Last Updated on June 25, 2022 by admin
सालम पंजा (सालम मिश्री) क्या है ? :
सालम पंजा जिसे सालम मिश्री के नाम से भी जाना जाता है विशेषत: पश्चिमी हिमालय और तिब्बत में 8 से 12 हज़ार फीट की उंचाई पर पैदा होता है। भारत में इसकी आवक ज्यादातर ईरान और अफगानिस्तान से होती है। इसका कन्द उपयोग में लिया जाता है और यह बाज़ार में जड़ी बूटी बेचने वाली दुकानों पर मिलता है। इसके चूर्ण को पानी में भिगोने पर पर्याप्त लुआब (चिपचिपा अंश) बनता है।
सालम पंजा के औषधीय गुण :
- मुञ्जातक यानी सालम, बल बढ़ाने वाला व शीतवीर्य होता है ।
- यह पाचन में भारी, स्निग्ध, तृप्तिदायक और मांस की वृद्धि करने वाला होता है।
- यह वात पित्त का शमन करने वाला होता है।
- यह रस में मधुर और अत्यधिक वीर्यवर्द्धक होता है।
विभिन्न भाषाओं में सालम पंजा के नाम :
- संस्कृत – मुञ्जातक ।
- हिन्दी – सालम पंजा ।
- मराठी – सालम मिश्री ।
- गुजराती – सालम ।
- पंजाबी – सालम ।
- असमी – सालब मिश्री ।
- तेलुगु – गोरु चेटु ।
- यूनानी – खसतीयाल सहलब ।
- इंगलिश – सालेप (Salep).
- लैटिन – आर्किस लेटिफोलिया (Orchis latifolia).
सालम पंजा (सालम मिश्री) के उपयोग : Salam Mishri Uses in Hindi
- सालम पंजा उत्तम वृष्य (पौष्टिक), बृंहण (सुडौल बनाने वाला), बल्य, वातनाड़ियों को शक्ति देने वाला, शुक्रवर्द्धक, शुक्र स्तम्भक, पाचक और ग्राही गुणों वाला है।
- सालम पंजा पाचन संस्थान और विशेष कर आंतों की निर्बलता से उत्पन्न होने वाले अपचन, अतिसार और अग्निमांद्य को दूर करने में उपयोगी होता है।
- सालम पंजा का उपयोग, शारीरिक पुष्टि और बलवीर्य की वृद्धि के लिए, वाजीकारक नुस्खों में दीर्घकाल से होता आ रहा है।
- अधिक दिनों तक समुद्री यात्रा करने वालों को प्राय: रक्तविकार एवं कफ जन्य रोग, रक्त पित्त, सी स्कर्वी आदि व्याधियां हो जाती हैं । इन व्याधियों को दूर करने में इसके चूर्ण का उपयोग लाभप्रद सिद्ध होता है। यहां कुछ घरेलू उपयोग प्रस्तुत है।
सालम पंजा (सालम मिश्री) के फायदे : Salam Panja (Salam Mishri) Benefits in Hindi
1. समुद्र यात्रा में सालम पंजा के फायदे – समुद्र में प्राय: यात्रा करते रहने वाले पश्चिमी देशों के लोग प्रतिदिन 2 चम्मच चूर्ण एक गिलास पानी में उबाल कर शक्कर मिला कर पीते हैं। इससे शरीर में स्फूर्ति और शक्ति बनी रहती है तथा क्षुधा की पूर्ति होती है।
2. शुक्रमेह में सालम पंजा के लाभ – सालम पंजा, सफ़ेद मुसली एवं काली मुसली- तीनों 100-100 ग्राम लेकर कूट पीस कर खूब बारीक चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें। प्रतिदिन आधा-आधा चम्मच सुबह और रात को सोने से पहले कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से शुक्रमेह, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, कामोत्तजना की कमी आदि दूर हो कर यौनशक्ति की वृद्धि होती है।
3. जीर्ण अतिसार के उपचार में सालम पंजा का उपयोग – सालम पंजा का खूब महीन चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह, दोपहर और शाम को छाछ के साथ सेवन करने से पुराना अतिसार रोग ठीक होता है। एक माह तक भोजन में सिर्फ दही चावल का ही सेवन करना चाहिए। इस प्रयोग को लाभ न होने तक जारी रखने से आमवात, पुरानी पेचिश और संग्रहणी रोग में भी लाभ होता है। ( और पढ़े – दस्त रोकने के 33 घरेलू उपाय )
4. पौरुष दुर्बलता दूर करने में सालम पंजा के फायदे – सालम पंजा 100 ग्राम, बादाम की मींगी 200 ग्राम- दोनों को खूब बारीक पीस कर मिला लें। इसका 10 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन कुनकुने मीठे दूध के साथ प्रात: खाली पेट और रात को सोने से पहले सेवन करने से शरीर की कमज़ोरी और कृशता (दुबलापन) दूर होती है, पौरुष शक्ति में खूब वृद्धि होती है और धातु पुष्ट एवं गाढ़ी होती है। यह प्रयोग महिलाओं के लिए भी, पुरुषों के समान ही, लाभदायक, पौष्टिक और शक्तिप्रद है अत: महिलाओं के लिए भी सेवन योग्य है। ( और पढ़े – धातु दुर्बलता दूर कर वीर्य बढ़ाने के 32 घरेलू उपाय )
5. प्रदर रोग में सालम पंजा के लाभ – सालम पंजा, शतावरी, सफ़ेद मुसली, और असगन्ध- सबका 50-50 ग्राम चूर्ण लेकर मिला लें। इस चूर्ण को सुबह व रात को 1-1 चम्मच कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से पुराना श्वेतप्रदर और इसके कारण होने वाला कमर दर्द दूर होकर शरीर पुष्ट और निरोग होता है। ( और पढ़े –श्वेत प्रदर लिकोरिया का रामबाण इलाज )
6. वात प्रकोप में सालम पंजा के लाभ – सालम पंजा और पीपल (पिप्पली)- दोनों का महीन बारीक चूर्ण मिला कर, आधा-आधा चम्मच चूर्ण, सुबह शाम बकरी के कुनकुने गर्म मीठे दूध के साथ सेवन करने से कफ व श्वास का प्रकोप शान्त होता है। ज़रा से परिश्रम से सांस फूलना, शरीर की कमज़ोरी, हाथ पैर का दर्द, गैस और वात प्रकोप आदि ठीक होते हैं। प्रसव के बाद प्रसूता स्त्री को आधा-आधा चम्मच चूर्ण कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन कराने से उसकी शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। ( और पढ़े – वात नाशक आयुर्वेदिक घरेलू उपचार )
सालम पंजा से निर्मित दो उत्तम आयुर्वेदिक दवा / योग :
1. विदार्यादि चूर्ण –
विदार्यादि चूर्ण के घटक द्रव्य और बनाने की विधि –
विदारीकन्द, सालम पंजा, असगन्ध, सफ़ेद मुसली, बड़ा गोखरू, अकरकरासब 50-50 ग्राम खूब महीन चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें।
विदार्यादि चूर्ण के फायदे –
इस चूर्ण को 1-1 चम्मच सुबह व रात को कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से पौरुष शक्ति और स्तम्भन शक्ति बढ़ती है, धातु पुष्ट होती है जिससे शीघ्र पतन और स्वप्नदोष होना बन्द हो जाता है। यह योग बना-बनाया इसी नाम से बाज़ार में मिलता है।
2. रतिवल्लभ चूर्ण –
रतिवल्लभ चूर्ण के घटक द्रव्य और बनाने की विधि –
सालम पंजा, बहमन सफ़ेद, बहमन लाल, सफ़ेद मुसली, काली मुसली, बड़ा गोखरू- सब 50-50 ग्राम। छोटी इलायची के दाने, गिलोय सत्व, दालचीनी और गावजवां के फूल- सब 25-25 ग्राम । मिश्री 125 ग्राम। सबको अलग-अलग खूब बारीक कूट पीस कर महीन चूर्ण करके मिलालें और शीशी में भर लें।
रतिवल्लभ चूर्ण के फायदे –
इस चूर्ण को 1-1 चम्मच,सुबह व रात को, कुनकुने मीठे दूध के साथ दो माह तक सेवन करने से धातु-दौर्बल्य और यौनांग की शिथिलता एवं नपुंसकता दूर हो कर यौनोत्तेजना और पौरुष बल की भारी वृद्धि होती है। शीघ्र पतन, धातु स्त्राव, धातु का पतलापन आदि विकार नष्ट होते हैं। शरीर पुष्ट और बलवान बनता है तथा मन में उमंग और उत्साह पैदा करने वाली स्थिति निर्मित होती है।
कोई भी एक प्रयोग पूरे शीतकाल तक नियमपूर्वक सेवन करना चाहिए। पथ्य और अपथ्य का पालन करते हुए तेज़ मिर्च मसालेदार एवं तले हुए पदार्थों, इमली व अमचूर की खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए । आचार विचार शुद्ध रखना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)