Last Updated on July 22, 2019 by admin
नेत्ररोगों में रतौंधी का विशेष स्थान है। इस रोग की चपेट में सामान्यतः गरीब तथा कम आयवाले ही आते हैं। भारत में यह रोग तमिलनाडु, असम तथा आंध्रप्रदेश में बहुतायत से देखने को मिलता है; परंतु बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात के अनेक स्थानों पर भी रतौंधी का प्रकोप इन दिनों अधिक मात्रा में देखने को मिल रहा है। इस रोग में रोगी को रात में स्पष्ट दिखायी नहीं देता है।
रतौंधी रोग क्यों होता है इसके कारण :
आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान के मतानुसार रतौंधी का कारण शरीर में विटामिन ‘ए’ की कमीका होना है। वैज्ञानिकोंका मत है कि कम आयवर्गके व्यक्ति विशेषतः कुपोषणके शिकार होते हैं, जिससे उनके शरीरमें विटामिन ‘ए’ की पर्याप्तमात्रा नहीं पहुँच पाती है और वे रतौंधी-ग्रस्त हो जाते हैं।
आयुर्वेदशास्त्रके मतानुसार कफदोष जब नेत्रके तृतीय पटलमें पहुँचता है, तब रतौंधी पैदा होती है। आयुर्वेदाचार्योका मानना है कि दिनके समय सूर्यके प्रभावसे नेत्रगत कफ साफ हो जाता है, जिससे रोगीको दिनमें देखनेमें कोई असुविधा नहीं होती है, परंतु रातको पुनः कफ नेत्रपटलमें आ जाता है, जिससे रोगीको रातमें दिखायी नहीं देता है।
रतौंधी रोग के लक्षण :
रतौंधी का रोगी दिन में तो अच्छी तरह से देख सकता है, किंतु रात में वह देख पाने में बिलकुल असमर्थ रहता है। रतौंधी के रोगी की नेत्र परीक्षा से पता चलता है कि इस रोग में नेत्र का श्वेत भाग शुष्क दिखायी देने लगता है।
नेत्र-गोलक धुंधला तथा गॅदला-सा हो जाता है। बीचका तारा छिद्रितसा दिखायी देता है और कार्नियाके पार्श्वमें तिकोनीसी आकृति दिखायी देने लगती है।
श्लेष्मा पटल से चिकना और सफेद रंगका स्राव होने लगता है।
रतौंधी रोग का आयुर्वेदिक इलाज :
1-रतौंधी की सबसे सस्ती और सफल चिकित्साचौलाई का साग है। चौलाई की सब्जी भैस के घी में बनाकर प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद जितना खा सकें, खा लें। इसके साथ रोटी, भात आदि कुछ भी न खायें। प्रारम्भिक अवस्था के रोग के लिये एक सप्ताह तथा चरम अवस्था के रोगके लिये दो माह तक इसका सेवन करते रहना चाहिये।
2-करंज-बीज, कमल-केशर, नील कमल, रसौंत तथा गैरिक-सभी ४ ग्राम लेकर चूर्ण बना ले तथा उन सभी को गोमय-रस में भिगोकर बत्तियाँ बनाकर रख ले। अंजन की तरह नित्य लगानेसे रतौंधी का प्रकोप कम होने लगता है।
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3- हरीतकी १२.५ ग्राम, आमलकी ५० ग्राम, यष्टिमधु ५० ग्राम, बहेड़ा २५ ग्राम, शतावरी ५ ग्राम, दालचीनी ५ ग्राम, पीपल ५ ग्राम, सैंधव ५ ग्राम तथा शक्कर १५० ग्राम लेकर बारीक चूर्ण बनाकर कपड़ छान करके रख ले। इसमें से प्रतिदिन ३-५ ग्राम तक घी या शहद के साथ मिलाकर ६ से ८ सप्ताह तक सेवन करने से यह नेत्रों के सभी रोगों पर रामबाण की तरह काम करता है।
3-शंखनाभि, विभीतक, हरड़, पीपल, काली मिर्च,कूट, मैनसिल, खुरासानी, वच-इन सभीको ५-५ ग्राम की मात्रा में लेकर महीन पीसकर बकरी के दूध के साथ मिलाकर बत्तियाँ बना ले। रात में नित्यप्रति पानी में घिसकर आँखों में लगानेसे नेत्ररोग-रतौंधी ठीक होने लगता है।
रतौंधी रोग में परहेज / क्या खाएं क्या न खाएं
✦ रतौंधीका रोगी प्रतिदिन अगर ५० ग्राम कच्ची मूंगफली और २०-२५ ग्राम गुड़ खाता है तो ८-१० दिनोंके अंदर ही शरीर में ताकत आकर बीमारी नष्ट होने लगती है।
✦ इसका रोगी सहिजनके पत्ते एवं फली, मेथी, मूलीके पत्ते, पपीता, गाजर, लौकी, काशीफल आदिका अधिकाधिक प्रयोग करे।
✦ आयुर्वेदिक पौष्टिक लड्डुओं का सेवन, अतिमुक्त, अरंड, सेफालि, निर्गुण्डी और शतावरी के पत्तों की सब्जी घी में पकाकर खाना हितकर होता है।
औषधि-सेवनकालमें आयुर्वेदिक लड्डु का प्रयोग रोगी का पोषण करता है, अतः इसका सेवन आवश्यक है। इसको बनाने की विधि इस प्रकार है-
गेहूं का चोकरयुक्त आटा ५० ग्राम, बंगाली चने की दाल ५० ग्राम, रागी का आटा २० ग्राम, सहिजन के सूखे पत्ते २० ग्राम, गुड़ ४० ग्राम तथा तिल का तेल १० ग्राम लेकर सबको कूट-पीसकर, मिलाकर छोटे-छोटे लड्डु बनाकर रख ले। नित्यप्रति नाश्ते के समय दो लड्डु खाकर एक गिलास गाय का दूध ऊपर से पी ले। इसके सेवनसे शारीरिक शक्ति बढ़ती है तथा रतौंधीके उपचार में काफी सहायता मिलती है।
नोट :- ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।