Last Updated on July 22, 2019 by admin
शिवरात्रि का महत्व :
शिवरात्रि का अर्थ वह रात्रि है, जिसका शिवतत्त्व के साथ घनिष्ठ संबंध है । भगवान् शिवजी की अतिप्रिय रात्रि को ‘शिवरात्रि’ कहा गया है। शिवार्चन एवं जागरण ही इस व्रत की विशेषता है। इसमें रात्रि भर जागरण एवं शिवाभिषेक का विधान है। श्री पार्वती जी की जिज्ञासा पर भगवान् शिवजी ने बताया कि फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है। जो उस दिन उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्चन तथा पुष्पादि समर्पण से उतना नहीं प्रसन्न होता, जितना कि व्रतोपवास से। ‘ईशान संहिता’ में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान् श्री शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है, अत: उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। अतः इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्टतम पदार्थ की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का रहस्य है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगलसूचक है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वे हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सरादि विकारों से मुक्त करके परम सुख, शांति, ऐश्वर्यादि प्रदान करते हैं। चार प्रहर में चार बार पूजा का विधान है। इसमें शिवजी को पंचामृत से स्नान कराकर चंदन, पुष्प, अक्षत, वस्त्रादि से श्रृंगार कर आरती करनी चाहिए। रात्रि भर जागरण तथा पंचाक्षरमंत्र का जप करना चाहिए।
रुद्राभिषेक, रुद्राष्टाध्यायी तथा रुद्रपाठ का भी विधान है। पद्म कल्प के प्रारंभ में भगवान् ब्रह्मा, जब अंडज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज एवं देवताओं आदि की सृष्टि कर चुके, एक दिन स्वेच्छा से घूमते हुए क्षीरसागर पहुँचे। उन्होंने देखा, भगवान् नारायण शुभ्र, श्वेतसहस्रफणमौलि शेष की शय्या पर शांत अधलेटे हुए हैं। भूदेवी, श्रीदेवी, श्रीमहालक्ष्मीजी शेषशायी के चरणों को अपने अंक में लिये चरणसेवा कर रही हैं। गरुड़, नंद, सुनंद, पार्षद, गंधर्व, किन्नर आदि विनम्रता से हाथ जोड़े खड़े हैं। यह देख ब्रह्माजी को आश्चर्य हुआ। ब्रह्माजी को गर्व हो गया था कि मैं एकमात्र सृष्टि का मूल कारण हूँ और मैं ही सबका स्वामी, नियंता तथा पितामह हूँ। फिर यह कौन वैभवमंडित निश्चिंत सोया हुआ है। श्री नारायण को अविचल शयन करते हुए देखकर उन्हें क्रोध आ गया। ब्रह्माजी ने समीप जाकर कहा-” तुम कौन हो? उठो! देखो, मैं तुम्हारा स्वामी, पिता आया हूँ।” शेषशायी ने केवल दृष्टि उठाई और मंद-मंद मुसकान से बोले-“वत्स! तुम्हारा मंगल हो। आओ, इस आसन पर बैठो।” ब्रह्माजी को अधिक क्रोध हो आया, झल्लाकर बोले-“मैं तुम्हारा रक्षक, जगत् का पितामह हूँ। तुमको मेरा सम्मान करना चाहिए।” इस पर भगवान् नारायण ने कहा _*जगत् मुझमें स्थित है, फिर तुम उसे अपना क्यों कहते हो? तुम मेरे नाभि कमल से पैदा हुए हो, अतः मेरे पुत्र हो।” मैं स्रष्टा, मैं स्वामी यह विवाद दोनों में होने लगा। श्री ब्रह्माजी ने पाशुपत एवं श्री विष्णुजी ने माहेश्वर अस्त्र उठा लिया। दिशाएँ अस्त्रों के तेज से जलने लगीं, सृष्टि में प्रलय की आशंका हो गई थी। देवगण भागते हुए कैलास पर्वत पर भगवान् विश्वनाथ के पास पहुँचे। अंतर्यामी भगवान् शिवजी सब समझ गए। देवताओं द्वारा स्तुति करने पर वे बोले-“मैं ब्रह्मा-विष्णु के युद्ध को जानता हूँ। मैं उसे शांत करूंगा।” ऐसा कहकर भगवान् शंकर सहसा दोनों के मध्य में अनादि अनंत-ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। माहेश्वर, पाशुपत दोनों अस्त्र शांत होकर उसी ज्योतिर्लिंग में लीन हो गए। यह लिंग निष्कल ब्रह्म, निराकार ब्रह्म का प्रतीक है। श्री विष्णु एवं ब्रह्माजी ने उस लिंग (स्तंभ) की पूजा-अर्चना की। यह लिंग फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्रकट हुआ, तभी से आज तक लिंगपूजा निरंतर चली आ रही है। श्री विष्णु एवं श्री ब्रह्माजी ने कहा-“महाराज! जब हम दोनों लिंग के आदि-अंत का पता न लगा सके तो आगे मानव आपकी पूजा कैसे करेगा?” इस पर कृपालु भगवान् शिव द्वादश ज्योतिर्लिंग में विभक्त हो गए। महाशिवरात्रि का यही रहस्य है।
(ईशान संहिता)
महाशिवरात्रि की कथा :
वाराणसी के वन में एक भील रहता था। उसका नाम ‘गुरुद्रु’ था। उसका कुटुंब बड़ा था अतः प्रतिदिन वन में जाकर मृगों को मारता और वहीं रहकर नाना प्रकार की चोरियाँ करता था। शुभकारक महाशिवरात्रि के दिन उस भील के माता-पिता, पत्नी एवं बच्चों ने भूख से पीड़ित होकर भोजन की याचना की। वह तुरंत धनुष लेकर मृगों के शिकार के लिए सारे वन में घूमने लगा। दैवयोग से उस दिन कुछ भी शिकार नहीं मिला और सूर्यास्त हो गया। वह सोचने लगा-‘अब मैं क्या करूं? कहाँ जाऊँ? माता-पिता, पत्नी, बच्चों की क्या दशा होगी? कुछ लेकर ही घर जाना चाहिए,’ वह सोचकर वह व्याध एक जलाशय के समीप पहुँचा कि रात्रि में कोई-न-कोई जीव यहाँ पानी पीने अवश्य आएगा—उसी को मारकर घर ले जाऊँगा। यह व्याध किनारे पर स्थित बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। पीने के लिए कमर में बँधी तुंबी में जल भरकर बैठ गया। भूख-प्यास से व्याकुल वह शिकारी शिकार की चिंता में बैठा रहा। रात्रि के प्रथम प्रहर में एक प्यासी हिरनी वहाँ आई। उसको देखकर व्याध को अति हर्ष हुआ, तुरंत ही उसका वध करने के लिए उसने अपने धनुष पर एक बाण का संधान किया। ऐसा करते हुए उसके हाथ के | धक्के से थोड़ा जल एवं बिल्वपत्र टूटकर नीचे गिर पड़े। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग विराजमान था। वह जल एवं बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिर पड़े। उस जल एवं बिल्वपत्र से प्रथम प्रहर की शिवपूजा संपन्न हो गई। खड़खड़ाहट से हिरनी ने भय से ऊपर की ओर देखा। व्याध को देखते ही मृत्युभय से व्याकुल हो, वह बोली-“व्याध! तुम क्या चाहते हो, सच-सच बताओ।” व्याध ने कहा- मेरे कुटुंब के लोग भूखे हैं, अतः तुमको मारकर उनकी भूख मिटाऊँगा।” मृगी बोली -“व्याध! मेरे मांस से तुमको, तुम्हारे कुटुंब को सुख होगा, इस अनर्थकारी शरीर के लिए इससे अधिक महान् पुण्य का कार्य भला और क्या हो सकता है? परंतु इस समय मेरे सब बच्चे आश्रम में बाट जोह रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को अथवा स्वामी को सौंपकर लौट आऊँगी।” मृगी के शपथ खाने पर व्याध ने उसे जाने दिया। दूसरे प्रहर में उस हिरणी की बहन उसी की राह देखती हुई, ढूँढ़ती हुई, जल पीने वहाँ आई। व्याध ने उसे देखकर बाण को तरकश से खींचा। ऐसा करते समय पुनः पहले की भाँति जल एवं बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिर पड़े। इस प्रकार द्वितीय प्रहर की पूजा संपन्न हो गई। मृगी ने पूछा-“व्याध ! यह क्या करते हो?” व्याध ने पूर्ववत् उत्तर दिया-“मैं अपने भूखे कुटुंब को तृप्त करने के लिए तुझे मारूंगा।” मृगी ने कहा -” मेरे छोटे-छोटे बच्चे घर में हैं। अतः मैं उन्हें अपने स्वामी को सौंपकर तुम्हारे पास लौट आऊँगी। मैं वचन देती हूँ।” व्याध ने उसे भी जाने दिया। व्याध का दूसरा प्रहर भी जागते-जागते बीत गया। इतने में ही एक बड़ा हृष्ट-पुष्ट हिरण मृगी को ढूँढ़ता हुआ आया। व्याध के बाण चढ़ाने पर पुनः कुछ जल एवं बिल्वपत्र लिंग पर पड़े। अब तीसरे प्रहर की पूजा संपन्न हो गई।
मृग ने आवाज से चौंककर व्याध की ओर देखा और पूछा-“क्या करते हो?” व्याध ने कहा
” तुम्हारा वध करूंगा,” हिरण ने कहा- मेरे बच्चे भूखे हैं। मैं बच्चों को उनकी माता को सौंपकर तथा उनको धैर्य बँधाकर शीघ्र ही लौट आऊँगा।” व्याध बोला-“जो-जो यहाँ आए, वे सब तुम्हारी ही तरह बातें तथा प्रतिज्ञा कर चले गए, परंतु अभी तक नहीं लौटे।” शपथ खाने पर उसे भी छोड़ दिया। मृग-मृगी अपने स्थान पर मिले। तीनों प्रतिज्ञाबद्ध थे, अतः तीनों जाने के लिए हठ करने लगे। अतः उन्होंने बच्चों को अपने पड़ोसियों को सौंप दिया और तीनों चल दिए। उन्हें जाते देख बने भी भागकर पीछे-पीछे चले आए। उन सबको एक साथ आया देख व्याध को अति हर्ष हुआ। उसने तरकश से बाण खींचा, जिससे पुनः जल एवं बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिर पड़े। इस प्रकार, चौथे प्रहर की पूजा भी संपन्न हो गई। रात्रि भर शिकार की चिंता में व्याध निर्जल, भोजन रहित जागरण करता रहा। शिवजी का रंचमात्र भी चिंतन नहीं किया। चारों प्रहर की पूजा अनजाने में स्वत: ही हो गई। उस दिन महाशिवरात्रि थी, जिसके प्रभाव से व्याध के संपूर्ण पाप तत्काल भस्म हो गए। इतने में ही मृग एवं मृगियों ने कहा-“व्याध शिरोमणे! शीघ्र कृपा कर हमारे शरीरों को सार्थक करो।” व्याध को बड़ा विस्मय हुआ। ये मृग ज्ञानहीन पशु होने पर भी धन्य हैं, परोपकारी हैं और प्रतिज्ञापालक हैं, मैं मनुष्य होकर भी जीवन भर हिंसा, हत्या एवं पाप कर अपने कुटुंब का पालन करता रहा। मैंने जीव-हत्या कर उदरपूर्ति की, अतः मेरे जीवन को धिक्कार हैं! धिक्कार हैं! व्याध ने बाण को रोक लिया और कहा-” श्रेष्ठ मृगो ! तुम सब जाओ। तुम्हारा जीवन धन्य है।” व्याध के ऐसा कहने पर तुरंत भगवान् शंकर लिंग से प्रकट हो गए और उसके शरीर को स्पर्श कर प्रेम से कहा-“वर माँगो।” ” मैंने सबकुछ पा लिया, ” यह कहते हुए व्याध उनके चरणों में गिर पड़ा। श्री शिवजी ने प्रसन्न होकर उसका ‘गुह’ नाम रख दिया और वरदान दिया कि भगवान् राम एक दिन अवश्य ही तुम्हारे घर पधारेंगे एवं तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम मोक्ष प्राप्त करोगे। वहीं व्याध श्रृंगवेरपुर में निषादराज गुह बना, जिसने भगवान् राम का आतिथ्य किया। वे सब मृग भगवान् शंकर का दर्शन कर मृग योनि से मुक्त हो गए, शाप-मुक्त हो विमान से दिव्य धाम को चले गए। तब से अर्बुद पर्वत पर भगवान् शिव ‘व्याधेश्वर’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। दर्शन-पूजन करने पर वे तत्काल मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। यह महाशिवरात्रि व्रत व्रतराज के नाम से विख्यात है। यह शिवरात्रि यमराज के शासन को मिटानेवाली है एवं शिवलोक को देनेवाली है। शास्त्रोक्त विधि से, जो इसका जागरण सहित उपवास करेंगे, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। शिवरात्रि के समान पाप एवं भय को मिटानेवाला दूसरा व्रत नहीं है। इसके करने मात्र से सब पापों का क्षय हो जाता है। (शिव पुराण)
विधि अनुसार करें शिव पूजन / शिव पूजन की विधि :
शिवरात्रि फाल्गुन माह की चर्तुदशी के दिन आती है, यानी वर्ष का अंतिम मास फाल्गुन एवं अंतिम अँधेरी रात्रि चतुर्दशी। अव यह स्वयं जानने की बात है कि शिव संपूर्ण जगत् के काल स्वरूप हैं अर्थात् मृत्यु के देवता हैं। उनके द्वारा प्रलय होने पर ही संपूर्ण सृष्टि पुनः स्थापित होती है। इसी कारण उनका पर्व भी वर्ष के अंतिम मास व अंधकार की अंतिम रात को मनाया जाता है, यही शिव-लीला है। पूजन सामग्री-शुद्ध जल, गंगा जल, केसर, इत्र, चंदन, अक्षत (विना टूटे हुए चावल), पुष्पहार, बिल्वपत्र, दूब, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, चीनी मिले हुए) मौली (इसे कलावा व रंगीन धागा भी कहा जाता है, जिसे प्राय: पंडित आपके हाथ पर बाँधते हैं), यज्ञोपवीत, फल, मिठाई, अगरबत्ती, कपूर, कोरे पान (डंठल सहित), सुपारी, लौंग, इलायची, दक्षिणा, थाली, जलपात्र तथा अन्य पूजन सामग्री।
प्रात:काल निद्रा त्याग दें। अपना नित्य कर्म करके शिव मंदिर में पहुँचे। वहाँ विधिपूर्वक शिव पूजन करके नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि-“हे नीलकंठ! मैं चाहता हूँ कि आज शिवरात्रि का उपवास धारण करूं। उसमें मेरी अभिलाषा को आप अतीव कृपा करके निर्विघ्न पूर्ण करो। काम, क्रोधादि, शत्रु मेरा कुछ बिगाड़ न कर सकें। मेरी भलीभाँति आप रक्षा करें।” यह बोलकर शिवजी के सामने प्रतिज्ञा संकल्प करें, उसके बाद रात होने पर सभी पूजन सामग्री अपने पास इकट्ठा करके उस शिव मंदिर में पहुँचे, जहाँ शिवलिंग शास्त्र सिद्ध हों, जिनकी प्राण-प्रतिष्ठा शास्त्रों द्वारा हो चुकी हो। वहाँ पहुँचकर शुद्ध स्थान पर सामग्री रखकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करके उत्तम आसन पर बैठकर शिव पूजन आरंभ करें। शिव भक्त रात्रि के चारों प्रहर में चार शिव पार्थिवलिंगों की रचना करके विधिपूर्वक वेद-मंत्रों के द्वारा पाँच वस्तुओं से शिव पूजन करें। एक सौ आठ शिवमंत्र बोलकर जलधारा चढ़ाएँ। जलधारा चढ़ाने से पहले शिव पर चढ़ाई वस्तुओं को नीचे उतारें।
उसके बाद गुरु मंत्र अथवा शिवनाम मंत्र बोलकर काले तिलों से भगवान् शंकर को पूजकर भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम एवं ईशान इन आठ नामों को बोलते हुए कमल पुष्प तथा कनेर के फूल शिव पर चढ़ाएँ।
उसके बाद धूप, दीप, पके हुए उत्तम अन्न का नैवेद्य आदि निवेदन करें, फिर नमस्कार करें। ‘ॐ नमः शिवाय’ इस पंचाक्षर मंत्र का भी जप करें। जप हो जाने पर धेनुमुद्रा दिखाकर निर्मल जल द्वारा शिव तर्पण करें।
यह पूजन रात्रि के पहले प्रहर का हुआ। इसी प्रकार दूसरे प्रहर में भी उन्हीं वस्तुओं द्वारा शिव-पूजन करके दो सौ सोलह शिव मंत्रों द्वारा शिव पर जलधारा चढ़ाएँ। इसी तरह हर एक वस्तु को चढ़ाते समय पहले की अपेक्षा हर एक मंत्र दो बार बोलें। तिल, जौ, चावल, बिल्वपत्र, अर्थ्य, बिजौरा आदि वस्तुओं से पूजन करें। खीर का नैवेद्य चढ़ाकर प्रणाम करें। उसके बाद पहले प्रहर में जपे हुए मंत्र से दूना जप करें। ब्राह्मण भोजन व संकल्प करके पूजन फल शिवार्पण करें। फिर विसर्जन करें। तीसरे प्रहर का पूजन फिर प्रथमवत् हो ।
विशेषतः इसमें जौ के स्थान पर गेहूँ हो और पुष्प के स्थान पर आक के फूल पूजन में लाएँ। अनेक प्रकार के धूप, दीप, नैवेद्य पुए का हो, शाक भी साफ हो, फिर कपूर की आरती करें। अर्घ्य में अनार चढ़ाएँ, फिर पहले की अपेक्षा दुगुना जाप करें, दक्षिणा सहित यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन का संकल्प करें। प्रहर समाप्त होने पर पूजन फल शिवार्पण करके विसर्जन करें। उसके बाद चौथा प्रहर लगने पर शिव आह्वान करके उड़द, कंगनी, मूंग, सातों धातु अथवा शंख, फूल एवं बिल्वपत्रादि से मंत्रों को बोलकर विधिपूर्वक पूजन करें।
उसके बाद उड़द के बनाए गए पदार्थ और भी स्वादिष्ट मिष्टान्न विविध प्रकार के शिव को चढ़ाएँ। सुंदर पके हुए केले के फल और ऋतु के अनुकूल अन्न, फल प्रेम के साथ शिव के आगे समर्पित करें। फिर जितना जप पहले किया हो, इससे दुगुना जप करें। यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन का संकल्प करें। इसी प्रकार सूर्य के उदय होने तक उत्सव करते हुए प्रेम में मग्न रहें। उसके बाद स्नान करके शिव पूजन करें। अनेक पूजन सामग्रियों से अभिषेक करें। उसके बाद रात्रि समय में जितने ब्राह्मणों का संकल्प किया हो, उतने ब्राह्मण तथा यतिजनों को बुलाकर भक्तिपूर्वक उन्हें भोजन कराएँ, फिर शिव शंकर को नमस्कार करके हाथ में पुष्प लेकर नम्रता के साथ प्रार्थना करें-हे दयानिधान ! मुझे आप अपनी भक्ति का वरदान दीजिए कि सर्वदा मैं आपकी भक्ति में तत्पर रहूँ। जो कुछ भी जाने-अनजाने, योग्य-अयोग्य मैंने आपका व्रत पूजन किया है, उसे आप कृपा करके अंगीकार करें। हे शंभो ! जहाँ पर भी मेरा जन्म हो, वहाँ सभी आपके पूर्ण भक्त हों, उनमें आपका वास हो। यह कहकर शिवजी पर पुष्पांजलि समर्पित करें। फिर ब्राह्मणों द्वारा तिलक कराएँ उनका आशीर्वाद पाकर भगवान् शंकर का विसर्जन करें। इस व्रत के करनेवाले को शिव सान्निध्य प्राप्त होता है।
शिव पार्थिव भी हैं और साकार भी। पार्थिव में शिवलिंग रूप में पूजित होते हैं और साकार के रूप में मूर्ति, चित्र, यंत्र स्वरूप में पूजित होते हैं। शिव के साधक को न तो अपमृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न ही शोक का, क्योंकि जहाँ शिव हैं, वहाँ यमराज भी नहीं आ सकते। शिवतत्त्व तो एक रक्षा चक्र है, शक्ति चक्र है, ब्रह्मा चक्र है, जो साधक को हर प्रकार से सुरक्षित कर देता हैं।
शिव साधना व पूजन के नियम :
शिव की साधना के नियम अत्यंत सरल हैं, साधक भय-रहित होकर, उन्हें अपना इष्ट मानते हुए पारदेश्वर शिवलिंग की पूजा, अर्चना, ध्यान करें।
1. शिव के पूजन में साधक ललाट पर लाल चंदन का त्रिपुंडू और बाँहों पर भस्म अवश्य लगाएँ।
2. शिव साधना में संस्कारित, शोधित रुद्राक्ष माला से ही मंत्र जप करना आवश्यक है।
3. शिव पूजा में श्वेत पुष्प, धतूरे का पुष्प तथा आँधा अर्थात् उल्टा (तीन पत्तियों से युक्त) बिल्वपत्र और दुग्ध मिश्रित जलधारा अर्पित करनी चाहिए।
4. शिव की स्तुतियाँ अभिषेक तो हजारों हैं, लेकिन पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप अवश्य ही करना चाहिए।
शिव पूजन की मुख्य बातें :
किसी भी देव पूजन में मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध तो होना ही पड़ता है, यदि संभव हो और कठिनाई न हो तो पूजा करनेवाले को सिले हुए वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। आसन शुद्ध होना चाहिए। पूजा के समय पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए। संकल्प किया जाना चाहिए। शिवपूजन के लिए निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए
1. भस्म, त्रिपुंड्र और रुद्राक्ष माला, ये शिव पूजन के लिए विशेष सामग्री हैं, जो पूजक के शरीर पर होनी चाहिए।
2. भगवान् शंकर की पूजा में तिल का प्रयोग नहीं होना चाहिए और चंपा का पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए।
3. शिव की पूजा में दूर्वा, तुलसीदल चढ़ाया जाता है, इसमें संदेह नहीं किया जाना चाहिए। अवश्य ही तुलसी की मंजरियों से पूजा अधिक श्रेष्ठ मानी जाती है।
4. शंकरजी के लिए विशेष पत्र और पुष्प में बिल्वपत्र-प्रधान है, किंतु बिल्वपत्र में चक्र और बज्र नहीं होना चाहिए। बिल्वपत्र में कीड़ों के द्वारा बनाया हुआ, जो सफेद चिह्न होता है, उसे चक्र कहते हैं और बिल्वपत्र के डंठल की ओर जो थोड़ा सा मोटा भाग होता है, वह बज्र कहलाता है।
5. आक का फूल और धतूरे का फूल भी शिव पूजा की विशेष सामग्री है, किंतु सर्वश्रेष्ठ पुष्प हैं नील कमल का। इसके अभाव में कोई भी कमल का फूल होना चाहिए।
6. कुमुदिनी पुष्प अथवा कमलिनी पुष्प का प्रयोग भी शिव पूजा में होता है।
7. भगवान् शंकर के पूजन के समय करताल नहीं बजाया जाता।
8. शिव की परिक्रमा संपूर्ण नहीं की जाती। जिधर से चढ़ा हुआ जल निकलता है, उस नाली का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। वहाँ से प्रदक्षिणा उलटी की जाती है।
9. शिवजी की पूजा में कुटज, नागकेसर, बंधूक, मालती, चंपा, चमेली, कुंद, जूही, मौलसिरी, रक्तजवा, मल्लिका, केतकी, केवड़ा आदि पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए।
10. दो शंख, दो चक्रशिला (गोमती चक्र), दो शिवलिंग, दो गणेश मूर्ति, दो सूर्य प्रतिमा और तीन दुर्गा जी की प्रतिमाओं का पूजन एक बार में नहीं करना चाहिए। इससे दु:ख की प्राप्ति होती
11. भगवान् शंकर की आधी बार, विष्णु की चार बार, दुर्गाजी की एक बार, सूर्य की सात बार तथा गणेशजी की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए।
12. शिवजी को भाँग का भोग अवश्य लगाना चाहिए। लोगों की यह धारणा कि शिवजी को लगाया गया भोग भक्षण नहीं करना चाहिए, गलत है। केवल शिवलिंग को स्पर्श कराया गया भोग नहीं लेना चाहिए।
शिव पूजा साधना :
साधक शिव साधना घर पर भी कर सकता है और मंदिर में त्रयोदशी को भी, जो प्रदोष कहलाती है, यह शिव प्रदोष व्रत है तथा प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी ‘मास शिवरात्रि’ कही जाती है। इन दिनों में शिव साधना प्रारंभ की जा सकती हैं, सोमवार भी शिव का दिन है।
प्रातः स्नान कर अपने सामने दो ताम्र पात्र स्थापित करें। एक में शिव यंत्र तथा दूसरे में ‘स्वर्णग्रास युक्त पारदेश्वर शिवलिंग’ स्थापित करें। शिवलिंगों में भी पारदेश्वर शिवलिंग सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जो कि पूर्ण सिद्ध संस्कारित हो।
प्रातः शुद्ध वस्त्र धारण कर, सर्वप्रथम स्थान शुद्धि, आसन शुद्धि कर शिव का ध्यान करें, उसके पश्चात् आगे बताए गए शास्त्रोक्त पूजन विधान के अनुसार पूजन करें।
भगवान् शिव को करें प्रसन्न ? :
‘सत्यं शिवं सुंदरम्’ अर्थात् सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है। शिव से बड़ा कुछ भी दूजा नहीं है। सब शिव से ही उत्पन्न हैं और शिव में ही समाहित हैं। हर कल्याण शिव से ही सभंव हैं, शिव से अछूता कुछ भी नहीं है। शिव ही कर्ता हैं और शिव ही भर्ता हैं। भगवान् शिव की आराधना करके प्रत्येक मनोरथ पूरे किए जा सकते हैं। शिव की पूजा दो रूपों में की जाती हैएक साकार व दूसरा निराकार। शिव भोले भंडारी हैं, जो चाहे सो माँग लो उनसे। शिव वे भगवान् हैं, जिनकी पूजा एक नहीं, अनेक मनोरथ पूर्ण करती है।
भगवान् शिव को प्रसन्न करने और इच्छापूर्ति के लिए शिव पुराण की रुद्र संहिता के 14वें अध्याय में अन्न, फूल और जलधाराओं के महत्व को समझाया गया है।
• जो व्यक्ति तुलसीदल से भगवान् शिव शंकर की पूजा करते हैं, उन्हें भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। सफेद अपामार्ग और श्वेत कमल के एक लाख फूलों से पूजा करने पर भी भोग और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग सुलभ होते हैं।
• जो पुत्र की इच्छा रखता है, वह धतूरे के एक लाख फूलों से पूजा करे। यदि लाल डंठल वाले धतूरे से पूजन हो तो अति शुभ फलदायक होता है।
• जो व्यक्ति चमेली से शिवजी की पूजा करते हैं, उन्हें वाहन सुख की प्राप्ति होती है।
• जिन व्यक्तियों को पत्नी सुख प्राप्ति में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, उन्हें भगवान् शंकर का बेला के फूलों से पूजन करना चाहिए। भगवान् शिव की कृपा से शुभ लक्षणा पत्नी की प्राप्ति होती है।
• जूही के फूलों से शिव शंकर का पूजन किया जाए, तो अन्न की कभी कमी नहीं रहती।
• हरसिंगार के फूलों से जो व्यक्ति शिव पूजन करे, उसको सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
• जो व्यक्ति मूंग से पूजा करते हैं, उन्हें भगवान शंकर सुख प्रदान करते हैं।
• जो प्रियंगु (कॅगनी) द्वारा सर्व आराध्य परमात्मा भगवान् शिव शंकर का पूजन करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
• तिलों के द्वारा शिवजी को एक लाख आहुतियाँ दिए जाने से बड़े-बड़े पापों का नाश होता हैं।
• गेंहू से बने पकवान से भगवान् शंकर की पूजा उत्तम मानी गई है। इससे वंश की वृद्धि होती है।
• शांति के लिए जलधारा शुभकारक कही गई है। शत रुद्रिय मंत्र से, रुद्री के 11 पाठों से, रुद्र मंत्रों के जप से, पुरुषसूक्त से, 6 ऋचाओं वाले रुद्र सूक्त से, महामृत्युंजय मंत्र से, गायत्री मंत्र से और शिव के शास्त्रोक्त नामों के आदि में प्रणव और अंत में नाम पद जोडकर बने मंत्रों के दयारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिए।
• जब व्यक्ति का दुःख बढ़ जाए, घर में कलह रहने लगे, उस समय व्यक्ति को दूध की धारा शिवलिंग पर निरंतर चढ़ानी चाहिए।
• शिवलिंग पर सहस्रनाम मंत्रों के साथ घी की धारा चढ़ाने से वंश की वृद्धि होती है।
• सुगंधित तेल की धार शिवलिंग पर चढ़ाने से भोगों की वृद्धि होती है और शहद (मधु) से पूजा करने पर राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है।
• शिवलिंग पर ईख के रस की धार चढ़ाई जाए, तो भी संपूर्ण आनंद की प्राप्ति होती है।
• गंगाजल की धारा शिवलिंग पर चढ़ाना भोग-मोक्ष दोनों फलों को देनेवाला कहा गया है। और जल की धारा भगवान् शिव शंकर को सर्वप्रिय है। जो भी जल आदि धाराएँ हैं, वे महामृत्युंजय मंत्र से चढ़ाई जानी चाहिए।
भगवान् शिव की पूजा करते समय निम्न बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना बहुत जरूरी है, अन्यथा पुण्य की जगह पाप लगता है और मनोरथ भी पूर्ण सिद्ध नहीं होते व पूजा करनेवाले व्यक्ति को दोष लगता है।
क्या करें, जो दोष न लगे :
• बासी पदार्थ, जैसे-जल, फूल, बेलपत्र, भाँग, धतूरा आदि को भोलेनाथ पर न चढ़ाएँ।
• किसी भी पुष्प को चढ़ाते समय यह विशेष रूप से ध्यान रखें कि यह सूखा न हो, खंडित न हो व गंदे स्थान पर उगा हुआ न हो।
• शंकर भगवान् पर कभी भी हल्दी, कुमकुम व सिंदूर का तिलक न लगाएँ।
• भगवान् शिव की पूजा माता पार्वती के बिना न करें।
क्या करें, जो पुण्य लगे :
• शिवजी की पूजा में गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य का प्रयोग जरूर करें।
• गंगाजल व तुलसी पत्र भी भगवान् पर अवश्य चढ़ाएँ।
• भोलेनाथ को ताजा चंदन घोटकर उससे तिलक लगाएँ।
• भोलेनाथ का अभिषेक करते समय उन्हें गंगाजल, कच्चा दूध, दही, शहद, जल से स्नान कराएँ।
• जितना हो उतना “ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें।
• शिव की पूजा माता पार्वती, उनके दोनों पुत्र–गणेश, कार्तिकेय व वाहन नंदी के साथ करने से वह अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। शिव परिवार इन सबके मिलने से ही पूर्ण होता है।
भगवान् शिव प्रायः प्रत्येक मनोरथ को सिद्ध करनेवाले देवता हैं। यों तो ‘नमः शिवाय’ मंत्र के जाप से ही सारे विघ्न दूर होकर सुख, सफलता, शांति मिल जाती है, परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ विशेष मंत्र व पूजा लाभकारी होती है, जिनकी जानकारी निम्नलिखित है
घर की सुख समृद्धि के लिए उपाय :
धन प्राप्ति व दरिद्रता दूर करने के लिए-
इस कार्य की सिद्धि सफलता हेतु भगवान् शिव पर कच्चे दूध में काले तिल मिलाकर चढ़ाएँ और ‘इमा रुद्राय‘
मंत्र का जाप करें। 11 बार
‘ॐ हौ जूं सः पालय पालय सः जू हौ‘
का मंत्र जपे व साथ ही 11 कमलगट्टे चढ़ाएँ।
बाधा दूर करने के लिए –
किसी भी तरह की विघ्न-बाधा दूर करने के लिए गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान् शिव को स्नान कराएँ व सवा लाख बार निम्न मंत्र का जाप करें।
‘ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
व्यापार या नौकरी में उन्नति व लाभ प्राप्ति हेतु-
अगर व्यापार या नौकरी में आपकी पूरी मेहनत के बावजूद सफलता प्राप्त नहीं हो रही हो, बल्कि लाभ के स्थान पर हानि ही मिल रही हो तो गाय के शुद्ध देसी घी से भगवान् शिव को स्नान कराएँ और गाय के दूध में शहद मिलाकर शिवजी को भोग लगाएँ और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।
उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु-
उत्तम, स्वस्थ, दीर्घायु, बुद्धिमान संतान की प्राप्ति हेतु पीपल की लकड़ी से भगवान् शिव की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए हवन करें व निम्न मंत्र का जाप करें
‘परिणो रुद्रस्य‘
सौंदर्य व वैभव प्राप्ति हेतु-
अगर सौंदर्य व वैभव प्राप्त करना चाहते हैं तो भगवान् भोलेनाथ को 11 बार जल व कच्चे दूध को मिलाकर स्नान कराएँ। गुलाब के 11 फूल चढ़ाएँ, चंदन का तिलक लगाएँ व
‘ॐ नमो भगवते रुद्राय‘
मंत्र का जाप करें। इस विधि व मंत्र के साथ भगवान् शिव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्तित्व की आभा बढ़ती है व रूप, गुण, सौंदर्य की प्राप्ति होती हैं।
रोग व कष्ट निवारण हेतु-
मृत्युतुल्य रोगकारक कष्टों को दूर करने के लिए व रोगों से उत्पन्न शारीरिक कष्टों के निवारण हेतु महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से आशा से ज्यादा कष्टों का निवारण होता है। वैसे तो सभी दिन जाप करने से लाभ मिलता है, परंतु अगर महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर इस मंत्र का जाप किया जाए तो उसके परिणाम निराले व अत्यंत लाभकारी होते हैं। चूंकि ये एक पूर्ण सिद्ध मंत्र हैं, अतः इसका प्रभाव भी अचूक होता है। इस मंत्र को भोजपत्र पर लिखकर उसे धारण करने से भी बहुत लाभ होता है। ये मंत्र है
‘ॐ हौं जूं सः, ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योरर्मुक्षीय मामृतात। स्वः भुवः भूः ॐ।‘
• इसके साथ ही अगर शुक्र ग्रह दोषपूर्ण हो तो माता पार्वती व भोलेनाथ की पूजा एक साथ करें व
‘श्री गौरी शंकराम्याम् नम:‘
मंत्र का जाप करें।
• शनिदेव अगर दोषपूर्ण हों और उन्हें आप प्रसन्न करना चाहते हैं तो भगवान् शिव को जल में काले तिल मिलाकर स्नान कराएँ, उनको वस्त्र पहनाएँ व शिव सहस्रनाम का जाप करें। शनिदेव की प्रसन्नता प्राप्त होगी।
• राहु-केतु अगर दोषपूर्ण हैं तो कच्चे कोयले को काले वस्त्र में लपेटकर बहते जल में प्रवाहित करें व भगवान् शिव की पूजा करें।
इससे सभी ग्रह तो शांत होते ही हैं, साथ ही भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद भी बना रहता है। इसके साथ-साथ भगवान् शिव की प्रसन्नता उन सभी को मिलती है, जो कि सदैव
• भगवान् गणेश व माता पार्वती का ध्यान करते हैं।
• गाय की सेवा करते हैं। बिजार को लोई खिलाते हैं।
• कोढ़ियों व अपाहिजों की सेवा करते हैं। उनको भोजन कराते हैं।
• चंद्रमा की पूजा करते हैं, उन्हें मीठे जल से अर्घ्य देते हैं।
• भगवान् राम, हनुमान, भैरवजी की पूजा सच्चे मन से करते हैं।