Last Updated on October 26, 2021 by admin
जिनकी पाचन शक्ति कमजोर है उनके लिए वरदान है यह आसन और करने में बड़ा ही आसान है यह । वज्रासन का अर्थ है बलवान स्थिति। पाचनशक्ति, वीर्यशक्ति तथा स्नायुशक्ति देने वाला होने से यह आसन वज्रासन कहलाता है।
ध्यान मूलाधार चक्र में और श्वास दीर्घ।
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वज्रासन की विधि
- बिछे हुए आसन पर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर एड़ियों पर बैठ जायें।
- पैर के दोनों अंगूठे परस्पर लगे रहें। पैर के तलवों के ऊपर नितम्ब रहे।
- कमर और पीठ बिल्कुल सीधी रहे, दोनों हाथ को कुहनियों से मोड़े बिना घुटनों पर रख दें।
- हथेलियाँ नीचे की ओर रहें। दृष्टि सामने स्थिर कर दें।
- पाँच मिनट से लेकर आधे घण्टे तक वज्रासन का अभ्यास कर सकते हैं।
वज्रासन के लाभ
- वज्रासन के अभ्यास से शरीर का मध्यभाग सीधा रहता है।
- श्वास की गति मन्द पड़ने से वायु बढ़ती है।
- आँखों की ज्योति तेज होती है।
- वज्रनाड़ी अर्थात वीर्यधारा नाड़ी मजबूत बनती है। वीर्य की ऊर्ध्वगति होने से शरीर वज्र जैसा बनता है।
- लम्बे समय तक सरलता से यह आसन कर सकते हैं।
- इससे मन की चंचलता दूर होकर व्यक्ति स्थिर बुद्धिवाला बनता है।
- शरीर में रक्ताभिसरण ठीक से होकर शरीर निरोगी एवं सुन्दर बनता है।
- भोजन के बाद इस आसन से बैठने से पाचन शक्ति तेज होती है।
- कब्ज दूर होती है।
- भोजन जल्दी हज्म होता है।
- पेट की वायु का नाश होता है।
- कब्ज दूर होकर पेट के तमाम रोग नष्ट होते हैं।
- पाण्डुरोग से मुक्ति मिलती है।
- रीढ़, कमर, जाँघ, घुटने और पैरों में शक्ति बढ़ती है।
- कमर और पैर का वायु रोग दूर होता है।
- स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
- शुक्रदोष, वीर्यदोष, घुटनों का दर्द आदि का नाश होता है।
- स्नायु पुष्ट होते हैं।
- स्फूर्ति बढ़ाने के लिए एवं मानसिक निराशा दूर करने के लिए यह आसन उपयोगी है।
- ध्यान के लिये भी यह आसन उत्तम है।
- इसके अभ्यास से शारीरिक स्फूर्ति एवं मानसिक प्रसन्नता प्रकट होती है।
सावधानी :
- जोड़ो में दर्द से पीड़ित व्यक्ति वज्रासन न करे।
- एड़ी के रोग से पीड़ित व्यक्ति वज्रासन न करे।