रेबीज (जलांतक) – All about Rabies in Hindi

Last Updated on July 20, 2021 by admin

रेबीज (जलांतक) क्या हैं ? (What is Rabies in Hindi)

रेबीज या जलांतक (Hydrophobia) दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। यह रोग मनुष्य को यदि एक बार हो जाए तो उसका बचना काफी मुश्किल होता है। रेबीज लाइसा वाइरस अर्थात् विषाणु द्वारा होती है और अधिकतर कुत्तों के काटने से ही होती है। परन्तु यह अन्य दाँत वाले प्राणियों जैसे-बिल्ली, बन्दर, सियार, भेड़िया, सूअर इत्यादि के काटने से भी हो सकती है। इन जानवरों या प्राणियों को नियततापी (Warm blooded) कहते हैं।

हमारे देश में रेबीज (जलांतक) रोग की समस्या :

यह रोग लगभग पूरे भारत में होता है। लक्षद्वीप और अंडमान में अवश्य यह कम है। भारत में प्रतिवर्ष 20,000 रोगी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। लेकिन रेबीज द्वारा मरनेवालों की यह सही संख्या नहीं है। क्योंकि यह तो केवल अस्पतालों में हुई मृत्युओं की संख्या है। जबकि बहुत से रोगी अस्पतालों में आने के पूर्व ही मर जाते हैं। अतएव यह संख्या पाँच से दस गुना तक हो सकती है।

देश में प्रतिवर्ष लगभग 11 लाख से 15 लाख व्यक्ति संक्रमण (कुत्ते या अन्य प्राणी द्वारा काटने पर) पश्चात् इलाज लेते हैं और टीके लगवाते हैं।

रेबीज के कारण (Rabies Causes in Hindi)

रेबीज क्यों होता है ?

रेबीज के कारक –

जैसा कि बतलाया गया है कि यह विषाणु या वाइरसजन्य रोग है। अत: रेबीज लाइसा विषाणु के प्रकार-1 (Lyssa Virus Type-1) के शरीर में प्रवेश के पश्चात् होता है। इस विषाणु के विरुद्ध टीका तो उपलब्ध है परन्तु इसे पूर्ण नष्ट करनेवाली दवा विकसित नहीं हुई है। अत: बचाव की जानकारी प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है।

रेबीज संक्रमण के स्रोत –

भारत में लगभग 90 प्रतिशत रेबीज का संक्रमण (Infection) कुत्तों के काटने से होता है। शेष अन्य प्राणी जैसे – सियार, भेड़िया इत्यादि द्वारा होता है।
रोग के विषाणु, पागल (रेबीजग्रस्त) कुत्ते इत्यादि की लार में मौजूद होते हैं जो काटने पर मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

रोग का प्रसार (Transmission) दो प्रकार से होता है –

  1. जब रोगग्रस्त (पागल) कुत्ता या अन्य प्राणी मनुष्य को काटता है तो लार द्वारा विषाणु मनुष्य की तंत्रिकाओं में पहुँच जाते हैं।
  2. यदि प्रभावित कुता या अन्य प्राणी मनुष्य की त्वचा के कटे या छिले भाग को चाटे तो भी संक्रमण हो सकता है। सम्भावना तो यह भी होती है कि त्वचा छिली या उस पर खरोंच भी न हो तब भी यदि कुत्ता त्वचा को जोर से बार-बार चाटे तो भी रेबीज का संक्रमण हो सकता है। विषाणु तंत्रिका से होते हुए धीरे-धीरे मस्तिष्क तक पहँच जाते हैं।

रोग की उद्भवन अवधि (Incubation Period) –

संक्रमण के पश्चात् रोग के लक्षण आने अथवा रोग होने में 1 से 3 माह तक लगते हैं।

रेबीज के प्रमुख लक्षण (Rabies Symptoms in Hindi)

रेबीज के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?

  • शुरू में सिर में दर्द होता है और बेचैनी भी होती है।
  • काटे गए स्थान पर खिंचाव और दर्द भी होता है।
  • इसके बाद जल्दी ही रोगी में इस रोग के अन्य बड़े या प्रमुख लक्षण जैसे – शोर और तीव्र प्रकाश से असह्यता (Intolerence) कोई भी खाद्य या पेय निगलने में कठिनाई और पानी से डर तथा खाद्य या द्रव पदार्थ लेने पर पेशियों में तीव्र संकुचन (spasm) होना इत्यादि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
  • इस रोग में अक्सर मृत्यु श्वसनक्रिया के लकवाग्रस्त (Respiratry Paralysis) होने से होती है।

कुत्तों में रेबीज का पता करना :

यह निम्नलिखित लक्षणों द्वारा जाना जा सकता है –

  1. जब कुत्ते में छेडखानी के बिना अपने आपझपटने और काटने की आदत आ जाए।
  2. कुत्ता लकड़ी, घास या अन्य वस्तुओं को भी काटने लगता है।
  3. अधिक हिंसक होना, घर से भागना, यहाँ-वहाँ घूमना और जो भी रास्ते में सामने आए उसे
    काटना।
  4. आवाज में परिवर्तन – कुत्ता फटी सी आवाज में भौंकता है अर्थात् उसकी पहले वाली आवाज
    बदल जाती है।
  5. साँस लेने के लिए, तेज हाँफना – यह लक्षण अन्तिम अवस्था में मिलता है। कुत्ता या पशु लक्षण
    मिलने के दस दिन के भीतर मर जाता है।

रेबीज का उपचार (Rabies Treatment in Hindi)

रेबीज की रोकथाम या उस पर नियंत्रण के तरीके निम्नलिखित हैं-

1). घाव का उपचार : काटे हए घाव या छिले के निशान को अतिशीघ्र साबुन से रगड़कर धोना चाहिए। सम्भव हो तो घाव पर साबुन लगाकर नल की तेज धार से धोएँ। फिर स्प्रिट, अलकोहल अथवा टिंक्चर आयोडीन, घाव पर लगाना चाहिए जिससे उसमें मौजूद विषाणु मर जाएँ। इसके पश्चात् घाव पर पट्टी बाँध दें।
टिटनेस टॉक्साइड का इंजेक्शन तथा जीवाणु रोधी दवाएँ (Antibiotics) भी लें जिससे घाव द्वारा अन्य तरह के संक्रमणों से रक्षा हो सके।

2). कुत्ते या पशु की निगरानी : जिस कुत्ते या पशु ने काटा है उसे मारना नहीं चाहिए बल्कि उसे दस दिनों तक रोज देखें। यदि काटने के पश्चात् दस दिनों के अन्दर वह मर जाता है या उसमें रेबीज के लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरन्त ही शिकारग्रस्त व्यक्ति को रेबीज रोधक उपचार शुरू करना चाहिए।

वैसे आजकल पशु की निगरानी न कर रोग से बचाव के इंजेक्शन लगवाने की सलाह भी कुछ विशेषज्ञ देते हैं।

रेबीज विरोधी टीके कब लगवाएँ ? :

  1. काटने वाले पशु में जब रेबीज के लक्षण दिखते हैं या वह दस दिवस में या दस दिवस के भीतर
    मर जाता है।
  2. जब काटने वाले कुत्ते या पशु की पहचान नहीं हो पाती तब भी खतरा मोल न लेते हए रेबीज
    निरोधी टीके लगवाने की सलाह दी जाती है।
  3. सभी जंगली पशुओं (जैसे – सियार, रीछ इत्यादि) के काटने पर रेबीज निरोधी इलाज और टीके
    लें।

रेबीज निरोधी टीके या उपचार कैसे लें ? :

पूर्व में जो टीका बनाया जाता था वह संक्रमित पशु के मस्तिष्क की कोशिकाओं से तैयार होता था। वह टीका पेट की त्वचा में लगाया जाता है। घाव की गम्भीरता के अनुसार इसकी मात्रा 2 मि.ली. से 3 मि.ली. तक–सात से 14 दिन के लिए होती है। इस टीके का मनुष्य के शरीर पर कुप्रभाव तंत्रिकाघात के रूप में होता है। 10000 उपचारित व्यक्तियों में 1 व्यक्ति तंत्रिकाघात या लकवा से ग्रस्त हो जाता है।

नया टीका – अब बाजार में कोशिका संवर्धित (Cell Culture) टीका आने लगा है। इसे एच.डी.सी. (Human Diploid cell) टीका कहते हैं। ये टीके शक्तिशाली होने के साथ पूर्व टीकों से सुरक्षित भी है।

नए टीके की 1 मि.ली. मात्रा 5 बार अन्त:पेशीय (Intra muscular), 0,3,7,14 और 30 वें दिन लगाते हैं। 90 दिन बाद वर्धक या ऐच्छिक मात्रा (Dose) लगाने की भी सलाह दी जाती है। सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से ये टीके ज्यादा ठीक हैं। लेकिन टीके महँगे भी हैं। अत: एक गरीब भारतीय कई बार इन्हें खरीदकर लगवाने में असमर्थ होता है। इसलिए शासकीक अस्पतालों में इन्हें नि:शुल्क लगाया जाता है।

रेबीज से बचने के उपाय (Prevention of Rabies in Hindi)

रेबीज की रोकथाम कैसे करें ?

रेबीज पर एक सीमा तक नियंत्रण आवारा, अवांछित कुत्तों की संख्या में कमी लाकर भी हो सकता है। इसके अलावा अपने पालतू कुत्ते का टीकाकरण भी अवश्य करवाना चाहिए। तीन माह की उम्र में कुत्तों को टीका लगवाना उचित है और उसकी वर्धक मात्रा प्रति तीन वर्ष में टीके के प्रकार के अनुसार लगवानी चाहिए।

चूँकि रेबीज दुनिया का एक अत्यन्त खतरनाक रोग है। अत: इस रोग से बचाव की सावधानियाँ रखने में लापरवाह नहीं रहना चाहिए।

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