पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओडी) – Polycystic Ovary Syndrome (PCOD) in Hindi

Last Updated on March 5, 2023 by admin

प्रकृति ने स्त्री को “मातृत्व” की सुखद अनुभूति प्रदान की है। एक नारी के लिए “मां बनना” जीवन का सबसे अहम अनुभव है जिसे शब्दो में वर्णन नहीं किया जा सकता है परंतु PCOS स्त्रियों में होनेवाला एक ऐसा हार्मोनल रोग है जो स्त्री को मातृत्व से वंचित रखता है। कुंवारी कन्याओं में भी यह रोग पाया जाता है।

PCOS का विस्तृत स्वरूप है Poly Cystic Ovarian Syndrome अर्थात स्त्री बीजकोष (Ovary) में छोटी-छोटी गांठे होने के कारण अनेक लक्षण दिखते है। उन लक्षणों का समूह PCOS कहलाता है।

PCOS की विस्तृत जानकारी के पूर्व स्त्री प्रजनन संस्थान (Female Reproductive System) के बारे में जाने।

प्रकृति ने स्त्री शरीर की विशेष रूप से रचना की है। स्त्री के प्रजनन संस्थान में 1 गर्भाशय (Uterus), 2 बीजवाहिनियां (Fallopian Tubes), 2 स्त्री बीजकोष (Ovary) का समावेश होता है। एक स्वस्थ स्त्री में ये सभी अंग प्राकृत अवस्था में रहते है व प्राकृत कार्य करते है।

स्त्री शरीर में 2 स्त्री बीजकोष गर्भाशय से दोनों बाजू से जुड़े रहते है। हर महीने बीजकोष में 1 स्त्रीबीज निर्मित होता है। साथ ही इसी स्त्रीबीज कोष के द्वारा इस्ट्रोजन, प्रोजेस्टरॉन व अन्ड्रोजन इन अंतःस्त्रावों (Hormones) की भी निर्मिती होती है। जिन महिलाओं में मासिक धर्म नियमित होता है उन्हें मासिकस्राव (Menstruation) प्रारंभ होने के बाद स्त्री बीज की वृद्धि होना प्रारंभ होती है। एक बीजकोष में साधारणतः 5-10 स्त्री बीज हर माह वृद्धिगत होते हैं। प्रत्येक स्त्री बीज में फॉलिकल की निर्मिती व वृद्धि फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (FSH) व ल्युटिनाइजिंग हार्मोन (LH) (Hormones) के द्वारा होती है। ये हार्मोन मस्तिष्क के आधार पर रहनेवाली पियूषिका ग्रंथि (Pituitary Gland) से निर्मित होते है।

स्त्री बीजकोष में फॉलिकल्स होते है जो कि छोटी-छोटी रचना होती है इनमें एक द्रव पदार्थ भरा होता है और ये स्त्री बीज को पकड़े रहते है। हर माह एक फॉलिकल में 20 स्त्री बीज (Egg, Ovum) परिपक्व होना प्रारंभ होते है। इन सब फॉलिकल्स में से एक ही फॉलिकल की वृद्धि पूर्ण रूप से होती है। एक परिपक्व हुआ स्त्रीबीज हर माह स्त्री बीज कोष से बाहर निकलता है इसे ही ओव्युलेशन (ovulation) कहते हैं। गर्भ नलिका में इस स्त्रीबीज का पुरूषबीज से संयोजन होने पर वे गर्भाशय के अंतः आवरण (Endometrium) में स्थापित होते हैं। इसे ही हम गर्भधारण कहते है। यदि गर्भधारणा नही हुई तो गर्भाशय के स्तर योनिमार्ग द्वारा बाहर जाते है और स्त्री को रक्तस्त्राव प्रारंभ हो जाता है इसे ही मासिक धर्म (Menstruation) कहते है।

आखिर क्या होता है पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम ? (What is PCOS in Hindi)

pcos kya hota hai in hindi –

यह महिलाओं में होने वाली ऐसी व्याधि है जिसका प्रभाव महिलाओं के मासिक धर्म, हार्मोन्स, हृदय, रक्त वाहिनियों पर पड़ता है। PCOS से ग्रस्त महिलाओं में एन्ड्रोजन (पुरूष हार्मोन) की अधिक मात्रा होती है। इसके अतिरिक्त अनियमित मासिक चक्र रहता है। संतान उत्पन्न करने की आयु (Child Bearing Age) वाली स्त्रियों में दस में से एक को PCOS होता है। यह रोग 11 वर्ष की बालिका को भी हो सकता है।

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम होने के क्या कारण है ? (Causes of PCOS in Hindi)

pcos kyu hota hai in hindi –

इस व्याधि के कई संभावित कारण हैं। शोध कर्ताओं के अनुसार एक से अधिक घटक PCOS निर्माण होने में कारणीभूत है।

कुछ शास्त्रज्ञों के मतानुसार Pcos के कारणीभूत घटक स्त्री के गुण सूत्रों में पहले से ही उपस्थित रहते है। अतः यह व्याधि स्त्री शरीर में जन्मतः रहती है परंतु उसके लक्षण बाद में प्रकट होते है। शरीर में उपस्थित जीन्स (Genes) एक घटक हो सकता है अर्थात PCOS से ग्रस्त महिला की मां या बहन भी इससे ग्रस्त हो सकती है।

कुछ शास्त्रज्ञों के मतानुसार यह रोग इन्सुलिन रेजिस्टन्स (Insulin Resistance) के कारण होता है। इन्सुलिन पैन्क्रियास (Pancreas) के विशेष प्रकार की कोशिका (Islets of langerhans) में तैयार होते है व रक्त द्वारा शरीर की प्रत्येक पेशी तक पहुंचाता है। इन्सुलिन के कारण रक्त की शर्करा नियमित रहती है। PCOS के रूग्णों में इन्सुलिन का नियमित स्तर शर्करा युक्त पेशियों तक पहुंचने में कम पड़ता हैं। हमारे शरीर में उपस्थित यकृत मेद व स्नायुओं की पेशी इन्सुलिन का उपयोग बराबर नहीं कर सकते व इससे इन्सुलिन का स्तर बढ़कर हायपर इन्स्युले निमिया (Hyper Insulinemia) होता है। तद्हेतु PCOS के लक्षण दिखाई देते है। PCOS से ग्रस्त रूग्णा के शरीर में इन्सुलिन की अधिकता के कारण एन्ड्रोजन की अधिक उत्पत्ति होती है। इस एन्ड्रोजन के बढ़ी हुई मात्रा से अनचाहे बालो की वृद्धि, वजन का बढ़ना व ओव्युलेशन में कठिनाई होती है।

पॉलीसिस्टीक ओवरी की रचना :

ओवेरियन सिस्ट, अंडाशय में बनने वाले सिस्ट होते है जो बंद थैलीनुमा आकृति के होते है और उनमें तरल पदार्थ भरा होता हैं। अंडाशय में सिस्ट के कोई संकेत या लक्षण नहीं होते जब तक कि वो अधिक बड़े न हो।

PCOS के अंतर्गत ओवरी में छोटी-छोटी गांठे (cyst) जिनमें पानी जैसा स्राव भरा होता है। इन गांठो का आकार 2 से 8 मि. मि. छोटा होता है व Poly का अर्थ होता है अधिक (Many) अर्थात एक स्त्री बीजकोष में एक से भी अधिक गांठे होती है। ये गांठे नुकसानदायक नहीं होती पर इससे हार्मोन्स का असंतुलन होता है। जिस बीजकोष में गांठे होती है, वह आकार में बड़ी होती है और गर्भधारण के लिए उपयोगी परिपक्व स्त्री बीज वे निर्माण नहीं कर सकती।

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम के क्या लक्षण है ? (Symptoms of PCOS in Hindi)

pcos ke lakshan in hindi –

इस रोग से ग्रस्त सभी महिलाओं को एक जैसे लक्षण मिले यह जरूरी नहीं हैं निम्नलिखित में से कुछ लक्षण या सभी लक्षण पाए जा सकते है।

  1. अनियमित मासिक स्राव या मासिक स्राव बंद हो जाना। किसी को 6-6 महीने में मासिक स्राव होते पाया गया है। हार्मोन चिकित्सा लेने पर ही मासिक धर्म होता हैं।
  2. बांझपन (ओव्युलेशन न होने के कारण)
  3. चेहरा, छाती, पेट, पीठ, उंगलियां व अंगूठो पर अनचाहे बालो की वृद्धि । इस लक्षण को हिरसूटिज़म (Hirsutism) कहते है।
  4. ओवैरियन सिस्ट – स्त्री बीजकोष में गांठे होना।
  5. तैलीय त्वचा के कारण रूसी व कील-मुंहासे होना।
  6. स्थूलता अर्थात वजन का बढ़ना विशेषतः कमर के आस-पास मेद (चर्बी) का होना ।
  7. डायबिटिज़ (Type-II) – जिन स्त्रियों का वजन प्रमाण से अधिक है, उनमें इन्सुलिन रेसिस्टन्स अधिक मिलता है। अतः PCOS के रूग्णों में वजन कम होने पर इन्सुलिन रेजिस्टेन्स भी कम होता है व PCOS के सभी लक्षणों की तीव्रता कम होती जाती है।
  8. कोलेस्ट्रोल का बढ़ना, हाय ब्लड प्रेशर ।
  9. बालों का पतला होना या गंजापन।
  10. गर्दन, बाहें, छाती व जांघ पर की त्वचा मोटी व काली होना, नाभि के निचले प्रदेश में दर्द होना।
  11. उपरोक्त लक्षणों से युवतियों का आत्मविश्वास डगमगा जाता है। वह मासिक अवसाद से ग्रस्त रहती है।
  12. खर्राटे मारना।

मेनोपॉज के समय व बाद की स्थिती PCOS स्त्री शरीर के अनेक संस्थानो को प्रभावित करता है। कुछ लक्षण समय से बढ़ जाते है और कुछ कम हो जाते है। मेनोपॉज (मासिक धर्म बंद होना) होने पर स्त्री बीजकोष का कार्य व हार्मोन का स्तर बदलता है परंतु PCOS से ग्रस्त रूग्णा में कुछ लक्षण वैसे ही रहते है व कुछ लक्षण कम हो जाते है। उदाहरण के तौर पर अनचाहे बालो की वृद्धि होती रहती है व बालो का गंजापन कम होता जाता है। जैसे-जैसे PCOS से ग्रस्त महिला की उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसै हार्ट अटैक, डायबिटीज़ का खतरा बढ़ता जाता है।

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम का परीक्षण (Diagnosis of Polycystic Ovary Syndrome (PCOS) in Hindi)

pcos ki janch –

PCOS का निदान करने के लिए एक परिक्षण नहीं है बल्कि रूग्णा का इतिहास, परिक्षण व कुछ पैथॉलॉजी के टेस्ट से निदान हो सकता है। परिक्षण में रूग्णा का ब्लड प्रेशर, बॉडी मास इन्डेक्स (BMI) व कमर की साईज ली जाती है। अनचाहे बालों की वृद्धि का परिक्षण, रूग्णा के श्रोणि प्रदेश का सोनोग्राफी (USG-Pelvis) करने पर स्त्री बीजकोष में अनेक गांठे मिलती है व एन्डोमैट्रियम (Endometrium) का स्तर मोटा होता जाता है। ब्लड टेस्ट के द्वारा हार्मोन व ग्लूकोज का स्तर पता चलता है। रक्त के हार्मोन्स (Hormones) की जांच में फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन (FSH), ल्युटिनाइजिंग हॉर्मोन (LH), टेस्टोस्टरॉन (Testosteron) की जांच की जाती है।

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम के जोखिम और जटिलताएं (PCOS Risks and Complications in Hindi)

PCOS व्याधि से ग्रस्त रूग्णा को डायबिटीज़, हृदय रोग व कैंसर का खतरा रहता हैं। अध्ययन के आधार पर निम्नलिखित आंकड़े पाए गए है।

  1. 50 प्रतिशत से अधिक महिला को 40 वर्ष के पूर्व डायबिटीज़ हो सकता है।
  2. इन महिलाओं को हार्टअटैक का खतरा 7 गुना अन्य महिलाओं की अपेक्षा अधिक होता है।
  3. ऐसी महिलाओं को हाय ब्लडप्रेशर का अधिक खतरा रहता है।
  4. PCOS से ग्रस्त रूग्णा में LDL कोलेस्ट्रोल का स्तर अधिक होता है और HDL कोलेस्ट्रोल का स्तर कम रहता है। LDL कोलेस्ट्रोल शरीर के लिए घातक होता है। जबकि HDL कोलेस्ट्रोल शरीर के लिए लाभकारी होता है।
  5. ऐसी महिलाओं को एन्डोमैट्रियल कैंसर की संभावना अधिक रहती है क्योंकि इनमें अनियमित मासिक स्राव रहता है व ओव्युलेशन नहीं होता। यहां इस्ट्रोज़न होर्मोन की निर्मिती होती है जब कि प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन नहीं बनता। प्रोजेस्ट्रोन का कार्य हर माह मासिक स्राव को उत्पन्न करना है। प्रोजेस्ट्रोन के बिना ऐन्डोमैट्रियम मोटा हो जाता है। जिसकी वजह से या तो बहुत ज्यादा मासिक स्त्राव होता है या अनियमित मासिक स्त्राव होने के कारण कैंसर होता है।
  6. PCOS से ग्रस्त रूग्णा को स्तन कैंसर, डिप्रेशन, मुड विकृतियां, फैटीलिवर (Non Alcoholic Steato Hepatitis) होने की संभावना रहती है।
  7. गर्भवती महिला की PCOS होने पर गर्भस्त्राव (Abortion), गर्भावस्था जन्य मधुमेह व हाय ब्लडप्रेशर हो सकता है। कभी-कभी इससे समय से पहले प्रसूति (Premature Delivery) हो सकती है।

PCOS बंध्यत्व का कारण :

PCOS में हमेशा की अपेक्षा अधिक स्त्री बीजांड की वृद्धि होती है व हार्मोन्स के प्रभाव से वह वृद्धि ज्यादा होती जाती है। परंतु अन्ड्रोजन (Androgen) के प्रभाव से उसके वृद्धि में रूकावट आती है और उसमें से एक भी स्त्री बीज परिपक्व नहीं होता है। स्त्री बीज की निर्मिती न होने के कारण मासिक धर्म देर से आता है व अनियमित आता है साथ ही परिपक्व स्त्रीबीज न होने के कारण गर्भधारण न होकर स्त्री को बंध्यत्व (संतान न होना) भी हो सकता है।

इन संकेतों से पहचाने पॉलीसिस्टिक ओवरीयन सिंड्रोम :

  1. मासिक धर्म का समय पर न आना – कम उम्र में ही अनियमित मासिक धर्म की समस्या इसका सबसे बड़ा संकेत होता है।
  2. वजन का अचानक बढना – इस बीमारी में अधिकतर स्त्रीयों के शरीर में मोटापा बढ़ जाता है।
  3. अधिक बाल उगना – चेहरे, छाती, ठोड़ी पर अनचाहे बालों उगना सिर्फ हार्मोनल चेंज ही नहीं इस रोग का लक्षण भी हो सकता है, इसके अलावा बालों का अत्यधिक झड़ना भी इसका लक्षण है।
  4. मानसिक उथल-पुथल – जल्दी किसी बात पर भावुक हो जाना, अत्यधिक चिंतित रहना, अकारण चिड़चिड़ापन इस रोग के संकेत हो सकते हैं।
  5. बांझपन – PCOS की समस्या से बांझपन अधिक देखने को मिलता है। यह मुख्य कारणों में से एक है।

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का इलाज (PCOS Treatment in Hindi)

pcos ka ilaj hindi me –

उपचार में निम्नलिखित घटकों का समावेश होता है।

1). संतुलित व स्थूलता निवारक आहार – आहार सादा, सुपाच्य व कम कैलोरी वाला हो। सलाद, हरी सब्जियां, मौसम के फल, अंकुरित अन्न, छाछ प्रचुर मात्रा में लें।

चावल, आलू, तली चीजें, मिष्ठान्न व मैदे के पदार्थों से परहेज करें। इस प्रकार के आहार से ब्लड शुगर का स्तर कम होता है। शरीर पर इन्सुलिन का कार्य अधिक होता है। हार्मोन का स्तर बरकरार रहता है। शरीर का भार 10 प्रतिशत कम होने पर रूग्णा का मासिक स्राव नियमित हो जाता है।

अच्छा खानपान, अच्छी सेहत –

  • फैट युक्त भोजन, जंक फुड, अधिक मीठा, सॉफ्ट ड्रिंक्स, अत्यधिक तैलीय पदार्थ का सेवन बंद कर सात्विक पौष्टिक आहार का सेवन करें।
  • अपनी डाइट में हरी सब्जियां, फल, विटामिन B युक्त आहार, भोजन में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स से भरपूर चीजों को शामिल करें – जैसे अखरोट, अलसी, काजू आदि।
  • आप अपनी डाइट में बीज, नट्स, ताजा दही जरूर शामिल करें।
  • दिन भर अधीक से अधीक पानी पीएं।
  • ज्यादा मीठा खाने से परहेज करें क्योंकि मधुमेह होना इस रोग का कारण हो सकता है।
  • किसी भी तरह से वजन बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे – पास्ता, डिब्बाबंद आहार, मैदा इत्यादि का सेवन न करें।

2). व्यायाम – प्रातः भ्रमण, योगासन और प्राणायाम का नियमित अभ्यास करें। योग, पैदल घूमना, जॉगिंग, एरोबिक्स, जुम्बा डांस, स्विमिंग, साइक्लिं जैसे किसी भी तरह का शारीरिक व्यायाम को नित्य करें। व्यायाम के साथ आप मेडिटेशन का अभ्यास भी कर सकती है जिससे मानसिक तनाव कम होगा।

3). हार्मोन्स संतुलित करने की औषधि – पूर्व काल में PCOS पर एक मात्र उपचार था शस्त्र क्रिया अर्थात ऑपरेशन। इसमें पेट को चीरकर स्त्री बीजकोष से पॉलिसिस्टीक ओवरी का कुछ भाग काटकर अलग कर दिया जाता था। कुछ वर्षो पश्चात हार्मोन्स को संतुलित करने की चिकित्सा का प्रयोग आरंभ हुआ। आज भी एन्टीहार्मोनल इन्जेक्शन के द्वारा PCOS का उपचार किया जाता है। आजकल विडियो लैप्रोस्कोपी (Video-laproscopy) द्वारा भी ऑपरेशन किया जाने लगा है।

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का आयुर्वेदिक उपचार (PCOS Ayurvedic Treatment in Hindi)

pcos ka ayurvedic treatment in hindi –

PCOS से ग्रस्त रूग्णा के लक्षणों व परीक्षण को देखते हुए औषधि दी जाती है। आहार व व्यायाम पर विशेष जोर दिया जाता है।

■ हार्मोन संतुलित करने व अन्य लक्षणों के लिए औषधियों में पुष्पधन्वा रस 10 ग्राम, त्रिफला गुग्गुल 10 ग्राम, मेदोहर गुग्गुल 10 ग्राम, चंद्रप्रभा वटी 10 ग्राम, कांचनार गुग्गुल 10 ग्राम की 60 पुड़िया बनाकर सुबह-शाम कुमारी आसव 2 चम्मच के साथ लें।

■ औषधि के साथ-साथ पंचकर्म का भी विशेष योगदान है। पंचकर्म के अंतर्गत मेदोहर बस्ति, शिरोधारा व नस्य चिकित्सा की जाती है। इससे रूग्णा का वजन नियंत्रित होकर डिप्रेशन व एन्जाइटी जैसे लक्षण दूर होते है। आवश्यकता होने पर हार्मोनल चिकित्सा दी जा सकती है।

PCOS से निजात पाने के लिए जुड़े प्रकृति से –

प्राकृतिक जगहों पर सैर करने जाएं यह आपका मानसिक तनाव तो दूर करेगा ही साथ ही मोटापे को कम करने में भी सहायता करेगा ।

योग, प्राणायाम और व्यायाम आपके तन को निरोगी रखने के साथ चित को प्रसन्न और तनाव मुक्त भी करता है। इसके साथ ही आप संगीत सुने या कुछ अच्छी किताबों को पढ़े।

सही आहार, नियमित व्यायाम और लाइफस्टाइल में सुधार कर के इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।

(अस्वीकरण : दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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