Last Updated on October 1, 2019 by admin
कब्ज का इलाज : Pet saaf karne ke upay in hindi
मानव शरीर में जितने भी रोग उत्पन्न होते हैं, उन सबका आरम्भ प्रायः उदर रोग से होता है । एक कहावत है कि ‘पेट खराब तो शरीर खराब’ और यह कहावत कुछ मिथ्या भी नहीं है। अनुपयुक्त आहार का प्रभाव सबसे पहिले उदर पर ही पड़ता है । सन्तुलित सात्विक भोजन हमारे शरीरमें विद्यमान सभी धातुओं को पुष्ट करता है। किन्तु असन्तुलित, असात्विक और असामयिक भोजन सबसे पहले पाचन तन्त्र पर ही प्रहार करता है, जिसके कारण अनेक प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
उदर रोगों में मुख्य व्याधि मलावरोध अर्थात् कब्ज है इस रोग के शिकार लगभग अस्सी प्रतिशत मनुष्य तो मिलेंगें ही । इसमें स्त्री या पुरुष का भी कुछ भेद नहीं है । यद्यपि आयुर्वेदज्ञों ने मलावरोध को कोई स्वतन्त्र रोग नहीं माना है, तथापि अब, इस युग में तो यह एक प्रकार से महारोग ही है।
कब्ज के कारण : kabj ke Karan
1) मलावरोध के अनेक कारण हो सकते हैं। सर्व प्रथम गरिष्ठ भोजन को ही लें, जो कि पचता भी नहीं और नि:सरित भी नहीं होता और होता भी है तो फिर पतले दस्त कर देता है । पेट में दर्द, अफरा , वमनेच्छा, वमन आदि सब मलावरोध के ही उपसर्ग रूप में प्रकट होते हैं ।
2) मलावरोध के अन्य कारणों में- आलस्य में पड़े रहना, परिश्रम न करना,व्यायाम न करना, दिन में सोना, रात्रि में जागना, मादक द्रव्यों का सेवन करना आदि अनेक अव्यवहारिक क्रियाएं हैं, जो पाचन तन्त्र के अनुकूल नहीं होती।
3) शोक, चिन्ता, क्रोध, हिंसा- प्रतिहिंसा का उदय होना, अधिक स्त्री – संसर्ग और अश्लील विचारों में डूबे रहना आदि से भी मलावरोध हो जाता है ।
4) मल- मूत्र का वेग रोकना, विभिन्न रोगों में ऐसी दवाएँ खाना जो मल को खुश्क कर देती हों, इन सब कारणों से भी कब्ज का हो जाना स्वाभाविक है ।
कब्ज के लक्षण : kabj ke Lakshan
कब्ज रहने पर शरीरमें अनेक उपसर्ग उत्पन्न हो जाते हैं। उनमें लक्षण भी भिन्न भिन्न होते हैं। संक्षेप में
1) पेट पर भारीपन, अफरा, पेटदर्द, जी मिचलाना आदि उपद्रव तो चाहे जब देखे जा सकते हैं।
2) सिर – दर्द, सर्वांग दर्द, चक्कर आना, खाँसी, श्वास, बबासीर आदि तथा ज्वर भी हो जाता है।
3) रोगी को अनेक बार प्रतीत होता है कि दस्त होगा, किन्तु होता नहीं ।इसलिये बार- बार शौच के लिये जाता तथा बहुत समय तक वहाँ बैठा रहता है । फिर निराश लौट आता है। बार- बार थोड़ा- थोड़ा दस्त होना भी मलावरोध का ही सूचक है।
कब्ज मिटाने के सरल उपचार : kabj ka gharelu ilaj
रोग कोई भी हो, कैसा भी हो, उसे असाध्य नहीं मान लेना चाहिये। मनुष्य उपाय करे तो उसे सफलता भी मिल जाती है। कभी- कभी देखा गया है कि आहार-विहार को सन्तुलित और सात्विक करने, परिश्रम और व्यायाम करने आदि से ही बहुत कुछ लाभ हो जाता है।
वस्तुतः स्वाभाविक उपाय ही सर्वोपरि समझने चाहिये, औषधादि का सेवन तो रोग- निवृत्ति में सहायक उपाय ही है। किन्तु वर्तमान समय में लोगों ने औषधि को ही मुख्य उपाय समझ लिया है, बात- बात पर डॉक्टर के पास जाते हैं और उन ऐलोपैथिक दवाओं का आश्रय लेते हैं, जो सामयिक लाभ तो दिखाती हैं, किन्तु विभिन्न तन्त्र में गड़बड़ी उत्पन्न कर देती हैं। परिणाम स्वरूप अन्य व्याधियाँ प्रत्यक्ष दिखाई देने लगती हैं।
किन्तु ध्यान रखें किकोई भी औषधि तब तक स्थायी लाभ नहीं पहुँचा सकती, जब तक रोग के कारणों को दूर न किया जाय । स्वाभाविक चिकित्सा का मूल मन्त्र यही है कि जिन कारणों से रोग उत्पन्न हुआ है, सर्व प्रथम उनका निवारण करो । अपने आहार को सुधारो । सामान्य सात्विक भोजन और उच्च विचार मनुष्य के स्वास्थ्य को भी सदा अनूकूल रखते हैं।
यदि विबन्ध (कब्ज) रहता ही है तो यह ध्यान रखो कि आहार विहार में संयम के बिना काबू में नहीं आयेगा । वरन् वह लोकोक्ति ही चरितार्थ होगी कि ‘रोग बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ । कुछ नियम बनायें, सन्तुलन बनायें और अपनी दिनचर्या को नियमित करें।
1) प्रातः काल प्रसन्न मन से शय्या छोड़कर उठे । ईश्वर में विश्वास हो तो उसका स्मरण
करें न विश्वास हो तो विश्वकल्याण की भावना करें और भ्रमण के लिये ऐसे मार्ग से जायें, ऐसे स्थान में घूमें जहाँ धूल- धक्कड़ न हो । ठण्डी, मन्दी, प्रदूषण रहित वायु की। प्राप्ति हो सके तो वह अमृत के तुल्य होगी । प्रातः काल ताजी पानी का सेवन अधिक लाभकारी होता है। किन्तु पानी शुद्ध प्रदूषित पदार्थों एवं कृमि आदि से भी रहित हो । नित्य प्रति प्रातःकाल समय पर शौच जायें । कब्ज की स्थिति में भी शौच के लिये जाना आवश्यक है । उससे मल उतरने में सुविधा रहेगी, न भी उतरे तो उस आदत को न छोड़ें। ( और पढ़ें – कब्ज दूर करने के घरेलु उपचार )
2) शौच के पश्चात् स्नान अवशय करें। ग्रीष्मादि ऋतुओं में ठण्डे पानी से नहायें और शीत ऋतु में गुनगुने से अधिक गर्म पानी से स्नान भी शरीर के अनूकूल नहीं रहता । वरन उससे त्वचा पर कालापन आता है। ( और पढ़ें – पुरानी कब्ज का इलाज )
3) हरी सब्जियाँ अधिक खाएँ- पालक, बथुआ, मूली, टमाटर, सहजना (शोभांजन) आदि सभी सुपाच्य और स्वाभाविक रूप से अंग- प्रत्यंग की क्रियात्मकता की वृद्धि में सहायक होते हैं। पालक का सूप, टमाटर या अदरक का सूप, नीबू निचोड़ कर पीने से मलाशय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है और यह सेवन में स्वादिष्ट भी लगते हैं। फलों में अमरूद पाचन – तन्त्र को अनूकूल रूप से प्रभावित करता है । इसके सेवन से कब्ज आदि अनेक विकार दूर हो जाते हैं । यदि प्रातःकालीन नाश्ते में केवल ताजा अमरूद खाये तो उससे कब्ज न रहने में बहुत सहायता मिलेगी। यदि चाहे तो अमरूद के टुकड़े काटकर, नमक, कालीमिर्च एवं नीबू आदि डालकर भी ले सकते हैं। अन्य फलों में पपीता, आम, सन्तरा, अंजीर, आलूबुखारा आदि उत्तम हैं। तात्पर्य यह है कि सभी ऋतु फल मानव प्रकृति के अनुकूल रहते हैं, उनके सेवन से लाभ ही अधिक होता है। ( और पढ़ें – कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज )
4) मलावरोध से ग्रस्त रोगी को बिना छने आटे की रोटी अधिक लाभदायक रहती हैं,क्योंकि उसमें सभी तत्व विद्यमान रहते हैं। उनके कारण वह आटा स्वयं में एक पूर्ण आहार (Whole meal) के रूप में रहता है । इसमें जो भूसी होती है वह पौष्टिक होते हुए भी रेचक होती है । अपने इसी गुण के कारण वह आटा मलावरोध दूर करता है और शरीर को शक्ति भी देता है।
5) मलावरोध के रोगी को भोजन के साथ पानी पीना आवश्यक है। क्योंकि शुष्क भोजन स्वयं में कब्ज का कारण बन जाता है । यद्यपि भोजन के साथ अधिक पानी पीने का निषेध रहता है, कुछेक मत में भोजन के मध्य में थोड़ा पानी पीना चाहिये, अधिक नहीं पीना चाहिये । क्योंकि अधिक पानी पीने से रस में पतलाफ्न की अधिकता होती है, जिससे पाचनक्रिया में व्यवधान उपस्थित होता है। किन्तु कब्ज के रोगी के लिये यह उचित है कि वह भोजन के साथ तथा भोजन के बाद भी 2-3 घंटे के अन्तर पर उचित मात्रा में पानी पीता रहे।
6) कब्ज में चिकनाई भी हितकर रहती है। किन्तु वह आवश्यक मात्रा में ही लेनी चाहिये। रोटी चुपड़ी, खिचड़ी आदि में घृत का सेवन लाभदायक रहेगा। किन्तु घृत के साथ गुंथी मोटी रोटी, बाटी, चूरमा, पकवान या मिष्ठान प्रभृति वस्तुएं पाचन- तन्त्र पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। कब्ज के रोगी को उनसे बचना चाहिए।
7) दालों में मूंग, मठ, मसूर आदि की दालें हल्की रहती हैं। किन्तु उड़द की दाल अधिक गरिष्ठ रहती है। अरहर की दाल भी कुछ अधिक अनुकूल नहीं होती, इसलिये इनका सेवन अपनी प्रकृति और शक्ति के अनुसार ही करना चाहिये।
8) कब्ज- रोगियों को वस्ति कर्म का परामर्श दिया जाता है। वर्तमान में आधुनिक चिकित्सक एनीमा द्वारा पेट साफ रखने का निर्देश देते हैं,वह वस्ति से भिन्न कर्म नहीं है । सामान्य अवस्था में जब तक कब्ज पुराना न हुआ हो आधा लिटर गर्म पानी का प्रयोग पूर्ण वयस्क के लिये पर्याप्त है। उससे लाभ न हो तो एरण्ड तैल और थोड़े से साबुन को पानी में मिलाकर प्रयोग करना उचित समझा जाता है । किन्तु साबुन आदि क्षारीय वस्तुओं के मिश्रण से आन्त्र की दीवार में क्षोभ उत्पन्न हो जाता है, तब गुड़गुड़ाहट या मिथ्या शौचेच्छा के कारण मन में भी क्षोभ और अनुत्साह की उत्पत्ति हो जाती है अतः गर्म पानी का एनीमा अधिक उपयुक्त रह सकता है।
कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज : qabz/ kabj ka ayurvedic ilaj
अब यहाँ मलावरोध दूर करने के कुछ औषधोपचारों का वर्णन करना आवश्यक है |
1) रात्रि में 1 गिलास गर्म पानी पीयें और प्रातःकाल 1 गिलास ठण्डा बासी पानी पीयें । यह सहज उपचार भी है और एक प्रकार से औषधोपचार के तुल्य लाभकारी भी है। किन्तु यह उपाय कब्ज की आरम्भिक अवस्था में अधिक कारगर होता है।
2) रात्रि में शयन समय 4-6 ग्राम सोंफ चबाकर खायें और साथ ही गर्म पानी पीयें । इससे जमा हुआ मल ढीला होने लगता है और प्रातःकाल शौच आसानी से हो जाता है ।
3) सौंफ को तबे पर डालकर कुछ भूनें । कुछ कच्ची और कुछ पक्की रहने की अवस्था में | ही तवे से निकाल कर रखें । भोजन के पश्चात् दोनों समय इसका सेवन करने से मलावरोध दूर होने में सहायता मिलती है । इससे भोजन भी पचता है।
4) हरड़ को प्रयोग कब्ज में हितकर रहता है। बड़ी हरड़ का चूर्ण रात्रि में गुलकन्द के साथ | खाकर ऊपर से गर्म दूध पी लें अथवा छोटी हरड़ के चूर्ण 4-6 माशे की फंकी दूध के साथ लें । सनाय, सौंफ, मुलहठी तीनों 10-10 ग्राम, शर्करा 7 ग्राम, एक साथ खरल कर लें । मात्रा 1 से 3 चम्मच तक रोगी का बलाबल देख कर देनी चाहिये । इससे कब्ज दूर होता है तथा अफरा पेट दर्द आदि में लाभ होता है ।
5) हरड़, पीपल, काला नमक, तीनों समान भाग लें तथा कूट पीस कपड़छन कर रखें । कब्ज, अजीर्ण तथा उदरशूल में हितकर है । मात्रा 1 से 5 ग्राम गर्म जल या सादा ताजा पानी के साथ लक्षण के अनुरूप देनी चाहिए।
6) सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, छोटी हरड़, इन्द्रजौ और अपराजिता के बीज 10-10 ग्राम, सेधा नमक और काला नमक आधा 5-5 ग्राम लें । सब को कूट छान लें तथा इस चूर्ण के समान भार में एलुआ (मुसब्बर)को चूर्ण करके मिलावें । फिर इस सब को ग्वारपाठे के स्वरस में घोटकर चने के बराबर गोलियाँ बनालें ।
मात्रा-1 से 2 गोली तक सुखोष्ण (गुनगुने) पानी के साथ प्रातः सायं देनी चाहिये। इससे मलावरोध दूर होगा और यकृत की दुर्बलता मिट जायगी । वस्तुतः यह गोली सब प्रकार के उदर विकार, उदर शूल, पाण्डुरोग तथा यकृत- प्लीहा के उपसर्गों में अत्यन्त हितकर है। पेट में संचित मल को बाहर निकालती और पाचन करती है। इससे अरुचि दूर होती है और खुल कर भूख लगती है।
7) उत्तम प्रकार के चना भाड़ पर भुनवा लें और उनके ऊपर का छिलका उतार कर दूर करें। फिर महीन पीसें और इस आटे को किसी चीनी या काँच के बर्तन में रखकर सेहुड़ के दूध से तर करें । तदुपरान्त पत्थर के खरल में भली प्रकार घोट कर चने के बराबर की गोलियाँ बनाकर सुखा लें ।
मात्रा – 1 से 2 गोली गर्म पानी के साथ देने से रोगी को 3-4 दस्त हो जाते हैं। सामान्यतः एक गोली की मात्रा ही पर्याप्त रहती है । कठिन कोठे वालों को दो गोली दे सकते हैं। रोगी को पथ्य में मूंग तथा दाल- चावल की पतली खिचड़ी देनी चाहिये । उदरशूल, विबन्ध आदि में इसका प्रयोग हितकर है।
8) मलावरोध नाशक त्रिफलादि चूर्ण :
त्रिफला 60 ग्राम, सनाय पत्र 40 ग्राम, सोंफ ,गुलाब के पुष्प, बायविडंग और मिश्री 10-10 ग्राम । त्रिफला ताजा एवं साफ लें, उसे रखे हुए चौमास (वर्षा ऋतु) न निकली हो, कीड़ों द्वारा उसका कोई अंग खाया हुआ न हो। इसी प्रकार अन्य द्रव्य भी ताजा और स्वच्छ लेने चाहिए। सभी द्रव्यों को कूट- कपड़छन करें और मिश्री को पृथक पीसकर उसमें मिला दें ।।
मात्रा-4 से 10 ग्राम तक रोग और रोगी के बलानुसार रात्रिशयन समय सुहाते हुए गर्म पानी के साथ सेवन करें । निरन्तर 3 दिन तक सेवन करने से कब्ज दूर हो जाता है।
9) कब्ज पर सरल औषधि :
बड़ी हरड़ का वक्कल और सनायपत्र 30-30 ग्राम तथा काला नमक 10 ग्राम लेकर विधिवत् कूट – छान कर रखें ।
मात्रा-6 से 12 ग्राम तक गर्म पानी के साथ रात्रि भोजन के कम से कम एक घण्टा पश्चात् लेना चाहिये । इससे प्रातः दुपहर से पहिले ही एक या दो दस्त खुल कर हो जायेंगे। यदि एकाध अधिक भी हो जाय तो चिन्ता को कोई बात नहीं । किन्तु 1 मात्रा से दस्त न होने की स्थिति में दूसरे दिन फिर 1 मात्रा दे देनी चाहिये ।
10) कब्ज में सुखोपचार (हल्का जुलाब ):
गाजवाँ,गुलाबपुष्प, सोंठ, मुलहठी और मुनक्का 20-20 ग्राम लेकर आधा लिटर जल के साथ औटावें और आधा जल शेष रहने पर उतार कर छान लें । इसमें 20 ग्राम शहद मिला कर प्रातःकाल पीना चाहिये । इससे 2-3 दस्त तक सामान्य रूप से हो जाते हैं, किसी प्रकारका कष्ट नहीं होता । दुर्बल रोगी के लिये क्वाथ द्रव्यों की मात्रा कुछ कम की जा सकती है । आहार में केवल दाल – चावल की खिचड़ी लेनी चाहिये।
11) विबन्ध- हर चूर्ण :
छोटी पीपल और अजमोद 40-40 ग्राम, हरड़ 150 ग्राम, सोंठ 30 ग्राम, सेंधा नमक और काला नमक 5-5 ग्राम लेकर कूट, कपड़ – छन करके रखें।
मात्रा -4 से 10 ग्राम तक गर्म पानी के साथ फंकी लेनी चाहिये । इससे कब्ज दूर होता और उदर शूल अफरा आदि में भी लाभ होता है ।
12) कब्जनाशक अभयादि चूर्ण :
बड़ी हरड़ का वक्कल, सनायपत्र और एलुआ 20-20 ग्राम सेंधा नमक 10 ग्राम। हरड़ को घी के साथ भूनें और फिर सबको कूट- छान कर एकत्र करें। यह अभयादि चूर्ण कब्ज को दूर करने में अत्यन्त उपयोगी है।
मात्रा-5 ग्राम से 10 ग्राम तक सुखोष्ण पानी के साथ रात्रि में शयन से पूर्व लेना चाहिए। कब्ज शीघ्र नष्ट होता है ।
13) विबन्धनाशक उत्तम क्वाथ:
हरड़ का वक्कल, सनायपत्र, सौंफ, गुलाब – पुष्प और मुनक्का 6-6 ग्राम, इन्द्रायन- मूल और निशोथ 4-4 ग्राम तथा मिश्री 12 ग्राम सभी को अठगुने पानी में डालकर क्वाथ करें तथा आधा शेष रहने पर पिलावें ।
यह क्वाथ प्रातः सायं दोनों समय सेवन करना चाहिये । कोष्ठ – शुद्धि के लिये यह एक उत्तम तथा सरल प्रयोग है ।
14) विबन्धघ्नी गुटिका :
अशारा रेवन्द 100 ग्राम, निशोथ 50 ग्राम, इन्द्रायन के बीज, सौंठ और शंख – भस्म 15-15 ग्राम, जयपाल (जमालगोटा)शुद्ध 3 ग्राम लेकर सभी काष्ठोषधियों को कूट- छान लें और फिर जयपाल और शंखभस्म मिलाकर महीन करें । तदुपरान्त इन्द्रायन की जड़ का क्वाथ बनाकर उससे सभी द्रव्यों को एकत्रित भावना दें अर्थात् खरल करते हुए 250-250 मिलीग्राम की गोलियाँ बना लें ।
मात्रा -१ से ४ गोली तक कठिन कब्ज में भी तुरंत कार्य करती है | रात को शयन से पूर्व गर्म जल के साथ यह गोली देनी चाहिये |
कब्ज का प्राकृतिक उपचार :
1) प्रात: काल निहार-मुँह दस दाने काजू और पाँच दाने मुनक्का खाने से मलावरोध नहीं होता है।
2) प्रात:काल 100 ग्राम टमाटर का रस पीना भी लाभप्रद है। टमाटर का रस आँतों में जमे हुए मल को काटकर आँतो की सफाई में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
3) प्रात:काल दो सेबों को दाँतों से काटकर खाना तथा इसी प्रकार नाश्ते से पूर्व बड़े, पीले पके सन्तरे का रस पीना भी लाभप्रद है।
4) पतीता आँतो की सफाई करने में अद्वितीय है।
5) मलावरोध से पीड़ित रोगी को सुबह चारपाई से उठकर जल पीने की सलाह दें। कब्ज की शिकायत भाग जायेगी।
नोट :- किसी भी औषधि या जानकारी को व्यावहारिक रूप में आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले यह नितांत जरूरी है ।
विशेष : अच्युताय हरिओम फार्मा द्वारा निर्मित कब्ज में शीघ्र राहत देने वाली लाभदायक आयुर्वेदिक औषधियां
1) शोधनकल्प (Shodhankalp Churna)
2) हरड़े चूर्ण(Achyutaya Hariom Harde Churna)
प्राप्ति-स्थान : सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों( Sant Shri Asaram Bapu Ji Ashram ) व श्री योग वेदांत सेवा समितियों के सेवाकेंद्र से इसे प्राप्त किया जा सकता है |