Last Updated on September 29, 2019 by admin
श्वास कुठार रस क्या है ? : Shwas Kuthar Ras in Hindi
श्वास कुठार रस टैबलेट या पाउडर के रूप में एक आयुर्वेदिक दवा है। इसका उपयोग अस्थमा, खाँसी,श्वास, मन्दाग्नि ,डिस्पेनिया, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस आदि के उपचार में किया जाता है।
श्वास कुठार रस के घटक द्रव्य : Shwas Kuthar Ras Ingredients in Hindi
✦ शुद्ध पारद – 12 ग्राम
✦ शुद्ध गन्धक – 12 ग्राम
✦ शुद्ध बच्छनाभ – 12 ग्राम
✦ सोहागे का फूला 12 ग्राम
✦ मैनसिल – 12 ग्राम
✦ कालीमिर्च – 96 ग्राम
श्वास कुठार रस की निर्माण विधि :
पारद गन्धक की कज्जली करके बच्छनाभ, सोहागा और कालीमिर्च अनुक्रम से मिलावें। कालीमिर्च एक-एक डालते जायं और खरल करते जायँ। पश्चात् सोंठ, कालीमिर्च और पीपल 12-12 ग्राम का बारीक चूर्ण मिला लेवें।
कितने ही चिकित्सक इस रस को नागरबेल (पान की बेल) के पान के रस में खरल करके गोलियाँ बनाते हैं।
उपलब्धता :
यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
मात्रा और सेवन विधि :
१ से २ रत्ती (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम ), दिन में २ बार, पान, अदरक के रस और मिश्री अथवा छोटी कटेरी के साथ देवें।
श्वास कुठार रस के फायदे और उपयोग : Shwas Kuthar Ras Benefits in Hindi
☛ यह रस श्वास, कास(खाँसी), मन्दाग्नि और वातश्लेष्म प्रधान रोगों को नष्ट करता है।
☛ श्वास कुठार रस को सन्निपात, मूर्छा, अपस्मार, बेहोशी आदि में सुंघाने से रोगी सुध में आ जाता है।
☛ फुफ्फुस आवरण शोथ (कुक्ष्युदर उरस्तोय) में जब तक जल उत्पन्न नहीं होता तब तक श्वास कुठार रस लाभ पहुँचा सकता है ।
☛ सूर्यावर्त, आधा शीशी और दुस्सह शिरदर्द, प्रतिश्याय (जुकाम) , ११ प्रकार के क्षय, हृद्रोग, शूल, दारुण स्वरभेद आदि में रोगानुसार अनुपान (दवा के साथ या बाद ली जानेवाली वस्तु ) के साथ देने से उन रोगों को दूर करता है।
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☛ श्वासकुठार का उपयोग स्वतन्त्र श्वास रोग पर अच्छा होता है। मूलभूत श्वास रोग के अतिरिक्त अन्य कारणों से अन्य रोगों के पूर्वरूप, उपद्रव या लक्षण रूप से गौण श्वास विकार भी होते हैं। हृद्रोग या सर्वाङ्गशोथ दोनों रोगों में श्वास की संप्राप्ति हो जाती है। ऐसे लक्षण रूप श्वास में इस रस का उपयोग नहीं होता।
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☛ वृद्धावस्था में या तरुणावस्था में ही कास और उसके साथ श्वास होने पर इसका उपयोग होता है। इस श्वास में घबराहट अधिक होती है। श्वासोच्छवास वेगपूर्वक चलता है। श्वास की अपेक्षा उच्छवास् लम्बा होता है। श्वास का वेग उत्पन्न होने पर रोगी बिल्कुल बेचैन हो जाता है। समीप में रहे हुए खम्भे या मनुष्य को पकड़कर बैठने से चैन पड़ेगा। ऐसा उसे भासता है। इस हेतु से जो कुछ हो उसे पकड़ लेता है। कफ छूटने के लिए जो पदार्थ मिले उसे मुंह में रखता है। इस श्वास का निश्चित कारण नहीं। किसी को शीतलवायु या शीतकाल के हेतु से, तथा कितनों ही को वर्षाकाल, शीतकाल, वर्षा या बर्फ गिरकर फिर शीतल वायु चलना आदि कारणों से श्वास हो जाता है। किसी-किसी को ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर उष्णता के हेतु से श्वास वृद्धि होती है। इस तरह आहार-विहार के भेद से भी दौरा हो जाता है।
किसी को किञ्चित् अम्ल मट्ठे से श्वास वृद्धि होती है और इसके विपरीत किसी-किसी को प्रकृति भेद से ऐसे मढे से श्वास रोग में लाभ पहुँचता है!
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☛ प्रतिश्याय(जुकाम) होकर श्वासवाहिनियों में कफ का प्रादुर्भाव होने पर कुछ समय में कफावरोध होता है। फिर श्वास उत्पन्न होने पर इस औषध का उपयोग करना चाहिए।
इस रोग में श्वासवेग होने पर बार-बार चक्कर आकर नेत्रों के समीप अन्धकार आता रहता है तथा अग्निमांद्य, कास(खाँसी) आदि लक्षण होते हैं। कफ न पड़े तब तक अधिक त्रास होता है, बार-बार खाँसी आती रहती है। कफ गिरने पर कुछ समय तक अच्छा लगता है। कण्ठ में कुछ वस्तु लगी हो ऐसा भासता है। कास वेग और श्वास वेग होने पर मुँह से बोलना भी कठिन हो जाता है। निद्रा बिल्कुल नहीं आती। क्वचित् आंख लगी तो थोड़े ही समय में श्वास का वेग पुनः बढ़कर ज्यादा घबराहट हो जाती है। यह घबराहट कफावरोध के हेतु से होती है। रोगी पलंग पर सीधा लेट नहीं सकता। बैठे रहने में कुछ अच्छा लगता है या आगे पीछे आधार रख लेने में कुछ शांती मालूम पड़ती है। यदि जरा-सा शयन किया तो तत्काल वेग वृद्धि होकर बैठा होना पड़ता है। गरम जल, गरम-गरम चाय, सेक, अंगीठी, ओढ़ने के लिए गरम वस्त्र आदि से अच्छा लगता है। जरा-सी ठंड लगने पर श्वास-वेग और व्याकुलता बढ़ जाती हैं। श्वासवेग अधिक होने पर नेत्र आधे मिच जाते हैं। नेत्र की पुतली कुछ ऊपर चढ़ी हुई भासती है। प्रस्वेद आना (विशेषतः कपालपर) मुँह में शुष्कता, आवाज न निकलना आदि लक्षण उपस्थित होते हैं। ऐसे श्वास में श्वासकुठार रस लाभदायक है।
आकाश में बादल घिर आने, वर्षा होने तथा शीतल और आर्द्र वायु चलने पर श्वास सहज बढ़ जाता है। इस तरह गीली जमीन पर बैठने, शीतल भोजन या कफवर्द्धक भोजन करने पर श्वास बढ़ जाता है। शीतवीर्य और शीत स्पर्श वाली वस्तुओं से कफ बढ़कर श्वास हो जाता है। इस प्रकार के श्वास विकार में श्वासकुठार का अच्छा उपयोग होता है। इस प्रकार के रोगों पर समीरपन्नग भी लाभदायक है।
☛ श्वास के अतिरिक्त मोह, मूर्छा, भ्रम आदि में बेहोशी होने पर नस्यरूप से इसका उपयोग किया जाता है। (औ.गु.ध.शा.)
श्वास कुठार रस के नुकसान : Shwas Kuthar Ras Side Effects in Hindi
1- श्वास कुठार रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
2- मुश्वास कुठार रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
3- पित्तज श्वास कास में इसका उपयोग नहीं करना चाहिये।
4- कभी-कभी श्वासकुठार से कितने ही रोगियों को उष्णता बढ़ जाती है। ऐसे समय पर प्रवालपिष्ठी और गिलोयसत्व या दाडिमावलेह अथवा मिश्री मिले दूध का सेवन कराना चाहिये।