Last Updated on July 22, 2019 by admin
मण्डूर क्या है ? : mandoor kya hai
जब लोहा कई वर्षों तक भूमि के अन्दर दबा रहता है तो वह मंडूर बन जाता है |
मण्डूर जितना पुराना होगा उतना ही विशेष गुणयुक्त तथा आशुफलप्रद होगा। अतएव आयुर्वेद में लिखा है कि १०० साल पुराना मण्डूर उत्तम, अस्सी वर्ष का मध्यम और ६० वर्ष का अधम गिना जाता है। ६० वर्ष से कम का मण्डूर विषवत् त्यागने योग्य है। प्राचीन समय में जहाँ लोहे की खदाने थीं और लोहा गलाया जाता था वहाँ पुराना लौह किट अर्थात् मण्डू खूब पाया जाता है।
जो मण्डूर भारी, चिकना, ठोस, तोड़ने पर अंजन के समान और बिना गढ़ेवाला हो, वह उत्तम होता है।
मण्डूर भस्म शोधन विधि : mandoor bhasma shodhan vidhi
छेद-रहित, वजनदार और चिकना मण्डूर लाकर उसको अग्नि में तपा-तपा कर लाल होने पर २१ बार गो-मूत्र में डालने से मण्डूर शुद्ध हो जाता है। -सि. यो. सं.
मण्डूर भस्म बनाने की विधि : mandoor bhasma bnane ki vidhi
प्रथम विधि :
उपरोक्त रीति से शुद्ध किया हुआ मण्डूर ४० तोले से ५० तोले तक की मात्रा में लें, इसको इमामदस्ते में डालकर खूब महीन कपड़छन चूर्ण कर गो-मूत्र में मर्दन कर थोड़े कंडों की आँच देकर गजपुट में फेंक दें। इस प्रकार ७ पुट गो-मूत्र के एवं ७ पुट त्रिफला क्वाथ के और ७ पुट ग्वारपाठे के रस के दें। इस तरह २१ पुट देने से बहुत उत्तम और मुलायम भस्म बनती है। -सि. यो. सं.
दूसरी विधि :
अच्छे-पुराने मण्डूर के टुकड़ों को धोंकनी से अग्नि पर तपा-तपा कर गो-मूत्र में सात बार बुझायें। फिर सुखाकर इमामदस्ते में कूटकर बारीक चलनी से छानकर गो-मूत्र की भावना | देकर टिकिया बना-सुखाकर सराब-सम्पुट में बन्द करके गजपुट में रखकर साधारण अग्नि में फेंक दें। हर बार पुट के अन्त में अच्छी घुटाई होना आवश्यक है। इस प्रकार ७ पुट में उत्तम भस्म बन जाती है। यदि घुटाई अच्छी होती रहे, तो कम पुटों में भी भस्म बन जाती है। भस्म तैयार होने के बाद पानी के साथ | कपड़े से छान लें। फिर सुखाकर एक पुट और देकर घुटाई कराकर रख दें। इस प्रकार यह लाल रंग की उत्तम भस्म बनेगी।-र.सा.सं. के आधार पर स्वा.
मात्रा और अनुपान :
❇ २ रत्ती से ८ रत्ती, सुबह-शाम शहद (मधु) से दें।
❇ साधारणतया मण्डूर भस्म का सेवन त्रिकटु चूर्ण और मधु से करना चाहिए। अगर दस्त की कब्जियत हो तो गो-मूत्र का अनुपान देना ठीक है।
मण्डूर भस्म के फायदे ,गुण और उपयोग : mandoor bhasma ke fayde / benefits
✦ यकृत (Liver) की खराबी : मण्डूर का प्रभाव यकृत पर होता है। अतएव यकृत की खराबी से होनेवाले पाण्डु रोग, मन्दाग्नि, कामला, बवासीर, शरीर की सूजन, रक्तविकार आदि रोगों में विशेष रूप से काम करता है। ( और पढ़े – लिवर की बीमारी व सूजन दूर करने के रामबाण नुस्खे )
✦ पाण्डु रोग : पाण्डु रोग में जब किसी औषध से लाभ न हो, तब मण्डूर भस्म गिलोय (गुर्च) के रस अथवा पुनर्नवा के रस के साथ प्रयोग करने से आशातीत लाभ होता है। ( और पढ़े – पीलिया के 36 देसी घरेलु उपचार )
✦ उदर रोग : इसके अतिरिक्त उदर रोग में अच्छा काम करता है।
✦ इसकी भस्म सौम्य, शीतल और कषाय गुणवाली है। जो गुण लौह भस्म में है उससे कुछ ही कम गुण मण्डूर भस्म में पाया जाता है।
✦ मण्डूर भस्म लौह भस्म की अपेक्षा शरीर पर जल्दी असर करती है, क्योंकि यह लौह भस्म से सूक्ष्म होती है। अतएव, बच्चों, गर्भवती स्त्रियों एवं कामल प्रकृतिवालों के लिए लौह भस्म की अपेक्षा मण्डूर भस्म का प्रयोग करना अधिक श्रेयस्कर है।
✦ मण्डूर भस्म या लौह भस्म रंजक-पित्त को सुधार करके रक्ताणुओं को बढ़ाती है। अतएव, रक्ताणुओं की कमी से होनेवाले रोग इससे नष्ट होते हैं।
✦ लौहकिट्ट मण्डूर के किट्ट अवस्था में खुली जमीन पर सैकड़ों वर्ष पड़े रहने के कारण वर्षा तथा वायु के संयोग से उस पर ओषजन बहुत जम जाती है, रक्ताणुओं की वृद्धि करने के लिए उत्तम लाभकारी वस्तु है। इसी कारण करने में मण्डूर भस्म सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुई है।
✦ खून की कमी : मण्डूर भस्म का प्रधान कार्य रक्ताणुओं की वृद्धि करना है। किसी भी कारण से रक्ताणुओं की कमी होने पर मण्डूर भस्म का प्रयोग करना बहुत लाभदायक है। ( और पढ़े – खून की कमी दूर करने के 10 रामबाण घरेलु नुस्खे)
✦ पाण्डू रोग(पीलिया) : प्रथम अवस्था पाण्डू रोग में रक्ताणुओं की कमी – के कारण हृदय कमजोर हो जाता है और उसकी गति बढ़ जाती है। हृदय की गति बढ़ जाने से रक्तचाप एवं नाडी की गति में भी वृद्धि हो जाती है, क्योंकि शरीर में रक्ताणुओं की जितनी कमी होगी उतनी ही शारीरिक अवयवों में भी कमजोरी होती जायेगी। इन विकारों को दूर करने के लिये रक्ताणुओं की वृध्दि करनी चाहिए। रक्ताणुओं की वृदि के लिए ही मण्डूर भस्म का प्रयोग किया जाता है। यह रंजक पित्त को सबल बनाकर उसकी सहायता से शरीर में रक्ताणुओं की वृध्दि करने में समर्थ होता है। रक्ताणुओं की वृद्धि होने से शरीरावयव पुष्ट हो जाते हैं तथा हृदय की गति भी अपनी सीमा पर नाडी की गति को भी उचित अवस्था पर ले आती है तथा शरीर में पाण्डुता भी कम हो जाती है। इसी कारण पाण्डु रोग की औषधियों में प्रायः मण्डूर और लौह का मिश्रण रहता है।
✦ पाण्डुरोग की ही दूसरी अवस्था कामला है। इसकी उत्पत्ति के विषय में लिखा है कि जो पाण्डुरोगी पैत्तिक पदार्थों का ज्यादा सेवन करते हैं, उनका पित्त प्रकुपित (दुष्ट) होकर रक्त और मांस को दूषित करके कामला नामक रोग उत्पन्न कर देता है। इसमें आँख, मुँह, नाखून सब पीले हो जाते हैं। मूत्र पीला होना, मल काले (मटमैले) रंग का होना, शरीर में दाह, अन्न में अरुचि आदि लक्षण होते हैं। इस रोग में भी मण्डूर भस्म बहुत फायदा करती है, क्योंकि मण्डूर भस्म शीतल है। अत: पैत्तिक रोगों में इसका असर बहुत शीघ्र होता है और इस रोग का प्रधान कारण पित्त की विकृति ही है। इसलिए निर्भय होकर इसका प्रयोग सुवर्ण माक्षिक भस्म के साथ करें। ऊपर से कुमार्यासव का भी सेवन कराने से आशातीत लाभ होता है।
✦ पाण्डु रोग की तीसरी अवस्था कुम्भकामला है। अर्थात् जब कामला रोग पुराना हो जाता है, तो दोष कोष्ठाश्रय होकर कुम्भकामला को उत्पन्न करता है। यह असाध्यावस्था है। इसमें रक्ताणुओं की कमी होते-होते शरीर में जल भाग विशेष हो जाता है, जिससे सम्पूर्ण देह में सूजन हो जाती है, विशेष कर नेत्र, पेट, गाल और हाथ-पैर के ऊपरी भाग में यह सूजन ज्यादा होती है। इस सूजन को दबाने से गड़ा बन जाता है, जो देर में भर पाता है। इसका कारण यह है कि दबाने से वहाँ का जल भाग दब कर अलग हो जाता है, जो फिर धीरे-धीरे आकर उस स्थान की पूर्ति करता है। ऐसी स्थिति में मण्डूर भस्म के प्रयोग से शरीर में रक्ताणुओं की वृद्धि होकर जल भाग शोषित कर हृदय की गति को नियमित करते हुए सूजन कम कर देती है और शारीरिक अवयवों को भी पुष्ट कर शरीर को नीरोग बना देती है।
✦ हारिद्रक रोग :यह प्रायः तरुण स्त्रियों को प्रसूतावस्था के बाद में होता है। इस अवस्था में मण्डूर भस्म अकेले या किसी उपयुक्त मिश्रण – जैसे अभ्रक, स्वर्णमाक्षिक, लौह, प्रवाल चन्द्रपुटी आदि भस्म के साथ मिलाकर देने से बहुत लाभ होता है।
✦ बालरोग : बच्चों के रोग में भी मण्डूर भस्म का प्रयोग बहुत गुणप्रद है। इसमें यकृत या प्लीहा-वृद्धि ये दोनों रोग ऐसे रोग हैं कि प्रायः बच्चों को ही होते हैं। इसमें भी रक्ताणुओं की कमी हो जाती है। बच्चा दुबला-पतला हो जाता, आँखें और मुँह पीले हो जाते हैं, बुखार भी हो जाता है, इसमें मण्डूर भस्म अकेले या प्रवाल चन्द्रपुटी और स्वर्णवसन्तमालती के साथ दें और शरीर पर महालाक्षादि तैल की मालिश करवाने से बच्चा शीघ्र अच्छा हो जाता है।
✦ यकृत की वृद्धि : गर्भिणी माता का दूध पीने से बच्चे के यकृत की वृद्धि हो जाती है, इसे बालयकृद्रोग कहते हैं। इसमें भी मण्डूर भस्म से बहुत लाभ होता है।
✦ रजोदर्शन न होना : कभी-कभी लड़कियों को छोटी आयु (बाल्यावस्था) में यकृत या प्लीहा की वृद्धि हो जात्री है या अतिसार, संग्रहणी, पेचिश आदि आन्त्रजन्य विकार हो जाया करते हैं जिससे लड़कियों में रक्ताणुओं की कमी होकर कमजोरी बढ़ जाती है। किसी किसी को रक्ताणुओं की कमी बड़ी आयु (१४-१५ वर्ष) तक में भी बनी रह जाती है, जिससे बड़ी अवस्था में भी रजोदर्शन नहीं होता, शारीरिक पुष्टि या अवयवों का विकास नहीं हो पाता। शरीर कान्तिहीन, मुँह पर पीलापन और गाल फूला-सा मालूम होता है। कभी-कभी ज्वर भी आ जाता है। ऐसी परिस्थिति में मण्डूर भस्म देना आवश्यक है, क्योंकि बाल्यावस्था में रक्ताणुओं की कमी हो जाने से शारीरिक अवयव पुष्ट नहीं हो पाते, वे कमजोर ही बने रहते हैं, जिससे शारीरिक अवयवों के विकास में बाधा पड़ती है। रसादि धातुओं की विकृति या कमजोरी के कारण ठीक तरह से रज की उत्पत्ति नहीं होती, अतः रज रुका हुआ रहता है। मण्डूर भस्म रक्ताणुओं की वृद्धि कर रक्त की वृद्धि करती है एवं इन सब । विकारों को दूर कर शरीर को स्वस्थ बना देती है।
✦ हृदय की कमजोरी : शरीर में रक्त या रक्ताणुओं की कमी हो जाने से हृदय की कमजोरी के साथ-साथ स्त्रियों का मस्तिष्क भी कमजोर हो जाता है। जिससे स्मरणशक्ति नष्ट हो जाती है, मन भी चंचल हो जाता, किसी भी विषय पर विचार स्थिर नहीं हो पाता, मन में अनेक तरह की शंकाएँ उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे किसी पर विश्वास भी नहीं होता और न अपने विरूद्ध छोटी-से-छोटी बात को ही सहन करने की शक्ति होती है। ऐसी स्थिति में मण्डूर भस्म देना आवश्यक है, क्योंकि मण्डूर भस्म का प्रभाव पित्त पर बहुत पड़ता है, और उपरोक्त उपद्रव पित्त प्रकोप के कारण होता हैं। अतः इस भस्म के सेवन से उपरोक्त सब विकार दूर हो जाते हैं। इससे शरीर में ताकत भी आती है और रक्तादि की वृद्धि होकर पित्त भी शान्त हो जाता है। -औ.गु.ध.शा. ( और पढ़े – हृदय की कमजोरी दूर करने के 19 असरकारक घरेलू उपचार )
✦ शोथ (सूजन) : किसी भी कारण से होनेवाले शोथ में मण्डूर भस्म रामबाण औषध है। ( और पढ़े – मोच एवं सूजन में तुरंत राहत देते है यह 28 घरेलु उपाय )
✦ छोटे बालों को मिट्टी खाने से होनेवाले पाण्डु रोग में तथा कमजोरी में मधु के साथ मण्डूर भस्म २ रत्ती की मात्रा में देना अच्छा हैं।
✦ यकृत और प्लीहा-वृद्धि में मण्डूर भस्म ४ रत्ती, अभ्रक भस्म १ रत्ती, शंख भस्म २ रत्ती में मिलाकर मधु से देना एवं ऊपर से लोहासव पिलाना चाहिए। बच्चों के सूखा रोग में प्रवाल भस्म एक रत्ती, मण्डूर भस्म १ रत्ती, गिलोय सत्त्व १ रत्ती में मिला कर देना विशेष लाभप्रद है। मण्डूर भस्म ४ रत्ती को कुटकी चूर्ण १ माशा के साथ देने से पाण्डु रोग में बहुत उत्तम लाभ होता है। दिन में तीन बार देना चाहिए।
मण्डूर भस्म के नुकसान : mandoor bhasma ke nuksan (side effects)
1-मण्डूर भस्म केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-सही प्रकार से बनी भस्म का ही सेवन करे।
4 अशुद्ध भस्म से शरीर पर बहुत से हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होतें है |
5-डॉक्टर की सलाह के अनुसार मण्डूर भस्म की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।