टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है, उपचार प्रक्रिया और खर्च – Test Tube Baby In Hindi

Last Updated on March 5, 2023 by admin

टेस्ट ट्यूब बेबी क्या होता है ? (What is Test Tube Baby in Hindi)

अपना एक बच्चा हो ऐसी भावना हर स्त्री-पुरुष के मन में रहती है। आरंभ में गर्भनलिकाएँ बंद होने पर क्या उपाय किया जाए, इसका संशोधन वैज्ञानिक कर रहे थे तभी यह भी सोचा जाने लगा कि यदि हो ही नहीं तो क्या गर्भधारणा संभव हो सकती है ? इसी विचार के चलते टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ।

इस तकनीक का विकास कैसे हुआ यह समझने के लिए गर्भधारणा कैसे होती है इस संबंध में थोड़ी जानकारी प्राप्त करनी होगी, जिसे कृत्रिम गर्भधारणा या आर्टीफिशियल इंसेमिनेशन कहा जाता है। उसे भी सामान्यतः टेस्ट ट्यूब बेबी ही कहा जाता है लेकिन प्रत्यक्ष रूप से उसका भी टेस्ट ट्यूब से कोई संबंध नहीं होता।

गर्भधारणा कैसे होती है ? :

स्त्री का गर्भाशय सामान्यतः बड़े अमरूद के समान होता है। उसका आकार 3″ x2″ x1″ होता है। गर्भाशय के तीन भाग होते हैं। ऊपरी गुंबज जैसे आकार को ‘फंडस’ कहते हैं। बीचवाला भाग ‘बॉडी’ कहलाता है और नीचेवाले भाग को ‘सर्विक्स’ या ‘गर्भाशय का मुख’ कहा जाता है। गर्भाशय मुख योनिमार्ग में खुलता है।

गर्भनलिका के अंतिम छोर को फ्रिम्ब्रियल एंड कहा जाता है। यह फिम्ब्रिया हमेशा गतिशील होती है। यह स्त्री बीज को गर्भनलिका में खींचकर लाने का प्रयास करती है। इस प्रक्रिया को कीमोटॅक्सिस कहा जाता है। कीमोटॅक्सिस के कारण ही स्त्री बीज गर्भनलिका में प्रवेश करता है।
अगर ये फिम्ब्रियल एंड्स खराब हों, सही तरीके से काम न करते हों, एक-दूसरे से चिपके हों या फिम्ब्रिया का मुँह बंद हो तो स्वाभाविक ही स्त्री बीज गर्भनलिका में प्रवेश नहीं कर पाता। ऐसे में गर्भधारणा नहीं हो सकती।

ओव्यूलेशन के बाद यदि स्त्री बीज गर्भनलिका में प्रवेश करे और उसी समय शुक्राणु गर्भनलिका में आए तो उसमें से एक शुक्राणु गर्भनलिका में स्त्री बीज में प्रवेश करता है तब गर्भ तैयार होता है। यह गर्भ तैयार होने की प्रक्रिया गर्भनलिका के अंतिम छोर में होती है। इस छोर को ॲम्प्युला कहा जाता है।

गर्भनलिका के ॲम्प्युला में बना गर्भ सीलियरी गति से गर्भाशय की ओर धकेल दिया जाता है। गर्भ सामान्यतः ॲम्प्युला में दो दिन तक रहता है। गर्भ नलिका से उसकी यात्रा गर्भाशय की ओर आरंभ होती है। यदि स्थिति सामान्य हो तो गर्भ छठे दिन गर्भाशय में पहुँचता है। वहीं स्थिर हो जाता है। नौ माह तक विकसित होता है। नौ माह के बाद प्रसव पीड़ा आरंभ होने के बाद शिशु गर्भाशय से बाहर आ जाता है और शिशु का जन्म होता है।

यदि गर्भनलिका बंद हो तो ? :

गर्भधारण की प्रक्रिया में गर्भनलिका, सीलियरी एपिथिलियम और सीलियरी गति का सामान्य होना आवश्यक है। दोनों गर्भ नलिकाएँ किसी भी स्थान पर बंद हों तो स्त्री बीज गर्भनलिका में प्रवेश नहीं कर पाता। सीलियरी गति न हो तो तैयार हुआ गर्भ, गर्भनलिका में से होकर गर्भाशय तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि गर्भनलिका में ही रुक गया और वहीं विकसित होना आरंभ हो गया तो उसे नलिका गर्भ, एक्टोपिक प्रेग्नंसी कहा जाता है। यह एक गंभीर समस्या हो सकती है।

टेस्ट ट्यूब बेबी उपचार प्रक्रिया किस स्थितियों में लाभदायक हो सकती है ? (When do you need Test Tube Baby Treatment in Hindi)

टेस्ट ट्यूब बेबी यह प्रक्रिया हर किसी उस महिला के लिए सही नहीं होता, जिसके बच्चे न होते हों। स्त्री-पुरुष दोनों की जाँच के पश्चात दोनों ही में कोई दोष न पाया जाए, विवाह को 3 या 4 वर्ष ही हुए हों और स्त्री की आयु 30 से कम हो तो ज़ल्दबाजी में यह प्रक्रिया नहीं किया जाना चाहिए। प्रारंभिक इलाज जैसे ओव्यूलेशन स्टडी, कृत्रिम गर्भधारणा, आय.यु.आय. से ही लाभ हो सकता है।

1) यदि गर्भ नलिका बंद हो : यदि दोनों ओर की गर्भ नलिकाएँ बंद हों, उनका मार्ग सही न हो, कोई रुकावट हो या किसी कारण से नलिकाएँ अकार्यक्षम हो गई हों तो ऐसे मरीज़ों में स्त्री बीज गर्भनलिका में प्रवेश नहीं कर पाता। शुक्राणु गर्भाशय से होकर गर्भनलिका में स्थित स्त्री बीज तक नहीं पहुँच पाते। ऐसे में गर्भधारणा हो ही नहीं सकती, तब टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया ही सही रहेगा।
यदि गर्भनलिका का भाग निकालकर फिर से जोड़ दिया गया हो, मायक्रो सर्जरी की जा चुकी हो, उसके बाद भी गर्भधारणा नहीं हो पा रही हो तब टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया करवाना ही होगा।

2) बिना किसी ज्ञात कारण के : दोनों के सब परीक्षण सामान्य हों, सभी संभव इलाज किए जा चुके हों, कृत्रिम गर्भधारणा, आय.यु.आय. भी किया जा चुका है फिर भी यदि गर्भधारण न हो रहा हो। 10% दंपति में यह दोष होता है।

3) पुरुष में दोष : जिन्हें बच्चे न हो रहे हों ऐसे 100 दंपतियों में से, 40% पुरुष में दोष पाया जाता है। पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या कम हो, शुक्राणुओं की गति मंद या अतिमंद हो, शुक्राणुओं में दोष हो, शुक्राणु मृत हों ये प्रमुख दोष पाए जाते हैं। स्पर्म काउंट दस लाख से कम हो या शुक्राणुओं की गति बहुत मंद हो ऐसे मरीज़ों में टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया कारगर हो सकती है।

4) कई बार स्पर्म काउंट नहीं होता लेकिन टेस्टिज़ में शुक्राणु बन रहे हों तो भी इस इलाज से लाभ हो सकता है।

5) कृत्रिम गर्भधारणा असफल होना : बार-बार कृत्रिम गर्भधारणा के बाद भी बच्चा होने की संभावना न हो तो आय.वी.एफ. तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।

6) एंडोमेट्रियोसिस : इस दोष में गर्भाशय का अस्तर एंडोमेट्रियम बीज कोष, गर्भाशय और इसके विभिन्न भागों पर एकत्रित हो जाता है। इस कारण से बच्चे न होने की संभावना 5% होती है।

7) स्त्री बीज का न बनना (Anovulation) : ॲनओव्यूलेशन इसका अर्थ यह है कि स्त्री बीज बनता तो है लेकिन फॉलिकल से बाहर नहीं आता।

8) आयु अधिक होना और मासिक धर्म बंद हो जाना : ऐसा कहा जाता है कि टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया असंभव को संभव कर देता है। यदि आयु 40 या 40 से ऊपर हो, मासिक धर्म बंद हो जाने से या अन्य कारणों से स्त्री बीज का बनना बंद हो गया हो तो ऐसे मरीज़ों में आय.वी.एफ. तकनीक का उपयोग किया जाता है। यदि किसी युवा महिला का स्त्री बीज ‘दाता स्त्री बीज’ के रूप में लिया जाए तो यह उपचार सफल होने की संभावना बढ़ जाती है।

9) इम्युनोलॉजिकल कारण : कुछ अज्ञात कारणों से, विशेषकर शरीर कभी-कभी शुक्राणुओं का नाश कर देता है, ऐसे मरीज़ों के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी सही विकल्प है।

10) अन्य कारण : ऊपर बताए गए कारणों के अलावा यदि कोई कारण स्त्री रोग विशेषज्ञ की समझ में आ रहा हो तो भी इस प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है।

टेस्ट ट्यूब बेबी उपचार प्रक्रिया कैसे की जाती है ? (Test Tube Baby Kaise Hota Hai in Hindi)

test tube baby kya hai kaise hota hai iske khatre in hindi

टेस्ट ट्यूब बेबी के तकनीक के बारे में आइए हम जानकारी प्राप्त करें….वैसे तो रोगी की जाँच पहले ही की जा चुकी होती है, फिर भी टेस्ट ट्यूब बेबी के उपचार की दृष्टि से फिर से जाँच की जाती है। हार्मोन की जाँच वापस की जाती है। हार्मोन परीक्षणों में एल.एच., एफ.एस.एच., प्रोलेक्टिन, थाइरॉइड, प्रोजेस्टेरॉन, इस्ट्रेडिऑल इन हार्मोन्स की जाँच मासिक धर्म के अलग-अलग दिनों में की जाती है। रक्त परीक्षण और सोनोग्राफी की जाती है। उसके बाद अधिक मात्रा में स्त्री बीज बनने के लिए अलग-अलग दवाएँ और इंजेक्शन निश्चित समय, निश्चित दिन सोनोग्राफी और हार्मोन्स के रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर की सलाह से दिए जाते हैं। इंजेक्शन और दवाओं की मात्रा परिस्थिति के अनसार डॉक्टर की सलाह से ही तय की जाती है।

परिपक्व स्त्री बीज सोनोग्राफी के अनुसार शरीर से बाहर निकल लिए जाते हैं। इसे ‘ऊसाइट रिट्राइवल या ऊसाइट पिक अप’ कहा जाता है। इसके लिए रोगी को बेहोश किया जाता है। सामान्यतः 7 या 8 परिपक्व स्त्री बीज मिल जाते हैं। ये सब स्त्री बीज एक खास कल्चर मीडिया में, एक निश्चित तापमान पर, निश्चित वातावरण में सीओ2 इंक्युबेटर में विकसित किए जाते हैं।

जिस दिन यह कार्यकलाप करना होता है उस दिन के 4 दिन पूर्व स्त्री-पुरुष संबंध से परहेज़ किया जाता है। पति को सुबह अस्पताल में बुलाया जाता है और उसका वीर्य एकत्रित करके प्रयोगशाला में आगे की प्रक्रिया के लिए भेजा जाता है। इसे स्पर्म प्रिपरेशन कहा जाता है। ठीक 2 घंटे बाद विकसित स्त्री बीज का शुक्राणुओं से मिलन करवाया जाता है। इसे इंसेमिनेशन कहा जाता है।

इस प्रक्रिया के लिए तैयार किए गए सांद्र वीर्य (concentrated semen) की 2 या 3 बूंदों की आवश्यकता होती है।

टेस्ट ट्यूब बेबी की सफलता दर (Test Tube Baby Success Rate in Hindi)

दुनिया के प्रसिद्ध टेस्ट ट्यूब बेबी केंद्रों में भी सफलता का प्रतिशत 30% ही होता है। रासायनिक गर्भधारणा से यह सफलता 40% हो सकती है। इससे अधिक सफलता धोखा है। मरीज़ सावधान रहें। यदि मरीज़ महिला कम आयु की हो तो सफलता की संभावना अधिक होती है। आयु अधिक होने पर संभावना कम हो जाती है इसलिए समय रहते ही यह प्रक्रिया करवाना ठीक होता है।

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में जोखिम और समस्याएँ (Side Effects of Test Tube baby in Hindi)

इन प्रक्रिया के दौरान कुछ मुश्किलें आ सकती हैं। वे निम्न लिखित है –

  1. प्रारंभिक बीजांड अधिक उत्पन्न करने के लिए इंजेक्शन दिया जाता है। ऐसे में हायपर स्टिम्युलेशन सिंड्रोम हो सकता है। पेट में पानी होना, सीने में पानी होना, मूत्र बंद या कम होना, शरीर में सूजन आना आदि तकलीफें हो सकती हैं। सही इलाज से ये तकलीफें दूर हो सकती हैं।
  2. कभी-कभी दवाओं का बुरा असर हो सकता है। यह भी ठीक किया जा सकता है।
  3. बीजांड निकालते समय कभी-कभी बहुत रक्तस्राव हो सकता है। उसे रोकना कठिन हो जाता है। रक्तस्राव रोकने के लिए कभी-कभी ऑपरेशन करना पड़ सकता है।
  4. इस सारी प्रक्रिया के दौरान संक्रमण हो सकता है। इसके लिए एंटीबायटिक्स दिए जाते हैं।
  5. इस प्रक्रिया के दौरान 2,3 या अधिक बच्चे हो सकते हैं। अब तक सर्वाधिक 7 बच्चे होने का रिकार्ड है।
  6. गर्भधारणा के बाद समय से पहले भी बच्चे होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
  7. सामान्यतः 4% मरीज़ों में नलिका गर्भ की संभावना हो सकती है। गर्भ गर्भाशय से खिसककर गर्भ नलिका में विकसित होने लगता है। यह गंभीर समस्या है। ऐसे समय ऑपरेशन करके गर्भ को निकाल दिया जाता है।

ये समस्याएँ आम नहीं हैं और इनका हल निकाला जा सकता है।

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया कब संभव नही :

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया से बहुत से स्त्री-पुरुष माता-पिता बनने का आनंद ले सकते हैं लेकिन कुछ दशाओं में यह संभव नहीं हो पाता।

1) स्त्री बीज कोष में गंभीर दोष होना : कुछ ऑपरेशनों के दौरान, कैंसर या बीज कोष में घुमाव हो जाना आदि के समय बीज कोष निकाल निकाल दिया हो तो स्त्री बीज तैयार नहीं होता। ऐसे में टेस्ट ट्यूब बेबी उपचार नहीं किया जा सकता।

रेडिएशन, कीमोथेरपी के कारण बीज कोष बेकार हो गया हो, बीज कोष का विकास ही न हुआ हो या किसी कारणवश बीज कोष का कार्य बंद हो गया हो, ऐसी स्थिति में टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया नहीं हो सकती। बीज कोष की कोई वृद्धि ही नहीं हुई हो या बीज कोष का काम आयु से पहले ही कुछ कारणों से बंद हुआ हो ऐसी स्थिति में भी टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया नहीं हो पाती।
ये सब कारण आम नहीं हैं। ऐसी केस में 30 वर्ष से कम आयु की महिला का बीजांड दान में प्राप्त करके शिशु जन्म का प्रयास किया जा सकता है।

2) गर्भाशय संबंधी कुछ गंभीर दोष : गर्भाशय निकाल दिया गया हो या अविकसित हो तो किसी भी इलाज से बच्चा होना मुमकिन नही होगा। यदि बीज कोष सही हो तो सरोगेट मदर यानी दूसरी महिला के गर्भाशय से अपने बच्चे का जन्म संभव हो सकता है।

3) अनुवंशिक दोष : स्त्री बीज या शुक्राणु इन दोनों में अगर कोई उपचार न हो पाए ऐसी बड़ी अनुवंशिक बीमारी हो तो टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया न करें।

टेस्ट ट्यूब बेबी के बाद की गर्भावस्था :

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया के बाद यदि गर्भ ठहर जाए तो बहुत सावधानी बरतनी होती है। कुछ दवाएँ लेनी होती हैं। 5-6 माह के बाद सब सामान्य हो जाता है। इस प्रक्रिया से जन्मे बच्चे सामान्य होते हैं या हो सकता है अधिक प्रतिभाशाली हों।

इक्सी (I.C.S.I.) क्या है ? :

यह टेस्ट ट्यूब बेबी से भी अधिक विकसित तकनीक है।

जिन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम हो या वे गतिशील न हों, स्पर्म वॉश करके भी कृत्रिम गर्भधारणा न हो सके, शुक्राणुओं का हर तरह का इलाज किया जा चुका हो और वह सफल न हो तो इक्सी का उपयोग किया जाता है।

कभी-कभी वीर्य में एक भी शुक्राणु नहीं होता, परंतु टेस्टिज़ में शुक्राणु होते हैं तो एक खास तकनीक से स्पर्म ऍस्पिरेशन मेथड से उपलब्ध शुक्राणु शरीर से बाहर निकाल लिए जाते हैं। इनका उपयोग इक्सी के लिए किया जाता है। अगर अधिक संख्या में शुक्राणु मिल जाते हैं तो क्रायो प्रिज़र्वेशन से उन्हें अति शीत अवस्था में रखा जाता है, जिससे अगले मासिक धर्म के बाद उनका उपयोग किया जा सके।

इक्सी तकनीक का कैसे उपयोग किया जाता है ? :

अधिक स्त्री बीज तैयार करना, ओवेरियन स्टिम्युलेशन, निश्चित समय पर बीजांड निकालना, सीमेन प्रिपरेशन, बाद में आय.वी.एफ. प्रयोगशाला में शुक्राणु एक खास सुई में लेकर बीजांड में प्रविष्ट कराया जाता है।

ओवम डोनेशन यानी स्त्री बीज किसी अन्य महिला से लेना। जब स्त्री का बीज कोष खुद का स्त्री बीज तैयार नहीं कर पाता और उस वजह से उसे बच्चा नहीं होता, ऐसी स्थिति में ओवम डोनेशन लेकर टेस्ट ट्यूब बेबी का इस्तेमाल किया जाता है।

ओवम डोनेशन कैसे किया जाता है ? :

बीजांड देनेवाली और लेनेवाली महिला दोनों को ही उपचार की रूपरेखा समझायी जाती है। एक खास तरीके से दवाई, इंजेक्शन देकर दाता में बीजांड को विकसित किया जाता है। एक निश्चित समय पर बीजांड निकाल लिया जाता है। उस बीजांड का मिलन प्राप्तकर्ता के पति के वीर्य से शुक्राणु निकालकर शरीर से बाहर निकाले गए उस बीजांड से कराया जाता है।

सरोगेट मदर :

सरोगेसी का अर्थ है गर्भाशय उधार लेना। इस तकनीक का उपयोग निम्न लिखित परिस्थितियों में किया जाता है।

  1. जिन स्त्रियों में किसी कारण से गर्भाशय नहीं होता लेकिन बीज कोष सही काम कर रहे होते हैं, स्त्री बीज ठीक से तैयार हो रहा है लेकिन गर्भधारणा के बाद गर्भ के विकास के लिए गर्भाशय न होने की वजह से बच्चे नहीं होते।
  2. अंदरूनी अस्तर में जटिलता निर्माण होने से गर्भाशय की खाली जगह नॉर्मल नहीं रही है। इस तकनीक का उपयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जिनके पास सिंड्रोम ग्रेड 3-4 है।
  3. गर्भाशय के अंदर के अस्तर एंडोमेट्रियम में टी. बी. हो तो सरोगेसी का उपयोग किया जाता है।

बीजाणु दान में शुक्राणु पति का होता है। बीजांड दाता का होता है और गर्भ का विकास स्त्री के गर्भाशय में होता है। सरोगेट मदर की स्थिति में बीजांड स्त्री का व शुक्राणु पति का लेकिन गर्भ दाता माँ के गर्भाशय में विकसित होता है। दोनों परिस्थितियों में टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक का ही उपयोग किया जाता है। तरीका और खर्च लगभग समान ही होता है। दवाएँ भी समान ही होती हैं।

सरोगेट मदर के तरीके में भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक बातें होती हैं। उनका पूरी तरह से कानूनी समाधान नहीं खोजा गया है। समाज में भी इसे अधिक मान्यता प्राप्त नहीं हुई है।

टेस्ट ट्यूब बेबी में कितना खर्चा होता है? (Test Tube Baby me Kitna Kharcha Aata Hai in Hindi)

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया की औसतन लागत एक से देड लाख रूपए तक हो सकती है।

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया से नई सृष्टि का निर्माण करने का वैज्ञानिकों का सपना धीरे-धीरे साकार हो रहा है। इस तकनीक में नित नया विकास हो रहा है। जिन स्त्री-पुरुषों को माता-पिता बनने का सौभाग्य नहीं मिला है, यह उनके लिए आशा की किरण है।

Leave a Comment

error: Alert: Content selection is disabled!!
Share to...