Last Updated on July 22, 2019 by admin
उज्जायी प्राणायाम के फायदे / लाभ : ujjayi pranayam ke fayde / labh
✦ उज्जायी’ शब्द का अर्थ ‘विजयी’ अथवा ‘विजेता’ है। यह प्राणायाम समस्त स्त्रीपुरुषों के लिए सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि इस प्राणायाम से बाह्य और आन्तरिक दोनों ही प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
✦ उज्जायी प्राणायाम सर्वोत्तम प्राणायाम माना गया है। इससे शरीर के ताप का शमन होता है।
✦ उज्जायी प्राणायाम से जठराग्नि प्रदीप्ति होती है।
✦ उज्जायी प्राणायाम हृदय तथा फेफड़ों के विकार को दूर करता हैं।
✦ उज्जायी प्राणायाम से बाह्य तथा आभ्यान्तरिक शुद्धि होकर स्नायुमण्डल अधिक क्रियाशील बनता है।
✦ उज्जायी प्राणायाम से हमारे अंगप्रत्यंग पुष्ट होते हैं।
✦ उज्जायी प्राणायाम से उत्साह, स्फूर्ति, क्षमता और जीवनीशक्ति की वृद्धि होती है। यह शरीर को सुन्दर तथा स्वस्थ बनाता है।
उज्जायी प्राणायाम की विधि : ujjayi pranayam steps in hindi
‘इसे खड़े होकर, लेटकर तथा बैठकर तीनों प्रकार से किया जा सकता है। इस प्राणायाम की क्रमशः तीनों विधियाँ निम्नांकित हैं
पहली विधि ( खड़े होकर ) :
1- सीधे खड़े होकर अपने पैरों से 45 डिग्री का कोण बनाएँ अर्थात् दोनों पाँवों की एड़ियाँ परस्पर सटी हुई तथा अँगूठे अलग-अलग रखें ।
2- अब आपकी आँखें पृथ्वी से जितनी ऊँचाई पर हों-ठीक उसी के सीध में सामने की ओर देखें ।
ऊपर-नीचे न देखें । चेहरे पर प्रफुल्लता रहनी चाहिए। दोनों हाथ दोनों ओर ढीले लटके रहने चाहिए तथा शरीर का भार दोनों एड़ियों पर समान रूप से डालें, ताकि दोनों कन्धे भी एक सीध में रहें। इस स्थिति में आप निश्चल परन्तु आराम से खड़े हों।
3- अब सर्वप्रथम पूरे वेग से भीतर की सम्पूर्ण वायु को मुँह द्वारा बाहर निकाल दें । वायु को दोनों होंठों के बीच से इस प्रकार निकालना चाहिए जिस प्रकार सीटी बजाते समय निकालते हैं । अर्थात् मुँह से श्वास बाहर निकालते समय दोनों होंठों को मोड़कर नाली जैसा बना लेना चाहिए।
4- श्वास छोड़ने की क्रिया पूरी हो। जाने पर दोनों नासा छिद्रों से धीरे-धीरे लगातार साँस लेना आरम्भ करें। श्वास लेते समय न तो जोर लगाएँ और न ही श्वास द्वारा अत्यधिक वायु को भीतर लेने का प्रयत्न करें। बिना जोर लगाए, जितनी वायु ग्रहण कर सकते हों, आरम्भ में सामान्य से केवल 85% वायु ही ग्रहण करें । तत्पश्चात् वायु ग्रहण की मात्रा को अपनी क्षमतानुसार उत्तरोत्तर बढ़ाते जाएँ।
5- श्वास ग्रहण कर लेने अर्थात् ‘पूरक’ के बाद ‘कुम्भक’ करें।
श्वास को भीतर रोकने की स्थिति में ही अपने सम्पूर्ण शरीर में दृढ़ता तथा कड़ापन ले आएँ । छाती भीतर की ओर तनी हुई और पेट भीतर की ओर खिंचा रहना चाहिए। पैर, जाँघ, कमर, पीठ, हाथ और कन्धे आदि शरीर के समस्त अंग कड़ाई की स्थिति में रहने चाहिए।
6- ‘कुम्भक’ के बाद ‘रेचक’ की क्रिया आरम्भ कर दें । ऐसा करते समय अपने सम्पूर्ण शरीर को नीचे से ऊपर तक ढीला छोड़ना प्रारम्भ करें । ज्यों-ज्यों श्वास बाहर निकाली जाए, त्यों-त्यों अपने शारीरिक अंगों में क्रमिक रूप से शिथिलता आनी चाहिए। श्वास छोड़ने की प्रक्रिया भी धीमी गति से लगातार चलनी चाहिए। जब श्वास त्याग की क्रिया पूर्णतः समाप्त हो जाए। तब 8 सेकेण्ड के भीतर 2 या 3 संख्या में स्वाभाविक श्वास लें। इससे आपको थोड़ा-सा विश्राम मिल जाएगा। प्रथम दिन उक्त क्रिया को केवल 3 बार दोहराएँ। दूसरे दिन 4 बार और तीसरे दिन 5 बार दोहराना चाहिए। एक दिन में इससे अधिक दोहराने की आवश्यकता नहीं। यह अभ्यास 24 घण्टे में केवल 1 बार अथवा 8 घण्टे के अन्तर से 2 बार तक ही करें।
विशेष-‘रेचक’ करते समय यह भावना रहनी चाहिए कि आपके शरीर से सम्पूर्ण दोष बाहर निकल रहे हैं तथा ‘पूरक’ करते समय यह विचारना चाहिए कि आप वायु के माध्यम से ऐसी जीवनीशक्ति तथा ऊर्जा को ग्रहण कर रहे हैं, जो आपके लिए अत्यन्त हितकर है। इन भावनाओं के साथ ‘रेचक’ तथा ‘पूरक’ करने से इस प्राणायाम का लाभ अत्यधिक बढ़ जाता है ।
इस प्राणायाम में ‘कुम्भक’ करते समय कुछ लोगों को सिर में चक्कर आने की शिकायत उत्पन्न हो जाती है। इसका प्रमुख कारण स्वच्छ वायु का अभाव कब्जमादक पदार्थों का सेवन तथा पेट का भारी होना आदि हो सकते हैं। यदि इन कारणों को दूर कर लिया जाए तो चक्कर नहीं आते। जिन लोगों को सिर में चक्कर आएँ, उन्हें श्वास लेने तथा रोकने के समय में कमी कर देनी चाहिए।
दूसरी विधि (लेटकर) :
1- फर्श पर सीधे लेट जाएँ। दोनों हथेलियों को शरीर के समीप फर्श पर रखें। दोनों एड़ियाँ परस्पर सटी रहें। शरीर एकदम ढीला रहे और दृष्टि ऊपर की ओर रहनी चाहिए।
2- अब श्वास लेने, रोकने तथा पुनः छोड़ने की क्रियाएँ उसी प्रकार से करें जिस प्रकार से खड़े होने की उपरोक्त स्थिति में । ‘रेचक करते समय पेट संकुचित तथा शरीर ढीला रखें । ‘कुम्भक करते समय शरीर को नीचे से ऊपर तक की माँसपेशियों को कड़ा रखना चाहिए । अभ्यास का एक चक्र पूरा हो जाने पर 2-3 स्वाभाविक श्वास लेकर विश्राम करना चाहिए तदुपरान्त पहले बताए अनुसार ही चक्रों का पुनरावर्तन करना चाहिए।
विशेष- जिन्हें खड़े होकर यह प्राणायाम करने से सिर चकराने की शिकायत हो, उन्हें लेटकर करने से कोई शिकायत नहीं होती। जो लोग शरीर से दुर्बल अथवा खड़े होकर अभ्यास करने में असमर्थ हों, उन्हें लेटकर ही यह प्राणायाम करना चाहिए।
तीसरी विधि ( बैठकर) :
1- सिद्धासन अथवा वज्रासन की स्थिति में बैठकर गले के समीप श्वास नली को सिकोड़ते हुए अर्थात् सिसकने जैसी स्थिति में नासिका से गहरी श्वास लें । परन्तु खेचरीमुद्रा बनाकर ऐसा अनुभव करना चाहिए कि श्वास नाक से नहीं अपितु मुँह से ली जा रही है।
2- फिर जालन्धरबन्ध बनाकर कुम्भक करें ।
3– तदुपरान्त बाँए नासा छिद्र से धीरे-धीरे रेचक करें। इस क्रिया को 5 से 10 बार तक दोहराएँ।