हृदय रोग एवं आयुर्वेदिक उपचार – Hriday rog ka Ayurvedic Upchar

Last Updated on December 23, 2023 by admin

बदलती जीवनशैली और गलत खानपान के कारण आज लोग अनेक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं। इन्हीं रोगों में हृदय रोग भी है, जिससे लाखों लोग पीड़ित हैं। मनुष्य शरीर के महत्व के प्रत्यंग हृदय का धड़कना ही जिंदगी है । एक बार यह धड़कना बंद कर दे, तो सब कुछ समाप्त हो जाता है । हृदय का मुख्य कार्य संपूर्ण शरीर को रक्त का प्रवाह सही व सुचारू रूप से करना है, जिससे शरीर के सभी अंगों को आवश्यकतानुसार पोषण मिलता रहे। हृदय में विकृति उत्पन्न होने पर शरीर में रक्त प्रवाह व्यवस्थित रूप से नहीं हो पाता जिस कारण मुख्यतः थकावट, घबराहट, सांस फूलना, सूजन होना, धड़कन बढ़ना, लकवा आदि समस्याएं होती हैं। हार्टफेल व हार्टअटैक सामान्य-सी बातें हो गई हैं। वर्तमान में युवाओं में हृदय रोग का होना, तो और भी अधिक चिंताजनक बात है।

हृदय रोग के प्रकार :

आयुर्वेदानुसार हृदय रोग के कारणों में मल-मूत्रादि अधारणीय वेग को रोकने से, अत्यंत उष्ण, अम्ल व तिक्त रसयुक्त पदार्थ के अति सेवन से, आघात, हर समय भय या चिंता रहने से पांच प्रकार के हृदय रोग (वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज व कृमिज) उत्पन्न होते हैं। आधुनिक विज्ञान के मतानुसार हृदय रोग कई प्रकार के होते हैं ।

  1. जन्मजात हृदय रोग – इसमें हृदय में छेद होता है।
  2. हृदय स्पंदन रोग – एरोटिक, माइट्रल व पल्मोनरी वॉल्व के संकुचित होने से ।
  3. हृदय रोग – इसके कारण रोगी के जोड़ों में दर्द होता है।
  4. एन्जाइना – आजकल अधिकांश लोग छाती के दर्द की शिकायत करते हैं। इसमें हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन, पोषक तत्व व रक्तप्रवाह कम होने के कारण छाती में दर्द होता है। यह दर्द ही एन्जाइना कहलाता है। इसके साथ ही छाती में भारीपन एवं खिंचाव होता है। दर्द छाती से शुरू होकर कंधे, गर्दन व पेट के ऊपरी हिस्से तक जाता है। रक्तवाहिनियों में रुकावट या बंद होने का मुख्य कारण इनकी दीवारों पर वसायुक्त पदार्थों का जमा हो जाना है। यह एकत्रीकरण धीरे-धीरे 15-20 वर्षों में होता है। इस वसा के जमा होने के कारण वाहिनियों का रास्ता संकरा हो जाता है एवं वाहिनियों का लचीलापन कम हो जाता है। इस वसा के एकत्रीकरण को एथेरोस्क्लेरोसिस कहते हैं।

हृदय रोग की चिकित्सा करते समय उच्च रक्तदाब, मधुमेह, धूम्रपान, मानसिक तनाव, कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण होना जरूरी है।

हृदय रोग के कारण :

  • मादक द्रव्यों का सेवन।
  • अति तनावयुक्त जीवन।
  • आराम तलब जीवन शैली।
  • अति क्रोध।
  • अपर्याप्त नींद ।
  • धूम्रपान ।
  • उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापे व हाइपर कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित व्यक्ति को हृदय रोग की आशंका अधिक होती है।
  • आहार में वसायुक्त व गरिष्ठ पदार्थों का अधिक सेवन ।
  • व्यायाम का पूर्णतः अभाव।

हृदय रोग के लक्षण :

शुरू-शुरू में हृदय रोग के कोई विशेष लक्षण अनुभव नहीं होते हैं, पंरतु जब रोगी कोई शारीरिक परिश्रम (जैसे दूर तक पैदल चलना, सीढ़ियां, पहाड़ आदि चढ़ना, दौड़ना आदि) करता है, तो छाती में दर्द उठना, सांस भरना, कंधों और पीठ में दर्द होना, भारीपन प्रतीत होना, दम घुटना, छाती में सिकुड़न आदि अनुभव होते है।
हृदय को ज्यादा काम करने के लिए अतिरिक्त (सामान्य से अधिक) रक्त की आवश्यकता होती है, जो रक्त की पूर्ति में कमी आ जाने के कारण उसे मिल नहीं पाता परिणामस्वरूप हृदय की मांसपेशियां जोरों से सिकुड़ती हैं और छाती में दर्द (Chest pain) का अनुभव होता है। इसी दर्द को ‘हृदय शूल’ (Angina Pectoris) कहा जाता है।

चिकित्सा क्रम :

रोगी और रोग की स्थिति को ध्यान में रखते हुए विभिन्न औषधियों एवं उपक्रमों द्वारा दोष का शमन करना चाहिए। पूर्ण विश्राम, लघु भोजन और मानसिक संबल किसी भी हृदय रोगी के लिये आवश्यक है।
इसके साथ-साथ दोषानुसार उपक्रम एवं लक्षणों के अनुरूप चिकित्सा व्यवस्था करना चाहिए। हृदय को शक्ति प्रदान करने वाली औषधियों का प्रयोग किसी भी अवस्था में किया जा सकता है।

हृदय रोग का आयुर्वेदिक उपचार (Hriday Rog ka Ayurvedic Ilaj in Hindi)

आयुर्वेदिक उपचार में निम्न उपाय किए जा सकते हैं –

1). मुलहठी (मुलेठी) – कुटकी और मुलेठी पाउडर को पानी के साथ मिलाकर सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है। ( और पढ़े – मुलेठी के फायदे और उपयोग )

2). लौकी – लौकी के जूस में तुलसी की 10 पत्तियाँ तथा पुदीने की 5 पत्तियों का रस निकालकर पीने से बाईपास सर्जरी कराने की जरूरत नहीं पड़ती। रस हर बार ताजा बनाकर सेवन करना चाहिए।

3). लीची का रस – ग्रीष्म ऋतु में लीची का रस पीने से हृदय को बल मिलता है। ( और पढ़े – लीची खाने के 19 अनूठे लाभ )

4). इमली – पकी इमली के घोल में मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय रोग में आराम मिलता है।

5). काले चने – उबले काले चने में सेंधानमक मिलाकर खाने से हृदय रोग में लाभ होता है। ( और पढ़े – चना खाने के यह फायदे सुन आप भी रह जायेंगे हैरान )

6). बथुआ – बथुए की लाल पत्तियों के आधा कप रस में सेंधा नमक डालकर सेवन करने से हृदय रोग दूर होता है ।

7). गुलकन्द – देशी गुलाब से बने गुलकन्द का सेवन हृदय को बल प्रदान करता है । ( और पढ़े – गुलाब के 56 से अधिक औषधीय उपयोग )

8). करौंदा – कुछ दिनों तक करौंदे का मुरब्बा या करौंदे की मीठी चटनी का सेवन करना हृदय रोग को दूर करने में बहुत उपयोगी है ।

9). लहसुन – लहसुन की 3 से 4 कलियों को चबाकर खाने से हृदय के दर्द में आराम होता है । ( और पढ़े – हृदय के लिए अमृत है लहसुन )

10). पालक रस – नींबू तथा पालक के 1-1 चम्मच रस में आधा चम्मच चौलाई का रस मिलाकर सुबह कुछ दिनों तक सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है।

11). बरगद का दूध – कुछ दिनों तक बताशे पर बरगद के दूध की 4 से 5 बूंदे डालकर सेवन करने से दिल की बीमारी में आराम मिलता है। ( और पढ़े – बरगद के 77 लाजवाब फायदे )

12). नीम की जड़ – नीम की जड़, सोंठ, कचूर तथा कूट सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 3 से 4 ग्राम मात्रा गाय के घी में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।

13). मुनक्का – 2 चम्मच शहद, 5 ग्राम मुनक्का और थोड़ी से मिश्री मिलाकर चटनी बना लें। सुबह नाश्ते के बाद इस चटनी का सेवन हृदय को बल प्रदान करता है ।

14). अरबी – हृदय रोगियों को दिन में एक बार अरबी की सब्जी 25 ग्राम की मात्रा में खाना चाहिये । इसके सेवन से दिल की बीमारी में आराम मिलता है।

15). आलू का रस – आलू के रस शहद मिलाकर पीने से हृदय की जलन दूर होती है ।

यह भी अपनायें :

  • प्रतिदिन 1 सेब के सेवन से आप स्वस्थ रहेंगे और हार्ट प्रॉब्लम से बचे रहेंगे।
  • एक कच्चा लहसुन रोजाना लें साथ ही प्राणायाम व योग एवं व्यायाम करें।
  • रोजाना आंवला का सेवन करें या एक गिलास आंवला का जूस पिएं, इससे खून साफ़ रहेगा।

हृदय रोगियों के लिए आवश्यक परहेज :

  • मांस-मछली, मद्यपान, कन्द-मूल, खटाईयुक्त पदार्थ, वातकारक पदार्थ आदि।
  • भोजन में नमक भी कम मात्रा में लें।
  • क्रोध ,चिंता त्यागें व रात्रि जागरण से बचें।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

Leave a Comment

Share to...