साहस असम्भव को सम्भव बना देता है (प्रेरक प्रसंग)

Last Updated on August 8, 2019 by admin

बौद्ध मत राज्याश्रय मिलने तथा समर्थ प्रचारकों के कारण भारत भूमि से उत्पन्न होकर देश-देशान्तरों में फैल गया । जापान, चीन और रूस तक उसका सीमा विस्तार हो गया । इस विस्तार के साथ ही उसके कुछ अनुयायियों में संकीर्णता पनपने लगी । वे दूसरे मतों का सम्मान करना भूलकर उन पर अत्याचार करने लगे । प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ बद्रीनाथ के मुख्य मन्दिर की देव मूर्ति उन्होंने नारद कुण्ड में फेंक दी जिससे वहाँ वैशाख से कार्तिक तक होने वाली मानवी पूजा ही बन्द हो गयी।

भगवान् बुद्ध ने भारतीय प्रचलित धर्म में उत्पन्न हुए गतिरोध व मूढ़ मान्यताओं को दूर करने के लिए बौद्ध धर्म चलाया था । उसे एक सामयिक सुधार-बीमारी की स्थिति में दी जाने वाली दवा व पथ्य के रूप में ही गिना जाना चाहिये था किन्तु उसी को सब कुछ मानकर बौद्ध मतावलम्बी हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित करने लगे तब स्वामी शंकराचार्य ने दिग्विजय का महान् संकल्प लेकर उसे पूरा किया और वैदिक धर्म को पुनर्जीवित किया ।

जब वे बद्रीनाथ धाम पहुंचे तो वहाँ के निवासियों ने वहाँ के देवालय की दुर्दशा का वर्णन किया । वे उसकी पुनर्प्रतिष्ठा करने के लिए मन्दिर पर पहुंचे । पूजा आरम्भ करवाना चाहते थे, किन्तु मूर्ति के अभाव में कुछ हो नहीं पा रहा था । वहाँ के मन्दिर के पुजारी तथा सम्बन्धित विद्वज्जन नयी मूर्ति बनवाने का विचार कर रहे थे ।

इस पर उन्होंने पूछा- “पहले की मूर्ति कहाँ है ?” “उसे तो बौद्धों ने नारद कुण्ड में फेंक दिया है ।” “तो उसे ही क्यों न निकाला जाय?”

स्वामी जी के इस कथन पर सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे। एकत्रित शताधिक मनुष्यों के चेहरों पर ‘यह असम्भव है’ का भाव तैर आया। स्वामी शंकराचार्य ने पूछा- “कोई देवमूर्ति को निकालने के लिए तैयार है ।”

इतने गहरे कुण्ड से मूर्ति निकालने का प्रयास करना प्राणों से खेलना था । अतः कोई तैयार नहीं हुआ । सबको इस प्रकार पस्त देख वे स्वयं अपना उत्तरीय फेंककर कुण्ड में जा कूदे । लोगों के मुँह से दीर्घ निःश्वास निकल गया । यह संन्यासी या तो अपने प्राण गँवायेगा या अपने वचन । ‘

बड़ी देर बाद वे खाली हाथ बाहर निकले । कुछ देर साँस लेने के बार फिर कूदे । लोगों ने मना किया पर वे माने नहीं । दूसरी बार भी वे खाली हाथ बाहर आये । तीसरे व अन्तिम प्रयास में जब वे ऊपर आये तो मूर्ति उनके हाथ में थी ।

आगे पढ़ने के लिए कुछ अन्य सुझाव :
• वैद्य की अनोखी चिकित्सा (लघु रोचक कहानी)
• एक संत के जीवन की आप बीती सत्य घटनाएँ (शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग)
ईमानदारी हो तो ऐसी हो (लघु प्रेरक प्रसंग)

Share to...