Last Updated on August 30, 2021 by admin
पंचकर्म चिकित्सा क्या है : Panchakarma Chikitsa in Hindi
पंचकर्म चिकित्सा की शोधन विधि है, परंतु आयुर्वेद में यह शमन चिकित्सा प्रणाली है। यह आधुनिक लक्षण चिकित्सा की तरह ही है। पंचकर्म की भूमिका शरीर की प्रत्येक कोशिका से विषैले पदार्थों को विस्थापित करना और निकालना है।
उदाहरण के लिए, सीने में अत्यधिक कफ, छोटी आँत में पित्त, पेट में कफ तथा बडी आँत में एकत्र गैस को इसके माध्यम से सगमतापूर्वक हटाया जा सकता है। पंचकर्म न केवल शरीर को, बल्कि मस्तिष्क को भी स्वच्छ करता है ।
पंचकर्म चिकित्सा में पाँच मूल प्रक्रियाएँ हैं-वमन, विरेचन, निरुहवस्ति, अनुवासन वस्ति तथा नसया।
यह आचार्य चरक ने बताया है। विश्व के प्रथम सर्जन सुश्रुत ने निरुहवस्ति तथा अनुवासन वस्ति को एक में शामिल करके ‘रक्तमोक्षण प्रक्रिया’ को जोड़ा है। इसलिए सुश्रुत के अनुसार भी ये प्रक्रियाएँ पाँच ही हैं। रक्तमोक्षण विधि का प्रयोग रक्त विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
आयुर्वेद ने रसायन गुण वाले और वाजीकारक बलपुष्टि देने वाले पदार्थों या औषधियों का सेवन करने से पहले पंचकर्म चिकित्सा द्वारा शरीर शुद्धि कर लेना आवश्यक बताया है क्योंकि जिस तरह मैले कपड़े पर रंग नहीं चढ़ता इसलिए पहले वस्त्र को धो कर मैल छुड़ा कर ही रंगने से रंग अच्छा चढ़ता है उसी प्रकार शरीर को शुद्ध करके ही रसायन गुणवाली एवं बलपुष्टिदायक वाजीकरण करने वाली औषधियों का सेवन करने से शरीर को लाभ होता है वरना नहीं होता। पंचकर्मों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
पंचकर्म पूर्व की प्रक्रियाएँ :
पंचकर्म पद्धति को आरंभ करने से पूर्व रोगी को इसके लिए तैयार किया जाता है। ऐसा करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि इससे पता चलता है कि रोगी इस थेरैपी को सहन करने के योग्य है या नहीं। इससे उपयुक्त समय का पता भी लगाया जा सकता है। पंचकर्म चिकित्सा विधियाँ शरीर से विषैले तत्वों को निकालने के बाद दोषों को संतुलित करने का काम करती हैं।
क्रियापूर्व प्रक्रियाओं में ओलिएशन थेरैपी और सुडेसन थेरैपी मुख्य हैं। इनसे शरीर के दोषों को भोजन नली में लाकर बाहर निकाला जाता है। अब हम पहले ओलिएशन थेरैपी की चर्चा करते हैं।
ओलिएशन थेरैपी (स्नेह कर्म)-
रोगी को सात दिनों तक शुद्ध घी या औषधयुक्त घी दिया जाता है। यह दोषों को शांत करता है और पाचन क्रिया को संतुलित करता है। यह गैस्ट्रिक अल्सर तथा आँत के अल्सर में प्रभावी होता है। औषधियुक्त घी का प्रयोग कुछ विशिष्ट बीमारियों में किया जाता है। त्वचा की बीमारी में तिक्त घृत, एनीमिया (खून की कमी) में दाडिमादि घृत, क्रॉनिक कोलाइटिस में शतावरी घृत का इस्तेमाल किया जाता है।
सुडेसन थेरैपी (स्वेद चिकित्सा) –
ओलिएशन थेरैपी के बाद सुडेसन थेरैपी (स्वेद चिकित्सा) से लसीका, रक्त, पेशी ऊतक, वसा ऊतक तथा अस्थि मज्जा में मौजूद दोष तरल होकर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (आमाशय) नली में वापस चले जाते हैं। सुडेसन थेरैपी दोषों को तरल करने में मदद करती है। यह भाप द्वारा शरीर में पसीना लाने का काम करती है।
पंचकर्म चिकित्सा – Panchakarma chikitsa
आयुर्वेद ने चिकित्सा कार्य को दो वर्गों में विभाजित किया है-
शोधन और शमन। शरीर के दोष बाहर निकालना शोधन है और शरीर में उत्पन्न रोग एवं कुपित दोषों को दूर करके स्वस्थ करना शमन है।
शरीर शोधन के लिए पांच क्रियाएं की जाती हैं- (1) वमन (2) विरेचन (3) शोधन बस्ती (4) अनुवासन बस्ती और (5) नस्य।
1). वमन – इसमें उलटी करवा कर आमाशय के दोष को दूर किया जाता है और कफ प्रकोप का शमन किया जाता है।
2). विरेचन – पित्त प्रधान दोषों और मल का निष्कासन करने के लिए विरेचन यानी दस्त करवाने को विरेचन कर्म कहते हैं।
3). शोधन बस्ती – औषधि द्रव्यों के काढ़े का प्रयोग कर एनीमा द्वारा मल निकालने की क्रिया को शोधन बस्ती कहा जाता है।
4). अनुवासन बस्ती – स्नेह पदार्थों का प्रयोग करके बस्ती देना अनुवासन बस्ती है।
5). नस्य कर्म – सिर, नेत्र, कान, नाक व गले के रोगों में जो चिकित्सा नाक द्वारा ली जाती है, वह नस्य अथवा शिरोविरेचन कहलाती है।
इन क्रियाओं से पहले स्नेहन और स्वदेन कर्म करके शरीर को कोमल, मृदु और मल रहित किया जाता है।
पंचकर्म के फायेद व लाभ : Panchkarma ke fayde
- सभी तीनों दोषों को संतुलित करता है।
- विषैले पदार्थ को शरीर से बाहर निकलता है।
- तनाव कम करता है ,मानसिक विश्राम और प्रसन्नता बढाता है।
- बुढ़ापे की प्रक्रिया धीमी करता है
- रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है।
- ताकत, सहनशक्ति और जीवन शक्ति में सुधार करता है।
पंचकर्म में सावधानियां : Panchkarma me sawdhaniya
- अधिक तापमान के संपर्क में आने से बचें।
- सोर और तनाव से बचें।
- छींकने, खांसी जैसे प्राकृतिक वेगों के दमन से बचें।
- रात में देर से जागने से बचें।
- संतुलित व सुपाच्य आहार लें।
- अति परिश्रम से बचें।