नाड़ी व्रण (नासूर) के लक्षण और उपचार – Nadi Vrana ke Lakshan aur Ilaj in Hindi

Last Updated on September 9, 2022 by admin

नाड़ी व्रण (नासूर) क्या है ? (Nadi Vrana in Hindi)

नाड़ी में फोड़े या घाव होने से घाव में से मवाद – चमड़ा, शिरा, स्नायु, हड्डी आदि जगहों से होकर मांस में भीतर ही भीतर अधिक दूर तक यह मवाद (पीव) प्रवेश कर जाता है। जो शरीर के अंदर नाड़ी में बने छोटे छेद के द्वारा बाहर निकलता रहता है। नाड़ी में बने इस छोटे छेद को ही नाड़ी व्रण (घाव) कहते हैं। इसे साधारण बोलचाल की भाषा में नासूर भी कहा जाता है। यह रोग कई प्रकार से उत्पन्न होता है। यह रोग वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज तथा शल्यज आदि पांच नामों से जाना जाता है।

नाड़ी व्रण (नासूर) के लक्षण (Nadi Vrana ke Lakshan in Hindi)

नाड़ी व्रण (नासूर) के पांचों प्रकार के अलग-अलग लक्षण होते हैं –

  1. वातज : इस रोग में नाड़ी के घाव छोटे मुंह वाले, रूक्ष, शूल तथा झागयुक्त पीव होता है। इस रोग में पीव रात के समय अधिक निकलता है।
  2. पित्तज : इस रोग में गर्म और पीली राध निकलती है जो अधिकतर दिन के समय अधिक निकलती है। पित्तज रोग के होने पर रोगी को तेज प्यास, बुखार और जलन होती है।
  3. कफज : नाड़ी में कफज के कारण घाव होने पर घाव से गाढ़ी, चिकनी और सफेद राध यानी पीव निकलती है जो खुजली के साथ कठोर होती है। इस रोग में पीव यानी राध रात के समय अधिक निकलती है।
  4. सन्निपातज : सन्निपातज रोग में सभी रोग के मिश्रित लक्षण पाये जाते हैं। इस रोग के होने पर मृत्यु भी हो सकती है।
  5. शल्यज : इस रोग में पीव गर्म, झागयुक्त खून के साथ मवाद निकलती है तथा इसमें हर समय पीड़ा (दर्द) होता रहता है।

नाड़ी व्रण (नासूर) का इलाज (Nadi Vrana ka Ilaj in Hindi)

1. कालीमिर्च : कालीमिर्च, सेंधानमक, चीता, भांगरा, आक, नागकेशर, हल्दी और दारूहल्दी बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लुगदी (पेस्ट) बना लें। फिर लुगदी (पेस्ट) से 4 गुना तिल का तेल तथा तेल से 4 गुना पानी लेकर आग पर पकायें। केवल तेल रह जाने पर छानकर रख लें। इस तेल को नाड़ी के घाव (नासूर) पर लगाने से कफज तथा वातज के कारण उत्पन्न नाड़ी का घाव नष्ट होता है।

2. हल्दी : नाड़ी में घाव (नासूर) होने पर निशोथ, काली निशोथ, त्रिफला, हल्दी और लोध बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण से 4 गुना घी और घी से 4 गुना पानी मिलाकर अच्छी तरह से आग पर पकायें। केवल घी की मात्रा रह जाने पर उतारकर छान लें। इस तैयार मिश्रण को दूध में मिलाकर पीने से `पित्तज´ के कारण हुए नाड़ी घाव ठीक हो जाता है।

3. दारूहल्दी : दारूहल्दी, थूहर का दूध और आक का दूध इन सबको मिलाकर एक बत्ती बना लें। उसके बाद उस बत्ती को नाड़ी के घाव पर लगाने से नाड़ी के रोग में जल्द आराम मिलता है।

4. शहद : शहद और सेंधानमक को रूई पर लपेटकर उसकी बत्ती बनाकर नाड़ी के घाव पर लगाने से नाड़ी व्रण (नासूर) व दर्द ठीक हो जाता है।

5. अमलतास : अमलतास, हल्दी और मंजीठ बराबर मात्रा में लेकर उसे अच्छी तरह से पीस लें। उस पीसी हुई पेस्ट से बत्ती बनाकर नाड़ी के घाव पर रखने से किसी भी कारण से उत्पन्न नाड़ी के घाव में लाभ होता है।

6. अपामार्ग : अपामार्ग (चिरचिटे) की पत्तियों को पानी में पीसकर रूई में लगा नासूर में भर दें।

7. शराब : शराब में मकड़ी के जाले को भिगोकर उसे नाड़ी के घाव पर रखने से लाभ मिलता है।

8. छुई-मुई :

  • छुई-मुई की जड़ को घिसकर घाव पर लेप करने से नासूर खत्म हो जाता है।
  • छुई-मुई के पत्तों को कुचलकर इसमें रूई का फोहा रखकर जीर्ण व्रण व नाड़ी व्रण में प्रयोग करने से फायदा होता है।

9. बरगद :

  • बरगद के कोमल पत्तों को पीसकर पानी में छान लें, पानी में तिल का तेल मिलाकर तेल को सिद्ध कर लें। इस तेल को दिन में 2-3 बार व्रण यानी जख्म पर लगाने से फायदा होता है।
  • बरगद के दूध में सांप की केंचुली की भस्म (राख) मिलाकर उसमें पतले कपड़े या रूई की बत्ती को भिगोकर नाड़ी के घाव में रखने से 10 दिन में लाभ होता है। रसौली की शुरुआती अवस्था में इसके लेप से जल्द लाभ होता है।

10. एरण्ड : एरण्ड की कोमल कोपलों को पीसकर लेप करने से नाड़ी व्रण मिटता है।

11. कनेर : कनेर की पत्ती छायां में सुखाकर नासूर के जख्म पर छिडक दें।

12. कटेरी (कंटकारी) : कटेरी के फल छाया में सुखाकर पानी में पीस रूई में लगाकर नासूर में भर दें।

13. अडूसा : अडूसे के पत्ते तथा शहद दोनों की पुल्टिस तैयार करके नाड़ी व्रण (नासूर) पर बांधे।

14. नीम : शहद में नीम की छाल का चूर्ण मिलाकर नासूर पर लेप लगाएं

15. लौंग : शहद में थोड़ी-सी पिसी हुई हल्दी और दो लौंग चूर्ण रूप में मिलाकर नाड़ी व्रण (नासूर) पर रखकर पट्टी बांध दें।

16. नीबू : पानी में नीबू तथा शहद मिलाकर नित्य कुछ दिनों तक पीने से नासूर ठीक हो जाता है।

17. निर्गुडी : निर्गुडी की जड़ का चूर्ण घी तथा शहद में मिलाकर नाड़ी व्रण (नासूर) पर लगाएं।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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