Last Updated on April 10, 2020 by admin
सोन चम्पा क्या है ? : What is Son Champa (Michelia Champa) in Hindi
सोन चम्पा (Son Champa (Michelia Champa) एक लम्बा सदाबहार वृक्ष है। इस वृक्ष का मूल उत्पत्ति स्थान भारतीय हिमालय या दक्षिण पूर्व एशिया एवं चीन है। सोन चम्पा के फूल पीले या सफेद रंग के अत्यन्त खुशबू वाले होते है। इसका अधिकतम रूप से उपयोग लकड़ी या सजावटी पौधे के रूप में किया जाता है। इसकी प्रजातियाँ पीले से नारंगी रगों में पायी जाती है। इसके अन्य नाम देव चम्पा, गोल्डन चम्पा, ईश्वर चम्पा, आदि है।
भारतीय चम्पा के प्रमुख प्रकार :
- चंपा (Plumeria Acutifolia),सफेद चम्पा
- सोन चम्पा (Michelia Champa)
- नाग चम्पा
- कनक चम्पा
- सुल्तान चम्पा
- कटहरी चंपा
सोन चम्पा का पेड़ कैसा होता है ? :
इसका सदा हरा रहने वाला सुन्दर वृक्ष प्राय: 100 फुट तक ऊँचा होता है।
सोन चम्पा की छाल – बाहर से धूसर तथा भीतर से रक्ताभ होती है।
सोन चम्पा के पत्ते (पत्र) – एकान्तर, 8-10 इंच लम्बे,2-4 इंच चौड़े, चिकने, चमकीले तथा तीक्ष्णाग्र होते हैं।
सोन चम्पा के फूल – पुष्प फीके या गहरे पीतवर्ण के, एक-दो इंचं व्यास के, महीन केशरयुक्त मधुरगन्धि होते हैं। ये वसन्त से लेकर वर्षाकाल तक लगते हैं।
सोन चम्पा के फल – गोल-गोल छोटे छोटे प्रायः अवन्त अंडाकार होते हैं। ये फल 3-4 इंच लम्बे दण्ड पर गुच्छबद्ध होते हैं। इनमें 1-4 भूरे रंग के बीज होते हैं। जिन पर गुलाबी रंग का मांसल आवरण होता है।
चम्पा के वन में जैसे भ्रमर किसी फूल पर बैठकर उसका रस नहीं लेता, केवल मंडराता रहता है, उसी प्रकार ज्ञानी संसार में रहता है-
चंचरीक जिमि चम्पंक बागा (रामचरितमानस)।
बादशाह औरंगजेब ने कहा-हम सार्वभौमिक राजा हैं, सब राजा हमको कर देते हैं, शिवाजी एक मण्डल के राजा हैं वे हमें कर क्यों नहीं देते? तब भूषण कवि ने अपने एक कवित्त में वर्णन किया कि सब राजा पृथ्वी के पुष्प – वृक्ष हैं और आप भ्रमर हैं। उसी के समान आप पुष्पों का मधुलेते हैं परन्तु शिवाजी चम्पक वृक्ष हैं जिनके पास भ्रमर नहीं आ सकते हैं –
त्यागे सदा षटपद पद अनुमान
जैसे अलि नवरंगजेव चम्पा शिवराज है।
रूप रंग और सुगन्ध होने के पश्चात भी चम्पा पुष्पों के समीप भ्रमर नहीं आने का कारण कवि पूछता है –
चम्पा तुझमें तीन गुण रूप रंग और वास।
अवगुण तुझमें कौन है, भ्रमर न आवे पास।।
यह भ्रमर तो वाणी से व्यक्त करने में असमर्थ है किन्तु व्यक्तियों का अनुमान है कि इसकी उग्र मादक गन्ध ही भ्रमर को पास नहीं आने देती है। इसकी उत्कृष्ट सौरभ इसकी सुकुमारता एवं इसके गौरवर्ण की उपमा शिशुपाल वध, हर्षचरित, कादम्बरी, मालती माधव आदि संकृत काव्यों में भी श्रृंगारात्मक प्रसंगों में दी गई है। “चम्पक पुष्प गौरा:” कह कर नायक नायिकाओं के उत्कृष्ट एवं लावण्यमय गौरवर्ण की प्रशंसा की गई है।
वैजयन्ती कोष में चम्पक नामक एक द्वीप का वर्णन मिलता है (देशाध्याय 1-17)। संभवतः इस द्वीप में प्रियदर्शन, सुरभिसम्पन्न ये पुष्प वृक्ष बहुतायत से होने के कारण इनका नाम भी चम्पक किंवा चम्पा हो गया हो। इसी प्रकार बिहार के चम्पा एवं चम्पारन भी उल्लेखनीय हैं। इसके वृक्ष नेपाल, बंगाल, आसाम आदि में अधिक होते हैं। बहुत से गिरिकाननों, वनस्थलियों एवं उपत्यकाओं में इसके वृक्ष वन्य रूप में तथा उद्यानों नगर परिसरों में ये आरोपित (Planted) रूप में पाये जाते हैं।
सोन चम्पा का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Son Champa (Michelia Champa) in Different Languages
Son Champa in–
- संस्कृत (Sanskrit) – चम्पक, चम्पा, चाम्पेय, हेमपुष्प
- हिन्दी (Hindi) – चम्पा,नागचम्पा,चामोटी, गोल्डन चम्पा
- गुजराती (Gujarati) – चंपो ,पीली चंपा
- मराठी (Marathi) – सोना चंपा
- बंगाली (Bangali) – चांपा
- तामिल (Tamil) – सेंबुगम
- तेलगु (Telugu) – चंपकम्
- कन्नड़ (Kannada) – संपिगे,
- अंग्रेजी (English) – गोल्डन चम्पा (Golden Champa)
- लैटिन (Latin) – माइकेलिया चम्पक (Michelia Champa)
सोन चम्पा का रासायनिक विश्लेषण : Son Champa Chemical Constituents
पीतपुष्प चम्पक वृक्ष की छाल में एक क्षाराभ तथा टैनिन होता है। पुष्पों में एक उड़नशील सुगन्धित तैल होता है। बीजों में स्नेह, राल तथा राल अम्ल होता है।
सोन चम्पा के उपयोगी भाग : Beneficial Part of Son Champa in Hindi
छाल , फूल (पुष्प)
सेवन की मात्रा :
छाल का क्वाथ – 50 से 100 मि.लि.,
चूर्ण – 3 से 6 ग्राम।
सोन चम्पा के औषधीय गुण : Son Champa ke Gun in Hindi
रस – तिक्त, कटु, कषाय
गुण – लघु, रूक्ष
वीर्य – शीत
विपाक – कटु
दोषकर्म – कफपित्त शामक
कुल – चम्पककुल ( मैगनोलिएसी)
- सोन चम्पा वृक्ष की छाल एवं पुष्प दाह प्रशमन होने से वाह्याभ्यन्तर रूप में प्रयुक्त होते है।
- त्वग्दोषहर एवं रक्त शोधक होने से सोन चम्पा चर्मरोगों में तथा रक्तविकारों में यह उपयोगी है।
- सोन चम्पा की मूल व छाल विशेषत: कुष्ठ एवं कष्टार्तव में लाभप्रद है।
- पुष्पों का प्रयोग रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ्र आदि में करते हैं।
- छाल का फाण्ट जीर्ण ज्वर, विषमज्वर में प्रयुक्त होता है।
- शोथ, आमदोष, कृमिरोग, उदरशूल आदि में भी यह लाभदायक सिद्ध हुआ है।
- दक्षिण पश्चिम भारत में चम्पा का इत्र या चम्पाधिवासित तैल भी बनाया जाता था।
- प्राचीन मुल्तान आदि सीमा क्षेत्र तथा गुजरात राजस्थान आदि में भी इसके व्यवहार प्रचलन का साक्ष्य अदहमान के ‘संदेशरासक’ तथा ‘ढोलामारू रा दूहा’ नामक राजस्थानी भाषा के लोकगीत काव्य में भी मिलता है। राजस्थान के पुष्पोध्यानों में भी चम्पा सम्मानित था।
- गंधिक व्यवसाय में चम्पक गंधि तैल, अन्य सुगन्धियों के मिश्रण से भी बनाया जाता था।
- वराहमिहिर ने अपने प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ बृहतसंहिता’ में चम्पक गंधि तैल निर्माण का विस्तार से विवेचन किया है।
- सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान अध्याय 45 में जल प्रसादन के प्रसंग में गन्धापयन हेतु चम्पक पुष्पों की भी उपादेयता प्रदर्शित की गई है।
- सोन चम्पा के फूल सूंघने से हृदय और मस्तिष्क को बल मिलता है, खाने से कफ निस्सरित होता है तथा वायु का नाश होता है।
- सोन चम्पा के फूलों को सिरके में पीसकर कान पर लगाने से कान का दर्द जाता रहता है।
- फलों का स्वरस कुनकुना करके कान में टपकाने से कान का दर्द, कान की फन्सी और कान में पानी चला गया हो तो उसे भी लाभ होता है।
- इसके फूलों के बीच में जो दाना होता है वह किसी भांति मदकारक होता है।
- इसके फूलों को तिल के तेल में डालकर धूप में रखने से तैयार हुआ तैल अत्यन्त वाजीकर है। इसके मालिश से संधिशूल आराम होता है।
- इसके फूलों से परिसृत किये हुये अर्क के नस्य से नासिकागत अवरोध दूर हो जाता है।
सोन चम्पा के फायदे और उपयोग : Son Champa (Michelia Champa) ke Fayde in Hindi
यूनानी द्रव्यगुणादर्श (द्वितीय खण्ड) आचार्य श्री कृष्ण प्रसाद जी त्रिवेदी ने इसके कतिपय विशिष्ट योगों का वर्णन किया है –
1) चंपक-फाण्ट –
सोन चम्पा की छाल के मोटे चूर्ण 25 ग्राम को उबलते हुए पानी में डाल नीचे उतार कर उसी में मिलाकर ढांक देवें । शीतल होने पर छान लें।
मात्रा-20 ग्राम तक दिन में 2-3 बार देने से विषम ज्वर कफ-प्रकोप, मूत्रावरोध, कष्टार्तव सुजाक में लाभ होता है। यह त्रिदोषशमन एवं रक्त प्रसादन है।
2) चम्पकादि चूर्ण –
सोन चम्पा की छाल, गिलोय, अतीस, सौंठ, चिरायता कालमेघ नागरमोथा, छोटी पीपल, जौखार और कसीस समभाग महीन चूर्ण ।
मात्रा – 1 से 2 ग्राम तक 3 बार पानी के साथ लेने से मलेरिया ज्वर, यकृत प्लीहा वृद्धि, पांडुरोग, अग्निमांद्य, अरुचि आदि में लाभकारी है।
3) चम्पकासव –
सोन चम्पा के छाया शुष्क फल 2.5 किलो को 13 लिटर जल में पकावें। इसमें सात लिटर क्वाथ शेष रहने पर छानकर शुद्ध मटके में भरें। ठंडा हो जाने पर उसमें मधु चार किलो, धाय के फूल 250 ग्राम तथा अतीस, काकड़ासिंगी एवं छोटी पीपल का चूर्ण 40-40 ग्राम मिलाकर सन्धान कर 15-20 दिन सुरक्षित रखें। फिर छानकर बोतलों में भर लें।
मात्रा- 15 से 25 मि.लि. सेवन करने से प्रतिश्याय (सर्दी जुकाम ) एवं कोष्ठबद्धता (कब्ज) दूर होती है तथा भूख बढ़ती है।
4) चम्पक-पुष्प तैल –
सोन चम्पा के पुष्पों को सोलह गुने तिल तेल में मिलाकर चीनी मिट्टी या कांच के पात्र में डालकर मुखमुद्रा कर सात दिनों तक धूप में रखें। इसके बाद निकाल कर पुष्पों को निचोड़ लें। उस तैल में पुन: दूसरे ताजा पुष्प मिलाकर मुख-मुद्रा कर धूप में सात दिन रखने के बाद छानकर तैल को बोतलों में भर रखें। कोई-कोई केवल बारह घन्टों तक ही पात्र को धूप में रखकर निचोड़कर छान लेते हैं। यह उक्त तैल की अपेक्षा सौम्य होता है।
यह तैल मस्तिष्क के विकारों पर, नेत्र शोथ (सूजन) पर, नाक से दुर्गन्धित मल के रूप में कफके निकलने पर एवं सन्धिवात आदि में मर्दन के काम आता है। वाजीकरणार्थ इसकी मालिश शिश्न पर की जाती है। (-धन्व. वनौ. विशेषांक)
सोन चम्पा के दुष्प्रभाव : Son Champa ke Nuksan in Hindi
- सोन चम्पा लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- गर्भवती महिलाओं को सोन चम्पा का सेवन नहीं करना चाहिए।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)