मैं युवावस्था में उपजे डरों के दर्दनाक प्रभाव के बारे में भावनात्मक रूप से और थोड़े अनुभव से लिख सकता हूँ। जब भी मैं किसी काम को करने के लिए प्रेरित होता था, सशक्त आत्म-शंका मेरा रास्ता रोक लेती थी। मुझे अक्षमता की भावना तो थी ही, शायद दुनिया में सबसे ज्यादा हीन
भावना भी थी, या कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता था। मैं सोचता रहता था कि मैं जिंदगी में कुछ नहीं बन सकता, मेरे पास दिमाग नहीं था, आकर्षक व्यक्तित्व नहीं था। मैं संकोची, झेपू, दब्बू था और दब्बू शब्द से सब कुछ स्पष्ट हो जाता है, यानी डरा हुआ और शर्मीला। मैंने पाया कि लोग मेरी राय से सहमत थे। सच तो यह है कि लोग अक्सर आपकी आत्म-छवि के हिसाब से ही आपका मूल्यांकन करते हैं।
कॉलेज से ग्रेजुएशन के पहले वाली रात को हमारे फैटर्निटी हाउस में फेयरवेल डिनर हुआ, जिसमें कॉलेज के प्रेसिडेंट सम्मानित अतिथि थे। डॉ. जॉन डब्लू हॉफमैन सच्चे मर्द थे। वे फुटबॉल सितारे थे। उनका व्यक्तित्व आकर्षक और बहिर्मुखी था। उनका शरीर भी काफी सशक्त था। वे इंसानों के बारे में सब कुछ जानते थे और उनकी शक्तियों तथा कमजोरियों के बारे में उन्हें तीक्ष्ण ज्ञान था। इस सबके अलावा, उनके सीने में प्रेम से भरा विशाल हृदय था।
डिनर ख़त्म होने के बाद डॉ. हॉफमैन ने कहा, “नॉर्मन, मेरे साथ मेरे घर तक चलो। मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ।’ तत्काल मुझ पर डर हावी हो गया। कहीं मैं फेल तो नहीं हो गया? नहीं, यह नहीं हो सकता, क्योंकि उपाधि पाने वालों की सूची छप चुकी थी और मेरा नाम स्नातकों की सूची में था, यानी मेरे अंक संतोषजनक थे।
जब हम उस चाँदनी रात में पैदल चले, तो उन्होंने जिंदगी के बारे में बात की और बताया कि सही विचार और सही आस्था रखकर तथा सही काम करके इसे किस तरह सार्थक बनाया जा सकता है। जब हम उनके घर के सामने पहुंच गए, तो वे एक पल ठहरे, फिर मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोले, “नॉर्मन, क्या तुम जानते हो? मुझे तुम पर यकीन है। तुममें काफी योग्यता है, बशर्ते तुम इसे सक्रिय करना सीख सको। मुझे विश्वास है कि तुम सार्वजनिक वक्ता बन सकते हो।”
उन्होंने मेरी तरफ एक लंबे पल तक देखा। फिर वे आगे बोले, “तुम्हें तो बस खुद पर यकीन करना सीखना है। तुम्हें तो बस डर, हीन भावना और आत्म-शंका से मुक्ति पाना सीखना है। बहरहाल, कभी किसी व्यक्ति या वस्तु या खुद से मत डरना।” उन्होंने मेरे सीने पर मुक्का मारते हुए कहा,मैं तुमसे प्यार करता हूँ लड़के और हमेशा तुम पर यकीन रखूगा। कोई चीज़ इस काबिल नहीं है कि उससे डरा जाए इसलिए डर को भूल जाओ और जियो-सचमुच जियो।”
सड़क पर लौटते समय मैं जैसे हवा में उड़ रहा था। मैं जिस महान व्यक्ति को पूजता था, उसे मुझ पर भरोसा है। अचानक मुझे किसी चीज़ से डर नहीं लग रहा था। मेरा सारा शर्मीलापन हवा हो गया था। उस पल मुझे एक अद्भुत एहसास हुआ और उतनी ही अद्भुत राहत। जाहिर है, डर की समस्या के मामले में मेरे जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन आखिरी विजय की शुरूआत मैं उसी रात से मानता हूँ, जब उस अद्भुत व्यक्ति ने एक डरे हुए लड़के को यह यकीन दिलाना शुरू किया कि वह अपने जीवन में बहुत कुछ कर सकता है।
बाद में मैं डॉ. हॉफमैन से जिंदगी भर प्यार करता रहा। कई साल बाद मुझे पता चला कि उन्हें गले का कैंसर हो गया था और वे मृत्युशैया पर थे। मैं उनसे मिलने पैसाडेना, कैलिफोर्निया गया। श्रोताओं को प्रेरित करने वाली गूंजती आवाज़ अब खामोश हो गई थी, लेकिन वही पुरानी अद्भुत मुस्कान उनके चेहरे को अब भी चमका रही थी। उनका बड़ा हाथ मेरे हाथ को पुरानी मर्दाना पकड़ से चकनाचूर कर रहा था।
अब वे बोल नहीं सकते थे इसलिए उन्हें मजबूरन लिखकर बातचीत करनी पड़ी। उन्हें अब भी
अपने लड़कों पर यकीन था। उन्होंने लिखा, “तुम्हें देखकर कितनी खुशी हुई। तुम्हारी प्रगति देखकर मुझे गर्व होता है। मेरी आँखों में आँसू आ गए। इस बात पर ध्यान देते हुए उन्होंने बातचीत पुराने दिनों के प्रसंगों की तरफ मोड़ दी। हम हँसे और थोड़ा रोए, हालाँकि हमने एक-दूसरे से अपने आँसू छिपाने की कोशिश की। यह दोस्ती का एक अविस्मरणीय और गहरा अनुभव था, जो मेरे जीवन के महानतम अनुभवों में से एक था।
आखिर बिदा लेने का समय हो गया। उनका हाथ थामते हुए मैंने कहा, “डॉ. हॉफमैन, क्या आपको बहुत समय पहले की वह रात याद है, जब अपने घर के बाहर आपने मुझसे इतनी अद्भुत बात की थी? मैं मरते दम तक यह नहीं भूल पाऊँगा कि आपने क्या कहा था और कैसे कहा था। आपने डर से मुझे स्वतंत्र करने की प्रक्रिया शुरू की थी और मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि मैं आपसे प्यार करता हूँ और हमेशा करता रहूंगा।” मैं जानता था कि मैं उन्हें इस धरती पर आखिरी बार देख रहा था, उस व्यक्ति को जो मेरे लिए इतना मायने रखता था। मैंने उनके सिर पर अपना हाथ रखकर प्रेमपूर्ण स्पर्श किया। उन्होंने मेरे सीने पर हल्के से मुक्का मारा, शायद इतने हल्के से नहीं। उन्होंने लिखा, “और मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ, लड़के। मैं हमेशा करता रहूँगा और मैं आख़िर तक तुम पर यकीन रखूगा। ईश्वर की शक्ति पाओ और कभी किसी चीज़ से मत डरो।” मैं दरवाजे पर मुड़कर देखने लगा। उन्होंने अपने बँधे हुए हाथ उठा दिए और मेरी आख़िरी याद उसी पुरानी मुस्कान की थी, जो मुझे इतनी अच्छी तरह याद थी।
-नॉर्मन विंसेट पिल
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