Last Updated on July 22, 2019 by admin
Motivational Story in Hindi / Hindi storie with moral
★ महाराष्ट्र में एक लडका था । उसकी माँ बडी कुशल थी, सत्संगी थी । बच्चे को थोडा बहुत ध्यान सिखाती थी । लडका १४-१५ साल का हुआ तब उसकी बुद्धि विलक्षण बन गयी । आगे चलकर बडा प्रसिद्ध न्यायाधीश बना । उसका नाम था मरीआडा रमण ।
★ चोर डकैत थे । कहीं डाका डाला तो हीरे-जवाहरात का बक्सा मिल गया । उसे सुरक्षित रखने के लिये चारों पहुँचे एक खानदान बुिढया के पास । बक्सा देते हुये बोले :
‘‘माताजी ! हम चार दोस्त व्यापार-धन्धा करने निकले हैं । हमारे पास कुछ पूँजी है । यहाँ कोई जान-पहचान है नहीं । इस जोखिम को कहाँ साथ लेकर घूमें ? आप इसे रखो और जब हम चारों मिलकर एक साथ लेने के लिए आवें तब लौटा देना ।
★ बुिढया ने कहा : ‘‘ठीक है । बक्सा देकर चारों रवाना हुये । आगे गये तो एक चरवाहा दूध लेकर बेचने जा रहा था । इन लोगों को दूध पीने की इच्छा हुई । पास में बर्तन था नहीं । तीन डकैतों ने अपने चौथे साथी को कहा कि, ‘जाओ, दूर वह बुिढया का घर दिखाई दे रहा है वहाँ से बर्तन ले आओ । हम लोग यहाँ इन्तजार करते हैं ।
★ डकैत चला बर्तन लेने । रास्ते में उसकी नीयत बिगडी । बुिढया के पास आकर बोला : ‘‘माताजी ! हम लोगों ने विचार बदला है । यहाँ रुकेंगे नहीं । आज ही दूसरे नगर में चले जायेंंगे । अतः हमारा बक्सा लौटा दो । मेरे तीन दोस्त वहाँ खडे हैं सामने । मुझे बक्सा लेने भेजा है ।
★ बुिढया को जरा सन्देह हुआ । बाहर आकर उसके साथियों की तरफ देखा तो तीनों खडे हैं । बुिढया ने बात पक्की करने के लिए उनको इशारे से पूछा : ‘‘इसको दे दूँ ?
★ डकैतों को लगा : माई पूछ रही है कि इसको बर्तन दूँ । तीनों ने दूर से ही कह दिया : ‘‘हाँ हाँ उसको दे दो ।
बुिढया घर में गयी । पिटारे से बक्सा निकालकर दे दिया । वह चौथा डकैत दूसरे रास्ते से पलायन हो गया । तीनों साथी काफी इन्तजार करने के बाद बुिढया के पास पहुँचे । उन्हें पता चला कि चौथा साथी बक्सा लेकर भागा है । अब तो वे बुिढया पर ही बिगडे : ‘‘तुमने एक आदमी को बक्सा दिया ही क्यों ? चारों को साथ में देने की शर्त थी ।
★ झगडा हो गया । बात पहुँची राजदरबार में । डकैतों ने पूरी हकीकत राजा को बतायी । राजा ने माई से पूछा :
‘‘क्योंजी ! इन लोगों ने बक्सा दिया था ?
‘‘ऐसा कहा था कि जब चारों मिलकर आवें तब लौटाना ?
‘‘ऐसा कहा था कि जब चारों मिलकर आवें तब लौटाना ?
‘‘जी महाराज ।
★ ‘‘तुमने एक ही आदमी को बक्सा दे दिया । अब इन तीनों को भी अपना अपना हिस्सा मिलना चाहिए । अपनी माल-मिल्कियत, जमीन-जायदाद, गाय-भैंस जो कुछ हो वह बेचकर इन लोगों का हिस्सा चुकाना पडेगा । यह हमारा फरमान है । राजा ने आदेश दे दिया ।
★ बुिढया रोने लगी । विधवा थी । घर में छोटे बच्चे थे । कमानेवाला कोई था नहीं । संपत्ति नीलाम हो जायेगी तो गुजारा कैसे होगा ? अपने भाग्य को रोती-पीटती रास्ते से गुजर रही थी । १५ साल के रमण ने उसे देखा तो पूछने लगा :
★ ‘‘माताजी ! क्या हुआ ? क्यों रो रही हो ?
बुिढया ने सारा किस्सा कह सुनाया । आखिर बोली :
‘‘क्या करूँ बेटे ? मेरा तकदीर ही ऐसा फूटा है । मैं उनका बक्सा लेती ही क्यों ?
रमण ने कहा : ‘‘माताजी ! आपके तकदीर का कसूर नहीं है, राजा की खोपडी का कसूर है ।
★ संयोगवश राजा गुप्तवेश में वहीं से गुजर रहा था उसने सुन लिया । पास आकर पूछा :
‘‘क्या बात है ?
‘‘बात यह है कि नगर का राजा है, यद्यपि मैं उन्हें नहीं जानता हूँ, उन्हें न्याय करना नहीं आता । इस माताजी के मामले में गलत चुकादा दिया है । रमण निर्भयता से बोल गया ।
‘‘अगर तू न्यायाधीश होता तो कैसा न्याय देता ? राजा को किशोर रमण की बात में उत्सुकता बढ रही थी ।
रमण बोला : ‘‘राजा को न्याय करवाने की गरज होगी तो मुझे दरबार में बुलायेंंगे । फिर मैं न्याय दूँगा ।
★ दूसरे दिन राजा ने रमण को बुलाया । पूरी सभा लोगों से खचाखच भरी थी । वह बुिढया माई और तीन दोस्त भी बुलाये गये थे । राजाने पूरा मामला रमण को सौंपा । रमण ने बुजुर्ग न्यायाधीश की अदा से मुकदमा चलाते हुये पहले बुिढया से पूछा :
‘‘क्यों माताजी ? चार सज्जनों ने आपको बक्सा सँभालने के लिए दिया था ?
‘‘हाँ ।
‘‘चारों सज्जन मिलकर एक साथ बक्सा लेने आवे तो बक्सा लौटाने के लिए कबूलात की थी ?
‘‘हाँ ।
★ रमण अब तीनों डकैतों की ओर मुडकर बोला : ‘‘अरे, अब तो कोई झगडे की बात ही नहीं है । सद्गृहस्थों ! आपने ऐसा ही कहा था न कि हम चार मिलकर आवें तब हमें बक्सा लौटा देना ?
‘‘हाँ, ठीक बात है । ऐसा ही हमने इस माई से तय किया था ।
‘‘यह माताजी तो अभी भी आपको आपका बक्सा लौटाने को तैयार है मगर आप ही अपनी शर्त को भंग कर रहे हो ।
‘‘कैसे ?
‘‘आप चार साथी मिलकर आओ । अभी आपको आपकी अमानत दिलवा देता हूँ । आप तो तीन ही हैं । चौथा कहाँ है ?
★ ‘‘साहब ! वह तो… वह तो…
‘‘उसे बुलाकर लाओ । जब चार साथ में आओगे तभी आपका बक्सा मिलेगा । नाहक में इन बेचारी माताजी को परेशान कर रहे हो ?
तीनों डकैत पोपला मुँह लिये रवाना हो गये । सारी सभा दंग रह गयी । सच्चा न्याय तोलनेवाले प्रतिभा-संपन्न बालक की युक्तियुक्त चतुराई देखखर राजा भी बडा प्रभावित हो गया ।
★ प्रतिभा विकसित करने की कुँजी सीख लो । जरा-सी बात में खिन्न न होना । मन को स्वस्थ, शान्त रखना । संयम और सदाचार बढायें ऐसे पुस्तक पढना । परमात्मा का ध्यान करना । सत्पुरुषों का सत्संग करना
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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