Last Updated on August 15, 2019 by admin
जानिए क्यों मनाया जाता है राखी का त्योहार : Raksha Bandha Kyon Manaya Jata hai
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।
रक्षा बंधन (raksha bandhan )की विशेषता –Raksha Bandhan in Hindi
रक्षा बंधन का पर्व विशेष रुप से भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है। एक ऎसा बंधन जो दो जनों को स्नेह की धागे से बांध ले। पुराणों के अनुसार आप जिसकी भी रक्षा एवं उन्नति की इच्छा रखते हैं उसे रक्षा सूत्र यानी राखी बांध सकते हैं, चाहें वह किसी भी रिश्ते में हो। रक्षा बंधन को भाई – बहन तक ही सीमित रखना सही नहीं होगा। बल्कि ऎसा कोई भी बंधन जो किसी को भी बांध सकता है। भाई – बहन के रिश्तों की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए यह बंधन आज गुरु का शिष्य को राखी बांधना, एक भाई का दूसरे भाई को, बहनों का आपस में राखी बांधना और दो मित्रों का एक-दूसरे को राखी बांधना, माता-पिता का संतान को राखी बांधना हो सकता है।
रक्षा बंधन के महत्व को समझने के लिये सबसे पहले इसके अर्थ को समझना होगा। “रक्षाबंधन ” रक्षा+बंधन दो शब्दों से मिलकर बना है। अर्थात एक ऎसा बंधन जो रक्षा का वचन लें। आज के परिपेक्ष्य में राखी केवल बहन का रिश्ता स्वीकारना नहीं है अपितु राखी का अर्थ है, जो यह श्रद्धा व विश्वास का धागा बांधता है। वह राखी बंधवाने वाले व्यक्ति के दायित्वों को स्वीकार करता है। उस रिश्ते को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता है।
रक्षा बंधन का उल्लेख हमारी पौराणिक कथाओं व महाभारत में मिलता है और इसके अतिरिक्त इसकी ऐतिहासिक व साहित्यिक महत्ता भी उल्लेखनीय है।
रक्षा बंधन (raksha bandhan )की पौराणिक कथाएं –
राखी (Rakhi) का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन पौराणिक कथाओं, पुराणों व महाभारत में इसका कई उल्लेख मिलता है।
1). राजा बलि की कथा
सबसे पहली कथा में भगवान विष्णु से संबंधित है, जिसके अनुसार राजा बालि ने जब 110 यज्ञ पूर्ण कर लिए तब देवताओं का डर बढ़ गया। उन्हें यह भय सताने लगा कि यज्ञों की शक्ति से राजा बलि स्वर्ग लोक पर भी कब्ज़ा कर लेंगे, इसलिए सभी देव भगवान विष्णु के पास स्वर्ग लोक की रक्षा की फरियाद लेकर पहुंचे। जिसके बाद विष्णुजी ब्राह्मण वेष धारण कर राजा बलि के समझ प्रकट हुए और उनसे भिक्षा मांगी। भिक्षा में राजा ने उन्हें तीन पग भूमि देने का वादा किया। लेकिन तभी बलि के गु्रु शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु राजा अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी।
इस दौरान विष्णुजी ने वामन रूप में एक पग में स्वर्ग में और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। अब बारी थी तीसरे पग की, लेकिन उसे वे कहां रखें? वामन का तीसरा पग आगे बढ़ता हुआ देख राजा परेशान हो गए, वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें और तभी उन्होंने आगे बढ़कर अपना सिर वामन देव के चरणों में रखा और कहा कि तीसरा पग आप यहां रख दें। इस तरह से राजा से स्वर्ग एवं पृथ्वी में रहने का अधिकार छीन लिया गया और वे रसातल लोक में रहने के लिए विवश हो गए। कहते हैं कि जब बलि रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। इस वजह से मां लक्ष्मी, जो कि विष्णुजी की अर्धांगिनी थी वे परेशान हो गईं।
भगवान के रसातल निवास से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी, उस दिन से ही रक्षा-बंधन मनाया जाने लगा। आज भी कई जगहे इसी कथा को आधार मानकर रक्षाबंधन मनाया जाता है।
2). भविष्य पुराण की कथा
दूसरी कथा भविष्य पुराण की है जिसके अनुसार प्राचीन काल में एक बार बारह वर्षों तक देवासुर संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं की दानवों से हार हो रही थी। दुःखी और पराजित इन्द्र, गुरु बृहस्पति के पास गए। कहते हैं उस समय वहां इन्द्र की पत्नी शुचि भी मौजूद थीं। इन्द्र की व्यथा जानकर इन्द्राणी ने कहा, “हे स्वामी! कल ब्राह्मण शुक्ल पूर्णिमा है। मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूंगी, उसे आप स्वस्तिवाचन पूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा। आप अवश्य ही विजयी होंगे।“ दूसरे दिन इन्द्र ने इन्द्राणी द्वारा बनाए रक्षाविधान का स्वस्तिवाचन पूर्वक बृहस्पति से रक्षाबंधन कराया, जिसके प्रभाव से इन्द्र सहित देवताओं की विजय हुई। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
3). महाभारत की कथा
यह कथा महाभारत युग से जुड़ी है। महाभारत में कृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस कृष्ण के पास आया तो उस समय कृष्ण की उंगली कट गई भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साडी़ का किनारा फाड़ कर कृष्ण की उंगली में बांधा था, जिसको लेकर कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। इसी ऋण को चुकाने के लिए दु:शासन द्वारा चीरहरण करते समय कृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी। तब से ‘रक्षाबंधन’ का पर्व मनाने का चलन चला आ रहा है।
4). महाभारत से अन्य कथा
एक बार युधिष्ठिर ने कृष्ण भगवान से पूछा- ‘हे अच्युत! मुझे रक्षाबन्धन (raksha bandhan )की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा और दु:ख दूर होता है। इस पर भगवान बोले- ‘हे पाण्डव श्रेष्ठ! प्राचीन समय में एक बार देवों तथा असुरों में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ। संग्राम में देवराज इंद्र की पराजय हुई। देवता कान्तिविहीन हो गए। इंद्र रणभूमि छोड़कर विजय की आशा को तिलांजलि देकर देवताओं सहित अमरावती चला गया। विजेता दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया और राजपद में घोषित कर दिया कि इंद्रदेव सभा में न आएं तथा देवता एवं मनुष्य यज्ञ कर्म न करें। सब लोग मेरी पूजा करें, जिसको इसमें आपत्ति हो वह राज्य छोड़कर चला जाए। दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ, वेद, पठन, पाठन तथा उत्सव समाप्त कर दिए गए। धर्म का नाश होने से देवों का बल घटने लगा। इधर इंद्र दानवों से भयभीत होकर देवगुरु बृहस्पति को बुलाकर कहने लगे- ‘हे गुरु! मैं शत्रुओं से घिरा हुआ प्राणान्त संग्राम करना चाहता हूँ। होनी बलवान होती है, जो होना है, होकर रहेगा। पहले तो बृहस्पति ने समझाया कि क्रोध करना व्यर्थ है। परंतु इंद्र की हठधर्मिता तथा उत्साह देखकर रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रात:काल ही रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
स्वयं गुरु ने उन्हें एक मंत्र प्रदान किया – “येनवद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाममिवध्नामि रक्षे माचल माचल।।“ इस मन्त्रोच्चारण से देवगुरु ने श्रावणी के ही दिन रक्षा विधान किया। सहधर्मिणी इंद्राणी के साथ वृत्त संहारक इंद्र ने बृहस्पति की उस वाणी का अक्षरश: पालन किया और दानवों पर विजय प्राप्त की। कहते हैं कि आज भी इसी मंत्र का उच्चारण करके कई लोग रक्षाबंधन (raksha bandhan )का त्यौहार मनाते हैं।