Last Updated on January 31, 2022 by admin
दर्द का कहने का अभिप्राय यह है कि जब शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो तो वह दर्द या पीड़ा कहलाता है जैसे पेट में दर्द हो तो उसे पेट का दर्द होता हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह 8 प्रकार का होता हैं। वातज, पित्तज, कफज, त्रिदोषज, वातपित्तज, वातकफज, पित्तकफज और आमज ।
दर्द के कारण :
दर्द के अनेक कारण माने जाते है जैसे –
- भूख के समय भोजन न करना,
- मल और मूत्र के वेग को रोकना,
- खट्टे पदार्थ अधिक खाना,
- विरुद्व-पदार्थ जैसे- दूध और दही का एकसाथ सेवन करना,
- अधिक उपश्वास रखना,
- शोक, दुख, चिन्ता को पालना,
- अधिक हंसना और अधिक बोलना आदि।
- हृदय (दिल) में वायु के बढ़ने और कफ-पित्त के रुकने से श्वास (सांस) रुक जाती है जिसे `हृदय शूल´ यानी दिल का दर्द कहते हैं।
- अधिक तीक्ष्ण, गर्म, जलन को बढ़ाने वाले, तीखे, क्षार पदार्थों के सेवन से,
- धूप में रहने से,
- अधिक परिश्रम करने से,
- अधिक मैथुन करने से,
- क्रोध करने से और शराब के पीने के कारण पित्त कुपित हो जाता है जिसके कारण `पित्त ‘शूल´ यानी पित्त का दर्द पैदा हो जाता है।
- पानी में रहने वाले पक्षियों का मांस, फटे हुए दूध या उसके पदार्थ, उड़द का पिसा हुआ अनाज, गन्ने का रस, तिल, पूड़ी-कचौड़ी, भारी और शीतल (ठंड़े) पदार्थो को खाने से कफ कुपित हो जाता है जिसे `कफज शूल´ यानी कफ के कारण होने वाले दर्द को कहते हैं।
- `द्वन्द्वज´ और `त्रिदोषज शूल´ (वात, कफ और पित्त) दो या तीनों दोषों के इकट्ठा हो जाने पर प्रकट होता हैं।
- `आमज शूल´ आमज का दर्द आमाशय में पैदा होता है और बाद में दोषानुसार शरीर के अन्य अंगों में पहुंच जाता है।
दर्द के लक्षण :
- `वातज शूल´ में रोगी को हृदय (दिल), पीठ, पसली, कमर, पेड़ू (नाभि का निचला भाग), मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) में सुई जैसा चुभना प्रतीत होता है।
- `पित्तज शूल´ पेट में तेज दर्द होना, अंगों में जलन होना, पसीना, प्यास, बेहोशी, सांस लेते समय दौरान दर्द होना आदि लक्षण पाए जाते हैं।
- `कफज शूल´ आमाशाय में दर्द, उबकाई आना, खांसी, ग्लानि (घृणा), मुंह से लार गिरना, पेट और सिर का भारी होना, अनाज को खाने की इच्छा न होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
- `द्वन्द्वज´ तथा `त्रिदोषज´ शूल में दोनों या तीनों दोषों के लक्षण पाए जाते हैं।
- `आमज शूल´ अफारा, उबकाई, वमन, मुंह से कफ गिरना, शरीर में भारीपन आदि लक्षण प्रकट होते हैं। यह दर्द पहले आमाशय में होता है, फिर जिस दोष से इसका संबध होता है उसी के अनुसार वस्ति (नाभि के नीचे का भाग), हृदय (दिल), पसली और पेट में पहुंच जाता है। अत्यधिक प्यास, मूर्च्छा (बेहोशी), अरूचि (भोजन का न पचना), भारीपन, वमन, श्वास (सांस), खांसी, हिचकी और दर्द जैसे लक्षण भी प्रकट हो जाते हैं।
- अत्यधिक प्यास, मूर्च्छा, मलबंध, अरुचि, भारीपन, वमन (उल्टी), श्वास, खांसी, हिचकी और पीड़ा आदि सभी 10 प्रकार के दर्द होते माने जाते हैं।
ध्यान योग्य : एक दोष वाला शूल साध्य´, दो दोषों वाला `कष्टसाध्य´ तथा तीन दोषों वाला और उपद्रवों यानी कुपित से युक्त शूल को `असाध्य´ माना जाता है। यदि ऊपर बताए गए 10 उपद्रव या दोष उत्पन्न हो जाए तो व्यक्ति की जान खतरे में आ जाती हैं यहां तक कि रोगी की जान भी जा सकती है।
भोजन और परहेज :
करेला, बैंगन, परवल, सहजन, बथुआ, गर्म दूध, माण्ड, पके आम, दाख, चिरौंजी, एक साल पुराना चावल और कैथ, पेठा, केले का फूल, आंवला, कसेरू, नारियल का पानी और बेल का फल आदि को पेट के दर्द में रोगी खा सकते हैं।
सूखे और भारी, कसैले, ठंड़ी वस्तुओं को खाने, सहश्वास (स्त्री प्रसंग) करने से, मूंग, उड़द की दाल, तिल, पिट्टी (खट्टें) के पदार्थ, लाल मिर्च को खाने से दूर रहना चाहिए। परिश्रम, चिन्ता, दुख, क्रोध और मल-पेशाब के वेग को रोकना नहीं चाहिए क्योंकि यह रोगी के लिए हानिकारक हो सकता है।
सभी प्रकार के दर्द का ईलाज :
1. अजमोद : अजमोद, सेंधानमक, हरड़, सोंठ, कालीमिर्च और छोटी पीपल को एकसाथ मिलाकर बारीक पीसकर और छानकर चूर्ण बनाकर 6 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ पीने से सभी प्रकार के दर्द में लाभ पहुंचता है।
2. शंख : शंख, कालानमक, भुनी हुई हींग, सोंठ, काली मिर्च और छोटी पीपल को पीसकर बनें चूर्ण मे से 6 ग्राम को खुराक के रूप में गर्म पानी के साथ पीने से दर्द में लाभ मिलता है।
3. अमलबेत : 20 ग्राम अमलबेत, 40 ग्राम सफेद जीरा, 10 ग्राम कालानमक और 80 ग्राम कालीमिर्च को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लेने से सभी प्रकार के दर्द में लाभ होता है।
4. बेल :
- बेल के पत्ते, एरण्ड के पत्ते और तिल को छाछ में अच्छी तरह पीसकर बने लेप की पोटली बनाकर सेंकने से `वातज शूल´ में लाभ होता हैं।
- बेल की जड़, एरण्ड की जड़, चीते की जड़, सोंठ, हींग और सेंधानमक को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर ठंड़ा करके पेट पर लेप करने से `वातज शूल´ यानी वात के कारण होने वाला दर्द समाप्त हो जाता है।
5. काला नमक :
- काला नमक, सोंठ और हरड़ आदि को 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर मिश्रण बना लें। फिर लगभग 30 ग्राम की मात्रा में इस मिश्रण को पानी में डालकर आग पर गर्म करें। इसे सुहाता गर्म पीने से 1 से 2 बार दस्त आकर हर प्रकार के दर्द मिट जाते हैं।
- काला नमक, हींग और सोंठ को बारीक पीसकर छानकर बने चूर्ण को जौं के काढ़े के साथ पीने से दिल के दर्द (हृदय शूल), पसली के दर्द, पेट के दर्द और मल के रुकने के कारण उत्पन्न होने वाले दर्दों में लाभ मिलता है।
6. बिजौरा नींबू : बिजौरा नींबू को निचोड़कर प्राप्त हुए रस, देशी घी, हींग और सेंधानमक को पानी में डालकर गर्म करे। इसे गुनगुना करके में पीने से पेट में रुका हुआ मल आसानी से बाहर निकल आता है और दिल के दर्द (हृदय शूल), पेट के दर्द (कुक्षि शूल) और पसली के दर्द में लाभ मिलता है।
7. दशमूल : दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) को पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में जवाखार और सेंधानमक मिलाकर खाने से दिल के दर्द (हृदय शूल), श्वास (दमा), खांसी, हिचकी ओर पेट में वायु के गोले आदि रोग समाप्त होते हैं।
8. हींग : हींग, त्रिकुटा, धनिया, अजवायन, चीता और हरड़ को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में जवाखार और सेंधानमक को मिलाकर साफ पानी के साथ पीने से वायुशूल, पेशाब करते समय होने वाले दर्द और मल के दर्द (विष्ठा शूल) आदि सभी प्रकार के दर्द समाप्त होते हैं।
9. एरण्ड : एरण्ड की जड़, सोंठ, कंटकारी, कटेरी, बिजौरा नींबू की जड़, पाषाणभेद और त्रिकुटा की जड़ को एक साथ अच्छी तरह पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर 20 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस बने काढ़े में जवाखार, हींग, सेंधानमक और अरण्डी का तेल मिलाकर रोगी को देने से आमशूल, दिल का दर्द (हृदय शूल), स्तन शूल, लिंग शूल यानी लिंग के दर्द और अनेंक प्रकार के दर्दों में आराम मिलता है।
10. हरड़ : हरड़, बहेड़ा, आंवला और राई को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छानकर 3 से 6 ग्राम की मात्रा में थोड़े से देशी घी और शहद के साथ मिलाकर चाटने से `आमशूल´ और अन्य कई प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
11. अनार : 1 अनार को निचोड़कर प्राप्त हुए रस में त्रिकुटा और सेंधानमक का चूर्ण मिलाकर पीने से त्रिदोषज शूल´ यानी वात, कफ और पित्त के कारण होने वाली पीड़ा समाप्त होती है।
12. पीपल : पीपल, चव्य, चीता, सोंठ, सेंधानमक, पीपरामूल, संचर नमक, काला नमक और हींग को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर बने चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में गाय के पेशाब के साथ इस्तेमाल करने से `कफज शूल´ यानी कफ के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा मिलता है।
13. आंवला : आंवला को पीसकर प्राप्त रस में चीनी को मिलाकर चाटने से `पित्तज शूल´, जलन और रक्तपित्त की बीमारियों में लाभ पहुंचता है।
14. त्रिफला :
- त्रिफला और अमलतास के 20 ग्राम चूर्ण को अच्छी तरह से पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में देशी घी और चीनी को डालकर पीने से `पित्तज शूल´ यानी पित्त के कारण होने वाले दर्द में लाभ होता है।
- त्रिफला को पीसकर चूर्ण बनाकर इसमें मिश्री के चूर्ण को मिलाकर पीने से हर प्रकार के दर्द में लाभ होता है।
15. उड़द : उड़द की दाल की पिट्टी की बड़ियों को तेल में पका लें। इन बड़ियों को शहद और देशी घी में डालकर खाने से `अन्नद्रव शूल´ यानी अनाज के कारण होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
16. चना : भुने हुऐ चनों को खाने से `अन्नद्रव शूल´ यानी अनाज के कारण होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
17. सोंठ :
- सोंठ, एरण्ड की जड़ और इन्द्रजौ को बारीक पीसकर बने चूर्ण को पकाकर काढ़ा बना लें। फिर इसमें हींग और नमक मिलाकर पीने से `वातज ‘शूल´ यानी वात से उत्पन्न होने वाला दर्द समाप्त हो जाता हैं।
- सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल, अनार के दाने और सेंधानमक को अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ सेवन करने से `त्रिदोषज ‘शूल´ यानी वात, कफ और पित्त के कारण होने वाले दर्द में लाभ मिलता है।
- सोंठ, हरड़ और शुद्ध मण्डूर को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इस चूर्ण को 3 से 4 ग्राम की मात्रा में थोड़े से देशी घी और शहद के साथ मिलाकर चाटने से पेप्टिक का दर्द (परिणाम शूल) मिट जाता है।
18. तिल : तिलों को बारीक पीसकर गोला बनाकर पेट पर लगाने से `वातज शूल´ यानी वात के कारण होने वाले दर्द में आराम होता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)