सिजेरियन डिलीवरी के 7 बड़े नुकसान और बचने का उपाय | Cesarean Delivery ke Nuksan

Last Updated on January 11, 2020 by admin

सिजेरियन डिलीवरी के नुकसान : Cesarean Delivery ke Nuksan

शहरों में सामान्यत: ज्यादातर डिलीवरी नॉर्मल न होकर सिजेरियन होती है, जि‍नकी संख्या पिछले कुछ समय में अधि‍क बढ़ी है। लेकिन यह डिलीवरी महिला और शिशु, दोनों के लिए हानिकारक साबित होती है। यही कारण है कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद देखरेख की अत्यधिक आवश्यकता होती है।

1)  सिजेरियन डिलीवरी में ज़्यादा खून बहता है और महिला को कमज़ोर महसूस होती है। इस कारण माँ को खून तक चढ़ाना पड़ जाता हैं| कई बार तो माँ कि जान को खतरा तक होता हैं| सिजेरियन के बाद माँ और बच्चे को इंफेक्शन की संभावना ज्यादा होती हैं|

2)  सिजेरियन डिलीवरी होने के बाद महिला का शरीर अपेक्षाकृत अधि‍क कमजोर हो जाता है और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त की मात्रा, नार्मल डिलीवरी में निकलने वाले रक्त की तुलना में दुगुनी होती है।

3)  डिलीवरी के बाद शरीर में मोटापे के अलावा और भी कुछ बदलाव होते हैं, जो कई तरह की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। मोटापे की यह संभावना बच्चे में भी उतनी ही होती है।

4)  सिजेरियन डिलीवरी से जन्म लेने वाले बच्चों का प्रतिरक्षी तंत्र कमजोर होता है, जिसके कारण वे बीमारियों का सामना अपेक्षाकृत उतनी आसानी से नहीं कर पाते, जितना नॉर्मल डिलीवरी से जन्म लेने वाले बच्चे कर लेते हैं।

5)  इस प्रकार जन्म लेने वाले बच्चों में ब्रोंकाइटिस और एलर्जी का खतरा सबसे अधिक होता है। इसका प्रमुख कारण उनक प्रतिरक्षी तंत्र कमजोर होना है।

6)  इस प्रकार की डिलीवरी में मां को स्वास्थ्य और खानपान के प्रति कई तरह की सावधानियां रखनी होती हैं, जिनकी अनदेखी का नकारात्मक असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है।

7)  इन सभी के अलावा सिजेरियन डिलीवरी में नार्मल की अपेक्षा खर्च भी बहुत होता है, जो हर किसीके लिए वहन करना आसान नहीं है। साथ ही सिजेरियन के कारण मां और बच्चों में होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं की फेहरिस्त (सूची) भी लंबी है, जो लंबे समय तक परेशान करती है।
आइये जाने सुखपूर्वक प्रसव और प्रसव पीड़ा कम करने के घरेलू उपाय  , delivery ke dauran hone vale dard ko kam karne ke upaay

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सुखपूर्वक प्रसव के उपाय : Prasav pida dur karne ke upay

1)  छठे महीने से तुलसी की जड़ें कमर में बाँधने से प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है।

2) “सामान्य प्रसूति ” में यदि कहीं बाधा जैसी लगे तो 10-12 ग्राम देशी गाय के गोबर का ताजा रस निकालें, गुरुमंत्र का जप करके अथवा नारायण…. नारायण... जप करके गर्भवती महिला को पिला दें। एक घंटे में प्रसूति नहीं हो तो वापस पिला दें। सहजता से प्रसूति होगी।

3) अगर प्रसव-पीड़ा समय पर शुरु नहीं हो रही हो तो गर्भिणी ‘जम्भला… जम्भला….‘ मंत्र का जप करे और पीड़ा शुरु होने पर उसे देसी गाय के गोबर का रस पिलायें तो सुखपूर्वक प्रसव होगा।

इस प्रकार प्रत्येक गर्भवती स्त्री को नियमित रूप से उचित आहार-विहार का सेवन करते हुए नवमास चिकित्सा विधिवत् लेनी चाहिए ताकि प्रसव के बाद भी उसका शरीर सशक्त, सुडौल व स्वस्थ बना रहे, साथ ही वह स्वस्थ, सुडौल, सुंदर और हृष्ट-पुष्ट शिशु को जन्म दे सके। यह चिकित्सा लेने पर सिजेरियन डिलीवरी की नौबत नहीं आयेगी। इस चिकित्सा के साथ महापुरुषों के सत्संग-कीर्तन व शास्त्र के श्रवण पठन का लाभ अवश्य लें।

गुरूजी ने दी युक्ति, ऑपरेशन से मिली मुक्ति :

★   मेरी पत्नी को प्रसूति के समय इतनी अधिक तकलीफ हुई कि उसे रात को 2 बजे कल्याण (महा.) में डॉक्टर मस्कर हॉस्पिटल’ में भर्ती कराना पड़ा। डॉक्टर ने कहाः “आज और अभी प्रसूति होने की सम्भावना है।” लेकिन सुबह 7 बजे तक बहुत प्रयत्न करने पर भी वे असफल रहे तो बोलेः “बच्चे का सिर और दोनों हाथ अटक (फँस) गये हैं। इस स्थिति में बच्चे के बचने की सम्भावना बहुत कम है लेकिन माँ को बचाने के लिए ऑपरेशन करना ही पड़ेगा।” मैंने कहाः “आप मुझे एक घंटे का समय दीजिये।”

★   मैं आठ दिन पहले ही होली शिविर में सूरत गया था, वहाँ गुरुजी ने कहा था कि “जिसको डॉक्टर बोलें कि ऑपरेशन के सिवाय प्रसूति नहीं हो सकती, ऐसी महिला को यदि देशी गाय के ताजे गोबर का एक चम्मच रस भगवन्नाम का जप करके पिला दिया जाय तो बिना ऑपरेशन के, बिना अधिक पीड़ा के प्रसूति जल्दी हो जाती है।”

★   मैंने यह प्रयोग श्रद्धा और विश्वास से किया। गाय के गोबर के रस में थोड़ा गंगाजल मिलाया और गुरुमंत्र जपकर पत्नी को पिला दिया। लगभग 25-30 मिनट में सामान्य प्रसूति हो गयी। यह देखकर डॉक्टर आश्चर्यचकित होकर बोलेः “15-20 साल में मैंने कभी नहीं देखा कि बच्चा इस तरह से फँस गया हो और बिना ऑपरेशन के सामान्य प्रसूति से पैदा हुआ हो।” सदगुरुदेव की कृपा का मैं सदैव ऋणी रहूँगा।

– अशोक चंदनमल, उल्हासनगर (महा.)

श्रोत : दिव्य शिशु संस्कार

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