Last Updated on May 19, 2021 by admin
अधिकांश लोग स्वास्थ्य – रक्षक नियमों का पालन सिर्फ इसलिए ही नहीं कर पाते कि वे इन नियमों का पालन करना चाहते ही नहीं बल्कि इसलिए भी नहीं कर पाते कि वे इन नियमों को जानते ही नहीं हैं। मसलन आपने कई लोगों को रात में दही खाते देखा होगा और यह भी हो सकता है कि आप खुद भी रात में दही खाया करते हों। पथ्याहार की दृष्टि से रात में दही खाना “विरूद्ध अशन” करना होता है यह नियम बहुत से लोगों को मालूम नहीं है।
अब आयुर्वेद शास्त्रों ने तो मार्गदर्शन दे दिया कि रात में दही खाना उचित नहीं पर इस नियम का पालन करना या न करना तो हम पर निर्भर है कि हम रात को दही खाते हैं या कि नहीं खाते। रही बात उनकी जो मजे से रात को भी दही खा रहे है तो इस मामले में कुछ बातों को ख्याल में रखना होगा।
धीमे-धीमे होता है दोषों का संचय :
रात में दही खाने का तत्काल ऐसा कोई बुरा परिणाम सामने नहीं आता जैसा किसी विषाक्त वस्तु खा लेने का परिणाम तत्काल सामने आ जाता है। अगर छोटा मोटा कोई विकार पैदा होता भी है जैसे गला खराब होना, गले में कष्ट होना, टांसिल्स फूल जाना, सर्दी जुकाम होना, सिर भारी होना, खांसी का ठसका आना, तबीयत में सुस्ती व भारीपन आना, हरारत सी होना आदि तो भी व्यक्ति का ध्यान इस मुद्दे पर जाता ही नहीं कि यह सब रात को दही खाने से हो रहा है क्योंकि वह यह जानता ही नहीं कि रात को दही खाने से ऐसे विकार उत्पन्न होते हैं।
जैसे धूम्रपान करने से तत्काल न तो किसी को दमा होता है, न टी.बी. होती है और न कैसर ही होता है, और तो और, चक्कर तक नहीं आता कि बेहोश हो कर टप से जमीन पर गिर जाता हो। उल्टी दस्त भी नहीं होते कि इधर सिगरेट का कश अन्दर गया और उधर खाया पिया सब बाहर हुआ लिहाज़ा सिगरेट बीड़ी पीने वाला’ “लगे दम तो मिटेगम” के ख्याल से मज़े से धूम्रपान करता रहता है बस यही स्थिति रात को दही खाने के मामले में होती है।
पर जैसे लम्बे समय तक, धूम्रपान करते रहने का परिणाम आखिर तो बुरा ही होता है और नाना प्रकार की व्याधियां उत्पन्न करने वाला होता है जिसका पता तब चलता है जबकि काफ़ी देर हो चुकी होती है वैसे ही रात में दही खाने का परिणाम भी बहुत देर बाद सामने आता है जब इसके कारण नाना प्रकार के विकार उत्पन्न होने लगते हैं। जैसे धूम्रपान धीमे ज़हर (Slow Poison) का काम करता है वैसे ही रात को सेवन किये गये दही का विषाक्त प्रभाव भी न्यून मात्रा में होने से धीमे – धीमे शरीर में दोष का संचय करता रहता है।
यह बड़े मज़े की बात है कि जब रात में दही खाने के दुष्परिणाम प्रकट होते हैं तब चिकित्सक के भी ध्यान में यह बात नहीं आ पाती कि यह सब उपद्रव रात में दही खाने से हो रहा है, रोगी को भी यह ख्याल नहीं होता कि रात में दही खाने से ऐसा हुआ क्योंकि वह तो यह मानता है कि रात में दही तो न जाने कब से खाता आ रहा हूं। कोई नई बात तो है नहीं जो डाक्टर को बताना ज़रूरी हो लिहाज़ा वह डाक्टर से इसका ज़िक्र ही नहीं करता।
यही कारण है कि रात में दही खाने वाला समझता है कि रात में दही खाने से कोई नुकसान होना होता तो कभी का हो चुका होता। नुकसान किसी शुभ मुहर्त की प्रतीक्षा थोड़े ही करता है कि शुभ घड़ी देख कर प्रकट होता हो। और चिकित्सक को ही कौन से कोर्स में यह पढ़ाया जाता है कि रात में दही खाना हानिकारक होता है जो उसे इस नियम का ज्ञान हो सो वह भी निदान (Diagnosis) करते समय इस मुद्दे की तरफ़ ध्यान नहीं देता।
इसीलिए प्रायः चिकित्सक, ऐसे कारणों के जानकार न होने के कारण रोग का कारण एलर्जी होना या वायरस इन्फेक्शन ‘ होना आदि मान लिया करते हैं।’ एलर्जी होना आजकल एक आम बात (General Term) हो गई है। ज़रा कुछ समझ के बाहर बात हुई कि कह दिया ‘ एलर्जी है। अब आपजांच (Test) कराते फिरिए कि किस – किस से एलर्जी है, कैसी एलर्जी है।
रोगों का कारण अनियमित आहार-विहार :
आज जो सिरदर्द, अपच, मन्दाग्नि, क़ब्ज, गले की खराबी, नज़ला – जुकाम, गैस ट्रबल, शरीर में भारीपन, सुस्ती, कमज़ोरी, मन में उच्चाटन, सायविक दौर्बल्य, यौन रोग और यौन शक्ति में कमी होना आदि व्याधियां आमतौर पर होती पाई जा रही हैं उनका कुल कारण आहार – विहार के मामले में लापरवाही और अनियमितता करना ही है ।
यह कहां की अक्लमन्दी है कि हम खुद ही तो कचरा फैलाएं और खुद ही झाडू लगाएं याने खुद ही ऐसा आहार – विहार और आचरण करें जिससे व्याधियां उत्पन्न होती हों और फिर इलाज के लिए दौड़ धूप करते फिरें।
आज देश में इतनी तेज़ी से नाना प्रकार के रोग बढ़ने और फैलने का प्रमुख कारण आहार – विहार का बिगड़ जाना ही है। तत्काल इसका बुरा परिणाम न भी हो रहा हो तो भी यह नहीं सोचना चाहिए कि दूषित एवं अनुचित ढंग से आहार – विहार करने का कोई दुष्परिणाम होगा ही नहीं। होगा, भले ही देर से हो पर होगा ज़रूर, इसमें दो मत नहीं हो सकते।
जो लोग शुभ – अशुभ परिणाम का विचार किये बिना ही आचरण करते हैं वे ही ऐसा अनियमित और न करने वाला आहार – विहार करते हैं। कोई भी काम उसके अंजाम से ही जाना जा सकता है कि वह काम शुभ था या अशुभ। रात में दही खाने के दूरगामी परिणाम अशुभ ही होते हैं अतः रात में दही खाना शुभ कार्य नहीं हो सकता लिहाज़ा अब आप भी निश्चय कर लें कि अब रात में दही कभी भी नहीं खाएंगे।
रात में दही खाने के नुकसान :
स्वास्थ्य के विषय में प्रामाणिक, अधिकृत एवं लोक हितकारी मार्गदर्शन एवं ज्ञान देने वाले शास्त्र आयुर्वेद का कहना है –
ननक्तं दधि भुञ्जीत न चाप्यघृतशर्करम्।
नामुद्यूषं नाक्षौद्रं नोष्णं नामलकैर्विना।। – चरक संहिता सूत्र 7 / 61
अर्थात् रात में दही नहीं खाना चाहिए। बिना घी, बिना शकर, बिना मूंग की दाल, बिना शहद और बिना आंवला के तथा गरम करके भी दही नहीं खाना चाहिए।
एक मान्यता यह भी है कि रात में अकेला दही खाना ठीक नहीं पर घी, शकर आदि पदार्थों में से किसी एक के साथ रात में दही खाना गलत आहार नहीं, पर यह मान्यता युक्ति – संगत नहीं है। नाश्नीयाद्दधि नक्तमुष्णं वा (जतुकर्ण) के अनुसार रात में दही खाना सर्वथा निषिद्ध किया गया है। सदवृत (Good Conduct) के विषय में चर्चा करते हुए भी चरक संहिता के आठवें अध्याय में फिर से यह कथन दोहराया गया है – ‘न नक्तं दधि भुजीत’ – याने रात में दही न खाएं। वाग्भट का भी कहना है- “अलक्ष्मीदोषयुक्त त्वाद्रात्रौ च दधि गर्हितम”– अर्थात् अलक्ष्मी दोष वाला होने से दही रात में खाने योग्य नहीं। सुश्रुत संहिता में तो ऋतुओं के अनुसार दही खाने, न खाने का भी विधान अनुसार बताया है यथा-
शरद ग्रीष्म वसन्तेषु प्रायशो दधि गर्हितम्।
हेमन्ते शिशिरे चैव वर्षासु दधि शस्यते।। – सुश्रुत संहिता
सूत्र के अनुसार शरद, ग्रीष्म और वसन्त ऋतु में दही खाना अनुचित और हेमन्त, शिशिर और वर्षाकाल में दही खाना उचित होता है। ऐसे ही और भी शास्त्रीय उद्धरण देकर इस मान्यता की पुष्टि की जा सकती है कि रात में दही नहीं खाना चाहिए।
( और पढ़े – दही में हैं अनेक बेहरतरीन गुण )
रात में दही खाना वर्जित क्यों ? :
अब यह सवाल पैदा होता है कि आखिर रात में दही खाना वर्जित करने में इन शास्त्रों की मंशा क्या है ? रात में दही खाने से क्या हानि होती है ? और यह सवाल वाजिब भी है लिहाज़ा इसके जवाब पर चर्चा करना ज़रूरी है।
इस निषेध गोया कि मुमानियत का रहस्य यह है कि दही की तासीर अभिष्यन्दि (भारीपन उत्पन्न करना) होने से दही कफ कुपित करने वाला होता है। रात की प्रकृति भी स्वभाव से कफ की वृद्धि करने वाली और भारीपन पैदा करने वाली होती है इसलिए रात में दही का सेवन करने से चूंकि दो
समान गुणों का संयोग होता है अतः शरीर में कफ और भारीपन की अति वृद्धि होती है। “सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धिकारणम” – के अनुसार दो समान गुण वाले पदार्थों का संयोग होने पर उस गुण की वृद्धि होती है।
दही प्रकृति से गरम होते हुए भी अभिष्यन्दि होने की वजह से पित्त याने अग्नि को तीव्र नहीं करता इसलिए आहार के पाचन में सहायक नहीं होता बल्कि कफ को बढ़ाने वाला होने से अग्नि को मन्द कर देता है जिससे मन्दाग्नि की शिकायत पैदा होती है। रात्रि में दही खाने से होने वाली व्याधियों के विषय में भाव प्रकाश में कहा है –
ज्वरासृपित्तवीसर्पकुष्ठपाण्ड्वामय भ्रमान्।
प्राप्नुयात्कामलां चोग्रां विधिं हित्वा दधिप्रियः।। – भावप्रकाश दधिवर्ग -20
बिना विधि विधान का पालन किये अनुचित ढंग से दही को प्रिय मान कर सेवन करने पर ज्वर, रक्त विकार, पित्त, विसर्प, कुष्ठ, पाण्डु रोग, भ्रम और भयंकर कामला रोग होता है। अतः “शस्यतेदधि नो रात्रो” के अनुसार रात में दही नहीं खाना चाहिए।