स्‍तन में गांठ के प्रकार, लक्षण और उपचार – Stan me Ganth ke Prakar, Lakshan aur ilaj

Last Updated on March 22, 2023 by admin

प्रमुख रूप से चार कारण हैं जो स्तनों के भीतर गांठ या ट्यूमर पैदा कर सकते हैं। इन चारों की मौजूदगी दर्दरहित भी हो सकती है और पीड़ाकारक भी। इन में से कुछ का जन्म होते ही उन के लक्षण दिखाई दे जाते हैं तो कुछ चुपचाप स्तनों के भीतर पलती रहती हैं और मरीज को उन का एहसास तक नहीं हो पाता।

1. स्तन कैंसर : 

सर्वप्रथम स्तन कैंसर को लें। यह इस अंग का एक अत्यधिक आम पर अत्यंत महत्त्वपूर्ण रोग है जो अपने पंजों में सारे संसार की स्त्रियों को घेरता जा रहा है। ऐसा अनुमान है कि सत्रह में से एक स्त्री अपने जीवन में इस रोग का शिकार हो सकती है।

वैसे तो यह किसी भी उम्र की महिला को अपना शिकार बना सकता है,मगर तीस वर्ष से कम आयु की स्त्रियों में यह रोग बेहद कम है। उस के पश्चात यह बढ़ती हुई उम्र के छठवें दशक में अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंच जाता है।

आनुवंशिकता इस रोग की उत्पत्ति में एक विशेष स्थान रखती है। जो स्त्री रोग से पीड़ित हो उस की पुत्री में इस के होने की संभावना आम स्त्रियों से कई गुना अधिक बढ़ जाती है।

स्तन कैंसर के प्रमुख लक्षण : 

  • इस बीमारी के लक्षण या तो प्रारंभिक रोग की वजह से दिखाई पड़ते हैं या फिर रोग के फैल कर शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंच जाने की वजह से। बहुधा रोगिणी को नहाते वक्त या शीशे में गौर करते वक्त स्तन के भीतर एक गांठ महसूस होती है। गांठ का आकार छोटा होने की वजह से उस की उम्र का सही अनुमान नहीं लग पाता। अकसर मरीज इस छोटी और दर्द न उत्पन्न करने वाली गिल्टी को अनदेखा कर जाता है।
  • कुछ महिलाएं छाती में हलका सा खिंचाव या सुइयों की चुभन महसूस करती हैं और जब वे इस दर्दयुक्त स्थान को टटोलती हैं तो उन्हें एक ट्यूमर की मौजूदगी महसूस होती है।
  • गांठ का बढ़ता हुआ आकार स्तनों के आकार और माप में भी विसंगति उत्पन्न कर सकता है। स्तनों की त्वचा अंदरूनी गांठ से चिपक सकती है या निपल में परिवर्तन दिखाई दे सकता है।
  • कुछ रोगिणियों में रोगग्रस्त स्तन की ओर की कांख में भी गिल्टी मौजूद हो सकती है।
  • इस के अलावा निपल से असामान्य स्राव होना, त्वचा पर घाव होना जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।
  • यदि इतना होने पर भी मरीज इन लक्षणों की गंभीरता को न समझे और उपचार न करवाए तो यह बीमारी शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाती है। तब कुछ नए लक्षण भी उत्पन्न हो सकते हैं; मसलन, बीमारी का रीढ़ की हड्डी में फैल जाना, इस की वजह से पीठ में दर्द होना, पैरों में झुनझुनी होना या कमर के नीचे के हिस्से में कमजोरी महसूस होना जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं।
  • बीमारी के फेफड़ों तक फैल जाने की वजह से सांस फूलना, छाती में दर्द होना, खांसी और उस में रक्तस्राव होना जैसी जटिलताएं दिखाई दे सकती हैं।

अन्य लक्षण

पीलिया होना, त्वचा पर दाने उभर आना, मानसिक विकार और चक्कर आना या हड्डियों में दर्द होना जैसे परेशानियां भी हो सकती हैं।

रोग निदान : 

उपर्युक्त किसी भी लक्षण के दिखाई पड़ते ही तुरंत चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए। मरीज की संपूर्ण जांच, रोगग्रस्त स्थान की बायोप्सी एवं अन्य आधुनिक जांच तकनीकों के माध्यम से रोग निदान अत्यंत सहज और सरल हो जाता है।

स्तन कैंसर का उपचार : 

एक बार रोग निदान हो जाने के पश्चात चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है। शल्यक्रिया रेडियोधर्मी किरणों, कैंसररोधी दवाओं और हारमोन चिकित्सा में सही समन्वय कर के रोग की चिकित्सा की जाती है और यदि प्रारंभिक अवस्था में ही उपचार किया जाए तो यह रोग पूर्ण रूप से ठीक हो सकता है।

2. मवाद भरी गांठ (गिल्टी) होना (Breast abscess)

यह बीमारी अचानक ही शुरू होती है। अधिकांशतः यह प्रसव के पश्चात शिशु के दुग्धपान किए जाने वाले काल में होती है, मगर इसके अलावा अन्य स्त्रियां जो बच्चों को दुग्धपान नहीं करवा रही हों, वे भी इस की शिकार बन सकती हैं। अकसर स्तन में लगी चोट में संक्रमण इस का कारण बनती हैं।

बच्चे के मुंह के भीतर असंख्य जीवाणु निवास करते हैं। आमतौर पर वे बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते, मगर जब बच्चा स्तनपान करता है तो ये जीवाणु मां के निपल के संपर्क में आते हैं। यदि निपल में दरारें पड़ी हों तो ये जीवाणु इन दरारों में पैबस्त हो स्तन के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। वहां वे पलते हैं, बढ़ते हैं और फिर असंख्य नए जीवाणुओं को जन्म देते हैं।

यदि ऐसे में माता शारीरिक रूप से कमजोर हो, रक्ताल्पता या एनीमिया की शिकार हो, या किसी अन्य शारीरिक व्याधि से ग्रस्त हो तो ये जीवाणु और भी उग्र हो जाते हैं। इसी तरह यदि निपल त्वचा के भीतर धंसा हो तो दूध के प्रवाह में रुकावट होने से जीवाणु बढ़ने में मदद मिलती है।

मवाद भरी गांठ (गिल्टी) के लक्षण : 

  • रोगिणी को सर्वप्रथम स्तन के भीतर दर्द महसूस होता है। प्रारंभ में दर्द कम होता है और यह भारीपन के अहसास के अलावा कुछ नहीं होता। मगर जब स्तन के भीतर मवाद बन जाता है तब दर्द एक तेज, तीखी और लगातार होने वाली पीड़ा में परिवर्तित हो जाता है। 
  • उस स्थान की त्वचा लाल और गरम हो जाती है। उसे छूने से दर्द होता है। 
  • रोगिणी भीतर एक गांठ भी महसूस करती है। उस स्थान की त्वचा पर सूजन भी आ जाती है।
  • इस के अलावा रोगिणी को ठंड लग कर बुखार आना, रात में पसीना आना, भूख न लगना, हरारत महसूस होना जैसे लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं।
  • यदि इस अवस्था में उपचार न किया जाए तो मवाद के दबाव से गिल्टी फूट कर त्वचा के बाहर मवाद का स्राव करने लगती है।

मवाद भरी गांठ (गिल्टी) का प्रारंभिक अवस्था में उपचार : 

दूषित स्तन से कुछ मात्रा में दूध निकाल कर उसे परीक्षण के लिए भेजना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि कौन से जीवाणु इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हैं।

जब तक यह सूचना प्राप्त हो, मरीज को पूर्ण आराम करना चाहिए। स्तनों को सही आकार की ब्रा से सहारा देना चाहिए। गरम पानी का सेंक भी दर्द से राहत दिलाता है। प्रतिजैविक ओषधियों एवं दर्दनाशक दवाओं का उपयोग भी जरूरी है।

यदि आवश्यक न हो तो बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहिए। यदि किसी मजबूरीवश मां का ही दूध पिलाना जरूरी हो तो स्वस्थ स्तन से दूध निकाल कर बच्चे को पिलाना चाहिए। रोगग्रस्त स्तन को भी ब्रेस्ट पंप की सहायता से खाली कर देना चाहिए।

इस से न केवल दर्द में कमी आती है, बल्कि शरीर से संक्रमित दूध की मात्रा भी घट जाती है। बहुत से चिकित्सक दवा दे कर दुग्धस्राव को पूर्ण रूप से बंद करने की राय भी देते हैं।

यदि प्रारंभिक अवस्था में इलाज न किया जाए और स्तन के भीतर मवाद के बन जाने की शंका हो तो फिर चीरा लगा कर मवाद निकालना जरूरी हो जाता है। यह एक पूर्ण दर्दरहित विधि है क्योंकि रोगिणी को पूर्ण रूप से बेहोश कर के ही यह शल्य क्रिया की जाती है। इसलिए यदि चिकित्सक सलाह दे तो बेखौफ हो कर इलाज करवा लेना चाहिए।

जटिलता : 

कई बार ऐसा होता है कि स्तनों में मवाद के बन जाने के बाद भी कुछ चिकित्सक रोगिणी को प्रतिजैविक ओषधियां देते रहते हैं या रोगिणी शल्यक्रिया टालने के लिए उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य कर देती है।

मगर ऐसा करना खतरनाक है, क्योंकि इन दवाओं के इस्तेमाल से संक्रमण तो खत्म हो जाता है मगर मवाद वहीं जमा रहता है जो आगे चल कर एक दर्दरहित गांठ का रूप ले लेता है। स्तन की त्वचा भी विकृत हो कर कड़ी और खुरदरी हो जाती है और बाह्य रूप से ऐसा प्रतीत होता है मानो उस स्तन में कैंसर हो। यह विकृति स्तन में स्थायी रूप से रह जाती है।

स्तन में संक्रमण गलसूजा (मंपस) की वजह से, दुग्धस्राव के अवरुद्ध होने की वजह से, टी.बी या क्षयरोग की वजह से एवं फिरंग ( सिफलिस) जैसे यौन रोग की वजह से भी हो सकता है। इन के मूल कारण को खोज कर उस का उपचार करने से ही रोगिणी रोग मुक्त हो सकती है।

3. स्नायुओं का ट्यूमर : 

स्तनों में गांठ की मौजूदगी का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण है स्तन के स्नायुओं का ट्यूमर, जिसे ‘फाइब्रोएडिनोमा’ कहा जाता है। तीस वर्ष से कम आयु की स्त्रियों में पाया जाने वाला सब से आम ट्यूमर यही है। पंद्रह से ले कर पैंतीस वर्ष की आयु की किसी भी स्त्री को यह बीमारी हो सकती है।

अकसर इस का जन्म मासिक धर्म की शुरुआत के साथसाथ ही हो जाता है। मगर प्रारंभ में ये इतने छोटे होते हैं कि इन की ओर ध्यान आकृष्ट होतेहोते चारपांच साल बीत जाते हैं।

स्नायु ट्यूमर के लक्षण : 

यह आम तौर पर एक ही स्तन में मौजूद होता है, मगर दोनों स्तनों में और बड़ी संख्या में पाया जाना अपवाद नहीं है।

बेर के आकार की सख्त और स्तन में मुक्त रूप से विचरने वाली गिल्टी शुरुआत में दर्द रहित होती है। कई मर्तबा पहली बार उठा दर्द ही इस की ओर ध्यान आकर्षित करता है। धीरेधीरे बढ़ने वाली यह गांठ आमतौर पर सुपारी से अधिक बड़ी नहीं होती, मगर कई रोगिणियों में इस का आकार इतना बड़ा हो जाता है कि यह समूचे स्तन को घेर कर उस से भी बड़े आकार की बन जाती है।

स्नायु ट्यूमर का उपचार : 

शल्यक्रिया द्वारा इस गांठ को स्तन से निकाल देना ही पूर्ण और स्थायी उपचार है। इस की शल्यक्रिया मामूली सी है, जिस में उस भाग को सुन्न कर गांठ को निकाल दिया जाता है और हफ्ते भर में बीमारी पूर्ण रूप से ठीक हो जाती है।

4. स्‍तन में छोटी-छोटी गांठें : 

इस श्रृंखला का चौथा विकार है स्तन में दर्द करने वाली असंख्य छोटीछोटी गांठों की उत्पत्ति, जिसे फाइब्रोएडिनोसिस कहते हैं। यह बीमारी मुख्य रूप से मासिक धर्म के दौरान स्तनों के भीतर होने वाले सामान्य बदलाव में व्यवधान आने से या उस चक्र में परिवर्तन आने की वजह से उत्पन्न होती है। आमतौर पर बीस से चालीस वर्ष की उम्र की स्त्रियों को अपना शिकार बनाने वाला यह रोग बहुधा उन स्त्रियों में देखने में आता है जिनके स्तनों को उन स्वाभाविक प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना पड़ता जो एक स्त्री के जीवन में होती हैं, मसलन अविवाहित स्त्रियां, निःसंतान महिलाएं एवं वे माताएं जिन्होंने किसी कारणवश अपने बच्चों को स्तनपान न करवाया हो।

स्‍तन में गांठ के लक्षण : 

  • मासिक धर्म शुरू होने के दोतीन दिन पहले से स्तनों में दर्द महसूस होने लगता है। उस स्थान पर सूजन एवं तनाव भी महसूस होता है, उसे छूने पर चावल के दानों की तरह छोटीछोटी असंख्य गांठें महसूस होती हैं।
  • माहवारी खत्म होते ही लक्षणों में कमी आ जाती है या वे पूरी तरह थम जाते हैं। मगर अगले महीने फिर वही चक्र दोहराया जाता है।
  • इस बीमारी की एक विशेषता यह भी है कि गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान ये लक्षण पूरी तरह से गायब हो जाते हैं। यदि महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियां इस्तेमाल करें और इन के इस्तेमाल के पहले उन्हें इस तरह की कोई तकलीफ हो तो वह ठीक हो जाती है।
  • ठीक इस के विपरीत भी हो सकता है, अर्थात जिन स्त्रियों में गर्भनिरोधक दवाओं के इस्तेमाल से पहले इस बीमारी के कोई लक्षण न हों, उन में इस्तेमाल के उपरांत ऐसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
  • इसी तरह निपल से हरे या भूरे रंग का स्राव होना, बांह में दर्द होना, कांख में गांठ महसूस होना जैसे लक्षण भी मौजूद हो सकते हैं।
  • कुछ महिलाएं पैरों में सूजन, मूत्र की मात्रा में कमी, अधिक प्यास और चिड़चिड़ापन भी महसूस करती हैं।
  • ऐसा अनुमान है कि इस बीमारी से पीड़ित महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावना तीन से पांच गुना बढ़ जाती है।

रोग निदान : 

वैसे तो रोग के लक्षण इतने विशेष होते हैं कि किसी अन्य परीक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ती, मगर निदान में यदि किसी और बीमारी के शामिल होने का संदेह हो तो गांठयुक्त या दर्दयुक्त भाग का एक टुकड़ा जांच (बायोप्सी) के लिए भेजा जा सकता है।

स्‍तन में गांठ का उपचार : 

सब से पहले रोगिणी को आश्वस्त हो जाना चाहिए कि उम्र के इस दौर में ऐसी प्रक्रिया स्वाभाविक है और इस से कुछ परेशानियां महसूस हो सकती हैं।

स्तनों को उचित आकार की ब्रा द्वारा सहारा देना चाहिए। गरम पानी का सेंक व दर्द निवारक दवा के सेवन से अधिकतर रोगिणियों को फायदा पहुंचता है। इस के अलावा कुछ हारमोन युक्त दवाएं भी उस स्थिति में इस्तेमाल की जाती हैं जब सामान्य उपायों से आराम न मिले।

शल्यचिकित्सा : 

वैसे तो अधिकांशतः आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती, मगर यदि रोगिणी बारबार उठने वाले दर्द की वजह से परेशान हो या उसे अथवा चिकित्सक को कैंसर का संदेह हो तो उस दशा में रोगग्रस्त भाग को निकाल देना ही श्रेयस्कर है। आजकल तो कृत्रिम मांस को स्तन के भीतर डाल कर उन्हें सामान्य आकार प्रदान करने की तकनीक भी विकसित हो गई है।

स्‍तन में गांठ के सरल घरेलू उपचार (stan me ganth ka ilaj)

1. एरण्ड: एरण्ड के तेल से स्त्री के स्तनों की मालिश करें और एरण्ड के पत्तों को स्तन पर बांधने से स्तन में होने रसूली (गांठें, गिल्टी) धीरे-धीरे कम होकर समाप्त हो जाती हैं। साथ ही साथ स्तनों के आकार में बढ़ोत्तरी होती जाती है।

2. बड़ी हर्रे : बड़ी हर्रे, छोटी पीपल और रोहितक की छाल को लेकर पकाकर काढ़ा बना लें, फिर इसी काढ़े में यवक्षार एक चौथाई से आधा ग्राम की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम पीने से स्तनों में होने वाली रसूली या गांठें मिट जाती हैं।

3. सज्जीखार: सज्जीखार, सुहागे की खील (लावा) और यवक्षार को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को आधा से एक ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

4. नीम: नीम के तेल और तिल के तेल को बराबर मात्रा में लेकर मालिश करने से स्तनों में होने वाली गांठे कम होकर मिट जाती हैं। परन्तु ध्यान रहें कि केवल नीम के तेल से स्तनों की मालिश करने से स्तनों में जलन आदि के पैदा होने का डर सा लगा रहता है।

5. सरफोंका: सरफोंका की जड़ को अच्छी तरह पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तनों में होने वाली गांठे यानी रसूली का असर कम होकर नष्ट हो जाती है।

6. कचनार: कचनार की छाल को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी चूर्ण को एक चौथाई ग्राम से आधा ग्राम की मात्रा में सोंठ और चावल के पानी (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से स्तनों की गांठों में लाभ मिलता है।

7. मुण्डी: मुण्डी (गोरखमुण्डी) के पंचांग (फल, जड़, तना, फूल और पत्तों) के रस को 10 से लेकर 20 मिलीलीटर तक खुराक के रूप में  सुबह-शाम पीने से स्तनों में आने वाली गिल्टी (गांठें) कम होकर समाप्त हो जाती हैं।

(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)

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