नवजात शिशु जन्म के तुरन्त या कुछ देर बाद हरे रंग का चिपचिपा एवं लसेदार पदार्थ त्याग करता है। इसे जातविष्ठा या मिकोनियम (Meconium) कहते हैं। चार-पांच दिनों में इसका रंग बदलकर सामान्य हो जाता है। इस बीच उसे कभी हरा और कभी पतला मल आ सकता है। इसे अतिसार नहीं समझना चाहिए। ऊपर का या कृत्रिम दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में माता का स्तनपान करने वाले बच्चों का मल अपेक्षाकृत पतला होता है। पैदा होने के 1-2 माह तक बच्चे अक्सर दूध पीते हुए या पीने के तुरन्त बाद पतला-सा मल त्याग करते हैं, जो अतिसार नहीं है। वे दिन में 5-6 बार भी मल त्याग कर सकते हैं।
बहुत-सी माताएं इसे अतिसार समझकर अनावश्यक रूप से दवा देने के लिए उतावली हो जाती हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। जब तक शिशु देखने में सामान्य हो, सक्रिय हो, प्रसन्न हो, स्तनपान कर रहा है और उसका भार सामान्य रूप से बढ़ रहा हो, तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। आरम्भ में दो वर्ष तक बच्चे की आंतें बड़ी सुग्राही होती हैं और जरा-सी लापरवाही से गड़बड़ा जाती है। इसलिए शुरू के दो वर्ष तक अधिक सावधान रहना पड़ता हैं। संक्रमण या जीवाणु भी उन्हें बड़ी जल्दी प्रभावित करते हैं।
बच्चों में अतिसार के अनेकों कारण है, जिनसे वे इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं।
नवजात शिशु प्रारम्भ में केवल स्तनपान करता है। यदि इस समय माता अपथ्य आहार-विहार करती है, तो दूध के दूषित हो जाने के कारण पेट संबंधी रोग विशेषकर अतिसार की सम्भावना अधिक होती है।
- अजीर्ण का शिकार होकर अतिसार से प्रभावित होता है।
- सूजन के कारण भी आंतें खाए-पिए पदार्थ सहन नहीं कर पातीं तथा उनमें विक्षोभ उत्पन्न होकर रोग पैदा होता है।
- पेट में कीड़ों के कारण भी दस्त लग सकते हैं।
- विटामिन ए, जिंक तथा कैल्शियम की कमी से भी यह रोग दस्त हो सकता है।
- ग्रीष्म ऋतु में अतिसार का विकराल रूप देखने में आता है।
इस प्रकार दूषित भोजन, दूषित पेय, दूषित जल, विषाक्त भोजन, मौसम परिवर्तन एवं जीवाणु संक्रमण आदि के फलस्वरूप अतिसार हो सकता है।
शिशु में अतिसार के लक्षण क्या होते हैं ?
मल का पतला होना तथा बार-बार होना अतिसार का प्रमुख लक्षण है। शिशुओं में पतले दस्त अचानक या धीरे-धीरे किसी भी प्रकार से उत्पन्न हो सकते हैं। शुरुआत में मल का रंग प्राकृतिक होता है। उसके पश्चात उसका रंग बदल सकता है। यदि मल ठीक होते-होते एकदम से ढीला या पतला होने लगे, तो समझना चाहिए कि बच्चे की आंतों में किसी तरह का संक्रमण पहुंच गया है। ऐसा होने पर मल पतला होने के साथ-साथ उसका रंग, रूप तथा गंध बदल जाती है।
- दस्त की वजह से जलीयांश कम हो जाने से डिहाइड्रेशन के लक्षण उत्पन्न होते हैं।
- बच्चे की जीभ सूख जाती है तथा उसकी रोने की आवाज एकदम धीमी हो जाती है।
- दस्तों के साथ ही कभी-कभी उलटियां भी हो सकती हैं, जिससे दस्त जल्द ही सफेदी लिए तथा पतले हो जाते हैं।
- पित्त के जल्दी-जल्दी मल के साथ बह जाने तथा उसमें स्वाभाविक परिवर्तन न होने से मल में हरापन रहता है।
- मल में फैटी एसिड की अधिकता से वह चिकना, मात्रा में अधिक, खट्टी बदबू वाला होता है। कार्बोहाइड्रेटयुक्त या अधिक मीठाआहार या शक्कर अधिक देने पर, अधिक विदाह से गैस अधिक बनती है, जिससे मल झागदार होता है एवं पेट में अफारा-सा रहता है।
- शरीर में द्रव की कमी के कारण रक्त में अम्ल की वृद्धि हो जाती है, जिससे नाड़ी और श्वास गति तेज हो जाती है।
- तापमान बढ़ जाने या आक्सीजन की कमी से कभी मूर्छा तक आ सकती है।
- डिहाइड्रेशन के साथ-साथ ही गुर्दो की काम करने की शक्ति कम होने लगती है, जिससे शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाती है।
- प्रोटीन और हृदय की काम करने की ताकत में कमी से शरीर में सूजन आ जाती है।
अतिसार के साथ निम्न लक्षणों में कोई एक भी या अधिक हो तो उससे गम्भीर समझना चाहिए।
- मल का एकदम पतला होना।
- मल के साथ श्लेष्मा या रक्त का होना।
- साथ में मिचली या उलटी होना।
- ज्वर का अधिक होना।
- बच्चे का एकदम सुस्त एवं निष्क्रिय हो जाना।
- आंखों का धंस जाना तथा उनके नीचे स्याह वृत्त (काले घेरे) बन जाना।
सामान्यत: साधारण अतिसार के लिए किसी तरह की दवा की आवश्यकता नहीं होती है।
अतिसार में मुख द्वारा तरल चीजें जैसे चावल का मांड, दाल का पानी, पतली लस्सी, नींबू का पानी, नारियल का पानी आदि दें। ऊपर का दूध देना हो तो उसे उबालने, बनाने और पिलाने वाले बर्तनों की अच्छी तरह सफाई करनी चाहिए। बच्चों को पके केले, सेब, सन्तरा, मोसम्बी आदि फलों का रस देते रहें। ओ.आर.एस. का घोल अथवा नमक-चीनी का घर पर तैयार किया हुआ घोल बार-बार पिलाएं। डिहाइड्रेशन की स्थिति में सिरा (Intravenous) द्वारा तरल पदार्थ दें।
1). अजवाइन – अजवाइन का एक चम्मच रस रोजाना दो बार देने से दस्त में काफी लाभ होता है।
2). जायफल – जायफल और सोंठ को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर या उसका चूर्ण शहद के साथ देना चाहिए, लाभ होता है।
3). अतीस – मीठे अतीस को पानी के साथ घिसकर या उसका चूर्ण शहद के साथ देना चाहिए।
4). तुलसी – तुलसी की मंजरी की चटनी बनाकर आधे चम्मच की मात्रा में बराबर शक्कर मिलाकर दें।
5). अनार – अनार की कली का रस 1/2 रत्ती, लौंग का चूर्ण तथा 1/2 रत्ती सोंठ का चूर्ण मिलाकर शहद मिलाकर पिलाएं। इसे दिन में 2-3 बार देने से अतिसार में लाभ होता है।
(माप :- 1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
आयुर्वेदिक दवा (Ayurvedic Medicin)
आयुर्वेदिक औषधियों में बालचातुर्भद्र चूर्ण बच्चों के अतिसार में अत्यंत लाभकारी है। इसके अतिरिक्त सर्वांगसुन्दर रस, कुटजघन वटी, जातिफलादि वटी, रामबाण रस, बालार्क रस, कपूर रस, अरविन्दासव, बालसंजीवन रस, आनन्द भैरव रस, धातक्यादि चूर्ण, बाल कुटजावलेह आदि औषधियां बालातिसार में लाभकारी हैं, जिन्हें आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाहानुसार प्रयोग किया जाना चाहिए।
अतिसार में चिकित्सा से अधिक सुरक्षात्मक उपायों पर ज्यादा जोर देना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)