Last Updated on July 23, 2019 by admin
लगभग करोड़ों वर्ष पूर्व संसार के रचयिता ने संसार को बनाया। उसने पेड़-पौधे, जीव-जंतु और इंसानों को बनाया। इनके जीवनयापन के लिए हर चीज़ का वातावरण में इंतज़ाम किया। इनका शरीर एक संपूर्ण मशीन के रूप में विकसित किया, जो कि इनके जीवन की पूरी यात्रा पूर्ण करने में इनका सहयोगी है। उनके शरीर में कोई कमी नहीं रखी। यदि हम चींटियों को ही देखें तो उनके छोटे से शरीर में मस्तिष्क है, पाचनतंत्र है, चलने के लिए पैर हैं, देखने के लिए आँखें हैं (हमसे भी अधिक विकसित), उत्सर्जन तंत्र है, यानि सब कुछ है।
कुदरत का क़ानून था कि आप प्रकृति के नियम को मानें, उसके अनुसार चलें और सुरक्षित, स्वस्थ एवं पूर्ण जीवन बिताएँ। सभी जीवों ने ऐसा ही किया, कर रहे हैं और करते रहेंगे, लेकिन हम मनुष्यों ने इन नियमों को लाखों साल तक तो माना लेकिन फिर हम इन्हें तोड़ने लगे और पिछली सदी से हम बहुत अधिक बाग़ी हो गए हैं। हमारी बग़ावत का आलम यह है कि हम खुद अब खुदा बनना चाहते हैं, हम कुदरत या प्रकृति को बदलने पर आमादा हैं।
पाषाण युग से लेकर आधुनिक युग तक का सफ़र देखें तो जानवरों की जीवनशैली और भोजन में कोई परिवर्तन नहीं आया। शेर तब भी शिकार करता था और आज भी। गाय तब भी घास खाती थी और अब भी। बंदर पहले भी पेड़ों पर उछल-कूद करके फलों ओर पत्तियों से पेट भरते थे और आज भी, लेकिन हम इंसान पाषाण युग के गुफा मानव से आधुनिक स्मार्ट मानव में बदल गए। हम कंदमूल और फलों की जगह मांस , तेल, पिज्जा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक और मज़े के लिए शराब एवं ड्रग्स भी लेने लगे। हमने दौड़ने-भागने को छोड़कर जानवरों की सवारियाँ शुरू करते हुए मोटर-कार और हवाईजहाज़ तक की यात्राएँ शुरू कर दीं। हमने जंगल के खुले आसमान में पेड़ों और पहाड़ों की तलहटी से गुफा में रहना शुरू किया और फिर झोपड़ियों से होते हुए हम महलों, मकानों, फ़्लैट या झुग्गियों में रहने लगे। हमने जिंदगी बिताने से आगे बढ़कर अपने ऐशो-आराम के संसाधन भी जुटाए। हम शिकारी और खानाबदोश से व्यापारी बन गए और व्यापारियों को छोड़कर बाक़ी के लोग मज़दूर या कर्मचारी बन गए। मानव विकास और सभ्यता की इस अद्भुत और गर्वीली यात्रा ने मानव को विराट और अकल्पनीय बुलंदियों पर पहुँचाया और वह वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए।
मानव की इस विकास यात्रा में एक त्रुटि यह हुई कि उसने अपने स्वास्थ्य को लगातार नष्ट किया। वह विकास के मामले में मंगल ग्रह तक पहुँच गया, लेकिन स्वास्थ्य के मामले में वह पाताल तक धंस चुका है। अब वह पैदा होते ही बीमार हो जाता है और कई तो ज़िंदगी भर बीमार रहते हैं। अब जिंदगी जीने के दिन कम हुए हैं और मरने का इंतज़ार बढ़ गया। है। नित-नई बीमारियों से घिरा यह अभागा मानव नई-नई दवाइयों की खोज में लगा हुआ है लेकिन समस्या के मूल में उसकी बुद्धि उसे जाने नहीं दे रही या समस्या के मूल का नाश कुछ दवा व्यापारी चाहते ही नहीं। आइए, हम हमारे समकालीन सेहतमंद जानवरों से सीखें कि वे कैसे अब भी स्वस्थ हैं, कभी बीमार नहीं होते और वे अब भी जिंदगी को जी रहे हैं और उनके मरने का दिन हमारी तरह कई वर्षों का नहीं है :
निरोगी स्वस्थ रहने के सरल उपाय :
1-भोजन
जीव-जंतुओं के भोजन में कोई परिवर्तन नहीं आया है। कोई भी जीव अपने खाने को पकाला नहीं है, न उसे संचित करके रखता है और न उसे स्वादिष्ट बनाने के लिए किसी मसाले या रसायन का प्रयोग करता है।
हम क्या करें :
हम भी अधिक से अधिक कच्चे भोजन का प्रयोग करें, जैसे : फल, सब्ज़ियाँ, सलाद, कंद-मूल एवं ड्राइफूट्स।
2-प्रकृति के आंचल में निवास
जीव-जंतु अपने प्राकृतिक निवास स्थानों में ही रहते हैं, बंदर वृक्षों पर, सर्प और चूहे बिल में, मोर जंगलों में, चींटियाँ बिलों में एवं मछलियाँ जल में। वे खुले वातावरण में रहते हैं, जिससे उन्हें स्वच्छ हवा एवं पानी प्राप्त होता है।
हम क्या करें :
हम घरों में रहते हैं और सोने का हमारा कमरा दस गुणा दस फ़ीट का होता है। एक व्यक्ति यदि दस गुणा दस के कमरे में सोता है, तो वह दो से ढाई घंटे में उसमें मौजूद हवा का प्रयोग कर लेता है। उसके बाद यदि कमरा बंद है, तो वह उसी अशुद्ध हवा में साँस लेता रहता है और अपने अंगों को क्षतिग्रस्त करता रहता है।
यदि मुमकिन हो, तो खुले हवादार स्थान में सोएँ, या फिर खिड़कियों को खुला रखकर सोएँ, घर में खिड़कियाँ ज़्यादा हों जहाँ अच्छे से हवा का आवागमन होता रहे। ऑफ़िस के रूप में भी हमें खुले हवादार कमरे का । चुनाव करना चाहिए। गहरी साँसें लेने का प्रयास हमेशा करना चाहिए।
जिस प्रकार हम दूषित भोजन लेते हैं तो हमारा पेट ख़राब हो जाता है और हमें उल्टी-दस्त या जलन होने लगती है, उसी प्रकार हम दूषित हवा साँसों के माध्यम से लेकर फेफड़ों को ख़राब करते हैं और हमें अस्थमा, टी.बी., खाँसी, साइनस (Sinusitis) आदि होने लगते हैं।
3-प्राकृतिक व्यायाम
कुत्ते या बिल्लियों को आपने सुबह उठकर स्ट्रेचिंग करते हुए देखा होगा। ऐसा करके जानवर अपनी मांसपेशियों को स्वस्थ रखते हैं एवं उनकी रीढ़ तथा जोड़ इससे स्वस्थ रहते हैं। पशु-पक्षी सभी दिनभर चलते हैं या दौड़ते हैं या फिर लंबी उड़ान भरते रहते हैं। यह प्राकृतिक व्यायाम उन्हें सदा स्वस्थ रखते हैं। जबकि हम सोते हैं, अलार्म बजता है, चौंक कर उठते हैं और सीधे खड़े हो जाते हैं।
हम क्या करें :
अधिक से अधिक चलने की आदत डालें या चलने को अपनी मज़बूरी बना लें। सुबह उठकर स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ करें। उछल-कूद, दौड़-भाग करें।
4-बेफ़िक्र जिंदगी
बचपन में हमारे घर पर एक गाय थी, बहुत प्यारी, बहुत सुंदर। उस गाय का एक बछड़ा था, मेरा प्यारा। लेकिन उसे कुछ आवारा कुत्तों ने मिलकर ज़ख़्मी कर दिया। हम लाख प्रयास के बावजूद उसे बचा नहीं पाए। हम सब दुःखी थे और गाय भी उस दिन दुःखी रही। वह घास भी नहीं खा रही थी। हम सब सुबह उठे, हम अब भी उसकी कमी के कारण उदास और दुःखी थे, ख़ासकर मैं और मेरे बड़े भाई, लेकिन उसकी माँ अब अपनी सामान्य ज़िंदगी जी रही थी, बिलकुल सामान्य।
जानवर भोजन, रहने के स्थान एवं आनेवाले कल की कोई चिंता नहीं करते। वे बस वर्तमान में जिंदगी जीते हैं।
हम क्या करें :
चिंता से लड़ना सीखें, सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करें, ईश्वर पर आस्था रखें। जब ईश्वर जानवरों को आराम से जीवन व्यतीत करवा सकता है, बिना नौकरी के उन्हें भोजन प्रदान करता है, तो आपको क्यों नहीं करवाएगा ? जबकि हम इंसान तो ईश्वर के प्रिय हैं, हैं ना?
पुन:श्च :
हम इंसानों की प्रगति वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ है, लेकिन जानवरों का स्वास्थ्य हमसे कई गुना बेहतर हैं, वे स्वस्थ हैं, निरोगी हैं। इन निरीह जानवरों में यदि कोई रोग पनप रहा है, तो उसकी वजह बेचारे वे नहीं, उसकी वजह भी हम इंसान ही हैं जिन्होंने हवा, पानी, ज़मीन और आकाश सबको प्रदूषित कर दिया है। संसार के रचनाकार ने इंसानों को एक शक्ति दी है, वह है। उसके विवेक या सोचने की शक्ति और फिर उस पर अमल करने की शक्ति। हम अपना अच्छा-बुरा जाँचकर उस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं और हमने आधुनिकता का रास्ता चुना और इसने हमें बीमार किया, जानलेवा बीमार। पशुओं और अन्य जानवरों के पास यह विशेषता नहीं है, उनके पास केवल एक ही तरह से जीवन जीने का विकल्प है। वे कुदरत या प्रकृति के नियम नहीं तोड़ सकते। हम इंसान कुदरत के नियमों की अवहेलना करके बीमार पड़े हैं, तो क्यों न हम प्रकृति के नियम फिर अपनाएँ और फिर स्वस्थ हो जाएँ, वैसे ही जैसे कि हमारे आसपास के जीव-जंतु हैं – स्वस्थ, निरोगी और सुखी…
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