Last Updated on July 22, 2019 by admin
(१) शंख ध्वनि के अद्भुत लाभ –
सन् १९२८ ई० में बर्लिन यूनिवर्सिटीने शंख-ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया है कि शंख ध्वनि की शब्द-लहरें बैक्टीरिया नामक (संक्रामक रोग के) कीटाणुओं के नष्ट करनेमें उत्तम और सस्ती ओषधि है। यह प्रति सेकंड २७ घन फुट वायु-शक्ति के जोर से बजाया हुआ शंख १२०० फीट दूरीके बैक्टीरिया जन्तुओं को नष्ट कर डालता है। और २६०० फीट दूरी तक के जन्तु इस ध्वनि से मूच्छित हो जाते हैं। बैक्टीरिया के अतिरिक्त इससे हैजा, गर्दन तोड़ बुखार, कम्पज्वर के कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं और ध्वनि-विस्तारक स्थान के पास का स्थान नि:संदेह निर्जन्तु हो जाता है। मिरगी, मूर्छा, कण्ठमाला और कोढ़ के रोगियों के अंदर भी शंख-ध्वनि की प्रति क्रिया होती है तथा यह रोगनाशक होती है। शिकागोके डॉ० डी० ब्राइनने तेरह बहरों को शंख-ध्वनि से ठीक किया था और आजतक न जाने कितने और ठीक हुए होंगे। मेरे एक मित्र श्री केशरी किशोर जी ने अभी गतमास एक नवयुवक को, जिसका कान बहता था तथा बहरापन था, शंख बजाने का परामर्श दिया, जिससे दस दिनों में उचित लाभ हुआ। प्रयोग अभी चल रहा है।
( और पढ़े –जानिए पूजा के समय क्यों बजाते हैं शंख )
(२) घंटा नाद के लाभ –
अफ्रीका के निवासी घंटे को ही बजाकर जहरीले साँप द्वारा काटे हुए मनुष्यों को ठीक करने की प्रक्रिया को पता नहीं, कबसे आजतक करते चले आ रहे हैं। ऐसा पता लगा है कि मास्को सैनीटोरियम में घंटे की ध्वनि से ही तपेदिक रोग ठीक करने का सफल प्रयोग चल रहा है। सन् १९१६ में बकिंघम में एक मुकद्दमा चला था-एक तपेदिक रोगी ने गिरजाघर में बजने वाले घंटे के सम्बन्ध में यह दावा अदालत में किया था कि इसकी ध्वनिके कारण मैं बराबर स्वास्थ्यहीन होता जा रहा हूँ और मुझे काफी शारीरिक क्षति पहुँचती है। इसपर अदालतने तीन प्रमुख वैज्ञानिकों को घंटा-ध्वनि की जाँच के लिये नियुक्त किया। यह परीक्षण सात महीने किया गया और अन्त में वैज्ञानिक-बोर्डने यह घोषित किया कि घंटेकी ध्वनिसे तपेदिक रोग दूर होता है और कहा जाता है कि इससे अन्य शारीरिक कष्ट करते हैं तथा मानसिक उत्कर्ष होता है।
अभी बजा हुआ घंटा आप पानी में धो डालिये और उस पानी को उस स्त्री को पिला दीजिये, जिस स्त्री को अत्यन्त प्रसव-वेदना हो रही हो और प्रसव न होता हो, फिर देखिये-एक घंटेके अंदर ही सारी आपत्तियों को हटाकर सरलतापूर्वक प्रसव हो जाता है।
पूजा के समय घंटा नाद का रहस्य ?
जैसा कि हम जानते है – हमारे सभी धार्मिक क्रिया-कलापो का हेतु मन की उर्ध्व-गति है। हमारे पूर्वजो ने अपनी अति सूक्ष्म विश्लेषण बुध्दि से मन के उर्ध्व – गमन में सहायता करने वाली हर छोटी- बडी चीज़ का पता लगाया और उसे अपनी पूजा विधि में शामिल कर लिया । घंटा – नाद इसका एक अच्छा उदाहरण है। जब हम पूजा-आरती आदि करते है , उस समय मन को उर्ध्व-गति प्रदान करने के लिए मन की एकाग्रता अत्यंत आवश्यक होती है, मन है अति चंचल , वह सरलता से एकाग्र नही हो पाता। ऐसी स्थिति में जब घंटा – नाद किया जाता है तो उससे निकली भारी तरंगे मन की चंचलता को कम कर मन को एकाग्र होने में सहायता करती है। घंटा -नाद से उत्पन्न तरंगे मन की उथल-पुथल व अशांतता का शमन कर मन को शांत व एकाग्र करती है व मन के उर्ध्व-गमन का मार्ग प्रशस्त करती है।