Last Updated on July 18, 2019 by admin
पथ्य यानी सेवन करने योग्य हितकारी पदार्थों का सेवन करने से शरीर स्वस्थ व बलवान बना रहता है और रोगी होने से बचा रहता है तथा अपथ्य पदार्थों का त्याग रखने से शरीर में विकार या रोग पैदा नहीं होते इसलिए भी शरीर स्वस्थ और बलवान बना रहता है। पथ्य-अपथ्य आहार और विहार का ठीक से पालन किये बिना, कितनी ही औषधियों का सेवन भले ही किया जाए रोग जाएगा नहीं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उचित एवं पथ्य आहार – विहार करने तथा अपथ्य आहार विहार के बारे में पूरी जानकारी होनी ही चाहिए ताकि वह तदनुसार आहार-विहार कर सके ।
इस लेख में हम इसीलिए पथ्य-अपथ्य के सामान्य नियमों की जानकारी दे रहे हैं। इन नियमों का नियमित रूप से पालन किया जाना बहुत ज़रूरी है। तो लीजिए, पथ्य -अपथ्य आहार विहार के सामान्य नियम जिन पर अमल करना हर ऋतु में जरुरी है।
पथ्य-अपथ्य क्या है इसके सामान्य नियम : Khan Paan ke Niyam in Hindi
पहले ज़रा पथ्य अपथ्य को समझ लें। इस विषय में आयुर्वेद कहता है
पथ्यं पथोऽनपेतं यद्यच्चोक्तं मनसः प्रियम् ।
यच्चाप्रियमपथ्यं च नियतं तन्न लक्षयेत् ॥
– चरक संहिता ।
अर्थात् -आहार के जो द्रव्य, शारीरिक स्रोतों में हानि करने वाले न हों और मन को प्रिय हों अर्थात् शरीर व मन के लिए हानिकारक न हों उन्हें पथ्य कहते हैं। जो आहार द्रव्य शारीरिक स्रोतों में हानि करते हों और मन को अप्रिय हों अर्थात् शरीर व मन के लिए हानिकारक हों उन्हें अपथ्य कहते हैं।
किसी पदार्थ के पथ्य या अपथ्य होने का निर्णय सिर्फ इतनी सी व्याख्या से नहीं होता बल्कि कुछ और भी बातें इस मुद्दे से जुड़ी हैं। इस विषय में कहा गया है
मात्रा काल क्रिया भूमि देह दोष गुणान्तरम् ।
प्राप्य तत्ताद्धि दृश्यन्ते ते ते भावास्तथा तथा॥
-चरक संहिता
अर्थात् -पथ्य पदार्थ भी मात्रा, काल (ऋतु), भूमि (स्थान), देह (शारीरिक स्थिति) एवं दोष की विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त कर अपथ्य हो जाता है और इन्हीं कारणों से अपथ्य पदार्थ भी पथ्य हो जाता है। | आयुर्वेद ने बड़ी सटीक और महत्वपूर्ण बात इस व्याख्या में कही है कि कोई भी पदार्थ अपने आप में न तो पथ्य होता है और न अपथ्य बल्कि उपयोग की स्थिति, हेतु और पद्धति से ही वह पथ्य या अपथ्य सिद्ध होता है।
आयुर्वेद ने इस विषय में कहा है-
‘नानौषधि भूतं जगति किंचिद् द्रव्यमुप लभ्यते तांता युक्तिमर्थं च तं तमभि प्रेत्यः।
अर्थात् संसार में ऐसा कोई भी द्रव्य नहीं है। जो भिन्न-भिन्न युक्ति और उचित मात्रा में प्रयोग किये जाने पर औषधि का काम न करता हो।
अब अन्न का मामला ही ले लीजिए। अन्न सबके लिए पथ्य एवं हितकारी पदार्थ है। लेकिन मात्रा से अधिक खाने पर और उचित रूप से एवं उचित समयावधि में न पचने पर रोग का कारण बन जाता है और कभी कभी तो विष (Food Poison) का काम करता है। जबकि विष प्राण हरं तच्च युक्ति युक्तं रसायनम्’ (चरक संहिता) के अनुसार, विष प्राणों का नाश करने वाला होते हुए भी, युक्ति और मात्रा के अनुसार सेवन करने पर रसायन औषधि का काम करता है।
इसी प्रकार मात्रा के अतिरिक्त काल, स्थान, शारीरिक स्थिति और दोषों (वात पित्त आदि) की अवस्थाओं के अनुसार कई स्थितियों में अन्न अपथ्य हो जाता है।
सारांश की बात यह है
किसमांश्चैव शरीर धातून् प्रकृतौ स्थापयति ।
विषमांश्च समिकरोती त्येतद्धितं विद्धि ।।
अर्थात् जो आहार द्रव्य समान अवस्था में रहने वाली शारीरिक धातुओं को स्वाभाविक रूप में ही रखे और विषम मात्रा में रहने वाली शारीरिक धातुओं को सम मात्रा में कर दे उसे पथ्य यानी हितकारी आहार द्रव्य कहते हैं।
जो आहार द्रव्य समधातु को विषम कर दे और विषम धातु को ज्यादा विषम कर दे उसे अपथ्य यानी अहितकारी आहार-द्रव्य कहते हैं।
इतने स्पष्टीकरण से आप पथ्य और अपथ्य के विषय में ठीक से जान समझ चुके होंगे।
अब कुछ आहार द्रव्यों के पथ्यअपथ्य होने के विषय में सामान्य नियमों की जानकारी प्रस्तुत करते हैं।
क्या खाये क्या न खाये : Kya Khaye Kya Nahi in Hindi
(1) प्रातःकालीन भोजन के बाद थोड़ी देर तक बायीं करवट लेट कर आराम करना और सायंकालीन भोजन के बाद थोड़ी देर टहलना पथ्य है। अंग्रेज़ी में कहावत है- After Lunch rest a while, after supper walk a mile. यानी सुबह के भोजन के बाद थोड़ी देर विश्राम करें और शाम के भोजन के बाद एक मील तक टहलें । ( और पढ़े –अच्छी सेहत के लिये खान पान के महत्वपूर्ण 50 नियम )
(2) दिन के भोजन के अन्त में छाछ और रात्रि के भोजन के डेढ़ घंटे बाद दूध पीना पथ्य है। रात में दही का सेवन और भोजन के अन्त में अधिक जल पीना अपथ्य है।
(3) भोजन करने के तुरन्त बाद स्नान करना, दिमाग़ी परिश्रम करना, चिन्ता या शोक करना और स्त्री-सहवास करना अपथ्य है। अपच की स्थिति में स्नान करना अपथ्य है और रात्रि भोजन के बाद देर रात तक जागना अपथ्य है। ( और पढ़े – गर्भवती महिला के लिए पुष्टिवर्धक संतुलित भोजन)
(4) सिर पर गर्म जल डाल कर स्नान करने से नेत्र और बालों को हानि पहुंचती है। बहुत कम या बहुत तेज़ प्रकाश में पढ़ना-लिखना या कोई बारीक काम करना, सोते हुए या चलती गाड़ी में पढ़ना, ज्यादा टी वी सिनेमा देखना, अधिक गर्मगर्म पदार्थ खाना, खटाई और लाल मिर्च का अति सेवन, धुएं में काम करना, अधिक धूप में काम करना, सूर्य पर त्राटक करना, अग्नि के पास ज्यादातर बैठना, अधिक तम्बाकू सेवन और स्त्री-सहवास में अति करना ये सब कार्य नेत्रों के लिए हानिकारक होने से अपथ्य हैं।
(5) शीतल जल सिर पर डालना, मुंह में पानी भर कर चेहरे पर व आंखों पर, आंखें बन्द करके, ठण्डे पानी के छींटे मारना, सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान से निवृत्त हो कर हरी दूब पर नंगे पैर टहलना, हरी शाक सब्ज़ी, पत्ता गोभी, गाजर, सौंफ, पानी वाला कच्चा नारियल काली मिर्च, मख्खन, मिश्री, दूध, गोघृत, पर्याप्त प्रकाश में काम करना,गुलाब जल की 2-2 बूंद आंखों में टपकाना, धूप में काला चश्मा लगा कर निकलना- ये सब कार्य नेत्रों के लिए हितकारी होने से पथ्य हैं। ( और पढ़े –बुफे सिस्टिम के नुकसान व भारतीय भोजन पद्धति के 8 बड़े फायदे )
(6) यूं ग्रीष्म ऋतु के अलावा, अन्य ऋतुओं में, दिन में सोना निषिद्ध है पर रात्रि जागरण करने वाले, परिश्रम के कारण बहुत थके हुए, वृद्ध, शिशु, अतिसार, उदरशूल, अजीर्ण, श्वास, तृषा, हिचकी, वात व कफ आदि रोगों का रोगी, रोज़ पैदल यात्रा करने वाला, शराब पिया हुआ, जिसे सुबह जल्दी
उठना पड़ा हो इन सबको भोजन करने से पहले दिन में सोना पथ्य है। ( और पढ़े – पत्तल में भोजन करने के है अदभुत लाभ)
(7) वात रोग से ग्रस्त, प्यासा, गर्भवती स्त्री, वृद्ध, बालक, क्षय रोगी, किसी रोग से पीड़ित, थका हुआ, भूख से व्याकुल- इन सबको उपवास नहीं करना चाहिए। जिसे उपवास करने से हड्डियों में पीड़ा, आंखों के सामने अन्धेरा, हृदय में भारीपन, शरीर में कमज़ोरी और चक्कर आना- ये व्याधियां होती हों उनके लिए भी उपवास करना अपथ्य और हानिकारक है।
(8) यदि मूत्र में अम्ल प्रतिक्रिया (Acidic reaction) होती पाई जाए तो आहार में मलाई, मख्खन, घी, तैल आदि स्निग्ध पदार्थों की मात्रा कम या बन्द कर देना चाहिए। पथ्य-अपथ्य आहार-विहार के इन सामान्य नियमों का पालन कर स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए।