प्रेगनेंसी में खाना-पान और सावधानियाँ

Last Updated on September 21, 2020 by admin

प्रेगनेंसी में क्या खाना चाहिए व कैसे रहना चाहिए :

  • हल्का, पुष्टि करे और अच्छा लगने वाला आहार दें।
  • बहुत मेहनत करना बुरा है। एकदम मेहनत न करना भी बुरा है। जिस काम में बहुत देर तक साँस का आना-जाना रोकना पड़े, बहुत ज़ोर करना पड़े, ज़ोर से काँखना पड़ा, पेडू पर दबाव पड़े, ऐसे कामों से गर्भवती बचे।
  • पैदल चलना, तेज सवारी पर दूर तक जाना पड़े-ऐसे काम भी बुरे हैं।
  • डरना, रंज या चिन्ता अथवा रात में जागना, मन में दु:ख करना सन्तान के हक में बुरा है।
  • व्रत-उपवास रखना, जागरण करना, दिन में सोना, ऊँची जगह पर चढ़ना, मल-मूत्रादि के वेग रोकना उचित नहीं है।
  • गर्भावस्था में ज्वर या अतिसार प्रभृति जो रोग पैदा हो, उसका पथ्यापथ्य भी उसी रोग के अनुसार करें।ज्वर में लंघन कराते हैं, पर गर्भवती को लंघन कराना हानिकारक है।
  • अगर पेट में गर्भ सूख जाय या गर्भवती दुबली होती जाय, तो घी, दूध,खिलायें।
  • शालि या साँठी चावल, मूंग, गेहूँ, खील, सत्तू, घी, दूध, सिखरन, शहद, शक्कर, कटहल, केला, आँवले, दाख, आम, मीठे और शीतल पदार्थ, कस्तूरी, चन्दन, माला, कपूर, चन्दनादि का लेप, स्नान, चाँदनी, तेल की मालिश, मुलायम पलंग, ठंडी हवा, मीठी बातें, दिल खुश करने वाले सामान–ये हितकर हैं।

प्रेगनेंसी में क्या नही खाना चाहिए / गर्भवती को अपथ्य :

  • पसीने देना, वमन, खार, लड़ाई-झगड़े, विषम भोजन, रात में घूमना, डराने-वाली चीजें देखना, बहुत मैथुन, मेहनत, बोझ उठाना, भारी कपड़ा ओढ़ना, कुसमय सोना, तख्त वगैरः सख्त आसन पर सोना, उकडू बैठना, शोक, गुस्सा, भय वगैरः के वेग रोकना, भूखा रहना, राह चलना, चरपरा, गरम, भारी, गुड़गुड़ाहट करने वाला भोजन, गड्ढे या कुएँ में झुक कर देखना, शराब पीना, चित्त सोना, दिल के खिलाफ़ किसी काम का होना ये हानिकर हैं।
  • गर्भवती के आठवाँ महीना लगने पर फस्द खोलना, गुदा में पिचकारी देना-ऐसे कामों से कच्चा गर्भ गिर जाता है या कोख में सूख जाता है या मर जाता है।
  • तीखे, खट्टे, कड़वे, चरपरे, कसैले पदार्थ खाना भी बुरा है। बादी करने वाले पदार्थ खाने से बालक कुबड़ा, अन्धा, जड़ या बौना हो जाता है।
  • पित्तकारक पदार्थ खाने से बच्चा गंजा और पीला होता है।
  • कफकारक पदार्थों से कोढ़ या पीलिया वगैरः बालक को हो जाते हैं।

प्रेगनेंसी में सावधानियाँ व गर्भवती के लिए विशेष सलाह :

गर्भावस्था में स्त्री को भोजन अच्छी तरह करना चाहिए। गर्भ में पल रहे भ्रूण के चलते, उसे शरीर का निर्माण करने वाले पदार्थों की अधिक ज़रूरत होती है। आहार में प्रोटीन, विटामिन और खनिज विशेष तौर से लौह-तत्व (Iron) और कैल्शियम की कमी नहीं होनी चाहिए। ये चीजें प्रचुर मात्रा में ताजा फल, हरे शाक-सब्जी, सभी तरह की दालों, दूध, आदि में मिल जाती हैं, इसलिए मिले-जुले पोषक आहार की पर्याप्त मात्रा एक दिन में, दो-चार बार में थोड़ी-थोड़ी करके लेनी चाहिए। इससे कुपोषण नहीं होने पाता और गर्भपात, अधूरा बच्चा होने या प्रसव के समय अधिक खून बहने का भय नहीं रहता।

  1. नमक का सेवन सीमित रखना अच्छा है। आयोडीन युक्त नमक, साधारण नमक से अच्छा है।
  2. शरीर की सफाई रखें। स्नानादि नियमित रूप से करें।
  3. प्रजनन अंगों की सफ़ाई पर ध्यान दें।
  4. दाँतों को विशेष रूप से साफ़ रखें।
  5. घर का साधारण काम-काज करें। थकान का अनुभव न होना चाहिए। दिन में थोड़ा आराम भी करें।
  6. कपड़े साफ, हल्के-फुल्के, ढीले, आरामदेह पहनें। कमर के गिर्द कसे कपड़े न पहनने चाहिए।
  7. कब्ज़ न रहने देने के लिए भोजन पर ही विशेष ध्यान रखें। दस्तावर दवा लेना हानिकारक हो सकता है।
  8. पानी प्रचुर मात्रा में पिएँ ताकि कब्ज़ न रहे।
  9. गर्भावस्था के प्रथम व अन्तिम दो माहों में सहवास (मैथुन) न करें क्योंकि इससे संक्रमण लगने के खतरे के साथ-साथ गर्भपात और रक्तस्राव होने, अथवा पानी की थैली टूटने की आशंका बनी रहती है।
  10. गर्भावस्था में पाँचवें माह के उपरान्त टेटेनस टॉक्साइड (Tetanus Toxoid) के दो या तीन टीके, एक-एक माह के अन्तर पर लगवा लें, ताकि नवजात शिशु के धनुस्तम्भ (टेटेनस Tetanus) से मृत्यु का भय न रहे।

( और पढ़े –गर्भवती महिला के लिए पुष्टिवर्धक संतुलित भोजन)

गर्भावस्था में खतरे के चिन्ह :

गर्भवती को गर्भावस्था में होने वाले खतरों के नीचे दिए गए कुछ लक्षणों से भी परिचित होना चाहिए

  • योनि से किसी भी समय, थोड़ा-सा भी रक्त-स्राव होना।
  • थोड़े समय में ही एकाएक बहुत वजन बढ़ जाना।
  • पेशाब की मात्रा में कमी होना।
  • पैरों में, या सारे शरीर में सूजन होना; साथ ही आँखों से साफ न दिखाई देना और लगातार सिर में दर्द रहना।
  • गर्भाशय में बार-बार दर्द आना।
  • खून की बेहद कमी होने से शरीर पीला पड़ जाना,
  • थोड़ा-सा काम करने में भी थकान महसूस करना, साँस फूलना आदि।

ऐसे चिन्ह होते ही किसी सुयोग्य वैद्य या डॉक्टर से अपनी सम्पूर्ण जाँच करानी चाहिए।

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