Last Updated on December 28, 2020 by admin
सवाल : कुछ दिनों पहले मेरे घनिष्ठ संबंधी की मृत्यु हुई। उसके कुछ दिनों बाद एक बार घर पर कोई नहीं था तब मुझे बहुत पसीना आया, दिल की धड़कनें बढ़ गईं, छाती में दर्द होने लगा, ऐसे लगा अब कुछ ठीक नहीं। मुझे चक्कर आया तब आशंका हुई कि कहीं रक्तचाप तो नहीं बढ़ गया, हार्ट अटैक तो नहीं आया। मैं तुरंत डॉक्टर के पास गई । रक्तचाप ठीक था, सब सामान्य था । थोड़ी देर में सारे लक्षण खत्म हुए। सभी प्रकार की जाँच कराई । ई. सी. जी. भी सामान्य आया। मुझे बार-बार ऐसा होता है। ऐसा लगता है अब मृत्यु निश्चित है। डॉक्टर तो कहते हैं, सब कुछ सामान्य है फिर मुझे यह तकलीफ बार-बार क्यों होती है।
डॉक्टर : आपको जो तकलीफें हो रही हैं उसे मनोविकार शास्त्र में ‘पैनिक डिसऑर्डर’ कहते हैं। अचानक आनेवाले और अचानक जानेवाले तुफान की तरह। इस बीमारी में मर्यादित समय के लिए तीव्र स्वरूप का डर और चिंता रुग्ण के मन में निर्माण होती है। डर और चिंता के सभी परिणाम शरीर पर लक्षणों द्वारा प्रकट होते हैं। शारीरिक लक्षण इतने तीव्र स्वरूप के होते हैं कि इंसान दशहत में आ जाता है। यह डर का तुफान पूर्वसूचना दिए बगैर अचानक कभी भी आता है।
सवाल : पैनिक डिसऑर्डर के लक्षण क्या होतें है ?
डॉक्टर : कुछ संकेतों और लक्षणों से हम पैनिक डिसऑर्डर की पहचान कर सकतें है । जैसे –
- दिल की धड़कनें अनियंत्रित गति से बढ़ना,
- छाती में जड़ता आना,
- हाथ-पैर सुन्न होना,
- पेट में गोला उठना,
- गला सूखना,
- बार-बार मूत्रत्याग की भावना आना,
- सिरदर्द,
- बहुत विचार बढ़ना,
- चक्कर आना,
- अस्वस्थ लगना,
- साँसें उखड़ना,
- गले में कुछ अटका है ऐसा लगना, आदि ।
यह सारे लक्षण या इनमें से कुछ लक्षणों का दिखाई देना पैनिक डिसऑर्डर कहलाता है।
इसमें तीव्र डर की वजह से अब मृत्यु निश्चित है ऐसा लगता है, साथ में यह भी महसूस होता है कि अपने ऊपर का कंट्रोल खत्म हो रहा है।
पैनिक डिसऑर्डर जितनी जल्द गति से आता है उतनी ही गति से बिना उपचार के ३०-४० मिनट की कालावधि में चला भी जाता है । यह पुनः पुनः अचानक आता है, जिससे रुग्ण का आत्मविश्वास कम होने लगता है जिसकी वजह से ऐसे रुग्ण उन स्थानों पर जाना टालते हैं जहाँ उन्हें लगता है यह आसकता है।
ड्राइवर ड्राइविंग छोड़ देते हैं, बाहर जाना टालते हैं, अकेले सफर करना टालते हैं। यह हमेशा अपने साथ किसी ना किसी को रखते हैं। महिलाएं घर में अकेले रहने से कतराती हैं। कुछ लोग भीड़ की जगह जाना टालते हैं तो कुछ अपना व्यवसाय बदल देते हैं। कुछ लोग तो घर से बाहर ही नहीं निकलते। कुछ लोग किसी भी अंतविधि में नहीं जाते।
सवाल : पैनिक डिसऑर्डर क्यों होता है, इसके कारण क्या है ? सारे रिपोर्टस सामान्य होने के बावजूद ऐसी तकलीफें क्यों होती हैं ?
डॉक्टर : पैनिक डिसऑर्डर के कारण निम्नलिखित हैं-
1). नर्व्हस सिस्टिम की विकृति – मानव शरीर में मेंदू की तरफ से शरीर को संदेश देनेवाली सिम्पथेंटिक नर्व्हस सिस्टिम (Sympathetic nervous system) होती है, जो शरीर तथा मन को उत्तेजना देती है। पैरासिम्पथेंटिक नर्व्हस सिस्टिम (Parasympathetic nervous system) यह मन को और शरीर को रिलैक्स करनेवाली, स्वस्थता देनेवाली सिस्टिम होती है।
पैनिक डिसऑर्डर में सिम्पथेंटिक नर्व्हस सिस्टिम जरूरत से ज्यादा काम करती है यानी वह उत्तेजित ही रहती है और पैरासिम्पथेंटिक सिस्टिम कम क्षमता से कार्य करती है, जिसके कारण पैनिक डिसऑर्डर के लक्षण दिखाई देते हैं यानी किसी कारणवश उत्तेजना बढ़ी और उसे शांत नहीं किया गया। बिगड़े हुए बटन की तरह यह चिंता का बटन बंद ही नहीं होता, जिसकी वजह से यह पैनिक अटैक बार-बार आता है और इंसान इसे बड़ी बीमारी समझकर और डर जाता है। डर की वजह से फिर से सिम्पथेंटिक नर्व्हस सिस्टिम उत्तेजित होती है, फिर से लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसा बार-बार होते रहता है।
2). आनुवंशिकता – आनुवंशिकता भी इसके पीछे का एक कारण हो सकता है। यदि आपके किसी वंशज को यह बीमारी हो तो आपको भी होने की संभावना रहती है।
3). शरीर में हानिकारक रसायनों की वृद्धि – अलावा कार्बन डायऑक्साइड, सोडियम लेक्टेट, सोडियम कार्बोनेट ऐसे कुछ रसायन को पॅनिकोजेनिक यानी डर को उपयुक्त करनेवाले पदार्थ कहा जाता है। शरीर में इन पदार्थों के बढ़ने के कारण पैनिक अटैक आने की संभावना होती है।
इसके अलावा – तीव्र क्रोध, अत्यंत तनाव, रिश्ते में द्विधा अवस्था, दुविधा, पास के व्यक्ति की मृत्यु या लंबी चलती आ रही बीमारी, बहुत समय तक हॉस्पिटलायजेशन आदि कारणों की वजह से भी पैनिक अटैक आ सकता है तथा हायपरथायराइडिजम (hyperthyroidism) एवं अस्थमा की वजह से भी ऐसा अटैक आ सकता है।
सवाल : पैनिक डिसऑर्डर बीमारी का इलाज क्या है ?
डॉक्टर : सबसे पहले इस बात का निदान होना चाहिए कि इसके पीछे का मुख्य कारण क्या है । ऐसे रुग्ण पहले से ही कुछ डॉक्टरों के पास जाकर आए हुए होते हैं। उनके पास खून की बहुत सी रिपोर्ट मौजूद होती है। ज्यादातर वे सामान्य होते हैं। डर के कारण उनके शरीर पर कुछ लक्षण दिखाई देते हैं, जिससे वे काफी परेशान रहते हैं। किसी एक डॉक्टर पर पूर्ण विश्वास नहीं रखते, बार-बार डॉक्टर बदलते रहते हैं। ऐसे रुग्ण को तीन तरह से उपचार दिया जाता है।
1). औषधोपचार
2). समुपदेशन
3). रिलैक्सेशन टेक्निक, प्राणायाम, बिहेवीयर थेरपी
1) औषधोपचार : इसमें ऐसी दवाइयाँ दी जाती हैं, जो मस्तिष्क में तैयार हुए रासायनिक असंतुलन को संतुलित करने का कार्य करती हैं। ऐसी दवाइयाँ बीमारी की तीव्रता के अनुसार 3 से 9 महीने निरंतर लेनी होती है।
2) समुपदेशन : समुपदेशन में सबसे पहले इस बीमारी की शास्त्रीय जानकारी रुग्ण को समझायी जाती है। इस पैनिक की तकलीफ में शारीरिक तकलीफ कितनी भी तीव्र हो लेकिन इसका मूल कारण मानसिक होता है। ऐसी अवस्था में रुग्ण को इस बात की तसल्ली देना जरूरी होता है कि चाहे कितनी भी पीड़ा हो आपकी जान नहीं जाएगी। इससे रुग्ण की बीमारी 50% ठीक होती है। रुग्ण को समुपदेशन देने से पहले यह जानना जरूरी होता है कि इसका मूल कारण क्या है और उसका नियोजन कैसे किया जाए।
ऐसे रुग्ण को कुछ तुरंत राहत पहुँचानेवाली पास में रखने के लिए दवाई देनी चाहिए ताकि अटैक आने की आशंका होने पर या अटैक आने के तुरंत बाद उसे लेकर वह राहत पाए। ऐसी दवाइयाँ तुरंत परिणाम करती है। बहुत बार ऐसा भी होता है कि रुग्ण को दवाइयाँ पास होने से बड़ा दिलासा मिलता है और अटैक भी नहीं आता। अब इस दवाईयों के कारण मुझे अटैक नहीं आएगा ऐसा विश्वास होता है।
3) रिलैक्सेशन : रिलैक्सेशन तकनीक, शिथिलीकरण व्यायाम, श्वास के व्यायाम, प्राणायाम इत्यादि नियमित व्यायाम करने चाहिए। इस बीमारी के लिए एक अत्यंत परिणामकारक टेकनीक भी है, जिसे इमोशनल फ्रिडम थेरपी कहते हैं। ई. एफ. टी. यानी नकारात्मक भावनाओं से मुक्त होने की तकनीक । इस तकनीक को सीखकर इंसान स्वयं ही डर, चिंता वगैरह से मुक्त हो सकता है या इसे किसी तज्ञ द्वारा भी लिया जा सकता है।
पैनिक डिसऑर्डर की दाव :
इसके अलावा पुष्पौषधि उपचार भी अत्यंत लाभकारी होता है।
अचानक तकलीफ होने पर ‘रेस्क्यू रेमिडी’ नामक दवाई 4 बूंद, 5-5 मिनट के अंतराल पर देनी चाहिए। इसके अलावा रुग्ण को स्टार ऑफ बेथलेहम, मिम्युलस, वॉलनट, चेरी प्लम, इम्पेशन्स आदि पुष्पौषधि 4-4 गोलियाँ दिन में 4-4 बार कुछ महीने नियमित देने से लाभ होगा।
होमिओपैथी की दवाइयाँ भी लाभकारी होती हैं। होमिओपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर उनकी सलाहानुसार ट्रीटमेंट लेनी चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)