Last Updated on August 6, 2021 by admin
जब 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन दवारा दस्त रोगों के नियंत्रण के लिए कार्यक्रम बनाया गया उस समय लगभग 4 करोड़ बच्चे इन रोगों से मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। और सन् 2000 में इनकी संख्या घटकर डेढ़ करोड़ रह गई। केवल जीवन रक्षक घोल पिलाने से (ओ.आर.एस. Oral Rehydration Therapy) लगभग 3 करोड़ मृत्युएँ प्रतिवर्ष कम हो गईं। लेकिन भारत जैसे देश में छोटे बच्चों में रोटावायरस जैसे दस्त रोगों की बीमारी अभी भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। 1000 बच्चों में प्रतिवर्ष 5 बच्चे ऐसी बीमारियों से मृत्यु को प्राप्त होते हैं। सन् 2005 में 10 लाख 70 हजार बच्चे आंत्रशोथ दस्त रोग से पीड़ित हुए और इनमें से 2040 मृत्युएँ हुईं।
दस्त की बीमारी क्या है ? :
दिन में 3 बार से अधिक पतले शौच 3 से 7 दिनों तक जाना-दस्त की बीमारी कहलाती है। कई बार पानी जैसी पतले दस्त से शरीर में पानी की कमी (Dehydration) उत्पन्न हो जाती है। जिसको दूर न किया जाए तो व्यक्ति या बच्चा गम्भीर स्थिति में पहुँच जाता है और यहाँ तक कि उसकी इलाज न मिलने पर मृत्यु भी हो सकती है। अक्सर दस्त के साथ उल्टियाँ भी होती हैं। इस स्थिति को आंत्रशोथ (Gastroenteritis) कहते हैं। इस रोग में आँतों में भी सूजन आ जाती है।
रोटावायरस आंत्रशोथ के कारण (Rotavirus Gastroenteritis Causes in Hindi)
रोटावायरस आंत्रशोथ क्यों होता है ?
वैसे तो दस्त की बीमारी कई तरह के जीवाणु (Bacteria) और विषाणुओं (VirusU) तथा एककोशीय जीवों द्वारा होती है। लेकिन अधिकतर मामलों में (25 से 50 प्रतिशत), विशेषकर बच्चों में रोटा विषाणु (Rotaviru) ही इस रोग को उत्पन्न करते हैं। यह विषाणु आर.एन.ए. प्रकार का होता है।
इसके अलावा अन्य कई विषाणु और जीवाणु तथा अमीबा जैसे एककोशीय जीव भी दस्त की बीमारी उत्पन्न करते हैं। लेकिन हम यहाँ सबसे खतरनाक रोटावायरस द्वारा उत्पन्न आंत्रशोथ (Gastroenteritis) की ही चर्चा करेंगे।
रोटावायरस सन् 1973 में खोजा गया। यह विषाणु 5 वर्ष से नीचे के बच्चों में अक्सर गम्भीर पानी की कमी को उत्पन्न करता है। जिससे बच्चों की जान को खतरा उत्पन्न हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार लगभग पौने तीन करोड़ रोगी विश्व में प्रतिवर्ष इस विषाणु द्वारा उत्पन्न आंत्रशोथ की चपेट में आ जाते हैं। प्राय: हर बच्चे को 5 वर्ष से कम उम्र में (अक्सर 3 वर्ष) यह रोटावायरस अपना शिकार बनाता है। और बच्चों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाती है।
कभी-कभी एड्स रोगी में भी रोटावायरस दस्त की बीमारी उत्पन्न करता है। लेकिन अन्य वयस्क रोगियों में यह विषाणु दस्त की बीमारी तो उत्पन्न करता है परन्तु वह साधारण प्रकार की होती है जबकि 5 और 3 वर्ष के आसपास की उम्र के बच्चों में यह रोग गम्भीर स्थिति में पहुचा जाता है। ऐसा छोटे बच्चों में रोग प्रतिरोधक शक्ति की कमी के कारण होता है।
रोटावायरस शरीर में क्या करता है ? :
यह विषाणु पेट की आँतों में पहुँचकर आँतों की बाहरी संरचनाओं को क्षतिग्रस्त कर देता है। इस कारण भोज्य पदार्थों का आंतों द्वारा अवशोषण (Absorption) नहीं हो पाता और आँतों की अधिक गतिशीलता के कारण उल्टी-दस्त की बीमारी उत्पन्न हो जाती है एवं आँतों में सूजन भी आ जाती है।
रोटावायरस आंत्रशोथ की जटिलताएँ (Rotavirus Gastroenteritis Complications in Hindi)
- रोटावायरस अलग-अलग रोगियों में साधारण प्रकार से लेकर गम्भीर तरह की दस्त की बीमारी उत्पन्न करता है और इस कारण बच्चों या बड़ों के शरीर में पानी की कमी उत्पन्न हो जाती है। इस रोग का 5 वर्ष से नीचे की उम्र के बच्चों पर प्रभाव अधिक होता है। और समय पर इलाज न किया जाए तो मृत्यु तक हो सकती है।
- शरीर में पानी की कमी के अलावा कुछ श्वसन संस्थान की बीमारियाँ जैसे निमोनिया, मस्तिष्क शोथ और सिड्स (Sudden Infant Dealth) जैसी बीमारियाँ भी उत्पन्न करता है।
- सिड्स रोग में छोटे शिशुओं की एकदम अचानक मृत्यु हो जाती है।
- इसके अलावा रोटावायरस द्वारा आँतों की कई गम्भीर बीमारी भी उत्पन्न हो सकती हैं। अतएव इस रोग की पहचान कर शीघ्र इलाज जरूरी होता है।
रोटावायरस आंत्रशोथ के लक्षण (Rotavirus Gastroenteritis Symptoms in Hindi)
रोटावायरस आंत्रशोथ के क्या लक्षण होते हैं ?
- बीमारी के शुरू में 80 प्रतिशत छोटे बच्चों में शुरू में उल्टियाँ होती हैं, फिर दस्त लगते हैं।
- साथ ही बुखार भी आ जाता है और शरीर का तापक्रम 30°C या 102.25 तक रहता है।
- लगभग 15 प्रतिशत मामलों में दस्त के साथ थोड़ी मात्रा में रक्त कोशिकाएँ (RBC) भी जा सकती हैं।
रोटावायरस आंत्रशोथ का परीक्षण (Diagnosis of Rotavirus Gastroenteritis in Hindi)
रोटावायरस आंत्रशोथ के क्या लक्षण होते हैं ?
इस रोग में अक्सर दस्तों द्वारा मल की अधिक मात्रा निकलती है। प्रयोगशाला में मल का परीक्षण कर भी इसकी पहचान हो जाती है। पी.सी.आर. (P.C.R.) नामक जाँच से भी रोग की पहचान या निदान निश्चित तौर पर हो जाता है।
रोटावायरस आंत्रशोथ का इलाज (Rotavirus Gastroenteritis Treatment in Hindi)
रोटावायरस आंत्रशोथ का उपचार कैसे किया जाता हैं ?
1). जिंक देने से भी दस्तों में कमी आती है। अतएव विश्व स्वास्थ्य संगठन 10 से 14 दिन तक बच्चों को जिंक (10 मि.ग्रा. प्रतिदिन) देने की सलाह देता है।
2). शरीर में पानी की कमी को अधिकतर मामलों में मुख द्वारा जीवन रक्षक घोल (O.R.S.) पिलाकर की जाती है। और बहुत कम मामलों में अन्तर्शिराओं द्वारा सेलाइन इत्यादि देने की जरूरत पड़ती है। लेकिन अच्छे शिशु रोग विशेषज्ञ को अवश्य दिखला देना चाहिए और अनावश्यक रूप से रोग प्रतिरोधक दवाएँ देने से बचना चाहिए। यह ध्यान रखें कि बच्चे के शरीर में पानी की कमी न होने पाए।
रोटावायरस आंत्रशोथ से बचाव (Prevention of Rotavirus Gastroenteritis in Hindi)
रोटावायरस आंत्रशोथ की रोकथाम कैसे करें ?
- बच्चों और परिवार के सदस्यों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो ऐसी व्यवस्था करें।
- घरों में साफ-सफाई (Hygenic Condition) जरूरी है।
- साथ ही घरों में आधुनिक शौचालय हों यह भी जरूरी है।
- मक्खियों पर नियंत्रण भी रोग से बचाव की दिशा में बड़ा कदम है।
- खाने-पीने की सामग्री ढककर रखें।
- रोटावायरस, रोगी के मल और उल्टी में अत्यधिक मात्रा में कई दिनों तक मौजूद होते हैं अतएव अन्य बच्चों को इनके सम्पर्क से बचाना चाहिए।
- रोगी के कपड़े अलग स्थान पर धोए जाएँ।
- रोग से बचने के लिए साफ-सफाई अत्यन्त आवश्यक है तथा घरों में गन्दे पानी के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
रोटावायरस आंत्रशोथ रोग का टीका (Rotavirus Gastroenteritis Vaccine)
बच्चों को रोग से बचाव के लिए सन् 1999 में अमेरिका में जो वैक्सीन बनाई गई थी उसे एक वर्ष बाद आँतों में जटिलताओं की वजह से बाजार में बिक्री के लिए प्रतिबन्धित कर दिया गया। फिर सन् 2006 में रोटारिक्स नामक वैक्सीन और रोटाटेक नामक वैक्सीन भी आई जो मुख द्वारा (Oral) दी जाती है।
रोटारिक्स वैक्सीन छोटे शिशुओं को 2 महीने और 4 महीने में पिलाई जाती है। जबकि रोटाटेक नामक वैक्सीन की तीन मात्राएँ-दूसरे, चौथे और छठवें माह में शिशुओं को पिलाते हैं।
इन टीकों (Vaccine) को 12वें सप्ताह में देने पर आँतों की जटिलताओं का खतरा फिर भी बना रहता है। इसलिए अभी तक वैक्सीन देने की सही उम्र निश्चित नहीं की जा सकी है। रोटावायरस वैक्सीन के लिए शिशु रोग विशेषज्ञ से भी सलाह लें।
एक समाचार के अनुसार एक रोटावायरस टीके का विकास भारत में हुआ है जो विदेशी वैक्सीन से लगभग 50 गुना कम कीमत में उपलब्ध होगा। और रोटावायरस वैक्सीन को बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने की भी योजना चल रही है। (अभी इसका टीका निजी अस्पतालों में लगाया जाता है) लेकिन अब कुछ प्रदेशों में इस वैक्सीन को लगाने की शुरुआत हो चुकी है।