Last Updated on March 18, 2023 by admin
नौलि क्रिया क्या है ? :
नौलि क्रिया को करने से पेट के सभी रोग दूर हो जाते हैं। इस क्रिया में पेट की मांसपेशियों को दाएं-बाएं व ऊपर-नीचे चलाया जाता है, जिससे पेट की मांसपेशियों की मालिश होती है। नौलि क्रिया करते समय आंखों को पेट पर टिकाकर रखें। षट्कर्मों में इस क्रिया का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है।
नौलि क्रिया की विधि :
नौली क्रिया कैसे करते हैं –
- इस क्रिया के लिए पहले सीधे खड़े हो जाएं और अपने दोनों पैरों के बीच 1 या 2 फुट की दूरी रखें।
- अब आगे झुककर दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर खड़े हो जाएं।
- अब अपनी आंखों को पेट पर टिकाकर उड्डीयान बंध करें।
- सांस को बाहर छोड़ कर पेट को बार-बार फुलाएं तथा पिचकाएं। इस क्रिया को 15 दिनों तक करें।
- इसके बाद अभ्यास करते समय सांस छोड़ते हुए पेट को खाली करें और फिर पेट को ढीला छोड़ते हुए मांसपेशियों को अन्दर की ओर खींचें और नाभि को भी अन्दर की ओर खींचें।
- फिर पेट के दाएं-बाएं भाग को छोड़कर बीच वाले भाग को ढीला करें। पेट के बीच में नलियां निकालने की कोशिश करें।
- इसके बाद सांस अन्दर लें और फिर सांस छोड़कर नौली निकालने की कोशिश करें। इस तरह पेट की मांसपेशियां सिकोड़कर नलियों की तरह बन जायेगी। अब सांस लेते और छोड़ते हुए नालियों (पेट में उभरी सभी नलियां) को दाईं जांघ पर जोड़ देकर दाईं ओर करें और फिर बाईं जांघ पर जोर देकर बाईं ओर करें। इस तरह नलियों को दोनों ओर लौटाने की क्रिया 3-3 बार करें।
- इसका अभ्यास होने के बाद नलियों को बाईं ओर ले जाकर ऊपर की ओर करें और फिर दाईं ओर लाकर नीचे की ओर करें। इस तरह इसे फिर बाईं ओर लाकर नीचे की ओर और दाईं ओर लाकर ऊपर की ओर करें। इस प्रकार से मांसपेशियों को घुमाने से एक चक्र पूरा हो जायेगा। इस प्रकार से इस क्रिया में नलियों को घुमाने की गति को तेज करते हुए इसे अधिक से अधिक बार घुमाने का प्रयास करें।
नौलि क्रिया में सावधानी :
- इस क्रिया को शौच जाने के बाद तथा भोजन करने से पहले करें।
- इस क्रिया को सुबह करना लाभकारी होता है।
- यह क्रिया कठिन है इसलिए इसे सावधानी से और किसी योग के शिक्षक की देखरेख में करें।
- पेटदर्द, डायरिया तथा पेट की कोई भी अन्य बीमारी होने पर इसका अभ्यास न करें।
- अल्सर, आंतों के विकार व आंतों में सूजन होने पर इसका अभ्यास हानि पहुंचा सकता है।
नौलि क्रिया से रोगों में लाभ :
नौली क्रिया के फायदे –
- इस क्रिया से पेट की सभी मांसपेशियों की मालिश हो जाती है, जिससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
- इसके अभ्यास से आंते मजबूत होती है,
- ज्वर, यकृत, वृक्क, तिल्ली (प्लीहा) का बढ़ना, वायु गोले का दर्द आदि रोग नहीं होते हैं।
- यह वात, पित्त व कफ से उत्पन्न होने वाले रोगों को दूर करता है।
- यह आंतों को साफ कर मल को निकालता है, कब्ज को दूर करता है तथा वायु को वश में करता है।
- यह क्रिया पाचन शक्ति को बढ़ाता है, अजीर्ण को खत्म कर भूख को खुलकर लाता है।
- मोटापा घटाता है, मन को प्रसन्न रखता है तथा शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है।
- यह मंदाग्नि को खत्म कर जठरग्नि को बढ़ाती है तथा कमर दर्द को दूर करती है।
- यह आसन स्त्रियों के लिए भी लाभकारी होता है। इससे मासिकधर्म संबंधित बीमारियां दूर होती हैं।