Last Updated on June 11, 2024 by admin
बच क्या है ? (bach kya hai)
यह अपने प्राणप्रिय भारतदेश में सर्वत्र पाई जाती है । एशिया खण्ड का मध्य भाग ही इसकी उत्पत्ति का मुख्य स्थान माना जाता है । श्वेत रंग (वर्ण) की बच ईरान में उत्पन्न होती है जो खुरासानी बच के नाम से मशहूर है । इसके गुण. तो हिन्दुस्तानी बेच के अनुसार ही है किन्तु मुख्यत: वातरोगों में खुरासानी बच अधिक लाभप्रद है। इसमें गन्ध भी अधिक उग्र रहती है। वैसे आयुर्वेद मतानुसार बच की अनेक जातियां हैं जैसे—खुरासानी बच, घुड़बच, श्वेत बच, महाभरी बच, कुलीजन और अकरकरा इत्यादि किन्तु औषधियों योगों में मुख्यत: श्वेत बच का ही उपयोग किया जाता है ।
ईरानी (खुरासानी) बच रेतीली भूमि में उत्पन्न होती है, जबकि हिन्दुस्तानी बच कीचड़ या पानी की जगह (भूमि) पर उत्पन्न होता है। इसकी लम्बाई सामान्यतः 1 पुरुष की लम्बाई के बराबर होती है । इसके पत्ते बाजरा अथवा ईख के पत्तों के समान होते हैं। इसके मल में बहुत सी जटाओं के समान शाखायें और प्रशाखायें चारों ओर फैली होती हैं । इस पौधे की जड़ को ही बच कहा जाता है वैसे तो इसके सम्पूर्ण पौधे में गन्ध समाहित रहती है किन्तु इसकी जड़ में अधिक गन्ध होती है । इस पर फूल नहीं आते हैं। पौधे के पिन्ड में रोम अधिक रहते हैं।
बच के औषधीय गुण (bach aushadhi gun)
- बच चरपरी, गरम, कड़वी और वमन तथा अग्नि को बढ़ाने वाली है।
- यह मल-मूत्र को क्षुद्र करती है और मल आदि की रूकावट को दूर करके अफारा (पेट फूलना) शूल, अपस्मार (मृगी) तथा कफ को नष्ट करती है ।
- उन्माद, भूत, कृमि और वातहारक है ।
- यह क्षुधाबोधक, स्नायुवेग शामक, चेतनाकर, कामोद्दीपक, जननेन्द्रियोंत्तेजक है।
- यह श्वास नलिका और कंठ के विकारों का शमन करती है ।
- जिह्वा के जड़त्व का हरण करती है और स्मरण शक्ति बढ़ाती है।
- यह शोथ और वात ज्वरं नाशक भी है।
- आयु सम्बर्द्धन का गुण भी इसमें मौजूद है ।
- यह शुक्रजनक भी है।
- यह शरीर तथा भूमि के दृश्य और अदृश्य सभी प्रकार के कीट-कीटाणुओं को विध्वंस करने की अपूर्व क्षमता रखती है।
- एक साधारण सी जड़ी में कुदरत ने इतने अधिक गुण भर दिए हैं कि भगवान धन्वन्तरि के प्रति मस्तक स्वतः ही श्रद्धा से नत हो जाता है।
बच के फायदे और उपयोग (bach ke fayde aur upyog)
1. भूख न लगना : यदि भूख बराबर न लगती हो तो बच का महीन चूर्ण गुंजाकर शहद के साथ सुबह-शाम चाटें। ( और पढ़े – भूख बढ़ाने के 55 घरेलू नुस्खे)
2. जी मिचलना : यदि पेट में किसी अशुद्ध पदार्थ चले जाने अथवा विष सेवन कर लेने पर जी मिचलाता हो तो तुरन्त बच का चूर्ण दो माशा की मात्रा में नमक गरम जल के साथ पिलायें । तुरन्त कै होकर शान्ति मिलेगी।
3. गैस : यदि पेट वायु (गैस) के कारण फूल गया हो (दस्त न होते हों) तो वच का चूर्ण 1 माशा, बड़ी सौंफ 1 माशा घी-शक्कर के साथ सेवन करायें तुरन्त दस्त होकर पेट हल्का हो जाएगा ।
(नोट-इसका सेवन घी-शक्कर के साथ ही करने का विधान है अथवा के हो जाएगी) |
4. अग्निमांद्य : यदि अग्निमांद्य की शिकायत हो, रोज दस्त साफ न आता हो, पेट फूलता हो, भूख न लगती हो, ग्लानि रहंती हो तो वच, गजपीपर, काली मिर्च, सौंठ, हरे, संचलखार, अतीस, (सभी सममात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखलें। इसे 1 से 2 माशा तक की मात्रा में सेवन करें।
5. पेट में दर्द : पेट में दर्द हो तो-वच का महीन चूर्ण 4 रत्ती 1 छटांक छाछ (तक्र) के साथ थोड़ा सा नमक डालकर सेवन करें। अत्यधिक लाभप्रद योग है। ( और पढ़े – पेट दर्द के 41 देसी घरेलु उपचार)
6. कृमि : छोटे बच्चों के उदर में कृमि होने पर 2 रत्ती बच का चूर्ण दूध के साथ दिन में 3-4 बार सेवन कराने से कृमि नष्ट हो जाते हैं।
7. मृगी : अपस्मार (मृगी) में बच चूर्ण 1 से 2 माशा तक शहद के साथ चटायें। रोगी को मात्र दूध और भात ही खाने को दें । अथवा बच का खूब महीन चूर्ण 1 मलमल के कपड़े में बांधकर (पोटली बनाकर) बार-बार जोर से रोगी को सुंघाते रहने से मस्तिष्क का विकृत कफ नष्ट होकर मृगी शान्त हो जाती है ।
नोट-यदि किसी भी कारण से मूच्छ आ गई हो तो केवल वच का महीन चूर्ण उसके (रोगी के) नथुनों में लगावें, छींक आने से वह तुरन्त ही सचेत हो जाएगा। इस पोटली को सुंघाने से मस्तक शूल में भी लाभ होता है )
8. अपस्मार : छोटे बालकों को 1 प्रकार का अपस्मार हो जाता है जिसको बालकापस्मार के नाम से जाना जाता है । इस रोग में बालक को दिन भर में कई बार दौरा आता है, वह अकस्मात मूर्छित हो जाता है, मुख से फेन आने लगता है तथा उसके अंगों में ऐंठन शुरू हो जाती है । इस रोग में बच अत्यधिक लाभप्रद है। 1 या 2 वर्ष आयु के बालक को केवल 2 रत्ती बच का चूर्ण माता या गाय के दूध के साथ (दूध के अभाव में शहद के साथ) दें तथा इसके चूर्ण की धूनी (चूर्ण आग पर डालकर उठते हुए धुएं को नाक में सुंघवाना) दें ।
9. उन्माद : उन्माद रोग के होने पर बच और कुलिंजन का चूर्ण 1 से 2 माशा तक शहद के साथ चटायें तथा इसके चूर्ण की धूनी दें।
10. मस्तक शूल : सूर्यावर्त (अर्द्ध मस्तक शूल) में केवल बच चूर्ण का नस्य देने से अथवा बच और पीपल का (समभाग) चूर्ण लेकर महीन कपड़े में पोटली बाँधकर बारबार सूंघने से यह रोग नष्ट हो जाता है।
11. स्मरण शक्ति : वच चूर्ण 3 माशा, ब्राह्मीपत्र चूर्ण 1 माशा (दोनों को मिलाकर) मिश्री, मवखन के साथ प्रात:काल सेवन करने से सिरदर्द तो नष्ट होता ही है, साथ ही वीर्य पुष्ट होता है और स्मरण शक्ति तीव्र होती है। ( और पढ़े – यादशक्ति बढ़ाने के सबसे शक्तिशाली 12 प्रयोग)
12. गला बैठना : शीत अथवा ठण्ड के कारण गला बैठ जाना, गले में खुजली या शुष्क खांसी होना, कण्ठ के विकार उत्पन्न होना जैसा कि धार्मिक प्रवचन करने वालों सन्तों को अथवा भाषण करने वाले नेताओं को अथवा गायकों और अभिनेताओं के गले में हो जाता है। उनका गला रुंध जाता है आवाज बैठ जाती है। नित्य शुष्क खाँसी आती है इन समस्त विकारों में मात्र वच का टुकड़ा मुख में रखकर चूसने से जो लार निकले उसे धीरे-धीरे गले के नीचे उतारने से गले की खुजलाहट मिटकर आवाज साफ हो जाती है। खांसी नष्ट हो जाती है। यह गले को साफ करके कण्ठ को मधुर बनाती है आजकल फिल्मों के प्लेबैक सिंगर अथवा बड़े नेतागण अथवा वक्तागण गला साफ करने के लिए विदेशी गोलियाँ ‘‘जीनतान इत्यादि खाते हैं उनसे अनुरोध है कि वह जरा वच के टुकड़ों का व्यवहार करके तो देखें आप स्वत: ही भगवान धन्वन्तरि को स्मरण कर नत-मस्तक होने को मजबूर हो जायेंगे और विदेशी दवाओं को सदैव के लिए भूल जायेंगे।
13. खाँसी : वच, नौशादर, बहेड़ा, मुलहठी, खैर (कथा) और कचनार (कांचनार) की छाल सभी सममात्रा में लेकर महीन चूर्ण कर (शवकर या शहद की चाशनी में इसकी गोलियाँ बाँधकर) 1-1 मुख में रखकर चूसने से अत्यधिक लाभ होता है तथा खाँसी भी मिटती है ।
14. सर्दी : मस्तक या श्वास नलिका में सर्दी हो गई हो तथा कफ के कारण छाती जकड़ गई हो, पसलियों तथा छाती में दर्द हो (यह शिकायतें प्रायः इन्फ्लूएंजा ज्वर में होती है। तो वच का चूर्ण गरम पानी में मिलाकर नाक, छाती तथा मस्तक पर गरम-गरम लेप करने तथा कुछ (सूखे) वच चूर्ण का नस्य लेने और थोड़ी मात्रा में चूर्ण शहद के साथ चाटने से तुरन्त लाभ प्राप्त होता है ।
15. दमा : श्वास रोग (दमा, अस्थमा) में भी वच चूर्ण का उपयोग अत्यधिक लाभकारी है।
16. वीर्य वर्धक : वच चूर्ण 3 माशा, ब्राह्मी पत्र चूर्ण 1 माशा दोनों को मवखन मिश्री के साथ प्रात:काल सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है स्मरणशक्ति तीव्र होती है । ( और पढ़े – वीर्य वर्धक चमत्कारी 18 उपाय शरीर को बनाये तेजस्वी और बलवान)
17. गले के रोग : वच और वंशलोचन आधा-आधा माशा चूर्ण सुबह-शाम चाटने से (शहद से) गले के रोग दूर होकर शरीर पुष्ट होता है ।
18. शीघ्रपतन : वच चूर्ण, वंशलोचन चूर्ण, रूममस्तंगी, छोटी इलायची के दाने (1-1 तोला) प्रवाल पिष्टी 3 माशा, कूजा मिश्री ढाई तोला लें । समस्त औषधियों को कूट-पीस छानकर सुरक्षित रखें । इसे प्रात:काल 3 माशा की मात्रा में शहद से चाटकर ऊपर से 250 ग्राम गोदुग्ध (गरम) पीने से बल-वीर्य की वृद्धि होकर शरीर की पुष्टि होती है तथा शीघ्रपतन हेतु यह योग रामबाण है।
(नोट-प्रयोगकाल में पूर्ण ब्रह्मचर्य पूर्वक रहें तथा शारीरिक श्रम द्वारा कब्ज को दूर रखें।)
19. कब्ज : बच चूर्ण 1 माशा, सौंफ चूर्ण 3 माशा को सायंकाल में गरम दूध के साथ सेवन करने से कब्ज दूर हो जाती है।
20. वायु प्रकोप : गर्भवती स्त्री को जब वायु के प्रकोप से आनाह रोग (इस रोग में दस्त और पेशाब बन्द हो जाता है) हो जाए तो वच चूर्ण 4 रत्ती और लहसुन 1 रत्ती 250 ग्राम दूध में डालकर, पकाकर इसमें आधी रत्ती भुनी हींग और किंचित काला नमक डालकर पिलाना अत्यन्त ही लाभपद है ।
21. सुखपूर्वक प्रसव : वच को जल के साथ पीसकर इसमें थोड़ा-सा एरन्ड का तैल मिलाकर नाभि पर लेप करने बगैर किसी तकलीफ के सुखपूर्वक प्रसव हो जाता है।
22. पुराने घाव : जख्म या व्रण होने पर वच में बड़े से बड़े जख्मों को भर देने की अपार शक्ति है। जख्म पुराना हो गया हो, कीड़े पड़ गए हों या दुर्गन्ध आती हो तो वच का महीन किया हुआ चूर्ण और कर्पूर चूर्ण (समभाग) लेकर जख्म में भरें।
23. जख्म : शरीर के किसी भी भाग में सूजन होने पर वच चूर्ण अथवा वच को जलाकर इसकी राख को रैडी के तैल में खरल करके सूजन युवत भाग पर मालिश करने से अवश्य लाभ होता है। यहाँ तक कि इस प्रयोग से सन्धिवात की सूजन (शोथ) भी नष्ट हो जाती है ।
24. कान के रोग : कान में राध बहती हो, दर्द करता हो तो वच और कपूर समभाग लेकर तिल के तैल में सिद्ध करके (पकाकर तथा छानकर) थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कान में डालने से लाभ होता है ।
25. मूत्र की रुकावट : यदि किसी कारण से मूत्र साफ न होता हो तो दो रत्ती भर वच चूर्ण दूध तथा शक्कर के साथ पीने से मूत्र की रुकावट दूर हो जाती है। ( और पढ़े – पेशाब रुक जाने के 24 रामबाण घरेलु उपचार)
26. कृमिनाश : कृमिनाश हेतु ऊनी या गरम कपड़ों को कीटों से बचाव (सुरक्षा) हेतु वच का चूर्ण उन पर बुरक कर रखने से कीट नष्ट हो जाते हैं। सभी प्रकार सूक्ष्म जन्तु अथवा कीट इसके प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं।
27. कृमि से रक्षा : यदि सिर के बालों में जुएँ हो गए हों अथवा पालतू पशुओं के शरीर में किलौनियां पड़ गई हों तो वच का चूर्ण अथवा उसका काढ़ा बनाकर प्रभावित अंग में लगाने अथवा धोने से उनका नाश हो जाता है । साधु-सन्यासी लोग इसकी गाँठों को अपने जटाजूट में धारण कर सिर के कृमि आदि से बचे रहते हैं।
28. संक्रम से रक्षा : छोटे बच्चों को बच की गंडेरिया रेशम के धागे में गूंथकर माला के रूप में पहनाना अत्यन्त उपयोगी है। इस प्रयोग से बच्चे के शरीर पर कीटाणुओं का आक्रमण नहीं होता है । (यदि बच्चा अपने स्वाभावानुसार इन गन्डेरियों को अपने मुख में डालता रहेगा तो कफज रोग पास नहीं आयेंगे और दांत सहजता से निकल आयेंगे तथा बच्चा जल्द ही बोलने लगेगा।
29. ज्वर : जिस शीत ज्वर अथवा विषम ज्वर पर सिनकोना तथा कुनैन से कुछ भी लाभ नहीं होता है वहाँ पर ऐलोपैथिक डाक्टर बच को सिनकोना के साथ अथवा केवल वच के चूर्ण को ही जल में घोलकर देने की सिफारिश करते हैं और इससे शर्तिया लाभ होता है ।
30. विषम ज्वर : बच और चिरायता का चूर्ण सममात्रा में (1 से 2 माशे तक) शहद के साथ दिन में तीन बार चटाने से तथा बच और हरड़ का चूर्ण घी में मिलाकर धूप देने से विषम-ज्वर में विशेषकर बच्चा रोगी को शर्तिया लाभ होता है। ( और पढ़े – बुखार के कारण ,लक्षण और इलाज)
31. शक्तिवर्धक : बच का चूर्ण 1 औंस को 10 औंस खौलते पानी में डालकर 6 घंटे तक रखने के पश्चात् उसमें 1 औंस छानकर प्रतिदिन सेवन करना परम उपयोगी है। यह शक्तिवर्धक पेय है । अथवा वच औंस इन्ठल चिरायता 1 औंस और पानी 1 पिन्ट लें । औषधियों को 6 घंटे तक पानी में भिगोकर दिन में 3 बार व्यवहार करें ।
32. आँव : बच चूर्ण 2 औंस धनिया 1 ड्राम, काली मिर्च आधा ड्राम, पानी 1 पाइन्ट लें । औषधियों को पानी में डालकर उबालें जब पानी 18 औंस शेष रह जाए तो छानकर सुरक्षित रखलें। बच्चों को दो चम्मच पिलायें। यह योग आँव की बीमारी में परम लाभप्रद है।
33. दाँत और मसूढ़े : बच और आँवला को अष्टमांश क्वाथ बनाकर बोतल में रखलें । इससे कुल्ला करने से दाँत और मसूढ़े मजबूत रहते हैं और सिर पर मालिश करने से बाल निरोग रहते हैं।
नोट-ऐलोपैथिक डाक्टरी ग्रन्थ मेटेरिया मेडिका Indlan Plants and drugs जिसके लेखक डा. के. एम. नालकरनी है, के अनुसार बच कडुवा, यनिक और अग्निर्यक है।”lt Is eaten foreely during The prevalence of any epidemic, as it is supposed tobe an antidote for several poslsons.” अर्थात् बच में कई विषों के निवारण करने की शक्ति है। ऐसा माना गया है। अतएव (विषजन्य) किसी भी सांघातिक बीमारी प्लेग महमारी आदि के जारी होने पर इसका सेवन साधारण तौर पर सहूलियत पूर्वक चिकित्सकों द्वारा किया जाता है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
सदियों से गायक कलाकार इसका उपयोग अपने गले को ठीक रखने के लिए करते आयें हैं
Kya such Mai Bach se ruka hu aa gla thik ho jata h Kya