का तो आपरेशन द्वारा देर हो जाने पर भी इलाज हो जाता है पर कांचबिन्द के मामले में देर होने पर अन्धा होने से बचना असम्भव हो जाता है। ऐसे लापरवाह रोगी देर करके चिकित्सक के पास पहुंचते हैं और जांच करने पर पता चलता है कि कालामोतिया याने कांचबिन्द के कारण जो नजर नष्ट हो चुकी है, उसका इलाज नहीं हो सकता। शेष नज़र तो फिर भी.बचाई जा सकती है।
प्रश्न – कृपया यह बताएं कि कांचबिन्द याने गूलकोमा कितने प्रकार का होता है ?
डॉ. सेठी- हालाकि कांचबिन्द कई प्रकार का होता है लेकिन इनमें मोटे रूप से दो प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं। एक प्रकार का कांचबिन्द ऐसा होता है जिसमें तीव्रतम सिरदर्द, आंखों में दर्द, पलकों पर सूजन, आंखें लाल सुर्ख होना और असह्य वेदना से उल्टी हो जाना आदि लक्षण पाये जाते हैं। इस तकलीफ़ के वक़्त आंखों की ज्योति बहुत कम हो जाती है याने धुंधली हो जाती है और धुंधला दिखाई देता है। इस प्रकार के कांचबिन्द को (Acute Congestive Glucoma) एक्यूट कन्जेस्टिव ग्लूकोमा कहते हैं।
दूसरे प्रकार के कांचबिन्द में इन लक्षणों का अभाव रहता है। मामूली सा सिरदर्द या आंखों में दर्द होना, पढ़ने के चश्मे का नम्बर जल्दी बदलना, सिनेमा हाल में अन्धेरे में अपनी सीट तक पहुंचने में कठिनाई होना आदि लक्षण होते हैं। इस दशा में अन्धेरे या कम प्रकाश में देखने का अभ्यस्त होने में देर लगती है और बीमारी ज्यादा बढ़ने पर नज़र का दायरा कम हो जाता है।
प्रश्न – इन व्याधियों से बचाव के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं ताकि ये हो ही न सकें।
डॉ. सेठी – इनसे बचने के लिए या कम से कम यह जल्दी शुरू न हो इसके लिए एक तो हमें अपना आहार ऐसा रखना चाहिए जिसमें प्रोटीन और विटामिनों की, खास तौर पर विटामिन ‘ए’ की समुचित मात्रा उपलब्ध रहे। दूध, पत्तागोभी, पपीता, गाजर, पालक, आम, काली मिर्च, कच्चा नारियल, मक्खन, घी, हरी शाक-सब्जी. आंवला आदि का प्रयोग समय-समय पर करते रहना चाहिए। तेज़ धूप, अधिक गर्मी, एक्सरे और चोट से आंखों को बचाना चाहिए। जिन्हें डायबिटीज़ या गर्मी (सिफलिस) रोग हो उन्हें तुरन्त इसका उचित इलाज करा लेना चाहिए वरना मोतियाबिन्द का आपरेशन करना कठिन और अन्य परेशानियों को पैदा करने वाला सिद्ध होगा।
प्रश्न – ऐसी व्याधि हो ही जाए तो इसकी चिकित्सा क्या है?
डॉ. सेठी – नज़र में कमी आने लगे तो तत्काल किसी नेत्र-विशेषज्ञ से आंखों की जांच कराना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि कौन सी व्याधि पैदा हो रही है। कई लोग देर हो जाने के कारण ही नज़र खो बैठते हैं। जब यह पता चल जाएगा कि मोतियाबिन्द है या कांचबिन्द या कोई अन्य विकार है तभी तो उसका इलाज भी किया जा सकेगा। कुछ लोग पास पड़ोसियों की सलाह पर मोतियाबिन्द होना मान कर इसके पकने की राह देखा करते हैं ऐसे में कहीं कांचबिन्द या अन्य व्याधि हो रही होगी तो देर करना घातक सिद्ध होगा।
मोतियाबिन्द पके तभी आपरेशन हो यह ज़रूरी नहीं, न यह ज़रूरी है कि आपरेशन ठण्ड या वर्षा के मौसम में ही कराया जाए। अनुकूल मौसम याने ठण्ड के दिनों में शारीरिक सुविधा और आराम की दृष्टि से ही आपरेशन कराना ठीक रहता है बाक़ी आंख के आपरेशन से इसका कोई सम्बन्ध नहीं। यह आपरेशन किसी भी मौसम में कराया जा सकता है और सच बात तो यह है कि मोतियाबिन्द का इलाज औषधि से नहीं, आपरेशन करके ही किया जा सकता है और यह जितनी जल्दी करा लिया जाए उतना ही अच्छा रहता है। इसके विपरीत कांच बिन्दू बड़ी जल्दी आंखों की शक्ति का आधार ही नष्ट कर देता है।
प्रश्न – क्या मोतियाबिन्द का आपरेशन बड़ा और कठिन होता है?
डॉ. सेठी – बिल्कुल नहीं, आपरेशन से पहले एक दवा आंखों में डाली जाती है और बाद में आपरेशन किया जाता है। आपरेशन के बाद चिकित्सक द्वारा बताये गये नियमों का पूरा पालन करने और ७-८ दिन आराम करने के बाद रोगी की आंखें पहले की तरह भली चंगी हो जाती है। उसके देड माह बाद फिर से आंखों की जांच करके चश्मा दे दिया जाता है और रोगी निरोग होकर काम काज करने में समर्थ हो जाता है।
हमने कहा- बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर साहब! हमने आपका काफ़ी समय लिया अतः इस भेंटवार्ता को यही स्थगित करते हैं। अब अन्य नेत्र रोगों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए आपसे पुनः भेंट करेंगे।
डॉ. सेठी बोले – आपका स्वागत है। जब सुविधा हो तब पुनः पधारिएगा।
इस प्रकार मोतियाबिन्द और कांचबिन्द के विषय में चर्चा करके हम डॉक्टर साहब को नमस्कार कर विदा हुए।
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