Last Updated on November 22, 2020 by admin
त्रिफला चूर्ण क्या है ? (What is Triphala Churna in Hindi)
त्रिफला चूर्ण एक आयुर्वेदिक दवा है। इसका उपयोग कब्ज ,प्रमेह ,नेत्र रोग,रक्तविकार जैसे रोगों को दूर करने में किया जाता है । त्रिफला 3 ऐसे फलों का मिश्रण है जो तीनों ही अमृतीय गुणों से भरपूर है। आंवला, बहेड़ा और हरड़।
आँवला, बहेड़ा और पीली हरड़ से भला कौन अपरिचित है? ये तीनों पदार्थ सहज में ही मिल जाते हैं। इन्हें प्राप्त कर घर पर ही त्रिफला का निर्माण किया जा सकता है।
त्रिफला चूर्ण बनाने की विधि हिन्दी में (How to make Triphala Churna in Hindi)
त्रिफला बनाने की विधि इस प्रकार है –
त्रिफला के लिये इन तीनों पदार्थों के सम्मिश्रण का एक निश्चित अनुपात है। यह इस प्रकार है-
- पीली हरड़ का चूर्ण एक भाग,
- बहेड़े के चूर्ण का दो भाग और,
- आँवले के चूर्ण का तीन भाग।
- इन तीनों फलों की गुठली निकाल कर खरल आदि में कूट-पीसकर चूर्ण का मिश्रण तैयार कर लें। यह मिश्रण काँच की बोतल में कार्क लगाकर रख दें, ताकि बरसाती हवा इसमें न पहुँच सके।
चार माहकी अवधि बीत जानेपर बना हुआ चूर्ण काम में नहीं लेना चाहिये, क्योंकि यह उतना उपयोगी नहीं रह पाता है जितना होना चाहिये।
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त्रिफला चूर्ण के औषधीय गुण (Triphala Churna ke Gun in Hindi)
- यह चूर्ण उत्तम रसायन एवं मृदु विरेचक है।
- इस चूर्ण का प्रयोग करने से बीसों प्रकार के प्रमेह रोग, मूत्र का अधिक आना, मूत्र का गंदलापन होना शोथ, पाण्डुरोग और विषम ज्वर नष्ट होता है।
- यह चूर्ण अग्नि प्रदीपक, कफ-पित्त, कुष्ठ और वलीपलित नाशक है।
- इस चूर्ण को रात्रि में गरम जल या दूध के साथ सेवन करने से प्रात: दस्त खुलकर होता है।
- विषम भाग शहद और घी के साथ सेवन करने से नेत्र रोग में अपूर्व लाभ होता है।
- शुद्ध गन्धक के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के रक्तविकार और चर्म रोग नष्ट होते हैं।
त्रिफला चूर्ण सेवन विधि (How to Take Triphala Churna in Hindi)
त्रिफला चूर्ण का सेवन कैसे करें ? –
त्रिफला के सेवन की विधि का भी हमें ज्ञान होना चाहिये। त्रिफला बारह वर्षतक नित्य और नियमित रूपसे विधिवत् प्रातः बिना कुछ खाये-पिये ताजे पानी के साथ एक बार लेना चाहिये। उसके बाद एक घंटेतक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिये।
कितनी मात्रामें यह लिया जाय, इसका भी विधान है। जितनी उम्र हो उतनी ही रत्ती लेनी चाहिये। परंतु एक बात ध्यान रहे कि इस त्रिफला के सेवनसे एक या दो पतले दस्त होंगे, किंतु | इससे घबड़ाना नहीं चाहिये।
यदि यह त्रिफला प्रत्येक ऋतुमें निम्न वस्तुओं के साथ मिलाकर लिया जाय तो इसकी उपयोगिता और भी अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि प्रत्येक ऋतुका अपना-अपना स्वभाव होता है। वर्षभर में दो-दो माहकी छः ऋतुएँ होती हैं। त्रिफलाके साथ कौन-सी ऋतु या माह में कौन-सा, कितनी मात्रामें पदार्थ लिया जाय, वह इस प्रकार है –
- श्रावण और भाद्रपद यानी अगस्त और सितम्बर में त्रिफला को सेंधा नमक के साथ लेना चाहिये। जितना त्रिफला का सेवन करे, सेंधा नमक उससे छठा हिस्सा ले।
- आश्विन और कार्तिक यानी अक्टूबर तथा नवम्बरमें त्रिफला को शक्कर या चीनीके साथ त्रिफला की खुराकसे छठा भाग मिलाकर सेवन करना चाहिये।
- मार्गशीर्ष और पौष यानी दिसम्बर तथा जनवरी में त्रिफला को सोंठ के चूर्ण के साथ लेना चाहिये। सोंठ का चूर्ण त्रिफला की मात्रा से छठा भाग हो।
- माघ तथा फाल्गुन यानी फरवरी और मार्च में त्रिफला को लैण्डी पीपल के चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिये। यह चूर्ण त्रिफला की मात्रा के छठे भागसे कम हो।
- चैत्र और वैशाख यानी अप्रैल तथा मई में त्रिफला का सेवन त्रिफला के छठे भाग जितना शहद मिलाकर करना चाहिये।
- ज्येष्ठ तथा आषाढ़ यानी जून और जुलाई में त्रिफला को गुड़ के साथ लेना चाहिये। त्रिफला की मात्रा से छठा भाग गुड़ होना चाहिये।
जो व्यक्ति इस क्रम और विधिसे त्रिफला का सेवन करता है, उसे निश्चित रूपसे बहुविध लाभ होता है। उसका एक प्रकार से कायाकल्प हो जाता है।
त्रिफला चूर्ण के फायदे (Triphala Churna Benefits in Hindi)
1) दाँतों के रोग – बिना कारण मसूढ़ों में पीप आना, रक्तस्राव, नाक से खून बहना, गर्भाशय से रक्तस्राव होने पर त्रिफला के सेवन से आराम आ जाता है।
2) आयरन की कमी – त्रिफला यकृत को शक्ति देता है और शरीर में लोहे की कमी को पूरा करता है।
3) खून बढ़ाने वाला – त्रिफला नया रक्त उत्पन्न करता है।
4) लिवर के रोग – यकृत में दर्द के विकारों को दूर करता है।
5) मूत्र रोग – त्रिफला मूत्रांगों के काफी रोगों में लाभकारी सिद्ध हुआ है। मूत्र में पीप आना, बुढ़ापे में प्रोस्टेट ग्लैंड्स का बढ़ जाना, मूत्र बंद हो जाने की तकलीफों में बड़ा लाभप्रद है। बुढ़ापे में भी वृक्कों को नियमित बनाए रखता है।
6) पेट में कृमि – त्रिफला खिलाते रहने से बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते हैं।
7) दाँतों की मजबूती – त्रिफला को किसी बंद बर्तन में जलाकर राख को पीसकर छान लें। इस राख को दाँतों एवं मसूढ़ों में मलते रहने से पीप और रक्त आने की तकलीफ में आराम मिलता है। हिलते दाँत मज़बूत हो जाते हैं। मुँह से बदबू आना बंद हो जाती है।
8) रसायन – आँवला और हरड़ को रसायन कहा गया है। रसायन वे दवाएँ होती हैं, जिनमें बूढ़ों को जवान बनाने के विशेष गुण होते हैं। त्रिफला में बूढ़ों को जवान बनाने के विशेष गुण है क्योंकि त्रिफला मनुष्य की ग्लैंड्स, स्नायु, मस्तिष्क, यकृत, दिल और पाचनअंगों को ताकतवर बनाए रखता है। इसलिए त्रिफला को मधु के साथ खाने से रक्तवाहिनियाँ कोमल और लचीली हो जाती हैं।
9) चेहरे की झुर्रियाँ – त्रिफला के नियमित उपयोग से चेहरे की झुर्रियाँ दूर हो जाती हैं। बड़ी आयु में भी दिल फेल नहीं होता और मनुष्य बुढ़ापे में भी जवानों की तरह चुस्त और शक्तिशाली बना रहता है।
10) बालों की मजबूती – त्रिफला के पानी से सिर और बाल धोते रहने से बाल लंबे, चमकीले, घने, काले सुंदर और अधिक पैदा होने लगते हैं और समय से पूर्व सफेद नहीं होते हैं।
11) सिर में गरमी – पुराना सिरदर्द, सिर में गरमी की अधिकता, उच्च रक्तचाप,नाक से रक्त आना रुक जाता है।
12) बलवर्धक – मस्तिष्क और स्नायु शक्तिशाली हो जाते हैं।
13) घाव – इसके पानी से घावों को धोते रहने से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
14) पाचनशक्ति वर्धक – त्रिफला पाचन अंगों की कमज़ोरी दूर करता है।
15) बवासीर – यह खूनी और बादी बवासीर में काफी लाभप्रद है।
16) आतों की मजबूती – आमाशय और अंतड़ियों को शक्तिशाली बनाता है।
17) पेट के रोग – भूख न लगना, पेट फूल जाना, पेट में वायु की अधिकता,आंत्रशोध, भोजन न पचने के कारण सिरदर्द, दिल पर दबाव पड़ने से दिल का अधिक धड़कना, गैस के कारण नींद न आना इनमें यह बड़ा लाभकारी सिद्ध हुआ है।
18) हृदय के लिए हितकर – त्रिफला दिल को शक्ति देता है, दिल अधिक धड़कना,फड़फड़ाना, गरमी में पैदा होनेवाले दिल के रोग, रक्तवाहिनियों का तंग हो जाना और उनमें लचक न रहना आदि रोगों में उत्तम उच्चकोटि की दवा है। इसका लगातार प्रयोग करने से दिल ताकतवर हो जाता है। रक्तवाहिनियाँ नर्म और लचीली होने के कारण मनुष्य बड़ी उम्र में चुस्त रहता है।
19) नेत्र ज्योजी बढ़ानेवाला – त्रिफला के प्रयोग से आँखों से पानी बहना, आँखों की लाली, खुजली, रात को कम दिखाई देना, दृष्टि की कमज़ोरी दूर हो जाती है।
20) सूंघने की शक्ति – मस्तिष्क और स्नायु को शक्ति देने तथा पुराने जुकाम, नाक में शोध, नाक बंद हो जाना, सूंघने की शक्ति न रहना और नाक में बू आने की रामबाण सस्ती दवा है। यानी त्रिफला मनुष्य के जीवन को चुस्त बनाती है।
त्रिफला चूर्ण के अन्य लाभ (Triphala Churna ke Labh in Hindi)
- पहले वर्ष में यह तनकी सुस्ती, आलस्य आदिको दूर करता है।
- दूसरे वर्ष में व्यक्ति सब प्रकार के रोगों से मुक्ति पा लेता है अर्थात् सारे रोग मिट जाते हैं।
- तीसरे वर्ष में नेत्र-ज्योति बढ़ने लगती है।
- चौथे वर्ष में शरीर में सुन्दरता आने लगती है। शरीर कान्ति तथा ओज से ओत प्रोत रहता है।
- पाँचवें वर्ष में बुद्धि का विशेष विकास होने लगता है।
- छठे वर्ष में शरीर बलशाली होने लगता है।
- सातवें वर्ष में केश राशि यानी बाल काले होने लगते हैं।
- आठवें वर्ष में शरीर की वृद्धता तरुणाई में बदलने लगती है।
- नवें वर्ष में व्यक्ति की नेत्रज्योति विशेष शक्ति-सम्पन्न हो जाती है।
- दसवें वर्ष में व्यक्तिके कण्ठ पर शारदा विराजने लगती हैं।
- ग्यारहवें और बारहवें वर्ष में व्यक्तिको वाक्-सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है।
इस प्रकार बारह वर्षतक निरन्तर उपर्युक्त विधिसे त्रिफलाका सेवन करनेके उपरान्त व्यक्ति व्यक्ति न रहकर परम साधक बन जाता है,क्योंकि उसकी समस्त मनोवृत्तियाँ स्वस्थ तथा सात्त्विक हो जाती हैं।
त्रिफला चूर्ण के नुकसान (Triphala Churna Side Effects in Hindi
दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)
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