Last Updated on January 8, 2022 by admin
टिटनेस अथवा धनुस्तंभ एक अत्यंत खतरनाक रोग है, जो प्रसव के वक्त अभी भी हमारे यहाँ शिशुओं और महिलाओं की मौतों का कारण बनता है। विशेषकर देहातों में, जहाँ गर्भवतियों को टिटेनस टॉक्साइड के टीके नहीं लगाए जाते एवं सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था नहीं होती, इस रोग की संभावनाएँ अधिक होती हैं।
यह देखा गया है कि नवजात शिशुओं में भी टिटेनस के मामलों में भारी कमी आई है। अब देहातों के स्वास्थ्य केंद्रों में प्रति एक हजार नवजात शिशुओं में एक से भी कम शिशु में यह रोग पाया जाता है। ऐसा अनुमान है कि अभी भी देश में 70 हजार के लगभग नवजात शिशुओं में टिटेनस का रोग हो जाता है। विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, बिहार और आसाम में नवजात शिशुओं में रोग की दर अपेक्षाकृत अधिक है। यहाँ 70 प्रतिशत प्रसव अप्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा करवाए जाते हैं, जो रोग का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा बड़ों में टिटेनस की संभावनाएँ तब अधिक होती हैं, जब घाव पर मिट्टी, लीद लग जाए या दूषित औजारों से ऑपरेशन किया जाए।
टिटनेस (धनुस्तंभ) रोग क्या है ? (Tetanus in Hindi)
यह एक जीवाणु क्लास्ट्रीडियम टिटेनाई द्वारा उत्पन्न ऐसा रोग है, जिसमें मांसपेशियों (विशेषकर जबड़ों को) में अकड़न और कड़ापन आ जाता है। उदर की ओर मेरुदंड की पेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने से वह धनुष की भाँति अकड़ जाता है। पेशियों में तीव्र दर्द और ऐंठन होती है। रोगी को खाने-पीने में एवं छोटे बच्चों को दूध पीने में कठिनाई होती है। रोग का जीवाणु एक तेज विष (टॉक्सिन) उत्पन्न करता है, जिसके कारण ये लक्षण होते हैं।
टिटेनस या धनुषटंकार के लगभग 40 से 80 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु हो जाती है। अत: उक्त लक्षणवाले शिशुओं या बड़े रोगियों को तुरंत अस्पताल में भरती करवाना चाहिए। टिटनेस अत्यंत खतरनाक रोग है ।अंत: इससे सावधान रहें । धनुस्तंभ (Tetanus) में बच्चे का शरीर धनुष जैसा अकड़ जाता है।
टिटनेस (धनुस्तंभ) रोग का प्रसार कैसे होता है ? :
जीवाणु एक खोल के अंदर सुरक्षित रहते हैं, इन्हें स्पोर कहते हैं। ये स्पोर्स धूल, मिट्टी, घोड़े की लीद इत्यादि में होते हैं। जब चोट लगती है तो ये स्पोर्स उसी समय या बाद में, उचित साफ-सफाई के अभाव के कारण घाव में प्रवेश कर जाते हैं। इसी तरह दूषित ब्लेड, हँसिए या अन्य वस्तु से नवजात शिशु की नाल (cord) काटने से भी रोग के जीवाणु शिशु के रक्त में प्रवेश कर जाते हैं और यदि प्रसूता को टिटेनस टॉक्साइड के दो टीके नहीं लगे होते हैं तो फिर नवजात शिशु को रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। जैसा कि पूर्व में बतलाया गया है कि शल्य क्रियाओं के पश्चात् भी रोगी इस रोग से ग्रसित हो सकता है। रोगाणु-दूषित औजारों के अलावा, टीका लगानेवाले धागे (Cat gut), पट्टी की सामग्री, टेलकम पाउडर द्वारा भी प्रवेश कर सकते हैं।
टिटनेस (धनुस्तंभ) रोग की उद्भवन अवधि :
रोग जीवाणुओं के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् 3 दिवसों से लेकर 21 दिवसों के मध्य कभी भी हो सकता है।
टिटनेस (धनुस्तंभ) रोग से बचाव और रोकथाम :
चूँकि यह एक खतरनाक जानलेवा रोग है, अतः प्रयास यह होना चाहिए कि रोग किसी को हो ही न। सौभाग्य से आज सुरक्षा के लिए कई तरह के टीके उपलब्ध हैं, जिनको समय रहते लगवा लिया जाए तो फिर रोग होने की संभावनाएँ न के बराबर रह जाती हैं।
रोग से सुरक्षा के लिए दो प्रकार से प्रतिरक्षा की जाती है –
(a) सक्रिय प्रतिरक्षा
धनुस्तंभ से सुरक्षा का सबसे आसान और निरापद उपाय है, प्रतिजीवी विष का टीका लगवाना। इसे टिटेनस टॉक्साइड भी कहा जाता है। इसकी छह सप्ताह के अंतर से 0.5 मिली. की दो मात्राएँ पेशियों में लगवाई जाती हैं। इसके अलावा यदि प्रत्येक 10 वर्षों में इसकी एक अनुवर्धक या प्रभावी मात्रा लगवाई जाए तो एक स्वस्थ व्यक्ति भी रोग से सुरक्षित रहता है।
शिशुओं और बच्चों की सुरक्षा –
शिशु को 6 सप्ताह की उम्र से, चार-चार सप्ताहों के अंतर से यदि डी.पी.टी. (डिफ्थीरिया, पोलियो और टिटेनस) की तीन मात्राएँ टीकों के रूप में दी जाएँ, फिर डेढ़ वर्ष की आयु में एक मात्रा एवं स्कूल जानेवाली उम्र (5 से 6 वर्ष के मध्य) में डीटी की एक मात्रा दी जाए तो बच्चा रोग से सुरक्षित रहता है। अब पेंटावेलेंट टीका लगाया जाता है।।
इसी प्रकार गर्भवती स्त्रियों को प्रारंभ में टिटनेस टॉक्साइड के दो टीके एक-एक महीने के अंतर से लगवा दिए जाएँ तो जच्चा-बच्चा दोनों की इस रोग से सुरक्षा रहती है।
(b) परोक्ष प्रतिरक्षण
- दुर्घटनाओं में घायल या जले हुए व्यक्ति को अस्थायी सुरक्षा मानव टिटनेसरोधी इम्यूनो ग्लोब्यूलिंस देते हैं।
- मानव टिटनेसरोधी इम्यूनोग्लोब्यूलिंस सुरक्षित और श्रेष्ठ प्रतिरोधक है। इसकी 250 से 500 अंतरराष्ट्रीय इकाई (I. U.) बराबर मात्रा सभी आयु वर्ग को देते हैं। इसका कोई रिएक्शन या प्रतिक्रिया मानव शरीर में नहीं होती है।
- इस विधि से 30 दिनों तक रोगी को सुरक्षा मिलती है। कई शल्य चिकित्सक ऑपरेशन के पूर्व भी रोगियों को इम्युनोग्लोब्यलिंस लगवाते हैं ताकि शल्य क्रिया के पश्चात् धनुषस्तंभ न हो।
- इसके अलावा ए.टी.एस. की 1500 (I. U.) मात्रा भी रोग से सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन इससे केवल 7 से 10 दिनों तक टिटेनस से सुरक्षा मिल पाती है, साथ ही कई व्यक्तियों में ए.टी.एस. की गंभीर प्रतिक्रिया (Reaction) होती है, जिससे रोगी की जान भी जा सकती है। अतः इसका इस्तेमाल अब कम हो गया है। इसकी जगह मानव इम्यूनोग्लोब्यूलिंस ने ले ली है। टिटनेस के रोगी में अनुभवी चिकित्सक की देखरेख में ए.टी.एस. इंजेक्शन को दिया जाता है।
टिटनेस (धनुस्तंभ) रोग का इलाज :
- यदि घाव है तो उसे अच्छी तरह जीवाणुरोधी घोल द्वारा धोते हैं और पट्टी करते हैं। पेनिसिलिन नामक दवा के इंजेक्शन (पूर्व परीक्षण कर) भी रोगी में टिटेनस के जीवाणु नष्ट करने और उनकी वृद्धि रोकने के लिए लगाए जाते हैं।
- जकड़न पर नियंत्रण के लिए पेशियाँ शिथिल करनेवाली दवाएँ देते हैं। आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन, कृत्रिम श्वास प्रक्रिया इत्यादि भी दी जाती है।
यह दृष्टव्य है कि टिटेनस के रोगी का इलाज घर पर संभव नहीं हो पाता, अत: उसे शीघ्र ही उचित सुविधाओंयुक्त अस्पताल में भरती करना चाहिए।