Last Updated on August 30, 2020 by admin
पंचकोल चूर्ण क्या है ? panchkol churna in hindi
पंचकोल चूर्ण हर्बल पाउडर रूप में एक आयुर्वेदिक दवा है। इसका उपयोग यकृत (Liver) की खराबी व कमज़ोरी ,एनोरेक्सिया, अपचन, सूजन, पेट दर्द आदि के उपचार में किया जाता है।
आहार-विहार में अनियमितता, स्वादवश अपथ्य पदार्थों का सेवन तथा पथ्य पदार्थों का अति सेवन- इन तीनों कारणों से आज कल उदर रोग, यकृत की खराबी व कमज़ोरी और इन अंगों से सम्बन्धित व्याधियां व्यापक रूप से फैली हुई पाई जा रही हैं। इन व्याधियों को नष्ट करने वाले एक आयुर्वेदिक योग पंचकोल का परिचय प्रस्तुत है।
पंचकोल चूर्ण के घटक द्रव्य : panchkol churna ingredients in hindi
✦पीपल
✦पीपलामूल
✦चव्य
✦चित्रक (चीता)
✦सोंठ
पंचकोल चूर्ण बनाने की विधि : preparation method of panchkol churna
पांच द्रव्यों के योग को पंचकोल कहते हैं। इस योग में पांच द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर कपड़छन महीन चूर्ण कर के मिलाया जाता है। इस नुस्खे के पांच द्रव्य 1-1 कोल (आठ-आठ माशा) मिला कर यह योग बनाया जाता था इसलिए इसका नाम ‘पंचकोल हुआ।
पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक (चीता) और सोंठ- इन पांच द्रव्यों के योग को पंचकोल कहते हैं। इन पांचों द्रव्यों को पंसारी के यहां से 50-50 ग्राम मात्रा में ले आएं। अलग-अलग खूब कूट पीस कर महीन चूर्ण कर लें और बराबर-बराबर वज़न में लेकर मिला लें। इसे शीशी में भर कर रख लें। बस, ‘पंचकोल’ तैयार है।
मात्रा , अनुपान और सेवन विधि : panchkol churna dosage
इसके सेवन की दो विधियां है।
पहली विधि –इसकी आधा चम्मच मात्रा (लगभग 3 ग्राम) एक गिलास छाछ में घोल कर भोजन के साथ पूंट-घूट करके पीना चाहिए या शहद में मिला कर चाट लेना चाहिए। व्याधि दूर होने तक सेवन करके बन्द कर दें। इसे दाल शाक में बुरक कर भी सेवन कर सकते हैं या एक चम्मच चूर्ण कुनकुने गरम पानी के साथ सुबह शाम भोजन के बाद ले सकते हैं।
दूसरी विधि- छिलके वाली मूंग की दाल के साथ सेवन करने की है। एक साफ़ सफ़ेद कपड़े में लगभग 20 ग्राम चूर्ण रख कर छोटी सी पोटली बना कर धागे से बांध दें। दाल के लिए पानी आग पर रखते समय ही यह पोटली पानी में डाल दें। अब जिस तरह से दाल बनाई जाती है वैसे ही दाल पकाएं। जब दाल पक जाए तब पोटली निकाल कर फेंक दें। 25 ग्राम शुद्ध घी व 10-12 दाने जीरे का छौंक तैयार करें और इस दाल को बघार दें। इस दाल को परिवार के सभी लोग खा सकते हैं यानी व्याधिग्रस्त ही नहीं स्वस्थ व्यक्ति भी इसे खा सकता है। रोग ग्रस्त 5-6 दिन तक प्रतिदिन इसका सेवन करें फिर सप्ताह में 2-3 बार करता रहे। इसे पंचकोल साधित मूंग की दाल कहते हैं। इस योग की प्रकृति उष्ण होती है अतः अनुकूल मात्रा में, शुद्ध घी का बघार लगा कर, उतनी ही अवधि तक सेवन करना चाहिए जब तक उदर रोग, भूख की कमी, पेट का फूलना, अपच, गैस की शिकायत आदि शिकायतें दूर न हो जाएं। सप्ताह में 1-2 बार सेवन करने में कोई हानि नहीं। आइये जाने panchkol churna ke labh,panchkol churna ke fayde in hindi
पंचकोल चूर्ण के फायदे : panchkol churna benefits in hindi
1- पंचकोल चूर्ण उत्तम रुचिकारक, भूख बढ़ाने वाला और पाचन क्रिया सुधारने वाला गुणकारी योग है।
2- इसके सेवन से पेट का अफारा, प्लीहावृद्धि, गुल्म, शूल, कफजन्य व्याधि और उदर रोग नष्ट होते हैं।
3- यह श्वास, खांसी, ज्वर और अरुचि को भी दूर करता है।
4- यह वात पित्त और कफ सभी तीनों दोषों का मुकाबला करता है ।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया बाज़ार में मिलता है।
पांचों द्रव्यों का परिचय गुण धर्म और विभिन्न भाषाओं के नाम आपकी जानकारी के लिए यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं
1-पीपल :
पीपल का विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृतपिप्पली । हिन्दी-पीपर, पीपल । मराठीपिम्पली। गुजराती-पीपर, लिंडी पीपर। बंगला-पिपुल। कन्नड़-हिप्पली। तैलुगुपिप्पालु । तामिल-टिप्पली । फ़ारसी – फिलफिलदराज । इंगलिश-लांग पीपर (Long pepper).। लैटिन- पाइपर लांगम (Piper Longum).
पीपल के औषधीय गुण व प्रधानकर्म –
पीपलामूल पीपल की जड़ को ही पीपलामूल (Piper Root) कहते हैं। यह पीपल की तुलना में गर्म, रूखी, पित्तकारक होती है। और देखने में कृष्णवर्ण की होती है। शेष गुण पीपल के ही होते हैं।
2-चव्य :
चव्य का विभिन्न भाषाओं में नाम –
संस्कृत-चविका। हिन्दी-चव्य। मराठी-चवक । गुजराती-चवक। बंगला-चई। कन्नड़-चव्य। तैलुगु- चेइकम। इंगलिश- जावा लांग पीपर (Jawa Long pepper) । लैटिन- पाइपर चावा (Piper Chava).
चव्य के औषधीय गुण व प्रधानकर्म –
इसके गुण पीपल और पीपलामूल के ही समान हैं। यह विशेषकर गुदा के रोगों पर हितकारी प्रभाव करती है।
3-चित्रक (चीता) :
चित्रक का विभिन्न भाषाओं में नाम –
संस्कृत-चित्रक। हिन्दी-चित्रक, चीता । मराठी-चित्रक, चित्रकमूल । गुजराती-चित्रो । बंगला-चिता। कन्नड़-चित्रमूल । तैलुगु-चित्रमूलम् । तामिल-चित्तिर। फ़ारसी -शीतर। इंगलिश-लेडवर्ट (Leadwort)। लैटिन- प्लम्बेगो ज़िलेनिका (Plumbag0 Zeylanica).
चित्रक के औषधीय गुण व प्रधानकर्म –
यह पाक होने पर कटु, अग्निवर्धक, पाचन, हलका, रूखा, गर्म तथा गृहणी की शक्ति को बढ़ाने वाला है और संग्रहणी, कोढ़, सूजन, बवासीर, कृमि, खांसी, वात कफ और पित्त को नष्ट करने वाला है।
4-सोंठ :
सोंठ का विभिन्न भाषाओं में नाम –
संस्कृत-शुंठी । हिन्दी-सोंठ | मराठी-सुंठी । गुजराती-सुण्ठ। बंगला-शुण्ठ। कन्नड़-शुटि । तैलुगु- शोंठी । तामिल-शुक्छु । फ़ारसी- जंजबील खुश्क। इंगलिश-ड्राइ जिंजर रूट (Dry Ginger Root) । लैटिन- जिंजिबर आफिशिनेल (Zingiber Officinale).
सोंठ के औषधीय गुण व प्रधानकर्म –
शृंठी यानी सोंठ रुचिकारक, आमवात नाशक, पाचक, चरपरी, हलकी, स्निग्ध, उष्ण, पाक होने पर मधुर, कफ वात तथा मलबन्ध को तोड़ने वाली है। वीर्यवर्द्धक, स्वर को उत्तम बनाने वाली, वमन, श्वास, शूल, खांसी, हृदय के रोग, श्लीपद, शोथ, आनाह, उदर रोग और वात के रोगों को नष्ट करने वाली है। यह ग्राही होती है। ( और पढ़े – गुणकारी अदरक के 111 फायदे)
पंचकोल चूर्ण के नुकसान : panchkol churna side effects in hindi
✦ इसे केवल सख्त चिकित्सा पर्यवेक्षण के तहत लें।
✦ चिकित्सक द्वारा सलाह दी गई है कि इस दवा को सटीक खुराक में और सीमित अवधि के लिए लें।
✦ मधुमेह, उच्च रक्तचाप वाले मरीजों, हृदय रोगियों, मोटे लोगों, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों को केवल चिकित्सक की देखरेख में इस दवा को लेना चाहिए।
✦ अधिक खुराक गैस का कारण बन सकती है।
✦ बच्चों की पहुंच और दृष्टि से दूर रखें। एक सूखी शांत जगह में स्टोर करें।
लीवर की आयुर्वेदिक दवा : liver ki ayurvedic dawa
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(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)