Last Updated on September 16, 2022 by admin
दीर्घायु होने के उपाय और सूत्र : lambi umar ke liye upay
- नित्यप्रति सूर्योदयसे पूर्व सोकर उठे। रात्रि में अधिक देर तक जागें नहीं।
- प्रतिदिन नियमित रूपसे व्यायाम करे। तैरने से अच्छा व्यायाम हो जाता है। सप्ताह में कम-से-कम एक बार पूरे शरीरकी मालिश करे।
- सुबह-शाम टहलना लाभदायक है। नियमित रूपसे टहलने से सम्पूर्ण शरीर की मांसपेशियाँ सक्रिय हो जाती हैं, रक्तसंचार बढ़ता है, शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है, धमनियों में रक्तके थक्के नहीं बनते। हृदयरोग, मधुमेह और ब्लडप्रेशरमें लाभ पहुँचता है।
- धूप, ताजी हवा, साफ-स्वच्छ पानी और सादा-सात्त्विक भोजन स्वस्थ रहनेके लिये जरूरी है। ( और पढ़े –भोजन करने के 33 जरुरी नियम )
- नित्य योगासन-प्राणायाम करनेसे रोग नहीं होते और दीर्घायुष्यकी प्राप्ति होती है।
- स्वस्थ शरीरमें ही स्वस्थ मन निवास करता है, इसलिये शरीरको स्वस्थ रखे। सदाचारी, नीरोगी व्यक्ति सदा सुखी रहता है।
- तेज रोशनी आँखों को नुकसान पहुँचाती है।
- स्नानका जल न तो अति शीतल हो और न बहुत गर्म। स्नानके बाद किसी मोटे तौलियेसे अच्छी तरह रगड़कर शरीर पोंछना चाहिये।
- स्वादके लिये नहीं, स्वस्थ रहनेके लिये भोजन करना चाहिये।
- भोजन न करनेसे तथा अधिक भोजन करनेसे पाचकाग्नि दीप्त नहीं होती। भोजन के अयोग, हीनयोग, मिथ्यायोग और अतियोग से भी पाचकाग्नि दीप्त नहीं होती है।
- पानी या दूध तेजी से न पिये। इन्हें धीरे-धीरे पिये।
- भोजनके बाद दाँतों को अच्छी तरह साफ करे, अन्यथाः अन्नकणों के लगे रहनेसे उनमें सड़न पैदा होगी।
- हलका और जल्दी पचे, ऐसा ही भोजन करना चाहिये। सड़ी-गली या बासी चीजें खानेसे रोग होता है। खूब गरम-गरम खाने से दाँत तथा पाचन शक्ति दोनोंकी हानि होती है। जरूरतसे अधिक खानेसे अजीर्ण होता है और यही अनेक रोगों की जड़ है।
- प्रतिदिन चार-पाँच तुलसी की पत्तियाँ खाने से ज्वर आदि रोग नहीं होते। ( और पढ़े – तुलसी के 71 लाजवाब फायदे व रोगों के अचूक घरेलू नुस्खे )
- भोजन के पश्चात् दिनमें थोड़ा विश्राम तथा रात में टहलना अच्छा रहता है।
- हमेशा शान्त और प्रसन्न रहे। कम बोलने की आदत डाले। जितना जरूरी हो उतना ही बोले।
- चिन्ता से हानि होती है, लेकिन तत्त्व के चिन्तन-मननसे बुद्धि का विकास होता है।
- प्रतिदिन आँखों में अञ्जन लगाने से आँखोंकी रोशनी बढ़ती है।
- रात में एक तोला त्रिफला को एक पाव ठंडे पानीमें भिगो दे, सुबह छानकर उससे आँखें धोयें और बचे हुए जलको पी जायँ।।
- नित्य मुख धोने के समय ताजे ठंडे पानी से आँखों में छींटे लगाये। इससे आँखें स्वस्थ रहती हैं।
- हफ्ते-दस दिनके अन्तर पर कानों में तेल की कुछ बूंदें डालनी चाहिये।
- बिस्तर के गद्दे-तकिये, चादर आदि को समय-समय पर धूप में डालना चाहिये।
- सोने के स्थान को साफ-सुथरा रखे। नींदआनेपर ही सोना चाहिये। बिस्तरपर पड़े-पड़े नींद की राह देखना रोग को आमन्त्रित करना है। दिनमें सोनेकी आदत न डाले।
- मच्छरों को दूर करने का उपाय करे। वे रोगोंको फैलाने में सहायक होते हैं। ( और पढ़े –मच्छर भगाने के 6 अचूक घरेलू उपाय )
- अगरबत्ती, कपूर अथवा चन्दनका धुआँ घरमें हर रोज कुछ क्षणोंके लिये करे। इससे घरका वातावरण पवित्र होता है।
- श्वास सदा नाकसे और सहज ढंगसे लें। मुँहसे श्वास न ले, इससे आयु कम होती है।
- उत्तम विचारोंसे मानसिक सुख तथा स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
- अच्छा साहित्य पढ़े। अश्लील एवं उत्तेजक साहित्य पढ़नेसे बुद्धि भ्रष्ट होती है। दूसरोंके गुणों को अपनाये।
- सुबह उठते ही आधा सेरसे एक सेरतक ठंडा पानी पीना चाहिये। यदि पानी ताँबेके बरतन में रखा हुआ हो तो अधिक लाभप्रद होगा।
- कपड़ छान किये नमक में कडुवा तेल मिलाकर दाँत और मसूड़ों को रगड़ कर साफ करना चाहिये। इससे दाँत मजबूत होते हैं और पायरियासे भी मुक्ति मिल सकती है।
- धूपका सेवन अवश्य करना चाहिये। इससे शरीर को पोषकतत्त्व की प्राप्ति होती है।
- मैदे की बनी हुई और तली हुई चीजों से परहेज करना चाहिये।
- हर समय माथा और पेट ठंडा तथा पैर गरम रखना चाहिये।
- सप्ताह में केवल नीबू-पानी पीकर एक दिनका उपवास करे। इससे पाचनशक्ति सशक्त होगी और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। यदि पूरा उपवास न कर सकें तो फल खाकर या फलका रस पीकर उपवास करे। ( और पढ़े – उपवास रखने के 5 बड़े फायदे)
- पचास से अधिक अवस्था होनेपर दिनमें एक ही बार अन्न खाये। बाकी समय दूध और फलपर रहे।
- भोजन में मौसमी फलोंका उपयोग अवश्य करे।
- भोजन करते समय और सोते समय किसी प्रकार की चिन्ता, क्रोध या शोक न करे।
- सोने से पहले पैरों को धोकर पोंछ लेने, कोई अच्छी स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तक पढ़ने और अपने इष्टदेव को स्मरण करते हुए सोनेसे अच्छी नींद आती है।
- रात्रिका भोजन सोनेसे तीन घंटे पहले करना चाहिये। भोजनके एक घण्टा बाद फल या दूध ले।
- सोते समय मुँह ढककर नहीं सोये। खिड़कियाँ खोलकर सोये। सोनेका बिस्तर बहुत मुलायम न हो।
- तेल-मालिश के बाद स्नान करना आवश्यक है। तेल से त्वचाके रोमकूप मैल से भर जाते हैं, जो लाभके बदले हानि पहुँचाते हैं। यदि स्नान न करनेकी कोई बाध्यता हो तो गुनगुने पानीमें तौलिया भिगोकर अच्छी तरह शरीर पोंछ ले।
- सुबह-सुबह हरी दूबपर नंगे पाँव टहलना भी काफी लाभप्रद है। पैर पर दूबके दबावसे तथा पृथ्वीके सम्पर्कसे कई रोगों की चिकित्सा स्वतः हो जाती है। ४३. न तो इतना व्यायाम करना चाहिये और न तो इतनी देर टहलना चाहिये कि काफी थकावट आ जाय। टहलने और व्यायामके लिये सूर्योदयका समय ही सबसे उत्तम है।
- भोजन से पहले हाथ-पैर पानीसे धोकर कुल्ला-गरारा करना स्वास्थ्यप्रद होता है।
- भोजनके प्रारम्भ में और अन्तमें अधिक मात्रामें जल न पिये। बीचमें दो-तीन बूंट पानी पी लेना चाहिये।
- गरम दूध तथा जल पीकर तुरंत ठंडा पानी पीने से दाँत कमजोर हो जाते हैं।
- शयन करते समय सिर उत्तर या पश्चिम में रखकर नहीं सोना चाहिये। धूप में सोना हो तो सिर सूर्यकी ओर करके सोये और धूपमें बैठना हो तो ऐसे बैठे कि पीठ पर धूप पड़े।
- कपड़ा, बिस्तर, कंघी, ब्रश, तौलिया, जूताचप्पल आदि वस्तुएँ परिवार के हर व्यक्ति की अलगअलग होनी चाहिये। दूसरेकी वस्तु उपयोगमें न लाये।
- दिन और रात में कुल मिलाकर कम-से कम तीन लीटर पानी पीना चाहिये। इससे शरीर की अशुद्धि मूत्र के द्वारा बाहर निकल जाती है तथा रक्तचाप आदिपर नियन्त्रण रहता है।
- प्रौढावस्था शुरू होते ही चावल, नमक, घी, तेल, आलू और तली-भुनी चीजें खाना कम कर देना चाहिये।
- केला, दूध, दही और मट्ठा एक साथ नहीं खाना चाहिये।
- कटहलके बाद दही और मट्ठा एक साथ नहीं खाना चाहिये।
- शहद के साथ उष्णवीर्य पदार्थों का सेवन न करे।
- दूध के साथ इन वस्तुओं का प्रयोग हानिकारक होता है-नमक, खट्टा फल, दही, तेल, मूली और तोरई ।
- दूध के साथ इन पदार्थोंका सेवन किया जा सकता है-आँवला, मिस्री, चीनी, परवल, अदरक, सेंधा नमक।
- दही के साथ किसी भी प्रकारका उष्णवीर्य पदार्थ-कटहल, दूध, तेल, केला आदि खाने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। रातको दही खाना निषिद्ध है। शरद् और ग्रीष्म-ऋतु में दही खाने से पित्तका प्रकोप होता है। रक्त, पित्त और कफ सम्बन्धी रोगों में भी दहीका सेवन नहीं करना चाहिये।
- दूध और खीरके साथ खिचड़ी नहीं खानी चाहिये।
- काँसे और पीतल के बर्तनमें घी रखने से विषतुल्य हो जाता है।
- शहद और घी समान मात्रा में सेवन करना अत्यन्त हानिकारक होता है।
- पढ़ना-लिखना आदि आँखों के द्वारा होने वाला कार्य लगातार काफी देरतक न करे। बीच-बीचमें नेत्र बंद करके उनपर उँगलियाँ फेरे और दूरकी किसी वस्तुपर नजर जमाये।
- गर्मीमें धूपसे आकर तत्काल स्नान न करे और न तो हाथ-पैर या मुँह ही धोये। थोड़ा विश्राम करके, पसीना सूख जानेपर जब शरीर का तापमान सामान्य हो जाय, तभी स्नान करे।
- देर राततक जागना या सुबह देरतक सोते · रहना आँखों और स्वास्थ्यके लिये हितकर नहीं है।
- अधिक वसायुक्त आहार, धूम्रपान एवं मांसाहारी भोजन हृदयके लिये नुकसानदेह होते हैं। ये रक्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं।
- नियमित व्यायामसे शरीर की क्षमता बढ़ती है। शरीर में हानिकारक तत्त्वों की मात्रा घटती है। नियमित योग एवं व्यायाम, कम वसायुक्त भोजन तथा नियमित दिनचर्या से अनेक रोग स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
- तम्बाकू, शराब, चरस, अफीम, गाँजा आदि जहर से भी खतरनाक हैं। नशीले पदार्थोंके सेवन से धन और स्वास्थ्य दोनों से हाथ धोना पड़ता है।
- नियमित समयपर प्रातः जागकर शौच जानेवाला, समय पर भोजन करने और सोने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सम्पन्न और बुद्धिमान् होता है।
- भोजन करनेके बाद लघुशंका अवश्य करनी चाहिये। इससे गुर्दे स्वस्थ रहते हैं।
- सही मुद्रा में चलने-बैठने का अभ्यास करना चाहिये। चलते समय पैरको घिसटते हुए, ठोड़ीको आगे निकालकर या झटका देकर कदम नहीं रखने चाहिये। बैठते समय पीठ सीधी रखकर बैठे।
- धूप, वर्षा और शीतकी अतिसे शरीरको बचाना चाहिये। इन तीनोंके अति सेवनसे आयु कम हो जाती है।
- अत्यधिक भीड़-भाड़ तथा सीलनयुक्त स्थान स्वास्थ्यके लिये ठीक नहीं होता।
- प्रगाढ़ निद्रा में सोये व्यक्ति को नहीं जागाना चाहिये।
- सुबह उठते ही यह प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि आज दिनभर न तो किसीकी निन्दा करूंगा और न ही क्रोध करके किसीको भला-बुरा कहूँगा।