रोग परिचय :
यह एक भयंकर व्याधि है जिससे व्यक्ति का कोई भी हिस्सा सुन्न हो जाता है। कभी-कभी इसका उग्र रूप देखने में आता है। व्यक्ति का आधा हिस्सा विकृत हो जाता है, मुंह टेढ़ा हो जाता है, यहां तक कि व्यक्ति की बोलने-सुनने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। इस रोग का शीघ्र उपाय न किया जाय तो व्यक्ति का पूर्णरूपेण ठीक होना कठिन हो जाता है। अतः इसका प्रकोप होते ही तुरंत किसी अच्छे चिकित्सक से इसका इलाज कराना चाहिए। अधिकांशतः यह रोग उच्च रक्तचाप बढ़ जाने से होता है। आइये जाने लकवा कैसे होता है ,लकवा होने के कारण,lakwa kyu hota hai
पैरालिसिस / लकवा के कारण : lakwa hone ke karan
1) साधारणतः यह रोग उन्हें होता है जो व्यक्ति अधिक मात्रा में वायु के पदार्थों का सेवन करते हैं या शीतल पदार्थों का सेवन करते हैं।
2) अत्यधिक काम-क्रीड़ा में लिप्त रहनेवाले व्यक्तियों की धातु क्षीण होकर, खून आदि की कमी होने पर उन्हें यह रोग होता है।
4) विषम आहार-पदार्थों का सेवन करने तथा अधिक व्यायाम या विपरीत आसन करने से भी यह रोग हो सकता है।
5) उल्टी या दस्तों का अधिक हो जाना, मर्म-स्थानों पर आघात होना, मानसिक दुर्बलता, नाड़ियों एवं मांसपेशियों की दुर्बलता, रक्तचाप अधिक बढ़ जाने आदि कारणों से यह रोग उत्पन्न हो सकता है।
6) आयुर्वेद के मत से इस रोग का मुख्य कारण वायु का प्रकुपित होना है।
पैरालिसिस / लकवा के प्रकार : lakwa ke prakar
यह रोग सारे शरीर पर हो सकता है। प्रायः शरीर का आधा हिस्सा रोगग्रस्त हो सकता है या केवल मुख का भाग (लकवा) रोगग्रस्त हो सकता है। इस रोग का हमला व्यक्ति पर कभी भी हो सकता है।
पक्षाघात के विविध नाम हैं जो इस प्रकार हैं ।
पक्षबध, पक्षाघात, अर्धांगवात, अर्धांगवध, एकांगवात, एक पक्षवध, हेमोप्लीजिया, फालिज ।
केवल वात-प्रकोप से जो पक्षाघात होता है, वह कष्टसाध्य होता है । जो संसृष्ट वायु से पक्षाघात होता है, वह साध्य होता है तथा जो धातु-क्षय के कारण कुपित वात से पक्षाघात होता है, वह असाध्य होता है ।
1) मुंह का लकवा /अर्दित – गर्भिणी स्त्रियों में, प्रसूता स्त्रियों में, बालकों में, वृद्धों में रक्तक्षय होने पर उच्च स्वर से बोलने से, अति कठिन पदार्थ खाने से, हँसने और जमुंहाई लेने से, विषम बोझ उठाने से, विषम शयन पर सोने से, सिर, नासा, होंठ, कपोल, ललाट और नेत्र सन्धि में स्थित हुई वायु, कुपित होकर जब मुख को पीड़ित कर देती है “अर्दित” कहलाती है।
मुंह का लकवा (Facial Paralysis / अर्दित) में मुख टेढ़ा हो जाता है । चेहरे के एक ओर की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं । आधा चेहरा बांका (टेढा) होता है, सिर चलायमान रहता है । वाणी का ठीक निर्गम नहीं होता है । नेत्रादि में विकृति होती है तथा जिस पार्श्व में अर्दित होता है उस पाश्र्व, कपोल और दाँतों में पीड़ा होती है।
2) पक्षाघात- इस दशा में आधे शरीर का घात होता है । रोगी अपनी इच्छानुसार अर्ध शरीर की पेशियों का संकोच नहीं कर सकता है । चेहरा बदल जाता है । बोलने में रुकावट होती है तथा सम्वेदना में अन्तर आ जाता है ।
3) नरसिंहघात (Paraplegia) – यह शरीर के निचले अधोभाग का रोग है। इसमें कटि (कमर) प्रदेश से लेकर पैरों तक नीचे के अंग प्रत्यंगों की क्रिया शक्ति नष्ट हो जाती है।
4) सर्वांगघात (Piplegia) – यह सम्पूर्ण शरीर में होने वाली विकृति होती है।
पैरालिसिस / लकवा के लक्षण : lakwa ke lakshan
1) प्रकुपित हुए आधे शरीर की नाड़ियों-नसों को सुखाकर यह रोग रक्त-संचार बंद कर देता है। 2) संधियों के जोड़ों को शिथिल करके शरीर के विशेष भाग को बेकार कर देता है। इस कारण उस अंगविशेष में खुद हरकत करने की क्षमता तथा भार उठाने की क्षमता नष्ट हो जाती है।
3) मुख के लकवाग्रस्त होने पर बोलने की क्षमता भी नहीं रहती। मुख से घर-घरं करके आवाज निकलती है।
4) आंख-नाक भी विकृत हो जाते हैं। दांतों में दर्द होता है, गर्दन भी टेढ़ी हो जाती है। होंठ नीचे लटक जाते हैं। इस रोग में चमड़ी सुन्न हो जाती है।
मुंह का लकवा कैसे होता है / कारण : muh ka lakwa ke karan
1) यह बीमारी प्रायः उन्हीं लोगों को होती है जो हमेशा ऊंची आवाज में जोर-जोर से बोलते हैं, जोर-जोर-से हंसते हैं या जिन्हें जंभाइयां अधिक आती हैं।
2) जो सदैव कठोर आहार-द्रव्यों का सेवन करते हैं।
3) जो हमेशा ऊंचे-नीचे स्थान पर भारी वजन उठाने का कार्य अधिक करते हैं। उनकी वाय प्रकपित होकर सिर, मस्तक, नाक होंठ और आंखों में आकर रुक जाती है। तब यह रोग मुख को विकृत अर्थात उसके एक भाग को टेढ़ा कर देता है।
मुंह का लकवा के लक्षण : muh ka lakwa ke lakshan
1) जब यह रोग प्रारंभ होने वाला होता है तब शरीर में रोमांच होना, कंपकंपी आना, वायु का ऊपर की ओर बढ़ना, चमड़ी में शून्यता, सूई चुभने जैसी पीड़ा आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
2) रोग प्रारंभ होने वाले भाग की ग्रीवा की ओर एवं उस ओर जबड़े में जकड़ाहट पैदा हो जाती है। जिस रोगी के मुख और नाक से पानी निकलता रहता है, उसका उपचार दुःसाध्य हो जाता है।
आइये जाने लकवा के उपचार के बारे में | lakwa ka upchar in hindi
पैरालिसिस / लकवा का घरेलु इलाज : lakwa ka ayurvedic gharelu ilaj
1) सन के बीजों को लेकर उनका बारीक चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें । इसे 15 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम शहद मिलाकर 21 दिन सेवन करने से पक्षाघात में लाभ होता है । ( और पढ़ें –लकवा के 37 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक इलाज )
2) भांग एवं काली मिर्च को बराबर-बराबर लेकर बारीक चूर्ण कर लें । इसे 1-1 ग्राम की मात्रा में गो दुग्ध से प्रत्येक 12-12 घन्टे पर रोगी को सुबह-शाम कम से कम 21 या 41 दिनों तक प्रयोग करने से पक्षाघात में लाभ हो जाता है। ( और पढ़ें – चेहरे का लकवा दूर करने वाले दस अनुभूत प्रयोग )
3) वेतवा सोंठ तथा बच दोनों को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण कर सुरक्षित रख लें । इसे सुबह-शाम 10-10 ग्राम की मात्रा में मधु के साथ रोगी को चटाने से पक्षाघात में लाभ होता है । ( और पढ़ें – लकवा (पैरालिसिस) को ठीक करेंगे यह 16 अचूक घरेलु उपचार )
4) मुलहठी, सफेद जीरा, हल्दी, बच, रास्ना, सौंठ, पीपल, अजमोंद व सेंधा नमक प्रत्येक 20-20 ग्राम एकत्र कर सभी का बारीक चूर्ण कर कपड़छन कर 21 पुड़िया बना लें । सुबह-शाम पुड़िया घी में चाट कर ऊपर से भुने हुए चने चबायें। पक्षाघात नाशक सरल योग है । ( और पढ़ें – हल्दी के अद्भुत 110 औषधिय प्रयोग )
5) बच 30 ग्राम, काली मिर्च 10 ग्राम, पोदीना 10 ग्राम, काला जीरा 10 ग्राम तथा कलोंजी 10 ग्राम सबको कूट पीसकर 250 ग्राम शहद में मिलाकर लेह सा बनालें । इसे 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चाटने से पक्षाघात में लाभ होता है। ( और पढ़ें – पुदीना के अमृततुल्य 17 फायदे )
6) शुद्ध कुचला और काली मिर्च सम मात्रा में लेकर महीन पीसकर खरल में डालकर पानी के साथ खरल करें । खूब घुट जाने पर आधा-आधा रत्ती की गोलियाँ बना लें और छाया में सुखा लें । नित्य प्रातः 1 गोली बंगलापन में रखकर खाने से पक्षाघात रोग नष्ट हो जाता है । ( और पढ़ें – कालीमिर्च के 51 हैरान कर देने वाले जबरदस्त फायदे )
7) सोंठ और काली मिर्च सम मात्रा में लेकर कूट पीसकर छान लें । इसमें थोड़ा-थोड़ा चूर्ण नाक में चढ़ाने से पक्षाघात और अर्दित रोग नष्ट हो जाते हैं । ( और पढ़ें – अदरक के 111 औषधीय प्रयोग)
8) कुचले के पत्ते, सोंठ और सांभर नमक, समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप करने से आमवात, गठिया, पक्षाघात, फालिज, अद्धग और चूहे का विष नष्ट हो जाता है । परीक्षित है।
9) काली मिर्च 1 छटांक पीसकर छानकर पाव भर तेल में मिलाकर कुछ देर पकाकर इस तेल का पतला-पतला लेफ करने से पक्षपात, एकांग घात या अर्धाग वात रोग नष्ट हो जाते हैं। यह लेप तुरन्त ही बनाकर गरम करके लगाया जाता है । पक्षाघात की रामवाण दवा है । प्रसिद्ध स्व० वैद्यराज श्री हरिदास जी ने अपनी अमरकृति ‘चिकित्सा चन्द्रोदय’ में इसकी अत्यधिक प्रशंसा की है।
10) कड़वी लौकी के बीजों को पीसकर लेप करना पक्षाघात में लाभप्रद है। ( और पढ़ें – लौकी खाने के 21 बड़े फायदे )
11) राई और अकरकरा 6-6 माशा लें । दोनों को महीन पीसकर शहद में मिलाकर दिन भर में पक्षाघात के रोगी की जीभ पर 3-4 बार घिसें । इस प्रयोग से स्वाद शक्ति प्राप्त होगी, वाणी शुद्ध होगी, मुख से गिरने वाली लार धीरे-धीरे बन्द हो जायेगी। ( और पढ़ें – शहद खाने के 18 जबरदस्त फायदे )
12) रोगी को पुराना गौघृत थोड़ी-थोड़ी मात्रा में ऐसे ही अथवा भोजन के साथ दिन में 3-4 बार देना लकवा में लाभप्रद है। घी जितना ही अधिक पुराना होगा उतना ही अधिक लाभप्रद होगा ।
13) बच मीठी 15 ग्राम, सौंठ व काला जीरा 20-20 ग्राम लें । तीनों को कूट पीसकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सेवन कराना लकवे में अत्यधिक लाभप्रद है।
14) सोंठ और बच सममात्रा में पीसकर आधा ग्राम औषधि 4 ग्राम शहद के साथ सुबह शाम सेवन करने से लकवा दूर हो जाता है।
15) नीम के बीजों का तेल पक्षाघात से सुन्न हो चुके अंगों पर पहले चुपड़े और फिर मालिश करें । जितना यह तेल त्वचा में पहुँचेगा उतना ही जल्दी रक्त संचार में प्रभाव आयेगा । चैतन्यता लाने में नीम विशेषरूप से प्रभावकारी है । ( और पढ़ें – नीम अर्क के चमत्कारी फायदे )
16) 20 ग्राम लहसुन की छिली हुई गिरी पीसकर गाय के आधा किलो दूध में पकायें । और खीर की भाँति गादी हो जाने पर उतार लें । शीतल होने पर लकवा रोग (किसी एक ओर का अंग मारा जाना) के रोगी को खिलायें । इसके सेवन से रोग जड़ से ठीक हो जाता है। साथ ही लहसुन तेल निम्न प्रकार से बनाकर मालिश करें ।
लकवा का तेल बनाने की विधि – छिली हुई लहसुन की 250 ग्राम गिरियों की पीठी आधा किलो सरसों का तेल और 2 किलो पानी में मिलाकर लोहे की कड़ाही में पकावें । जब पानी जल जाये तब कड़ाही को उतारकर ठन्डा कर कपड़े से तेल छानकर किसी साफ स्वच्छ बोतल में सुरक्षित रखें तथा प्रयोग में लायें ।
17) लहसुन 250 ग्राम, दूध 500 ग्राम लेकर मन्दाग्नि पर पाक करें। जब लहसुन व दूध एकजीव हो जायें तब खूब मलकर छान लें तथा (पुन:) दुबारा छने हुए दूध को आग पर पकाकर खोवा बना लें । तदुपरान्त इस खोवा में 500 ग्राम खाँड मिलाकर 10 ग्राम के पेडे बनालें । इन पेड़ों को 1 से 2 तक सुबह शाम खाने से अर्धांग वात रोग एवं मुंह का लकवा(अर्दित रोग / FacialParalysis) नष्ट हो जाते हैं । अतीव गुणकारी योग है। ( और पढ़ें –छोटे लहसुन के 13 बड़े फायदे )
18) पक्षाघात (लकवा) ऐंठन, व स्नायु रोगों में दिनभर में 2-3 बार 2 से 4 चम्मच शहद पिलाना अत्यधिक लाभप्रद है। क्योंकि शहद शरीर में कैल्शियम की मात्रा पूरी करता है ।
नोट :- किसी भी औषधि या जानकारी को व्यावहारिक रूप में आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले यह नितांत जरूरी है ।
~ हरिओम स्वामीजी
आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे है।