Last Updated on August 22, 2021 by admin
वात क्या है ? (Vata in Hindi)
वात अर्थात क्या ?
वात आकाश और वायु से बना है । आकाश हल्का होता है तथा वायु शुष्क होती है। इन दोनों तत्त्वों की ही तरह वात पतला, हल्का, गतिशील, शुष्क, रुक्ष तथा सर्वव्यापी होता है ।
वात का शरीर में कार्य और इसके गुण (Vata Ka Sharir Mein Karya)
वात का हमारे शरीर में क्या कार्य होता है ?
- वात शरीर की सारी गतियों, शरीर और मस्तिष्क की क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
- यह श्वसन, प्रश्वसन तथा उत्सर्जन क्रियाओं को नियंत्रित करता है ।
- वात मस्तिष्क के सूचना तंत्र को भी नियंत्रित करता है ।
- यह चिन्तन-प्रक्रिया को निर्देश देता है ।
- इस प्रकार यह वाणी, संवेदना, स्पर्श, श्रवण, घ्राण आदि क्रियाओं के लिए जिम्मेदार है ।
- यह शरीर की भावनात्मक क्रियाओं को नियंत्रित करता है ।
- भय, दुख, उत्सुकता, प्रेरणा, साहस आदि भावनाओं तथा प्राकृतिक आवश्यकताओं को भी वात नियंत्रित करता है।
- वात शरीर में रक्त-संचालन की व्यवस्था करता है ।
- काम क्षमता तथा भ्रूण के बनने की क्रिया वात द्वारा संचालित होती है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि वात के कार्य आकाश और वायु से संबंधित हैं । रक्त-परिवहन, सोचने की क्षमता, संवेदना आदि वायु की तरह तीव्रगामी होती हैं । सर्वव्यापी आकाश की भांति रक्त शरीर के हर भाग में हर समय पहुँचता रहता है । इसी प्रकार प्राकृतिक आवश्यकताएँ वायु की तरह दबाव डालने वाली होती हैं । वाणी, संवेदना, स्पर्श, श्रवण आदि क्रियाओं के लिए केन्द्रीय एवं परिधीय तंत्रिकातंत्र के बीच बार-बार अतिशीघ्र सम्पर्क स्थापित करना पड़ता है। वाणी और श्रवण का माध्यम आकाश होता है । श्वसन में गति तथा वायु का होना आवश्यक होता है।
वात प्रधान प्रकृति के लक्षण (Vata Prakriti ke Lakshan Hindi)
वात प्रधान व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं ?
वात प्रकृति के लक्षण मनुष्य के व्यक्तित्व पर निम्नलिखित पड़ता है –
- वातप्रधान व्यक्ति फुर्तीले, चंचल और जल्दबाज होते हैं ।
- वह जल्दी निर्णय लेते हैं तथा चिन्ता, भय और चिड़चिड़ाहट भी उन्हें जल्दी हो जाती है ।
- वायु और आकाश ठंडी प्रकृति के हैं, इस कारण वातप्रधान व्यक्ति ठंड और शीतलता को आसानी से नहीं झेल पाते ।
- वायु की रुक्ष प्रकृति ऐसे लोगों के बालों तथा नाखूनों में भी देखी जा सकती है ।
- वातप्रधान लोगों की रक्तवाहिनियाँ उभरी हुई होती हैं।
आइए, अब उन सभी कारकों का अध्ययन करें जो वात में वृद्धि करते हैं और साथ ही पूर्व सावधानियों तथा चिकित्सा-विधि की व्याख्या करें जिससे इस दोष को संतुलित किया जा सकता है ।
वात दोष को बढ़ानेवाले कारक (Vata Dosha ko Badhane Wale Karak in Hindi)
वात दोष क्यों होता है ?
वात में वृद्धि करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –
- उपवास,
- अधिक शारीरिक व्यायाम,
- ठंड का प्रभाव,
- आलस्य,
- रात्रि-जागरण,
- बरसात का मौसम,
- बुढ़ापा,
- शाम तथा रात का अंतिम पहर,
- अधिक हरे फल या सब्जियाँ, शुष्क, अच्छी तरह न पकाया हुआ बासी व कठोर पदार्थों का खाना,
- चोट, घाव,
- अत्यधिक रक्तस्राव,
- अत्यधिक सहवास,
- उत्तेजना,
- कष्टकर शरीर-मुद्राएँ,
- प्राकृतिक आवश्यकताओं को दबाना तथा
- स्वयं को दोषी और अपराधी महसूस करना ।
ऊपर दिये गये वर्णन से स्पष्ट है कि त्रिदोष-सिद्धांत में समय का हर प्रकार से विशेष महत्त्व है । दिन का पहर, मौसम, व्यक्ति की आयु, सबका अपना-अपना महत्त्व है। इसी प्रकार व्यावहारिक तथा भावुक पहलू भी महत्त्वपूर्ण है। कोई व्यक्ति यदि रात-भर जागता रहे या अपने आपको किसी बात के लिए दोषी मान ले तो बस इतने से ही उसके शरीर में वात का संतुलन बिगड़ जायेगा ।
स्वास्थ्य को ठीक बनाये रखने के लिए शारीरिक प्रयत्न ही काफी नहीं है, भावनाओं पर नियंत्रण की भी उतनी ही आवश्यकता है । इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि आप भावनाओं को दबाकर रखें । व्यक्ति को देश और काल से अनुरूपता बनाये रखनी चाहिए ताकि त्रिदोषों का संतुलन न बिगड़े।
वात बढ़ने के लक्षण (Vata Badh Jaane Ke Lakshan)
वात दोष के क्या लक्षण होते हैं ?
वात जब विकृत हो जाता है तो शरीर में –
- अकड़न और दुखन होती है,
- मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है और मुंह सूखता है,
- पेट दर्द होता है,
- त्वचा में खुश्की का अनुभव होता है,
- शरीर में थकान रहने लगती है और मल का रंग काला हो जाता है,
- जबड़ों में तथा आँखों में दर्द होता है,
- आँख की पुतलियों में संकुचन होता है,
- कनपटी में दर्द होना,
- आँखों के आगे अंधेरा छाना,
- चक्कर आना,
- कँपकँपी होना,
- हिचकियाँ आना,
- बेचैनी होना,
- त्वचा का सूखना, आदि वात विकृति के अन्य लक्षण हैं ।
चरक ऋषि ने वात विकृति से होने वाले अनेक रोगों की चर्चा की है जिनमें से अस्सी मुख्य बताए हैं। इन अस्सी रोगों में से ज्यादातर तरह-तरह के दर्द हैं । हमनें यहाँ पर केवल विकृत वात से उत्पन्न होने वाले मुख्य रोगों का ही वर्णन किया है।
पहला कदम किसी दोष के संदर्भ में अपनी प्रकृति को समझना है जिससे संतुलन को बिगड़ने से रोका जा सके । दूसरा कदम त्रिदोष असंतुलन को फिर से संतुलित कर स्वास्थ्य में आई गड़बड़ी को ठीक करने का है । अब यह देखते हैं कि बढ़े हुए वात को शांत करके त्रिदोषसंतुलन स्थापित करने के लिए क्या उपाय किया जाए।
वात को संतुलित करने के उपाय (Vata ko Shant Karne ke Upay)
सबसे पहले पेट खाली किया जाए और फिर उपयुक्त खुराक लेकर वात पर नियंत्रण किया जाए । उपयुक्त खुराक से अभिप्राय उन खाद्य पदार्थों से है जो बढ़े हुए वात को शांत कर सकें ।
वात को संतुलित करने के अन्य उपायों में –
- ठंड से बचना,
- मीठा, खट्टा और नमकीन भोजन करना,
- मालिश करवाना,
- गर्म पानी से स्नान करना है ।
- भरपूर आराम करना,
- गहरी नींद सोना,
- शांत वातावरण में रहना,
- प्रसन्नचित्त रहना
- अशांत वात को शांत करने के लिए आवश्यक है ।
वात बढ़ने का उपचार (Vata Dosha ka Upchar in Hindi)
वात दोष का उपचार कैसे किया जाता हैं ?
असंतुलित वात को ठीक करने के लिए उन सब कारकों को ध्यान में रखना चाहिए जिनके कारण वात में वृद्धि हुई है । जैसे ही वात में वृद्धि के लक्षण दिखाई पड़ें, उसको बढ़ाने वाली सभी वस्तुओं तथा कार्यों पर नियन्त्रण करना चाहिए । जिन परिस्थितियों में वात असंतुलित होता है, उन पर नियंत्रण रखने के लिए समय पर कदम उठाने चाहिए ।
उदाहरण के लिए – हमें मालूम है कि वर्षा ऋतु या आर्द्र मौसम वात में वृद्धि करते हैं । इस ऋतु में हमें वे सब काम नहीं करने चाहिए जो वात में वृद्धि करते हैं । इसके विपरीत हमें वह शैली अपनानी चाहिए जो वात को कम करती है । इससे हम मौसम के कारण वात-वृद्धि से बच सकते हैं ।
वात-प्रधान लोगों को वात में वृद्धि करने वाले भोजन तथा जीवन-शैली से बचना चाहिए । इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि आपको अपने किसी अधिक प्रिय भोजन को छोड़ना पड़ेगा। आपको केवल इतनी सावधानी बरतनी होगी कि वातवर्धक पदार्थों के साथ-साथ वात कम करने वाले पदार्थों का सेवन भी करें । जैसे – आलू की प्लेट के साथ टमाटर का सलाद जिसमें कुछ लहसुन भी मिला हो । यह संयोजन एक प्राकृतिक संतुलन स्थापित करेगा ।
वात बढ़ने के दुष्प्रभाव (Vata Badhne ke Nuksan in Hindi)
जितने अधिक वात में विकृति के कारण एक साथ हो जायेंगे, उतना ही दुष्प्रभाव पड़ेगा । जैसे – 55-60 की उम्र पार करने के बाद कोई व्यक्ति देर रात तक जागता है, अधिक चिन्ता करता है, वात में वृद्धि करने वाला भोजन करता है, जैसे आलू, चावल, फूलगोभी आदि, तो निश्चय ही वह वात रोग से पीड़ित हो जायेगा ।
इसी प्रकार चोट से पीड़ित व्यक्ति भी जल्दी वात रोग का शिकार होता है, अत: वात को नियंत्रण में रखने के लिए सभी सम्भव उपाय करने चाहिए।
यदि वात-प्रधान व्यक्ति सावधानी नहीं बरतेंगे तो वे तरह-तरह के दर्द से पीड़ित रहने लग जायेंगे और वास्तविक आयु से ज्यादा के लगने लगेंगे। वात जब बढ़ जाय तो वातवर्धक पदार्थों या कार्यों से और भी विकृत हो जाता है और यदि वात कम करने वाले कारक इस्तेमाल किए जाएँ तो यह घटने लगता है और फिर त्रिदोष संतुलन आ जाता है ।
आधुनिक युग में रासायनिक खादों, कीटनाशकों तथा खाद्य पदार्थों में अन्य रसायनों के प्रयोग से वात-विकृति होती है । इससे श्वसन तथा रक्त संबंधी रोग, गठिया, मुटापा, पाचन संबंधी अनिद्रा तथा मानसिक रोग हो जाते हैं । इस सबको ध्यान में रखते हुए हमें इस दोष को विकारयुक्त होने से बचाना चाहिए जिससे संबंधित बीमारियों से बचा जा सके ।